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-सरबजीत सिंह धालीवाल
पंजाबी गायक और युवा कांग्रेसी नेता शुभदीप सिंह सिद्धू उर्फ सिद्धू मूसेवाला की 29 मई की शाम मनसा में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
इस हत्या के बाद पंजाब सरकार आश्वासन दे रही है कि अभियुक्तों को बख़्शा नहीं जाएगा.
हालांकि छह दिन बीतने के बाद भी पंजाब पुलिस अभी तक अभियुक्तों के ठिकाने को लेकर कोई जानकारी नहीं दे पाई है.
शनिवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सिद्धू मूसेवाला के पिता बलकौर सिंह से मुलाक़ात की है.
लेकिन इस हत्याकांड से जुड़े ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब अभी तक नहीं मिले हैं. एक नज़र उन सवालों पर.
मूसेवाला हत्याकांड की जांच कहां तक पहुंची है?
पंजाब पुलिस अलग-अलग टीम इस मामले में छापेमारी कर रही है लेकिन कोई ठोस बात सामने नहीं आ पाई है. पंजाब सरकार ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जज की अध्यक्षता में एक न्यायिक जांच आयोग की घोषणा की है.
पंजाब पुलिस हत्या के मामले में पहले ही एसआईटी गठित कर चुकी है. एसआईटी अभी तक इस हत्याकांड के बारे में कोई जानकारी नहीं दे पाई है. हालांकि प्रदेश के पुलिस महानिदेशक वीके भावरा ने जांच दल का दायरा बढ़ा दिया है.
पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) पंजाब वीके भावरा ने एडीजीपी एंटी गैंगस्टर टास्क फोर्स के प्रमुख प्रमोद बान की देखरेख में विशेष जांच दल को नए सिरे से गठित किया है. अब, छह सदस्यीय एसआईटी में नए अध्यक्ष पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) पीएपी जसकरण सिंह और दो नए सदस्य एआईजी एजीटीएफ गुरमीत सिंह चौहान और एसएसपी मनसा गौरव तोरा शामिल होंगे.
एसआईटी में अभी तक एसपी जांच मनसा धर्मवीर सिंह, डीएसपी जांच बठिंडा विश्वजीत सिंह और सीआईए प्रभारी मनसा पृथ्वीपाल सिंह के रूप में तीन सदस्य तैनात थे.
अपने ताजा आदेश में डीजीपी ने कहा कि एसआईटी रोज़ाना जांच करेगी, इस जघन्य अपराध के दोषियों को गिरफ़्तार करेगी और जांच पूरी होने पर सीआरपीसी मामले को उठाएगी. आईपीसी की धारा 173 के तहत पुलिस रिपोर्ट अधिकार क्षेत्र के सक्षम न्यायालय को प्रस्तुत की जाएगी.
अब तक कितनी गिरफ़्तारियां हो चुकी हैं?
पुलिस ने अब तक एक युवा मनप्रीत सिंह को आधिकारिक रूप से गिरफ़्तार करने का दावा किया है.
लेकिन सूत्रों के मुताबिक कुछ अन्य लोगों को भी पुलिस हिरासत में लेकर पूछताछ कर रही है.
मनसा के एसएसपी गौरव तोरा के मुताबिक, दो और लोगों को फिरोजपुर जेल से प्रोडक्शन वारंट पर ले जाया गया है.
तोरा ने यह भी दावा किया कि पुलिस के पास पर्याप्त सबूत हैं और जल्द ही इस हत्याकांड का खुलासा किया जाएगा.
सूत्रों के मुताबिक पुलिस ने कुछ युवकों को बाहरी राज्यों से भी गिरफ़्तार किया है. पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त वाहन भी बरामद कर लिया है.
पुलिस के अनुसार हत्या में चोरी के वाहन का इस्तेमाल किया गया था और उन पर लगाई गई नंबर प्लेट नकली थे.
अब तक की गई कार्रवाई से परिवार कितना संतुष्ट है?
केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के मुताबिक, परिवार ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर हत्या की केंद्रीय एजेंसी से जांच कराने की मांग की है.
शनिवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सिद् मूसावाला के पिता से मिल रहे हैं. उनसे पहले केंद्रीय मंत्री शेखावत गुरुवार को सिद्धू मूसेवाला के परिजनों से मिले थे.
उधर, मूसेवाला के परिवार ने भी पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से आरोपियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की मांग की.
पंजाब सरकार ने घोषणा की है कि हत्या में शामिल किसी को भी बख़्शा नहीं जाएगा.
पंजाब सरकार विभिन्न मशहूर हस्तियों और कथित गैंगस्टरों से सुरक्षा की मांग के बारे में क्या कर रही है?
पंजाब सरकार अब तक 424 से अधिक प्रमुख व्यक्तियों की सुरक्षा बहाल कर चुकी है.
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में, पंजाब सरकार ने जवाब दिया है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी के चलते सुरक्षाबलों की ज़रूरत के चलते सुरक्षा वापस ली गई थी, लेकिन बरसी के बाद यानी 7 जून के बाद सभी लोगों की सुरक्षा बहाल कर दी जाएगी.
हालांकि ये तर्क भगवंत मान सरकार ने मूसेवाला की हत्या के बाद दिया है, पहले ये माना जा रहा था कि सरकार राज्य में वीआईपी कल्चर पर अंकुश लगाना चाहती थी और उसके चलते ये क़दम उठाया गया था.
लॉरेंस बिश्नोई के बारे में पुलिस का क्या तर्क है?
पंजाब के डीजीपी वीके भावरा पहले ही कह चुके हैं कि हत्या के पीछे लॉरेंस बिश्नोई का हाथ था.
वैसे मूसावाला की हत्या की ज़िम्मेदारी सबसे पहले गोल्डी बरार ने ली थी. पंजाब पुलिस के मुताबिक गोल्डी बरार, लॉरेंस बिश्नोई के साथ मिलकर काम करता है. गोल्डी फिलहाल कनाडा में है और लॉरेंस दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है.
पंजाब पुलिस फिलहाल लॉरेन्स से हत्या के सिलसिले में पूछताछ के लिए क़ानूनी कार्रवाई में लगी हुई है. लॉरेंस पहले ही अदालत से अपील कर चुका है कि उसे पंजाब पुलिस के हवाले न किया जाए, हालांकि लॉरेंस को अभी तक इस मामले में कोर्ट से राहत नहीं मिली है. लॉरेंस ने आशंका जतायी है कि पंजाब पुलिस उसका फ़र्ज़ी इनकाउंटर कर सकती है.
एक निजी चैनल के रिपोर्टर ने दावा किया है कि उनसे सचिन बिश्नोई नाम के एक युवक ने संपर्क किया था, जो लॉरेंस बिश्नोई का रिश्तेदार होने का दावा करता है।
एक निजी चैनल के मुताबिक, चैनल को दिए अपने ऑडियो इंटरव्यू में सचिन बिश्नोई नाम के युवक का दावा है कि उसने मूसेवाल की हत्या की है.
हालांकि, सचिन बिश्नोई कौन हैं या उन्होंने चैनल से कहां बात की थी, इस पर न तो चैनल ने और न ही पंजाब पुलिस ने अब तक कोई टिप्पणी की है. बावजूद इसके ऑडियो तेजी से वायरल हो रहा है.
सिद्धू मूसेवाला के ख़िलाफ़ चल रहे आर्म्स एक्ट के मामलों का क्या होगा?
कानूनी जानकारों के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ कोई मामला बनता है और इस प्रक्रिया में उसकी मौत हो जाती है तो उसके ख़िलाफ़ कानूनी प्रक्रिया समाप्त हो जाती है.
हां, इसी मामले में अगर कोई अन्य अपराधी है तो उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी. (bbc.com)
बिहार में जाति गणना पर सहयोगी दल बीजेपी की ओर से जताई गई आशंकाओं से जुड़े सवाल पर नीतीश कुमार ने कोई जवाब देने से इनकार कर दिया.
बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने पत्रकारों से कहा था कि जातिगत जनगणना पर सर्वदलीय बैठक में उन्होंने आशंका जताई थी कि जातीय जनगणना के दौरान कोई रोहिंग्या और बांग्लादेशी का नाम नहीं जोड़ा जाए, जिससे बाद में वे नागरिकता का दावा करने लगेंगे. लेकिन जब नीतीश से पत्रकारों ने जायसवाल की इस आशंका के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा - पता नहीं.
सर्वदलीय बैठक में राज्य में जातिगत जनगणना के मुद्दे पर सहमति बनने के बाद जायसवाल ने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि बीजेपी ने इस जनगणना का समर्थन किया है लेकिन उसे कुछ आशंकाएं भी नजर आ रही हैं.
उन्होंने कहा, "बांग्लादेशी और रोहिंग्या जैसे विदेशी घुसपैठियों को इसमें शामिल नहीं किया जाना चाहिए. नहीं तो वे वैध नागरिकता का दावा करने लगेंगे."
जायसवाल ने कहा था कि सीमांचल क्षेत्र में ऊंची जाति के शेख मुस्लिम भी कथित तौर पर खुद को ओबीसी वर्ग में शामिल किए जाने का दावा करते हैं. (bbc.com)
पंजाब में कांग्रेस को फिर करारा झटका लगा है. कद्दावर नेता सुनील जाखड़ के पार्टी छोड़ने के बाद चार और विधायकों ने पार्टी छोड़ दी है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक राजकुमार वेरका, बलवीर सिंह सिद्धू, सुंदर शाम अरोड़ा और गुरप्रीत सिंह कांगर ने शनिवार को बीजेपी का दामन थाम लिया. ये सभी नेता कांग्रेस सरकार में मंत्री भी थे.
इनके अलावा बरनाला के पूर्व कांग्रेस विधायक केवल ढिल्लों, शिरोमणि अकाली दल के विधायक सरूप चंद सिंगला और मोहिंदर कौर जोश ने भी बीजेपी की सदस्यता ले ली.
इन सभी लोगों ने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, पंजाब के बीजेपी प्रमुख अश्विनी शर्मा और वरिष्ठ नेता दुष्यंत गौतम, तरुण चुघ, सुनील जाखड़ और मनजिंदर सिंह सिरसा की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ली.
बलवीर सिंह सिद्धू मोहाली से तीन बार विधायक रहे हैं. वह पिछली कांग्रेस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे. वहीं रामपुरा फुल से तीन बार के विधायक गुरप्रीत कांगर रेवेन्यू मंत्री थे.(bbc.com)
-सुरेखा अब्बूरी और बल्ला सतीश
हैदराबाद में एक नाबालिग लड़की के साथ कथित गैंगरेप का मामला सामने आया है जिसमें अब तक दो नाबालिगों सहित कुल तीन लोगों को गिरफ़्तार किया गया है.
हैदराबाद पुलिस ने तीन जून को मीडिया को इस मामले की जानकारी दी थी. पुलिस ने बताया था कि गैंगरेप का यह मामला 28 मई का है. जिसमें पांच अभियुक्तों ने एक कार में नाबालिग लड़की के साथ गैंगरेप किया.
मीडिया से जानकारी साझा करते हुए पुलिस ने बताया था कि इस मामले के पांच अभियुक्तों की पहचान की गई है और उनमें से तीन नाबालिग हैं जबकि दो बालिग हैं.
पुलिस अब तक तीन लोगों को गिरफ़्तार कर चुकी है जबकि अन्य अभियुक्तों की तलाश कर रही है. पुलिस ने भरोसा जताया था कि 48 घंटों के भीतर वह सभी अभियुक्तों को गिरफ़्तार कर लेगी.
जिस कार में गैंगरेप हुआ, उस कार का रजिस्ट्रेशन नंबर टेंपररी (अस्थाई) है. हालांकि अभी तक कार की शिनाख़्त नहीं हो सकी है.
लड़की ने अपने बयान में क्या कहा
पीड़ित लड़की के बयान और प्रारंभिक जानकारी के आधार पर पुलिस ने बताया कि अभियुक्त नशे में नहीं थे.
पुलिस ने बताया कि 28 मई की रात को लड़की के कुछ दोस्तों ने जुबली हिल्स में 'एम्नेशिया एंड इन्सोमेनिया' नाम के एक पब में पार्टी दी थी. पीड़ित लड़की इसी पार्टी में शामिल होने के लिए गई हुई थी. क्लब का दावा है कि वह एक नॉन-एल्कोहॉलिक पार्टी (जिसमें शराब की व्यवस्था नहीं थी) थी.
शाम क़रीब पांच-साढ़े पांच बजे पीड़ित लड़की और अभियुक्त लड़कों का ये ग्रुप पब के बाहर निकला. इस ग्रुप के लड़कों ने लड़की को उसके घर तक ड्रॉप करने का ऑफ़र दिया. इसके बाद पीड़ित लड़की अभियुक्तों के साथ, उनकी कार से ही एक पेस्ट्री की दुकान पर भी गई. उसके बाद अभियुक्त लड़की को एक जगह ले गए, जहां उसके बाद उन्होंने कार में उसके साथ गैंगरेप किया.
लड़की ने बताया क्या कुछ हुआ था?
पुलिस के मुताबिक़, पीड़ित लड़की के पिता ने 31 मई की रात को जुबली हिल्स पुलिस को संपर्क किया और घटना के संबंध में शिकायत दर्ज करवाई.
उन्होंने शिकायत में बताया कि पीड़ित लड़की के साथ छेड़छाड़ और मारपीट हुई है. उन्होंने बताया कि घटना के बाद से लड़की सदमे में है और इस स्थिति में नहीं है कि वो इस घटना के बारे में और अधिक जानकारी दे पाए.
शिकायत के आधार पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 354, 323 और पोक्सो अधिनियम के सेक्शन 9, 10 के तहत एफ़आईआर दर्ज कर ली थी.
भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के मुताबिक, "अगर कोई व्यक्ति ज़बरदस्ती एक महिला पर उसकी लज्जा भंग करने के इरादे से हमला करे तो उसे न्यूनतम एक साल और अधिकतम पाँच साल की सज़ा दी जा सकती है." वहीं पॉक्सो के तहत धाराएं इसलिए लगाई गई हैं क्योंकि पीड़ित लड़की नाबालिग है. वह 17 साल की हैं.
पुलिस ने कार्रवाई को आगे बढ़ात हुए पीड़ित लड़की को 'भरोसा' नाम के एक हेल्प-सेंटर भेजा, जहां ऐसी पीड़ित महिलाओं और बच्चियों की काउंसलिंग की जाती है.
वेस्ट ज़ोन, हैदराबाद के डीसीपी जोएल डेविस ने बताया कि पीड़ित लड़की ने काउंसलिंग के दौरान अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के बारे में विस्तार से बताया. उसने बताया कि उसका यौन-शोषण हुआ है. लड़की से जब अभियुक्तों के बारे में पूछा गया तो उसने बताया कि उसे सिर्फ़ एक अभियुक्त का ही नाम याद है.
लड़की से मिली जानकारी और कॉल डेटा, सीसीटीवी फ़ुटेज की जांच के बाद चार अन्य अभियुक्तों की भी पहचान कर ली गई.
पीड़ित लड़की के बयान के आधार पर एफ़आईआर में बदलाव करते हुए इसमें सामूहिक-बलात्कार के तहत मामला रजिस्टर किया गया और अब इस मामले में आईपीसी की धारा 376डी जोड़ दी गई है. पॉक्सो की धाराएं पहले से ही लगी हुई हैं.
राजनीतिक असर
सामूहिक बलात्कार की यह घटना तीन जून की दोपहर को मीडिया में आयी जिसके बाद से राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के दौर शुरू हो गए और कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. घटना ने राजनीतिक विवाद को भी जन्म दिया है.
राज्य के विपक्षी दल बीजेपी ने इस मामले पर सरकार और पुलिस प्रशासन को आड़े हाथों लेते हुए निशाना साधा है. आरोप लगाए जा रहे हैं कि जिन पांच अभियुक्तों के नाम इस घटना में सामने आए हैं वे सत्तारूढ़ टीआरएस और एआईएमआईएम के नेताओं के परिवार से हैं. बीजेपी का आरोप है कि इसी कारण इस मामले को दबाने की कोशिश की जा रही है.
बीजेपी की ओर से यह भी आरोप लगाया गया है कि इस मामले में जिन अभियुक्तों की पहचान की गई है उनमें से एक राज्य के गृह मंत्री महमूद अली का पोता है. इसके अलावा एआईएमआईएम के एक विधायक का बेटा और वक्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष का बेटा भी शामिल है.
बीजेपी ने सभी अभियुक्तों की गिरफ़्तारी की मांग करते हुए जुबली हिल्स थाने के सामने धरना भी दिया.
वहीं कांग्रेस ने इस मामले में कड़ी कार्रवाई की मांग की है. हालांकि मीडिया के एक सवाल का जवाब देते हुए वेस्ट ज़ोन के डीसीपी ने बताया कि इस मामले में गृह मंत्री के पोते की कोई संलिप्तता नहीं है.
उन्होंने कहा कि पुलिस एआईएमआईएम के एक विधायक के बेटे की कथित भूमिका को लेकर जांच कर रही है.
उन्होंने माना कि अभियुक्तों में से एक वीआईपी का बेटा है. हालांकि अभियुक्त के नाबालिग होने का हवाला देते हुए उन्होंने किसी भी तरह की जानकारी देने से इनकार कर दिया.
टीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष और तेलंगाना के नगर प्रशासन और शहरी विकास मंत्री कलवकुंतला तारक रामाराव (केटीआर) ने गृह मंत्री से अपराधियों के ख़िलाफ़ तुरंत और सख़्त कार्रवाई करने की मांग की है.
केटीआर ने 3 जून को ट्वीट किया है. उन्होंने लिखा- "हैदराबाद में एक नाबालिग के साथ बलात्कार की ख़बर से स्तब्ध हूं. गृह मंत्री से तत्काल और कड़ी कार्रवाई करने की अपील करता हूं. इस मामले में शामिल किसी भी शख़्स को उसके स्टेटस के आधार पर बख़्शा ना जाए."
केटीआर के ट्वीट को री-ट्वीट करते हुए गृह मंत्री ने जवाब दिया है.
उन्होंने लिखा है- "बिल्कुल केटीआर. यह एक भयावह घटना है. सभी अपराधियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाएगी, चाहे उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो." (bbc.com)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 4 जून । अपने 21 साथियों की सेवा समाप्त होने से छत्तीसगढ़ के मनरेगा कर्मचारी बिफर पड़े हैं।। सरकार के आदेश से आक्रोशित मनरेगा कर्मचारी संघ के 12000 से अधिक कर्मचारियों ने इस्तीफा दे दिया है। शनिवार को हुई वादा निभाओ रैली मनरेगा कर्मचारियों ने सामूहिक इस्तीफा दिया है, जिससे विभाग में हडक़ंप मच गया है।
मनरेगा कर्मचारी संघ के प्रदेश प्रवक्ता सूरज सिंह ने कहा कि ये कार्रवाई करके हमको डराना चाहते हैं। आंदोलन को ख़त्म करना चाहते हैं, लेकिन इनकी यह रणनीति नहीं चलेगी।
12000 से अधिक मनरेगा कर्मचारियों ने आंदोलन के 62 वें दिन महारैली का आयोजन सामूहिक त्यागपत्र सौप दिया है। अपने 21 सहायक परियोजना अधिकारियों की सेवा समाप्ति से क्रोधित कर्मचारियों ने यह कदम उठाकर छत्तीसगढ़ के इतिहास में काला दिन लिख दिया है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि यह पहला मामला होगा कि किसी भी कर्मचारी संगठन ने इससे पहले इतना बड़ा कदम उठाया हो। बर्खास्तगी आदेश को संवैधानिक अधिकारों का हनन करार देते हुए आदेश की प्रतियां जलाई। रैली में हजारों की तादाद में कर्मचारी शामिल हुए।
छत्तीसगढ़ मनरेगा कर्मचारी महासंघ के प्रांत अध्यक्ष चंद्रशेखर अग्निवंशी और कार्यकारी अध्यक्ष राधेश्याम कुर्रे ने बताया कि सहायक परियोजना अधिकारी की बर्खास्तगी के आदेश की महासंघ घोर निंदा करता है। इसे तत्काल निरस्त नहीं करने के कारण यह कदम उठाया गया। कांग्रेस सरकार ने अपने जन घोषणा घोषणा पत्र में यह वादा किया गया था की समस्त संविदा कर्मचारियों की नियमितीकरण एवं किसी भी संविदा कर्मचारी की छंटनी नहीं की जाएगी। यह वादा की थी किंतु इसके विपरीत कड़ा दंडात्मक कार्रवाई की गई है।
हमारी दो सूत्रीय मांग चुनावी जन घोषणा पत्र को आत्मसात करते हुए समस्त मनरेगा कर्मियों का नियमितीकरण किया जावे एवं नियमितीकरण की प्रक्रिया पूर्ण होने तक ग्राम रोजगार सहायकों का वेतनमान निर्धारण करते हुए समस्त मनरेगा कर्मियों पर सिविल सेवा नियम 1966 के साथ पंचायत कर्मी नियमावली लागू करने की है।
महा संघ के प्रवक्ता सूरज सिंह ठाकुर ने कहा कि सरकार की कथनी और करनी है मैं फर्क है यह कर्मचारी जगत के लिए संवेदनहीनता की पराकाष्ठा वाला आदेश है। हम समस्त कर्मचारी जगत से इसका विरोध में सडक़ की लड़ाई लडऩे के लिए अपील करते हैं। यह आंदोलन बिना लक्ष्य पूर्ति के समाप्त नहीं होने वाला है।
प्रेसवार्ता में नहीं पहुंची केंद्रीय राज्यमंत्री रेणुका
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अम्बिकापुर, 4 जून। मोदी सरकार के 8 वर्ष पूर्ण होने पर अंबिकापुर नगर के स्थानीय भाजपा कार्यालय में पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए पूर्व कैबिनेट मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि मोदी सरकार के 8 साल बेमिसाल हैं, इन वर्षों में देश का मान सम्मान और गौरव बढ़ा है।
श्री अग्रवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री ने सेवा को ही संकल्प माना है, वे कहते हैं कि वह पीएम नहीं देश के प्रथम सेवक हैं। सेवा का अनुपम उदाहरण कोरोना में देखने को मिला। जहां छोटे-छोटे देशों में टीका अब तक नहीं लग पाया है, वहीं भारत में 200 करोड़ से अधिक लोगों को टीका लग चुका है। अब 7 से 18 साल के बच्चों को भी वैक्सिंग लगना प्रारंभ हो गया है, इससे बड़ा सेवा का उदाहरण दूसरा नहीं हो सकता।
श्री अग्रवाल ने कहा कि मोदी सरकार आने के बाद भारत दंगा मुक्त हो गया है, तुष्टीकरण की राजनीति भी अब समाप्त हो गया है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत की एकता और अखंडता अब देखते ही बनती है। पूरा विश्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सर्वश्रेष्ठ नेता के रूप में खिताब दे रहे हैं। कोरोना काल में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मोदी सरकार में ही संभव हो पाता। गरीबों के लिए पीएम आवास,शुद्ध नल जल योजना,आयुष्मान के तहत मुफ्त इलाज हो रहा है।गरीबी 22 प्रतिशत से घटकर 10 प्रतिशत पर आ गई है।
श्री अग्रवाल ने कहा कि पहले योजना कागज में बनती थी, अब धरातल में और उसी कार्यकाल में पूरी हो रही है। यूपीए की सरकार में 100 रुपए में 15 रुपए ही जनता के पास पहुंच पाता था पर अब मोदी सरकार में पूरे 100 रुपए लोगों के खाते में पहुंच रहे हैं। 8 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय दुगनी हो गई है।एक लाख करोड़ रुपए किसान सम्मान निधि से किसानों के खाते में गई है। वन नेशन वन राशन कार्ड गरीब मजदूरों को व अन्य लोगों को काफी राहत पहुंचाएगा। श्री अग्रवाल ने कहा कि कश्मीर में धारा 370 की समाप्ति, अयोध्या में प्रभु श्री राम के मंदिर, ट्रिपल तलाक से मुस्लिम महिलाओं को आजादी, आतंकवाद के खिलाफ व्यापक अभियान, ओबीसी कमिशन को संवैधानिक दर्जा, यह सब मोदी सरकार में संभव हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2047 के विजन की तैयारी में है।
भूपेश बघेल की सरकार गरीबों की छत छीनने वाली, हर व्यक्ति पर 40 हजार का कर्ज थोपा
वार्ता के दौरान बृजमोहन अग्रवाल ने बताया कि छत्तीसगढ़ की सरकार गरीबों की छत को छीनने वाली सरकार है।केंद्र से पीएम आवास के स्वीकृति के बाद भी राज्य सरकार अपना अंशदान नहीं देने के कारण लाखों गरीब लोगों का छत छीन गया। छत्तीसगढ़ में छप्पन लाख टीके उपलब्ध है, लेकिन लापरवाही के कारण लोगों को नहीं लग पा रहे है। केंद्र से पहले राज्यों का अंशदान 32 प्रतिशत था, अब 42 प्रतिशत कर दिया गया है। उसके बाद ही छत्तीसगढ़ राज्य अपने कर्मचारियों को पैसा नहीं बांट पा रही है। मितानिन, वन कर्मी, बिजली कर्मचारी, मनरेगा व अन्य कर्मचारी सडक़ों पर हैं। श्री अग्रवाल ने बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार दिवालिया हो गई है, अब तक उन्होंने एक लाख करोड़ रुपए का कर्ज ले लिया है और हर आदमी पर 40 हजार रुपए का कर्ज थोप दिया है।
श्री अग्रवाल ने कहा कि छत्तीसगढिय़ा की बात करने वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राज्यसभा का टिकट किसी छत्तीसगढिय़ा को क्यों नहीं दिलवाया? जिन्हें सदस्य बनाया गया है, उन्हें प्रमाण पत्र लेने आने की फुर्सत नहीं है। वह छत्तीसगढ़ के हित की क्या बात करेंगे। श्री अग्रवाल ने कहा कि प्रदेश में माफिया राज, भ्रष्टाचार दोहन, कानून व्यवस्था पूरी तरह डगमगा गई है।बिना पैसों के अधिकारी की नियुक्ति नहीं होती। मुख्यमंत्री को केंद्र सरकार से प्रेरणा लेकर छत्तीसगढ़ के विकास को आगे बढ़ाना चाहिए।
भूपेश बघेल राजस्थान सरकार के दबाव में है
हसदेव अरण्य में परसा कोल ब्लॉक को लेकर वहां पेड़ की कटाई को लेकर पत्रकारों द्वारा किए गए प्रश्न पर बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राजस्थान सरकार के दबाव में हैं।कांग्रेस के किसी भी प्रदेश स्तर के नेता पेड़ों की कटाई पर कुछ नहीं बोल रहे।अगर वाकई में हसदेव क्षेत्र में पेड़ों की कटाई को रोकना है तो प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम क्यों नहीं कुछ बोलते हैं।श्री अग्रवाल ने कहा कि जिस दिन राज्य सरकार हमसे बात करेगी इसका समाधान निकल जाएगा।
प्रदेश में गोबर और ढेबर की चर्चा-नेताम
पूर्व राज्यसभा सांसद रामविचार नेताम ने प्रेस वार्ता के दौरान पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि मोदी सरकार के 8 वर्षों के कार्यकाल में भारत आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ा है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश विकास की ओर अग्रसर है और लोगों का मोदी सरकार की योजनाओं का भरपूर लाभ मिल रहा है।श्री नेताम ने इस दौरान राज्य सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि प्रदेश में इस समय सिर्फ दो ही लोग की चर्चा हो रही है एक गोबर की और दूसरा ढेबर की। प्रेस वार्ता के दौरान पूर्व सांसद कमलभान सिंह,वरिष्ठ भाजपा नेता अनिल सिंह मेजर,प्रबोध मिंज,ललन प्रताप सिंह, अखिलेश सोनी,भारत सिंह सिसोदिया सहित अन्य मौजूद थे।
आज सरगुजा भाजपा के प्रेस कान्फ्रेंस में केन्द्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह का न आना चर्चा का विषय रहा, सूत्रों हवाले से जानकारी मिली कि मंत्री भाजपा मीडिया विभाग द्वारा प्रत्रकारों को प्रेसवार्ता के लिए जारी व्हाट्सअप आमंत्रण मैसेज में अपना नाम पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से नीचे होने पर भारी नाराज थीं, नाराजगी का आलम ये था कि उन्होंने जिला भाजपा के अध्यक्ष व मीडिया प्रभारी को फोन पर ही खरी खोटी सुना दी और कहा कि आप लोग प्रोटोकॉल भूल गए हैं क्या..? छत्तीसगढ़ में सीएम और राज्यपाल के बाद उनका ही प्रोटोकॉल आता है..ध्यान रहे।
गौरतलब है कि पूरे भारतवर्ष में एक ओर जहां मोदी सरकार के 8 वर्ष पूर्ण होने पर पूरे देश की जनता को स्मरण कराने मोदी सरकार की उपलब्धियां एवं सुशासन का गरीबी पखवाड़ा मनाया जा रहा है वहीं सरगुजा से केंद्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से मीडिया को भेजे गए मैसेज में उलझ कर रह गई और भाजपा के इस महत्वपूर्ण कार्य में अपनी सहभागिता नहीं निभाई। भाजपा के कई बड़े पदाधिकारी केंद्रीय राज्य मंत्री के इस व्यवहार से नाखुश है।
अगरतला, 4 जून | सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने शनिवार को त्रिपुरा की चार विधानसभा सीटों पर 23 जून को होने वाले उपचुनाव के लिए मुख्यमंत्री माणिक साहा को टाउन बोरदोवाली निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार घोषित किया।
भाजपा प्रवक्ता नबेंदु भट्टाचार्जी ने यहां कहा कि पार्टी के संसदीय बोर्ड ने दिल्ली में चार उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की, साथ ही राज्य भाजपा उपाध्यक्ष अशोक सिन्हा को प्रतिष्ठित अगरतला सीट से मैदान में उतारा है।
इसने क्रमश: सूरमा (एससी) और जुबराजनगर विधानसभा क्षेत्रों के लिए दो महिला उम्मीदवारों - स्वप्ना दास पॉल और मालिना देबनाथ को भी नामांकित किया है। अपने लगभग तीन दशक लंबे राजनीतिक जीवन में, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री साहा, जो वर्तमान में राज्यसभा सदस्य और राज्य भाजपा अध्यक्ष हैं, पहली बार उपचुनाव में सीधे चुनाव लड़ेंगे, क्योंकि वह राज्य विधानसभा के सदस्य नहीं हैं।
विपक्षी कांग्रेस ने भी शनिवार को दो उम्मीदवारों की घोषणा की - अगरतला सीट से सुदीप रॉय बर्मन और टाउन बोरदोवाली निर्वाचन क्षेत्र से आशीष कुमार साहा। पार्टी सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस रविवार को जुबराजनगर सीट के लिए अपने उम्मीदवार की घोषणा कर सकती है और त्रिपुरा के शाही वंशज प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मन के नेतृत्व में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सूरमा सीट पर तिप्राहा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन के साथ गठबंधन कर सकती है।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि चार विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव सत्तारूढ़ भाजपा और माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चा, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच एक बहुकोणीय मुकाबला होगा और इन उपचुनावों को अगले साल 60 सीटों वाली त्रिपुरा विधानसभा के आम चुनाव से पहले सेमीफाइनल माना जा रहा है।
विपक्षी कांग्रेस भी शनिवार या रविवार को उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करेगी, हालांकि, पार्टी सूत्रों ने पुष्टि की है कि आशीष कुमार साहा टाउन बोरदोवाली सीट से चुनाव लड़ेंगे और सुदीप रॉय बर्मन अपनी पुरानी सीट अगरतला सीट से चुनाव लड़ेंगे।
चुनाव आयोग द्वारा 25 मई को राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उपचुनावों के कार्यक्रम की घोषणा के तुरंत बाद सत्ताधारी और विपक्षी दोनों दलों ने अपना व्यस्त अभियान शुरू कर दिया।
चुनाव आयोग के कार्यक्रम के अनुसार नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 6 जून है, अगले दिन स्क्रूटनी की जाएगी और नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि 9 जून है।
वोटों की गिनती 26 जून को होगी।
भाजपा के तीन विधायकों के इस्तीफे और माकपा विधायक रामेंद्र चंद्र देवनाथ के निधन के बाद उपचुनाव की जरूरत पड़ी है।
तत्कालीन सीएम देब के खिलाफ भाजपा विधायकों के एक वर्ग द्वारा खुली नाराजगी के बीच, तीन विधायकों, रॉय बर्मन (अगरतला), आशीष कुमार साहा (नगर बोरदोवाली), आशीष दास (सूरमा) ने भाजपा और विधानसभा छोड़ दी थी।
भाजपा के पूर्व मंत्री रॉय बर्मन और साहा इस साल फरवरी में कांग्रेस में शामिल हुए थे, जबकि दास पिछले साल तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए थे।
जुबराजनगर निर्वाचन क्षेत्र से छह बार चुने जा चुके देवनाथ कई बार विधानसभा अध्यक्ष रह चुके थे।
किडनी फेल होने के कारण 2 फरवरी को कोलकाता में उनका निधन हो गया था। (आईएएनएस)
नयी दिल्ली, 4 जून | अमेरिका के कैलिफोर्निया में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा को जनवरी 2021 में कुछ उपद्रवियों ने क्षति पहुंचाई थी। भारत सरकार द्वारा 2016 में डेविस शहर को दी गई प्रतिमा को एक पार्क में स्थापित किया गया था, जो भारत विरोधी और गांधी विरोधी संगठनों की भेंट चढ़ गई। इसी तरह की एक घटना दिसंबर 2020 में वाशिंगटन डीसी में भी सामने आई थी, जब उपद्रवियों के एक समूह ने बापू की प्रतिमा को विरूपित किया था। इस घटना ने भारतीय और अमेरिकी दोनों मीडिया में सुर्खियां बटोरी थीं।
द डिसइन्फोलैब की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, इन घटनाओं के पीछे ऑर्गेनाइजेशन फॉर द माइनॉरिटीज ऑफ इंडिया (ओएफएमआई) का हाथ था। इस संगठन की स्थापना खुद को दक्षिण एशिया का स्वघोषित विशेषज्ञ कहने वाले पीटर फ्रेडरिक ने की थी। इस घटनाओं को अंजाम देने में अमेरिका में रहने वाला एक खालिस्तानी समर्थक भजन सिंह भिंडर उर्फ इकबाल चौधरी का भी हाथ माना जाता है।
भिंडर सिख यूथ ऑफ अमेरिका (1989 में स्थापित) का सदस्य था, जो अमेरिका और कनाडा में खालिस्तानी गतिविधियों का नेतृत्व करने वाला खालिस्तान समर्थक समूह था। मादक पदार्थों की तस्करी के एक मामले में कनाडा स्थित इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन के साथ अपने संबंधों के लिए यह समूह कई मौकों पर कनाडाई और अमेरिकी सरकार के रडार पर था।
द डिसइंफोलैब के मुताबिक, कुख्यात लाल सिंह बनाम गुजरात राज्य मामले में, भिंडर को भारत में सुनियोजित आतंकवादी हमलों के लिए फंड देने वाले के रूप में नामित किया गया था। लाल सिंह के साथ मोहम्मद शरीफ (आईएसआई एजेंट), ताहिर जमाल, मोहम्मद साकिब नचन और शोएब मुख्तियार ने 1991-92 में के -2 (कश्मीर-खालिस्तान) नामक एक षड्यंत्र के लिए पाकिस्तानी खुफिया विभाग के साथ काम किया था। यह साजिश जमात-ए-इस्लामी के तत्कालीन सचिव अमीर उल अजीम के संरक्षण में लाहौर में रची गई थी। इसे पूर्व सूचना मंत्री फवाद चौधरी के चाचा चौधरी अल्ताफ हुसैन सहित कई पाकिस्तानी नेताओं ने सक्रिय रूप से समर्थन दिया था।
ओएफएमआई को जुलाई 2007 में फ्रेडरिक द्वारा पंजीकृत किया गया था, जब भिंडर को भारत सरकार द्वारा एक आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। इसकी स्थापना के बाद से, संगठन के संस्थापकों ने एक ट्रांसपोर्ट कंपनी (सेफ्टी नेट ट्रांसपो) और एक बुक पब्लिशिंग हाउस (सॉवरेन स्टार पब्लिशिंग) सहित कई कंपनियां खोलीं।
डिसइंफोलैब की रिपोर्ट के अनुसार, ओएफएमआई ने अहिंसा, योग और चाय (चाय) की भारत की छवि को धूमिल करने के लिए वैकल्पिक तरीकों को अपनाया। उसने एक अलग कहानी बयान करकेलोकतंत्र के रूप में भारत की छवि को धूमिल करने और इसे 'फासीवादी राज्य' के रूप में प्रचारित करने का फॉर्मूला अपनाया। इसके लिए फर्जी विशेषज्ञों की फौज खड़ी की गई, जो इसी फॉर्मूले को अपनाकर अपना पक्ष रखते थे।
फ्रेडरिक को एक 'विशेषज्ञ' के रूप में मुख्यधारा में पदोन्नत किया जा रहा था। उसने गांधी के खिलाफ 'भारत में फासीवाद' पर किताबें लिखीं। फ्रेडरिक ने 2020 के काबुल गुरुद्वारा विस्फोट में पाकिस्तान की भूमिका को भी कमतर करने की कोशिश की थी। इस हमले में 25 सिख मारे गए थे।
उसकी सभी साहित्यिक कृतियों को भिंडर के सॉवरेन स्टार पब्लिशिंग ने प्रकाशित किया था।
रिपोर्ट में कहा गया है भारत को एक उभरते हुए राष्ट्र के रूप में देखा जाता है और चाय, योग तथा गांधी, भारतीय सॉफ्ट पावर के प्रतीक हैं और उन्हें दुनिया के लिए एक उपहार माना जाता है। फ्रेडरिक ने कई किताबों के माध्यम से भारत के इन प्रतीकों को व्यवस्थित रूप से लक्षित किया। उसने इन किताबों को अलग-अलग नामों से प्रकाशित किया। ये नाम पैट्रिक जे नेवर्स, पीटर फ्रेडरिक, सिंह ऑफ जूडा, पीटर सिंह और पीटर फ्लैनियन हैं। इन नामों का इस्तेमाल एक अलग कहानी को गढ़ने और भारत पर हमले करने और गांधी विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए किया गया।
दिलचस्प बात यह है कि ओएफएमआई भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद और हिंदू फॉर ह्युमैन राइट्स (एचएफएचआर) के साथ गठबंधन का भी हिस्सा था। यह गठबंधन 2019 में हुआ और इसे एलायंस फॉर जस्टिस एंड एकाउंटेबिलिटी (एजेए) नाम दिया गया।
एजेए के माध्यम से इन संगठनों ने सितंबर 2019 में 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम के दौरान ह्यूस्टन में विरोध प्रदर्शन किया था।
(आईएएनएस)
जयपुर, 4 जून | मीडिया कारोबारी सुभाष चंद्रा को राजस्थान की चौथी राज्यसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उतारने से सत्तारूढ़ दल तनाव में है। कांग्रेस तीन सीटों पर आसान जीत के बारे में सोच रही है, जबकि भाजपा के लिए कम से कम एक राज्यसभा सीट सुनिश्चित दिखाई दे रही है।
अपने विधायकों को विपक्षी पार्टी के प्रलोभन से बचाने के प्रयास में, कांग्रेस सरकार उन्हें उदयपुर ले गई है।
आखिरकार, सोशल मीडिया पर नए शब्द ट्रेंड कर रहे हैं, इनमें से कुछ हैं हॉर्स ट्रेडिंग, एलिफेंट ट्रेडिंग, बाड़ाबंदी (राजनीतिक बाड़ लगाना), बाड़ा-बंक (विधायक बंकिंग फेंसिंग) और जी 6 समूह।
कुल मिलाकर, बसपा के चार और कांग्रेस के दो विधायक कांग्रेस सरकार के लिए मुसीबत बने हुए हैं।
इन छह विधायकों के समूह को जी-6 कहा जा रहा है क्योंकि वे कांग्रेस सरकार के खिलाफ मुखर हो रहे हैं। यह उसी तर्ज पर है, जिस तरह जी-23 नेताओं का समूह एक बार कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ गया था।
दरअसल, उनमें से कई को तब सरिस्का में सफारी का मजा लेते देखा गया, जब कांग्रेस विधायक उदयपुर कैंप में जा रहे थे।
बसपा के एक असंतुष्ट नेता वाजिब अली ने कहा, "हमने सरिस्का में एक बाघ देखा है और अब हम बाड़टाबंडी के इच्छुक नहीं हैं।"
एक अन्य विधायक गिरिराज मलिंगा ने खुलकर कहा है कि उन्होंने कांग्रेस के साथ '7 फेरे' (हमेशा का साथ नहीं है) नहीं लिए हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या वह उदयपुर में राजनीतिक फेंसिंग में शामिल होने जा रहे हैं, उन्होंने कहा, "हम गुलाम नहीं हैं।"
एक अन्य विधायक राजेंद्र गुडा ने कहा, "सीएम मीडिया से बहुत कुछ बोलते हैं। गहलोत साहब बोलते बहुत हैं, कि ये किया, मीडिया में बोलते हैं। कभी बैठा के चिंता करते तो ज्यादा ठीक होता।"
एक अन्य विधायक खिलाड़ी लाल बैरवा ने कहा, "हम गुलाम नहीं हैं। हमसे बड़ा वादा किया गया था जब एक गुट ने विद्रोह किया था, जब सरकार खतरे में थी और अब हम गुलाम नहीं होंगे।"
इस बीच बीजेपी ने भी अपने विधायकों के लिए बाड़ेबंदी का ऐलान किया है जिसे ट्रेनिंग कैंप कहा जा रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा, "हम उन्हें जयपुर के होटल में ले जाएंगे। अरुण सिंह, नरेंद्र सिंह तोमर जैसे केंद्रीय नेता 6 जून से इन विधायकों के साथ रहेंगे। हमारे विधायकों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।"
चंद्रा को मैदान में उतारने के बाद से ही कांग्रेस बीजेपी पर खरीद-फरोख्त का आरोप लगा रही है। हालांकि बीजेपी ने बदले में कांग्रेस पर एलिफेंट ट्रेडिंग का आरोप लगाया है।
सतीश पूनिया ने कहा, "उन्होंने दो बार एलिफेंट ट्रेडिंग किया, एक बार 2008 में और दूसरा 2018 में बसपा के सभी विधायकों का कांग्रेस में विलय करके।"
वहीं गहलोत ने कहा है कि उन्होंने चंद्रा को मैदान में उतारा है, लेकिन वे वोट कहां से लाएंगे। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, "वे खरीद-फरोख्त में शामिल होंगे।"
इस बीच, एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है। उन्होंने आईएएनएस से बात करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से कहा, "नई दुनिया की राजनीति राजनीतिक शब्दावली में 'पिक्च र अभी बाकी है' के रूप में नए शब्द ला सकती है, यानी अंत अभी बाकी है।" (आईएएनएस)
पोडग़ांव में मुख्यमंत्री की बड़ी घोषणाएं
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 4 जून । सीएम बघेल ने अंतागढ़ में अपर कलेक्टर और एडिशनल एसपी की पदस्थापना की घोषणा की है। यानी भविष्य में अंतागढ़ को जिला बनाया जा सकता है।
सीएम बघेल नेअंतागढ़ पोडग़ाव से टेमरूपानी तक रोड़ चौड़ीकरण, अंतागढ़ में तहसील भवन निर्माण, अंतागढ़ गोल्डन चौक से बिजली ऑफिस तक मॉडल रोड निर्माण, ग्राम पंचायत बण्डापाल बालक/बालिका स्कूल एवं आश्रम निर्माण की भी घोषणाएं की?
इनके अलावा आमाबेड़ा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, उप स्वास्थ्य केंद्र भैंसासूर को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनाने, ग्राम पंचायत बड़े गोपाल में नवीन आंगनबाड़ी, पोडग़ांव हायर सेकेंडरी स्कूल के नवीन भवन और गुडरापारा नाला में पुलिया निर्माण की घोषणा की।
भानुप्रतापपुर से लौटकर सुनील कुमार
रायपुर, 4 जून। प्रदेश की जनता से भेंट-मुलाकात का भूपेश बघेल का लंबा सिलसिला जिले के अफसरों के लिए इस सरकार के कार्यकाल का सबसे बड़ा मोर्चा बन गया है। एक दिन में एक विधानसभा के तीन अलग-अलग गांवों में जाकर जनता के बीच उनका हाल जानना, और उन पर वहीं अफसरों से बात करना, एक बड़ा जनसंपर्क है। अभी चुनाव को सवा साल से ज्यादा बचा है, और ऐसे में हर विधानसभा क्षेत्र के गांवों से इस हद तक रूबरू होना, और चीजों को सुधारने की कोशिश करना मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए आईना देखने सरीखा साबित हो रहा है।
कल इस संवाददाता का रायपुर से उनके साथ जाकर बस्तर के कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर विधानसभा क्षेत्र के तीन गांवों को देखना हुआ। मुख्यमंत्री अपने साथ प्रदेश के आधा दर्जन बड़े आईएएस-आईपीएस अफसरों को लेकर चल रहे थे, कुछ साथ में दूसरे हेलीकॉप्टर में थे, कुछ अलग से मौकों पर पहुंचे हुए थे। चूंकि पूरा इलाका नक्सल असर का है, पुलिस और सुरक्षा बलों की भारी मौजूदगी भी थी।
रायपुर हेलीपैड पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भारी मौजूदगी थी, और पता लगा कि भूपेश बघेल के आते और जाते, दोनों वक्त दर्जन भर से अधिक कैमरे जुट जाते हैं क्योंकि उनसे खबरों के लायक कुछ न कुछ मिल ही जाता है। वे देश के दो कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों में से एक हैं, कांग्रेस के आज के एक सबसे ताकतवर नेता हैं, और मोदी-शाह से लेकर संघ और भाजपा तक को लेकर वे बेझिझक और बेधडक़ बोलते हैं, हर सवाल का खुलकर जवाब देते हैं, और इसलिए टीवी कैमरों के लिए वे राजधानी रायपुर में दिन में दो बार भी पसंदीदा रहते हैं। कुछ दूरी से खड़े रहकर इन सवाल-जवाब को देखना-सुनना दिलचस्प था क्योंकि सवाल बेधडक़ थे, और जवाब बेझिझक। रवानगी के पहले मीडिया से इस तेज रफ्तार बातचीत के बाद भूपेश रवाना हुए, तो भानुप्रतापपुर विधानसभा के गांव गितपहर पहुंचने पर हेलीकॉप्टर के नीचे आते हुए उनकी नींद टूटी। शायद हर दिन कई बार की ऐसी लैंडिंग से नींद टूटना जुड़ गया है।
बगल बैठे मुख्यमंत्री सचिवालय के सचिव भारतीदासन से मैंने पूछा कि कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ का जो हेलीकॉप्टर कै्रश हुआ है, जिसमें दोनों पायलट मारे गए, उसमें एक दिन पहले सरगुजा से कुछ अफसर भी लौटे थे? तो उनका कहना था कि सरगुजा से लौटे तीन अफसरों में वे भी थे, और वे उस हेलीकॉप्टर के आखिरी मुसाफिर भी थे। लेकिन सरकार में ऊंचे ओहदे ऊंचाई का डर खत्म कर देते हैं, इसलिए उस ताजा हादसे की न तो किसी को याद दिख रही थी, और न ही उसकी वजह से कोई आशंका ही थी। आम लोगों के बीच एक कार हादसे के बाद भी कार में चढऩा जारी रहता है, कुछ उसी तरह का हाल सरकार में हेलीकॉप्टर हादसे के बाद का है।
इस दौरे के दौरान हर गांव में भूपेश बघेल सबसे पहले वहां के मंदिर जा रहे हैं, और इस मामले में वे पिछले मुख्यमंत्री रमन सिंह से भी अधिक आस्थावान और धर्मालु हैं, जिनका ग्रामीण दौरा मंदिरों से परे भी रहता था। इस एक बात के अलावा धर्म से जुड़ी एक दूसरी बात भूपेश बघेल के लोगों से बातचीत का अनिवार्य हिस्सा है, और वह है गोठान, गोबर, गोमूत्र, दूध, और चारा। इन सबके लिए उनकी सरकार ने बड़ी महत्वाकांक्षी और व्यापक योजना बनाई है, और जनता की भीड़ के बीच जब वे लोगों तक माईक भिजवाकर उनसे सवाल करते हैं, तो उनमें गाय से जुड़े मुद्दे बहुत से रहते हैं। कुछ अरसा पहले भाजपा के एक बड़े नेता ने रायपुर में एक अनौपचारिक चर्चा में मुझसे कहा था कि छत्तीसगढ़ में गाय तो भाजपा के हाथ से निकल गई है, और खुद चलते हुए जाकर भूपेश बघेल के घर में खड़ी हो गई है।
भूपेश बघेल हर सभा के अंत में माईक से भारतमाता की जय और छत्तीसगढ़ महतारी की जय के नारे लगवाते हैं, कम से कम इन सभाओं के लोगों के बीच तो गौमाता के साथ-साथ भारतमाता पर भी भूपेश बघेल कब्जा करते चल रहे हैं।
एक जगह भाजपा के कुछ नौजवान काले झंडे लेकर प्रदर्शन कर रहे थे, तो भूपेश बघेल ने पुलिस अधिकारियों को कहा कि उन्हें रोकने की जरूरत नहीं है, उन्हें यहीं पर बुला लें, लेकर आएं कि उन्हें जो पूछना हो वे पूछें, और वे (भूपेश) भी पूछ सकें कि पेट्रोल-डीजल और गैस का क्या भाव चल रहा है।
भूपेश सरकार ने गाय से जुड़ी अर्थव्यवस्था को वैसे तो ग्रामीण विकास और रोजगार से जोडक़र बढ़ाने का काम किया है, लेकिन गाय का जैसा धार्मिक और राजनीतिक उपयोग जनसंघ के वक्त से आज की भाजपा पूरे देश में करते आ रही थी, वह मुद्दा अब छत्तीसगढ़ में भाजपा से निकलकर भूपेश के हाथ आ गया है, और वे दोनों हाथों से इस मुद्दे की धार्मिक और आर्थिक संभावनाओं को दुह रहे हैं। काम आसान भी नहीं है क्योंकि हजारों गोठान बन जाने के बाद भी जगह-जगह चारागाह बनाने के लिए सरकारी जमीन पाने में दिक्कतें आ रही हैं, और सरकारी जमीनों पर लोगों के कब्जे चले आ रहे हैं, जिन्हें लेकर कब्जाधारी अदालत तक भी जा रहे हैं।
कल के तीन गांवों में से एक जगह जब यह बात सामने आई तो भूपेश बघेल ने अफसरों को सीधा रास्ता सुझाया कि गोठान और चारागाह के लिए ऐसी जमीन ही छांटें जिसे लेकर कोई विवाद नहीं चल रहा हो। कुछ जगहों पर हो यह रहा है कि किसी एक नेता के अवैध कब्जे को हटवाने के लिए उसके विरोधी स्थानीय अफसरों को वही जमीन सुझा देते हैं, और फिर अवैध कब्जे की लड़ाई चलते रहती है। लेकिन ऐसी शुरूआती दिक्कतों से परे जगह-जगह महिलाएं बताती हैं कि उनके समूह कितना गोबर खरीद रहे हैं, और कितना खाद बनाकर बेच रहे हैं, उसमें कितने की बचत हुई है। लेकिन कई जगह ऐसे कई तजुर्बों की बात सुनते हुए यह बात हैरान करती है कि ऐसी महिलाओं के समूह आगे की कमाई के लिए दुधारू गाय नहीं पाल रही हैं, वे अपनी कमाई से बकरी पालन कर रही हैं, जिनमें उनको कमाई अधिक है। कहीं-कहीं पर वे गोबर-कारोबार के साथ-साथ मुर्गीपालन भी कर रही हैं, और कई लोगों को मुख्यमंत्री गाय पालने और मुर्गी पालने की सलाह भी दे रहे हैं, और यह भी बता रहे हैं कि अगर उनकी मुर्गियों से अंडे भी मिलने लगेंगे तो सरकार की पोषण आहार योजनाओं में उन्हें खरीद भी लिया जाएगा।
जवाबों का अंदाजा रहने से, भूपेश बघेल हर गांव के लोगों की सभा में कर्जमाफी और धान खरीदी के बारे में पूछते हैं, राजीव न्याय योजना के तहत किसानों को मिलने वाली मदद के बारे में भी। उन्हें अंदाज है कि इन सवालों के जवाब सकारात्मक ही रहेंगे, और वे अपनी कामयाबी लोगों के निजी तजुर्बे की जुबानी बखान करवा देते हैं। कर्जमाफी, धान खरीदी का भुगतान, और राजीव न्याय योजना के तहत धान पर अतिरिक्त भुगतान को लेकर इन तीन गांवों के हजारों लोगों के बीच से एक भी शिकायत सुनने नहीं मिली। बहुत से लोगों ने कहा कि उन्हें रकम बैंक खाते में आने की जानकारी फोन पर मिल गई है, लेकिन उन्होंने बैंक जाकर देखा नहीं है। भूपेश बघेल यह मजाक करने से नहीं चूकते कि अब लोगों को पैसों की मारामारी नहीं रह गई है, और हफ्तों-महीनों से खातों में पैसा आ गया है, और उसे निकालने भी नहीं गए हैं।
लेकिन सरकार के काम से जनता को शिकायतें न हों, ऐसा नहीं हो सकता। कई लोगों को राशन कार्ड न होने की शिकायत है, लेकिन ऐसे अधिकतर मामलों में जब मुख्यमंत्री लंबी बातचीत करके भी पारिवारिक असलियत पूछते हैं तो पता लगता है कि परिवार के विभाजन की वजह से कार्ड किसी एक के पास रह गया है, और दूसरे लोग बिना कार्ड के रह गए हैं। हर बैठक में मौजूद कलेक्टर से वे पूछते भी चलते हैं, और उसे बताते भी चलते हैं। कांकेर कलेक्टर ने सीएम के मंच के पास ही एक हिस्से में जिले के हर विभाग के अफसरों को इकट्ठा कर रखा है ताकि जब तक कोई ग्रामीण सभा के बीच से माईक पर अपनी दिक्कत बताए, तब तक उसके बारे में जानकारी विभागीय अफसर कलेक्टर ठीक उसी तरह दे दें जिस तरह विधानसभा में विपक्ष के सवालों के चलते हुए ही अफसर पर्ची पर तथ्य लिखकर अपने मंत्री को भिजवा देते हैं।
भूपेश बघेल अपने साथ चल रहे, और वहां पहुंचे हुए हर बड़े अफसर का परिचय, उन्हें खड़़े करके सभा में मौजूद सैकड़ों लोगों से करवाते हैं, और लोग देख लेते हैं कि काम न होने पर किन्हें जिम्मेदार मानना है। कुछ अफसर मुख्यमंत्री के दूसरे जिलों के दौरों से सबक ले चुके हैं, और वहां से आने वाली खबरों को पढक़र अपने जिले का हाल सुधार चुके हैं। कांकेर जिले के कलेक्टर ने कुछ लोगों के जाति प्रमाणपत्र की दिक्कतों के जवाब में मुख्यमंत्री को बताया कि अभी-अभी जिले में 21 हजार लोगों को जाति प्रमाणपत्र बांटे गए हैं, जिनके छूट गए हैं, उनके भी अब बन जाएंगे। 21 हजार का आंकड़ा मुख्यमंत्री को संतुष्ट कर देता है, और वे शिकायतकर्ता को अर्जी लेकर कलेक्टर से मिलने कह देते हैं। एक दूसरे जिले में सरकारी अस्पताल में दवाईयों के स्टॉक की जानकारी देखकर मुख्यमंत्री ने एक डॉक्टर को निलंबित कर दिया था, शायद उसी से सबक लेकर भानुप्रतापपुर के एक गांव दुर्गकोंदल के अस्पताल का दौरा किया, बहुत से मरीजों से बात की, और हलके अंदाज में यह भी बताया कि शायद एक जगह डॉक्टर निलंबित होने के बाद बाकी जगह सुधार कर लिया जा रहा है। साथ चल रहे अफसरों में जिले के प्रभारी सचिव अनिवार्य रूप से हैं, और कलेक्टर-एसपी के साथ-साथ प्रभारी सचिव पर भी यह तनाव कायम रहता है कि मुख्यमंत्री को कोई ऐसी शिकायत न मिले जिसका कोई जवाब अफसरों के पास न हो।
इस विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस विधायक, विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडावी हर गांव की सभा में मुख्यमंत्री से मांगों की लंबी-चौड़ी लिस्ट मंजूर करने का अनुरोध करते हैं, और कुछ ठोस बातों को मुख्यमंत्री मंजूर करने की घोषणा भी आखिर में कर देते हैं। एक मांग जो हर जगह लगातार रही, वह स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल की है, गांव-गांव में यह योजना लोगों का आकर्षण है। स्कूलों के बारे में दिलचस्प यह है कि हर सभा में किसी भी तरह के स्कूल की मांग करने वाली लड़कियां ही दिखती हैं, मानो लड़कियों में ही अधिक पढऩे की अधिक हसरत है। कोई लडक़े ऐसी मांग करते नहीं दिखे।
मुख्यमंत्री एक पाटे पर बैठे रहते हैं, और सामने मौजूद सैकड़ों लोगों के बीच कई सरकारी कर्मचारी कार्डलेस माइक्रोफोन लेकर लोगों तक पहुंचते हैं। तरह-तरह के लोग हाथ उठाते हैं, और मुख्यमंत्री छांट-छांटकर उनमें से कई लोगों को मौका देते हैं। पहले ही गांव गितपहर में एक नौजवान भूपेश बघेल को कका-कका कहकर ऐसे याराना अंदाज में बात कर रहा था कि सभा में मौजूद तमाम लोग जोरों से हॅंस पड़े। अब यह कका शब्द जहां से भी निकला हो, यह चल निकला है, और एक गांव की सभा में कका के साथ फोटो खिंचवाने की हसरत का पोस्टर लिए हुए कम कद-काठी वाला एक नौजवान बार-बार उठ खड़ा होता था, और दूसरे लोग उसे बिठाते थे।
एक गांव में लोगों ने बताया कि 1995-96 में एक सीबीआई जांच के सिलसिले में दिल्ली से आए अफसर वहां की जमीनों के सारे मूल नक्शे ले गए, जो आज तक वापिस नहीं आए हैं, और उन नक्शों के बिना उस गांव को सरकार की किसी भी योजना का फायदा नहीं मिल रहा है। नक्शा न होने की शिकायत को कलेक्टर ने भी सही बताया, और सीएम ने साथ चल रहे अफसरों से कहा कि मुख्य सचिव से भारत सरकार को इस बारे में चिट्ठी लिखवाई जाए और मूल नक्शा वापिस बुलवाया जाए।
आदिवासी बस्तर में तेन्दूपत्ता, महुआ, चिरौंजी का काम भी गांव के लोगों के बीच बड़ा काम है। भूपेश बघेल लोगों से महुआ बीनने के बारे में पूछते हैं, और फिर उन्हें बस्तर के ही एक जिले का तजुर्बा बताते हैं कि वहां पर लोगों ने महुआ के पेड़ों के नीचे जाल बांध दिया है, और टपके महुआ फल इंग्लैंड तक जाकर भारी दाम पर बिक रहे हैं क्योंकि उनमें मिट्टी या दूसरी गंदगी नहीं लगती। वे लोगों को समझाते चल रहे हैं कि महुआ और चिरौंजी के लिए फल के मौसम में पेड़ के नीचे ऐसा जाल बांधें ताकि बीनने की मेहनत बचे, मिट्टी न लगे, और वह विदेशों तक जाकर ऊंचे दाम पर बिक सके। ऐसी हर बैठक में दर्जनों लोग इलाज, अनुकम्पा नियुक्ति, दिव्यांग को मदद जैसी बातों को लेकर मौजूद थे, और हर जगह कार्यक्रम खत्म होने के पहले भूपेश बघेल लोगों की सभा के बीच घुसे, और हर किसी से उनका आवेदन लिया, किसी के साथ फोटो खिंचाई, तो किसी स्कूल की बच्चियों का बनाया हुआ कोई उपहार लिया। हर गांव में औसतन दो घंटे का समय, सैकड़ों अर्जियां, दर्जनों लोगों के माईक पर कहे हुए उनके दुख-दर्द के बाद मुख्यमंत्री का काफिला अगले गांव रवाना।
मुख्यमंत्री सचिवालय के एक अफसर ने कुछ ही दिन पहले यह बताया था कि इस दौरे के दौरान मुख्यमंत्री की घोषणाओं पर अमल और उन्हें मिली अर्जियों पर कार्रवाई के लिए तीस दिन का समय तय किया गया है ताकि वे पड़ी न रह जाएं। मुख्यमंत्री बस्तर में हर जगह दो मांग सौ फीसदी मंजूर कर रहे हैं, एक तो देवगुड़ी की, दूसरी घोटुल की। जहां भी यह मांग है, वे हर गांव के लिए उसे मंजूर कर रहे हैं, और कह रहे हैं कि आदिवासी संस्कृति के इन दो प्रतीकों में से घोटुल को बाहर बदनाम कर दिया गया था, और वे इसके गौरव को फिर से कायम करवाना चाहते हैं।
डीजीपी अशोक जुनेजा, एडीजी-नक्सल विवेकानंद सिन्हा, मुख्यमंत्री सचिवालय के सचिव भारतीदासन, आदिम जाति विभाग की संचालक शम्मी आबिदी सहित बस्तर के तमाम बड़े अफसर हर गांव की सभा में मौजूद थे, और मुख्यमंत्री इनमें से हर किसी का परिचय करवाते हुए स्थानीय जिले से उनका संबंध भी बताते चलते थे कि इनमें से कौन यहां कलेक्टर रह चुके हैं, और कौन जिला पंचायत सीईओ। जिला प्रशासन के लिए उस जिले में ऐसा हर गांव एक चुनौती लेकर आता है, और दो-चार ठोस शिकायतें भी बहुत सी कामयाबी पर पानी फेर सकती हैं। ऐसे में 90 विधानसभाओं के तीन-तीन गांवों से रूबरू होना मुख्यमंत्री को चुनाव के खासे पहले हकीकत का अहसास कराने वाला है, और अफसरों को भी कमर कसकर भिडऩे का एक मौका देने वाला है। गांवों की सभाओं के बाद शाम मुख्यमंत्री भानुप्रतापपुर में और बैठकें लेने वाले थे, एक दिन के लिए एक अखबारनवीस के लिए इतना काफी था, और भानुप्रतापपुर से लगातार सफर करके रायपुर लौटने तक भी आधी रात हो जाने वाली थी।
श्रीनगर, 4 जून जम्मू कश्मीर के अनंतनाग जिले में रात भर चली मुठभेड़ में हिज्बुल मुजाहिदीन का एक स्वयंभू कमांडर मारा गया, जबकि तीन सैनिक और एक आम नागरिक घायल हो गया। पुलिस ने शनिवार को यह जानकारी दी।
कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक विजय कुमार ने ट्वीट किया, ‘‘प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन का आतंकवादी कमांडर एचएम निसार खांडे मारा गया। आपत्तिजनक सामग्री, एक एके 47 राइफल सहित हथियार और गोला-बारूद बरामद। अभियान जारी है।’’
पुलिस के एक प्रवक्ता ने बताया कि मुठभेड़ शुक्रवार शाम अनंतनाग के ऋषिपुरा इलाके में शुरू हुई। उन्होंने कहा कि आतंकवादियों के साथ शुरुआती गोलीबारी में तीन सैनिक और एक आम नागरिक घायल हो गया।
प्रवक्ता ने कहा, ‘‘सभी घायलों को तुरंत इलाज के लिए श्रीनगर में 92 बेस अस्पताल ले जाया गया और उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है।’’ (भाषा)
नयी दिल्ली, 4 जून भारत में एक दिन में कोरोना वायरस संक्रमण के 3,962 नए मामले सामने आने से देश में अब तक संक्रमित हो चुके लोगों की कुल संख्या बढ़कर 4,31,72,547 हो गई। वहीं, 26 और मरीजों की मौत होने से कुल मृतक संख्या बढ़कर 5,24,677 पर पहुंच गई।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से शनिवार सुबह आठ बजे जारी अद्यतन आंकड़ों के अनुसार, देश में पिछले 24 घंटों में उपचाराधीन मरीजों की संख्या में 1,239 की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जिससे सक्रिय मामले बढ़कर 22,416 पर पहुंच गए हैं।
पिछले 24 घंटे में जिन 26 लोगों की मौत हुई है, उनमें से 20 केरल के हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, देश में कोविड-19 के उपचाराधीन मरीजों की संख्या कुल मामलों का 0.05 प्रतिशत हो गई है। वहीं, मरीजों के ठीक होने की राष्ट्रीय दर 98.73 प्रतिशत है।
अद्यतन आंकड़ों के अनुसार, दैनिक संक्रमण दर 0.89 प्रतिशत, जबकि साप्ताहिक संक्रमण दर 0.77 प्रतिशत है। देश में अभी तक कुल 4,26,25,454 लोग संक्रमण मुक्त हो चुके हैं और कोविड-19 से मृत्यु दर 1.22 प्रतिशत है।
आंकड़ों के मुताबिक, राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान के तहत देशभर में अभी तक कोविड-19 रोधी टीकों की 193.83 करोड़ से अधिक खुराक दी जा चुकी हैं।
गौरतलब है कि देश में सात अगस्त 2020 को संक्रमितों की संख्या 20 लाख, 23 अगस्त 2020 को 30 लाख और पांच सितंबर 2020 को 40 लाख से अधिक हो गई थी। संक्रमण के कुल मामले 16 सितंबर 2020 को 50 लाख, 28 सितंबर 2020 को 60 लाख, 11 अक्टूबर 2020 को 70 लाख, 29 अक्टूबर 2020 को 80 लाख और 20 नवंबर को 90 लाख के पार चले गए थे।
देश में 19 दिसंबर 2020 को ये मामले एक करोड़ से अधिक हो गए थे। पिछले साल चार मई को संक्रमितों की संख्या दो करोड़ और 23 जून 2021 को तीन करोड़ के पार पहुंच गई थी। इस साल 26 जनवरी को मामले चार करोड़ के पार हो गए थे। (भाषा)
नयी दिल्ली, 4 जून प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर राष्ट्रीय राजधानी में ‘मिट्टी बचाओ आंदोलन’ से जुड़े एक कार्यक्रम को संबोधित करेंगे। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने शनिवार को यह जानकारी दी।
पीएमओ ने एक बयान जारी कर कहा कि ‘मिट्टी बचाओ आंदोलन’ एक वैश्विक पहल है, जिसका मकसद लोगों को मिट्टी की बिगड़ती सेहत के बारे में जागरूक करना और इसमें सुधार लाने के प्रयासों को बढ़ावा देना है।
बयान के मुताबिक, ‘मिट्टी बचाओ आंदोलन’ की शुरुआत इस साल मार्च में सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने की थी, जो 27 देशों से होकर गुजरने वाली 100 दिनों की मोटरसाइकिल यात्रा पर हैं।
बयान में बताया गया है कि पांच जून, 2022 को उनकी यात्रा का 75वां दिन होगा। इसमें कहा गया है कि कार्यक्रम में मोदी की भागीदारी भारत में मिट्टी की सेहत में सुधार को लेकर साझा चिंताओं और प्रतिबद्धताओं को प्रतिबिंबित करेगी। (भाषा)
खंडवा/सिंगरौली/बैतूल, 4 जून मध्य प्रदेश के बैतूल, खंडवा और सिंगरौली जिलों में तीन अलग-अलग सड़क हादसों में तीन बच्चों सहित 12 लोगों की मौत हो गई, जबकि 39 अन्य घायल हो गए, जिनमें से 18 की हालत गंभीर है। पुलिस ने शनिवार को यह जानकारी दी।
चिचोली पुलिस थाने की प्रभारी तरन्नुम खान ने बताया कि बैतूल जिले के चिचोली थाना क्षेत्र में केसिया-कान्हेगांव मार्ग पर शुक्रवार देर रात करीब 12.30 बजे एक तेज रफ्तार ट्रैक्टर-ट्रॉली के पलटने से उसमें सवार पांच लोगों की मौत हो गई, जबकि कम से कम 23 लोग घायल हो गए, जिनमें से 12 की हालत गंभीर है।
उन्होंने बताया कि कि हादसे के बाद सभी घायलों को चिचोली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया, जहां से गंभीर रूप से घायल 12 लोगों को बैतूल जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया।
खान के मुताबिक, बोंदरी गांव के ग्रामीण शादी के बाद दुल्हन को लेने के लिए इमलीढाना गए थे और लौटते समय चिचोली से करीब 10 किलोमीटर दूर उनका वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
उन्होंने बताया कि मृतकों की पहचान सम्मु उइके (70), ओझु अहाके (60), शिवदयाल मर्सकोले (50), मलिया काकोडिया (50) और सुगंधी (55) के रूप में की गई है। ये सभी बोंदरी गांव के निवासी थे।
वहीं, हरसूद के अनुविभागीय अधिकारी पुलिस (एसडीओपी) रविंद्र वास्कले ने बताया कि एक अन्य हादसे में खंडवा जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर खंडवा-बैतूल राजमार्ग पर खिरकिया-खालवा के बीच धनोरा गांव में शुक्रवार रात 35 लोगों से भरी ट्रैक्टर-ट्रॉली पलट गई, जिससे उसमें सवार पांच लोगों की मौत हो गई।
उन्होंने बताया कि मृतकों में तीन महिलाएं और दो बच्चे शामिल हैं, जिनकी पहचान सुंदरबाई, गुनई बाई, शिलू बाई, सरमार सिंह व निखिल के रूप में की गई है।
वास्कले के मुताबिक, इस हादसे में 15 लोग घायल भी हुए हैं, जिनमें से छह की हालत गंभीर है और उनका इलाज खंडवा जिला अस्पताल में चल रहा है। वहीं, बाकी घायलों को खिरकिया के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया है।
वास्कले के अनुसार, हादसे के समय ये लोग हरदा में आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद अपने गांव मेढ़ापानी लौट रहे थे।
वहीं, माडा पुलिस थाने के प्रभारी नागेंद्र सिंह ने बताया कि सिंगरौली जिला मुख्यालय से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर अमराहवा गांव में शुक्रवार शाम एक तेज रफ्तार डंपर ने मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी, जिससे उस पर सवार पुलेश्वर वैश्य और उसके पांच वर्षीय भांजे की मौके पर ही मौत हो गई।
सिंह के मुताबिक, इस हादसे में पुलेश्वर वैश्य की बहन घायल हुई है और उसे एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उन्होंने बताया कि पुलिस ने इस संबंध में मामला दर्ज कर डंपर को जब्त कर लिया है। (भाषा)
चेस्टरफील्ड, 4 जून अमेरिका में रिचमंड के पास चेस्टर में शुक्रवार रात एक घर में आयोजित पार्टी में हुई गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गई और कम से कम पांच अन्य घायल हो गए। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
‘डब्ल्यूडब्ल्यूबीटी-टीवी’ के मुताबिक, चेस्टरफील्ड काउंटी पुलिस विभाग ने कहा कि घटना के बाद पुलिस मौके पर पहुंची और गोलीबारी को लेकर अतिरिक्त जानकारी जुटाई।
अधिकारियों के अनुसार, घटनास्थल पर एक व्यक्ति मृत मिला, जबकि कम से कम पांच अन्य को गोली लगी है और एक व्यक्ति का हाथ टूट गया है।
इस संबंध में कोई अतिरिक्त जानकारी तुरंत उपलब्ध नहीं हो सकी है। चेस्टर रिचमंड से लगभग 24 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। (एपी)
लॉस एंजिलिस , 4 जून अमेरिका के सदर्न कैलिफोर्निया में शुक्रवार को एक व्यक्ति ने एक अस्पताल के आपातकालीन कक्ष में एक चिकित्सक और दो नर्स पर चाकू से हमला करके उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया।
प्राधिकारियों ने बताया कि हमलावर को बाद में गिरफ्तार कर लिया गया।
लॉस एंजिलिस पुलिस विभाग (एलएपीडी) के अधिकारी ड्रेक मेडिसन के मुताबिक, हमलावर शाम चार बजे से कुछ ही समय पहले सैन फर्नांडो वैली स्थित ‘एनसिनो हॉस्पिटल मेडिकल सेंटर’ पहुंचा।
उन्होंने बताया कि हमलावर ने एक गली में अपनी कार खड़ी की और फिर आपातकालीन कक्ष में गया, जहां उसने घबराहट होने की शिकायत की, जिसके बाद उसने एक चिकित्सक और दो नर्स पर चाकू से हमला कर दिया।
दमकल अधिकारियों के अनुसार, तीनों पीड़ितों को गंभीर हालत में ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया। पुलिस ने बाद में बताया कि एक घायल की हालत गंभीर है और उसका ऑपरेशन चल रहा है।
तीनों घायलों को बाद में ‘डिग्निटी हेल्थ नॉर्थरिज हॉस्पिटल मेडिकल सेंटर’ में स्थिर हालत वाले मरीजों के रूप में सूचीबद्ध किया गया।
पुलिस के अनुसार, एनसिनो अस्पताल की पहली मंजिल और पास के कुछ अन्य दफ्तरों को खाली करा लिया गया है।
एलएपीडी के उप प्रमुख एलन हैमिल्टन ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘हमने मरीजों को खतरे के क्षेत्र से बाहर निकाल लिया है।’’
हेमिल्टन ने बताया कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि व्यक्ति पीड़ितों को पहले से जानता था।
पुलिस के अनुसार, हमलावर करीब चार घंटे अस्पताल में रहा और स्वाट टीम के सदस्यों ने उससे बातचीत करने की असफल कोशिश की। बाद में, उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
व्यक्ति का नाम अभी उजागर नहीं किया गया है, लेकिन हेमिल्टन ने बताया कि उसका आपराधिक इतिहास रहा है।
इस घटना से दो दिन पहले एक बंदूकधारी ने ओकलाहोमा के टुलसा स्थित एक अस्पताल में चार लोगों की हत्या करने के बाद खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। (एपी)
बेंगलुरु, 4 जून कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अभिनेत्री चित्रा हल्लीकेरी द्वारा अपने व्यवसायी पति बालाजी पोथराज और ससुर के खिलाफ दर्ज कराई गई प्राथमिकी संबंधी कार्रवाई पर रोक लगा दी है।
अभिनेत्री ने अपने पति, ससुर और एक बैंक प्रबंधक के खिलाफ जाली हस्ताक्षर करने और उनकी जानकारी के बिना उनके बैंक खाते का उपयोग करने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी।
पोथराज और उनके पिता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एम एस श्याम सुंदर ने दलील दी कि व्यवसायी की पत्नी चित्रा उनसे अलग हो चुकी हैं और उन्होंने झूठी शिकायत दर्ज कराई है।
अदालत से कहा गया कि बालाजी पोथराज ने जब अपनी पत्नी के खिलाफ तलाक का मामला दर्ज कराया तो चित्रा ने झूठी शिकायत दर्ज कराई। उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कार्रवाई पर रोक लगाते हुए अंतरिम आदेश जारी किया।
चित्रा ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि उनके पति और ससुर उनकी जानकारी के बिना उनके नाम से साउथ इंडिया बैंक में एक खाते का संचालन कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इस खाते के आधार पर उन्होंने उनके नाम पर कर्ज और अन्य वित्तीय लेनदेन किए हैं। (भाषा)
उइगुर मुसलमानों पर अत्याचार और यूक्रेन युद्ध में रूस का समर्थन, ये दो बातें ऐसी हैं जिनके आधार पर जर्मनी चीन के साथ अपने संबंधों पर दोबारा सोच सकता है. लेकिन यह भी सच है कि चीन जर्मनी का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है.
डॉयचे वैले पर माथियास फॉन हाइन की रिपोर्ट-
"शिनजियांग पुलिस फाइल्स” वो दस्तावेज हैं जो बताते हैं कि चीन की सरकार अपने देश के अल्पसंख्यक उइगुर मुसलमानों का किस क्रूरता से दमन करती है. इसका प्रकाशन ऐसे समय में हुआ है जबकि तमाम लोग मूल्य आधारित विदेश नीति के बारे में चर्चा कर रहे हैं.
जर्मनी के नेताओं ने इन दस्तावेजों को देखकर चिंता जताई है. विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने निष्पक्ष जांच की मांग की है. जर्मनी के विदेश मंत्रालाय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि मानवाधिकार अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का एक मूलभूत हिस्सा है और "जर्मनी वैश्विक स्तर पर इसके संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है.”
जर्मनी में नीति निर्धारक रूस के मामले में चीन की भूमिका को लेकर जर्मनी के साथ चीन के संबंधों को लेकर पहले ही सवाल उठा रहे थे, अब उइगुर मुसलमानों से संबंधित फाइलें लीक होने के बाद यह मांग और तीव्र हो गई है.
वित्त मंत्री क्रिश्चियन लिंडर इस बात पर जोर देते हैं कि जर्मनी की चीन पर आर्थिक निर्भरता को जितना जल्दी हो सके कम किया जाए.
इस हफ्त दावोस में विश्व आर्थिक मंच में जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज ने चीन की बढ़ती ताकत पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर चीन एक ‘विश्व शक्ति' है. उन्होंने कहा, "इसका यह मतलब भी नहीं है कि चीन को अलग-थलग करने की जरूरत है और ना ही हम दूसरे रास्तों की ओर रुख कर सकते हैं, जबकि वो शिनजियांग में मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं.”
वहीं, वाइस-चांसलर और आर्थिक मंत्री रॉबर्ट हेबेक ने बुधवार को इस बात की वकालत की कि जर्मनी को चीन से दूरी बना लेनी चाहिए. उन्होंने कहा, "हम लोग अब ज्यादा सक्रिय रूप से विविधता की ओर बढ़ रहे हैं और चीन पर अपनी निर्भरता कम कर रहे हैं. मानवाधिकारों की अनदेखी की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.”
सहयोगी, प्रतियोगी और प्रतिद्वंद्वी
25 वर्षों से चीन और जर्मनी के बीच आर्थिक संबंध बेहद मजबूत रहे हैं. इसे इस बात से समझा जा सकता है कि साल 2021 तक चीन, जर्मनी का लगातार छह वर्षों से सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार था. द्विपक्षीय वार्ताओं के जरिए व्यापारिक संबंधों के साथ-साथ राजनीतिक संबंधों को भी मजबूती मिली.
आधिकारिक तौर पर, जर्मनी और चीन के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी है. दोनों देश हर दो साल पर बैठकें आयोजित करते हैं जिसमें दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष और ज्यादातर कैबिनेट मंत्री भाग लेते हैं.
पिछले साल दिसंबर में सत्तारूढ़ हुई जर्मनी की नई गठबंधन सरकार ने शुरू में अपनी पूर्ववर्ती अंगेला मैर्केल के नेतृत्व वाली रुढ़िवादी सरकार की विरासत को ही आगे बढ़ाने की कोशिश की. सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी और ग्रीन पार्टी ने अपने साझा समझौते में लिखा है, "हम चीन के साथ सरकारी विमर्श जारी रखना चाहते हैं.”
दस्तावेज के मुताबिक, पहले ये सभी पार्टियां एक मजबूत यूरोपीय दृष्टिकोण रखती थीं, लेकिन हाल ही में जर्मनी-चीन साझेदारी दोनों के बीच प्रतिद्वंद्विता में बदलने लगी है. गठबंधन समझौते के नोट्स से तो यही लगता है. इसके मुताबिक, "चीन के साथ प्रतिद्वंद्विता के दौरान अपने मूल्यों और हितों को बनाए रखने के लिए हमें एक व्यापक रणनीति अपनाने की जरूरत है जो कि यूरोपीय संघ और चीन के बीच संबंधों के फ्रेमवर्क में हो.”
चीन के लिए यह रणनीति जर्मनी के विदेश मंत्रालय में तैयार की जा रही है. इस बात को कोई भी आसानी से समझ सकता है कि इस रणनीति पर रूस-यूक्रेन युद्ध में चीन की भूमिका का प्रभाव निश्चित तौर पर पड़ेगा.
इस साल की शुरुआत में इंटरनेशनल पॉलिटिक्स पत्रिका में बर्लिन में स्थित चीन के थिंक टैंक मर्केटर इंस्टीट्यूट फॉर चाइना स्टडीज के डायरेक्टर मिक्को हुओतारी ने लिखा था कि चीन के साथ संबंधों की पड़ताल पुतिन के लिए चीन के समर्थन के आधार पर की जानी चाहिए.
हुओतारी इस बात पर जोर देते हैं कि ‘जर्मनी को उन क्षेत्रों में चीन पर निर्भरता कम करने को प्राथमिकता देनी चाहिए जिनकी वजह से तनाव या संकट की स्थिति में जर्मनी की रणनीतिक क्षमता तक प्रभावित हो जाती है.'
चीन के साथ एक नए ऊर्जा युग की शुरुआत?
ऊर्जा के क्षेत्र में रूस पर निर्भरता जर्मनी के लिए जितनी दर्दनाक और महंगी थी, चीन के साथ आर्थिक संबंध उससे कहीं ज्यादा सख्त और तनाव भरे हैं. जर्मनी ने जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने का लक्ष्य तय कर रखा है. ऐसे कुछेक मामलों में दोनों के बीच रणनीतिक स्तर पर संघर्ष साफ दिखाई दे रहा है. ऊर्जा के स्रोत के रूप में जर्मनी तेल, गैस और कोयले की जगह छत पर सोलर पैनल लगवाने की योजना का तेजी से विस्तार कर रहा है. इन सोलर पैनलों को लगाने में एक बेहद महत्वपूर्ण चीज की जरूरत होती है और वह है- पॉलीसिलिकॉन. वैश्विक स्तर पर इस पॉलीसिलिकॉन का 40 फीसदी उत्पादन अकेले चीन में ही होता है, खासतौर पर चीन के उत्तर-पश्चिमी प्रांत शिनजियांग में. वही शिनजियांग, जो उइगुर मुसलमानों की जन्मभूमि है.
फेडरेशन ऑफ जर्मन इंडस्ट्री के बीडीआई लॉबी ग्रुप के एग्जिक्यूटिव बोर्ड मेंबर और चीन मामलों के जानकार वोल्फगांग नीडरमार्क कहते हैं, "खनिज संसाधनों जैसे रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र में हमारी चीन पर निर्भरता है. हमें इस निर्भरता पर नियंत्रण रखना चाहिए और नए क्षेत्रों में निवेश करना चाहिए.”
बीडीआई तानाशाहों के साथ व्यापारिक संबंधों पर पुनर्विचार कर रहा है.
डीडब्ल्यू से बातचीत में नीडरमार्क कहते हैं, "हम ऐसे देशों के साथ आर्थिक सहयोग जारी रखना चाहते हैं जहां उदारवादी लोकतंत्र नहीं है. यह एकमात्र तरीका है जिससे यूरोपीय संघ एक मजबूत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक साझीदार बना रह सकता है. लेकिन हम ऐसे देशों पर किसी तरह की निर्भरता को कतई स्वीकार नहीं कर सकते.”
कौन, किस पर निर्भर है?
चीन में ईयू चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष जॉर्ग वुटके कहते हैं कि व्यापार के मामले में चीन यूरोपीय बाजार पर ज्यादा निर्भर है और इस मामले में यूरोप की चीन पर निर्भरता कम है. डीडब्ल्यू को दिए एक इंटरव्यू में वुटके कहते हैं, "हम चीन को हर दिन छह अरब यूरो की कीमत के सामान निर्यात करते हैं, जबकि चीन हमें हर दिन 1.3 अरब के सामान निर्यात करता है, लेकिन आयात और निर्यात बड़े व्यापारिक फलक का एक छोटा हिस्सा भर है.”
वो कहते हैं, "जब हम निवेश की बात करते हैं तो तस्वीर बिल्कुल अलग दिखती है. कार, केमिकल और मशीन बनाने वाली तमाम बड़ी यूरोपियन कंपनियों ने चीन में बड़ा निवेश किया है जहां वो उन सामानों का निर्माण करती हैं जिनकी खपत चीनी बाजारों में होती है.”
जर्मनी के आर्थिक मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2018 तक चीन में जर्मनी का प्रत्यक्ष निवेश कुल 86 अरब यूरो का था. चीन में जर्मन निवेश बहुत फायदेमंद रहे हैं. वुटके कहते हैं, "इस लाभ की वजह से जर्मनी में शेयर कीमतें काफी बढ़ गईं और बड़ी संख्या में रोजगार भी सृजित हुए.”
वुटके कहते हैं कि चीन में होने वाले इन निवेशों की वजह से जर्मनी में लाखों लोगों को नौकरी मिली हुई है. ये नौकरियां इंजीनियरिंग सेवाओं, इंजन पार्ट्स और कई चीजों के निर्माण वाले क्षेत्रों में मिली हुई हैं.
प्रेक्षकों का अनुमान है कि चीन के बारे में जर्मनी की विदेश नीति में कुछ बड़े बदलाव हो सकते हैं. इन बदलावों का पहला रुझान तो तभी मिल गया जब मई में चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने सुदूर पूर्व की अपनी पहली यात्रा के लिए अपने पूर्ववर्ती नेताओं के विपरीत चीन की बजाय जापान का चुनाव किया. (dw.com)
खेल के क्षेत्र में यौन शोषण यानी सेक्सटॉर्शन के कई हाई-प्रोफाइल मामलों ने इस समस्या के प्रति लोगों का ध्यान खींचा है. हालांकि, बाहर से देखने पर यह समस्या जितनी दिखती है, उससे कहीं ज्यादा बड़ी है.
डॉयचे वैले पर कालिका मेहता की रिपोर्ट-
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की हालिया रिपोर्ट ने खेल क्षेत्र के भीतर तेजी से बढ़ते "सेक्सटॉर्शन" के मामले को चिंताजनक समस्या के तौर पर उजागर किया है. भ्रष्टाचार के मामलों की निगरानी करने वाली यह संस्था रोमानिया, मेक्सिको, जिम्बाब्वे और जर्मनी पर नजर बनाए हुए है. जर्मनी के एथलीटों के बीच किए गए सर्वेक्षण में तीन में से एक रिपोर्ट में, संस्था ने संगठित खेल में यौन हिंसा की कम से कम एक स्थिति का अनुभव किया.
जिमनास्टिक और फुटबॉल जैसे खेलों में भी हाल के कई हाई-प्रोफाइल मामलों ने यौन शोषण की बढ़ती समस्या को रेखांकित किया है. जबकि, खेल के क्षेत्र के भीतर इस समस्या से जुड़े काफी सारे मामलों की रिपोर्ट ही नहीं की जाती है.
सामान्य तौर पर, अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल कर किसी को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करना सेक्सटॉर्शन कहलाता है. यह यौन शोषण और भ्रष्टाचार दोनों का मिला-जुला रूप है. हालांकि, इस परिभाषा को अभी तक पूरी तरह मान्यता नहीं मिली है.
शक्ति संतुलन के बीच बड़ा फासला
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल में शोध प्रमुख मैरी चेन ने डीडब्ल्यू को बताया, "मैंने जो पाया वह आश्चर्यजनक है. खेल क्षेत्र सेक्सटॉर्शन की समस्या को बनाए रखने के लिए सभी जरूरी मौके उपलब्ध कराता है. इस क्षेत्र में अलग-अलग लोगों की शक्ति के बीच काफी ज्यादा फासला है. कई सारे ऐसे बच्चे हैं जो काफी कमजोर स्थिति में हैं. खेल की प्रकृति के कारण कोच और एथलीट के रिश्ते काफी ज्यादा करीबी, भावनात्मक और शारीरिक होते हैं.”
वह आगे कहती हैं, "ये ऐसे रिश्ते होते हैं जहां कुछ मामलों में आपके करियर को बनाने या बर्बाद करने की शक्ति होती है. यहां की प्रशासनिक व्यवस्था काफी सामान्य और कमजोर होती है. इस वजह से स्थिति कभी-कभी विस्फोटक बन जाती है.”
सेक्सटॉर्शन की नई परिभाषा की वजह से, इस मामले को लेकर जो रिपोर्ट बनती है वह खेल के भीतर यौन शोषण के दर्ज किए गए आंकड़ों पर निर्भर करती है. दुनिया भर के सभी खेलों में यौन शोषण के ये मामले दर्ज किए गए हैं. इसके बावजूद, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने खेल क्षेत्र के भीतर सेक्सटॉर्शन की जांच करने का फैसला किया. संस्था का मानना था कि इस क्षेत्र में इतनी शक्ति है कि हालात बदल सकते हैं.
चेन कहती हैं, "हमारा मानना है कि खेल क्षेत्र को सामाजिक मूल्यों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है. सैद्धांतिक रूप से, खेल सामाजिक न्याय कायम करने को लेकर है. इसका मिशन निष्पक्ष रूप से योग्य लोगों को मौका देने का है.”
वह आगे कहती हैं, "अगर खेल में यौन शोषण हो रहा है, तो यह इस क्षेत्र के मिशन को कमजोर करता है. खेल स्पष्ट तौर पर दिखता है. अगर हमें इस मुद्दे को भी साफ तौर पर लोगों को दिखाना है और सेक्सटॉर्शन को भ्रष्टाचार के तौर पर मान्यता दिलानी है, तो हमें लगता है कि खेल क्षेत्र इसके लिए अच्छा माध्यम हो सकता है.”
कई मामलों से जो आंकड़े निकलकर सामने आए हैं उनसे यह पता चलता है कि सिर्फ महिला ही नहीं, बल्कि पुरुष भी सेक्सटॉर्शन से पीड़ित थे.हालांकि, रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि अध्ययन से लगातार यह साबित हुआ है कि यौन शोषण के मामलों में ज्यादातर अपराधी पुरुष हैं.
लैंगिक असमानता
अलग-अलग अध्ययनों से यह पता चला कि दुर्व्यवहार करने वाले पुरुषों का अनुपात 96 से 100 फीसदी के बीच था. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने इसकी आलोचना करते हुए इसे ‘अति-मर्दाना संस्कृति' कहा. इस समस्या के बढ़ने के पीछे कई वजहें हैं. जैसे, संगठन के शीर्ष स्तर पर महिलाओं की संख्या कम होना, महिला एथलीटों को कम वेतन मिलना, लैंगिक असमानता वगैरह.
चेन कहती हैं, "महिलाओं के खेल को पुरुषों के खेल के बराबर महत्व नहीं दिया जाता है. लिंग के आधार पर वेतन में काफी ज्यादा अंतर है. नेतृत्व और प्रशासनिक भूमिका में महिला एथलीटों और महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है.”
वह आगे कहती हैं, "यह 'ओल्ड बॉयज नेटवर्क' है, जहां बूढ़े लोग दशकों तक सत्ता में बने रहते हैं. यथास्थिति को बदलने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाता. इसलिए, सिस्टम पहले की तरह ही बना रहता है.”
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल जर्मनी में वर्किंग ग्रुप ऑन स्पोर्ट की अध्यक्ष सिल्विया शेंक ने एक बयान में कहा, "चीन के पेंग शुआई से अमेरिका की काइली मैकेंजी तक, ये ऐसी खिलाड़ी हैं जिनके पास अब करियर में आगे बढ़ने का मौका नहीं है. पिछले साल 2021 के नवंबर में देश के पूर्व उप-प्रधानमंत्री झांग गाओली पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वालीटेनिस खिलाड़ी पेंग शुआई ने बाद में अपने आरोपों को वापस ले लिया. वहीं, दूसरी ओर काइली मैकेंजी ने एसोसिएशन की तरफ से नियुक्त किए गए कोच पर लंबे समय तक उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था. कई अन्य लोगों को भी सेक्सिस्ट और शोषण करने वाले सिस्टम का खामियाजा भुगतना पड़ा.”
खेल के क्षेत्र में इस समस्या को खत्म करने और बदलाव लाने को लेकर जर्मन ओलंपिक स्पोर्ट्स कॉन्फेडरेशन (डीओएसबी) ने 2010 में खेल में यौन हिंसा से सुरक्षा के लिए म्यूनिख में जारी घोषणापत्र को अपनाने का वादा किया. हालांकि, डीओएसबी ऐसा करने में सफल नहीं हो सका.
घोषणापत्र में 15 उपायों पर ध्यान देने की बात कही गई है. उनमें से एक, खेल योग्यता में अनिवार्य विषय के रूप में यौन हिंसा की रोकथाम और आचार संहिता को अपनाना शामिल है. नौ साल बाद, एक अध्ययन से पता चला कि देश के आधे से भी कम राष्ट्रीय खेल संघों के कानून में यौन शोषण की रोकथाम विषय शामिल है.
सबसे जरूरी रोकथाम
इस अध्ययन के नतीजे सामने आने के बाद, डीओएसबी ने एक नीति पेश की. इस नीति के तहत यह शर्त लागू की गई है कि अगर खेल संघों को सरकार की ओर से आर्थिक मदद चाहिए, तो उन्हें रोकथाम के उपायों को अपनाना होगा.
वहीं दूसरी ओर, खेल संगठनों के प्रति शिकायत दर्ज कराने को लेकर बेहतर सिस्टम की कमी की वजह से भी यौन शोषण के मामलों पर कार्रवाई नहीं हो पा रही है और इसकी रोकथाम में समस्या आ रही है.
शेंक ने अपने बयान में कहा, "दुर्व्यवहार को रोकने के लिए, खेल संगठनों और सरकारों को कार्रवाई करनी चाहिए. बचाव का सबसे सही तरीका यह है कि दुर्व्यवहार होने से पहले ही उसे रोक दिया जाए. इसके लिए, पारदर्शी संस्कृति और रोकथाम के लिए मजबूत ढांचे का निर्माण करना होगा. साथ ही, सेक्सटॉर्शन और यौन शोषण से जुड़े दूसरे मामलों के साथ-साथ लैंगिक भेदभाव रोकने के लिए जागरूकता फैलानी होगी.
तोड़नी होगी चुप्पी
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में सिफारिशों की एक श्रृंखला शामिल है. संस्था ने पहली बार सेक्सटॉर्शन के संबंध में रोकथाम पर जोर दिया है. इसमें लंबी अवधि वाले कई सुझाव भी शामिल हैं, लेकिन चेन का कहना है कि हालात बदलने के लिए तत्काल तेजी से बदलाव की जरूरत है.
वह कहती हैं, "हमने शोध के दौरान बहुत सारी डरावनी कहानियां सुनी हैं. कई लोगों के सपने टूट गए. यह सिर्फ यौन शोषण का ही मामला नहीं है, बल्कि इस बारे में भी है कि यौन शोषण की रिपोर्ट किस तरह सामने आ रही है और पीड़ितों को कैसे चुप कराया जा रहा है.”
चेन ने एक बयान में कहा, "अब खेल में सभी तरह के दुर्व्यवहार के लिए चुप्पी तोड़ने और माफ करने की संस्कृति को बदलने का समय आ गया है. खेल संगठनों, सरकारों और नागरिक समाज को दुर्व्यवहार के मामलों को गंभीरता से लेना चाहिए. खेलों में सेक्सटॉर्शन को रोकने के लिए काम करना चाहिए.” (dw.com)
बढ़ते तापमान की वजह से गर्भवती महिलाओं और उनके अजन्मे बच्चों के स्वास्थ्य पर काफी ज्यादा असर पड़ सकता है. कई मामलों में बच्चे समय से पहले पैदा हो सकते हैं. वहीं, कुछ मामलों में जन्म से पहले उनकी मौत हो सकती है.
डॉयचे वैले पर कैथरीन डेविसन की रिपोर्ट-
इस साल अप्रैल महीने में ही मौसम काफी गर्म होने लगा. पूरे दक्षिण एशिया में गर्म हवाएं चलने लगीं. भारत की राजधानी दिल्ली की रहने वाली 32 वर्षीय बबीता बसवाल के लिए इससे बुरा समय नहीं हो सकता था. नौ महीने की गर्भवती बबीता उबकाई और थकान से जूझ रही थीं, क्योंकि दिल्ली में तापमान 49 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा था.
बबीता को जब काफी ज्यादा उल्टियां होने लगी, तो उन्होंने सफदरजंग अस्पताल में खुद की जांच कराई. यहां पता चला कि वह डिहाइड्रेशन की शिकार हो गई हैं. ज्यादा जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं पर विशेष रूप से ध्यान देने वाली प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ एना कहती हैं कि हाल के हफ्तों में, प्रसूति इकाई में कई गर्भवती महिलाओं को इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
वह कहती हैं, "उनमें से ज्यादातर के शरीर में पानी की कमी हो रही है. उन्हें काफी ज्यादा पसीना आ रहा है. उन्हें टैचीकार्डिएक हो रहा है. दूसरे शब्दों में कहें, तो उनका ह्रदय एक मिनट में 100 बार से अधिक धड़क रहा है, जो सामान्य से काफी ज्यादा है. हालांकि, वे शिकायत नहीं करती हैं, क्योंकि हमारे वातावरण में यह सामान्य सी बात हो गई है.”
भारत में लू का चलना वाकई में सामान्य घटना है, लेकिन इस साल चौंका देने वाली गर्मी समय से पहले आ गई. इस बार तापमान रिकॉर्ड स्तर को छू रहा है. भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में इस साल का अप्रैल महीना, पिछले 122 वर्षों के अप्रैल महीने की तुलना में सबसे ज्यादा गर्म रहा.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के महासचिव पेटेरी टलास ने मई में एक बयान में कहा, "यह असामान्य मौसम हमारी बदलती जलवायु को लेकर उम्मीद के मुताबिक है.” दुनिया के कई हिस्सों में जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक गर्मी बढ़ रही है. इसे देखते हुए, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इससे गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकते हैं.
डॉ करिश्मा थरियानी प्रसूति विशेषज्ञ हैं और वह मां बनने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए काम करने वाली गैर-लाभकारी संस्था अरमान में सलाहकार हैं. वह कहती हैं, "गर्मियों के मौसम में हमारे सामने ओलिगोहाइड्रामनिओस के बहुत सारे मामले सामने आते हैं. इसमें गर्भ में पल रहे बच्चे के चारों ओर एमनियोटिक नाम का तरल पदार्थ कम हो जाता है. साथ ही, समय से पहले बच्चे के जन्म होने की घटनाएं बढ़ जाती हैं.” वह आगे कहती हैं, "भारत में गर्मी के महीने हर साल बदतर होते जा रहे हैं.”
लू से अजन्मे बच्चों को खतरा
गर्भवती महिलाओं पर गर्म हवाओं के प्रभाव को जानने के लिए 70 अध्ययनों का मेटा-विश्लेषण किया गया. इसमें पाया गया कि तापमान में हर 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर समय से पहले बच्चे के जन्म होने और जन्म से पहले बच्चे की मौत का खतरा 5 फीसदी बढ़ गया. ऑस्ट्रेलिया के एक अध्ययन की समीक्षा में पाया गया कि अत्यधिक गर्म मौसम के दौरान मरे हुए बच्चे पैदा होने के मामलों में 46 फीसदी की वृद्धि हुई. वहीं, अधिकांश अध्ययनों ने गर्भावस्था के दौरान गर्मी से जुड़े खतरे और जन्म के समय बच्चे के कम वजन के बीच एक संबंध पाया.
दक्षिण अफ्रीका में विट्स रिप्रोडक्टिव हेल्थ एंड एचआईवी इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरएचआई) के नेतृत्व में भी अध्ययनों की समीक्षा की गई. इसमें पाया गया, "ग्लोबल वार्मिंग के साथ तापमान बढ़ने से बच्चों के स्वास्थ्य पर काफी ज्यादा प्रभाव पड़ सकता है.” इसमें कहा गया कि "आम जनता भी गर्भावस्था के दौरान गर्मी के खतरों से काफी हद तक अनजान दिखाई देती है.”
अधिकांश अध्ययन उच्च आय वाले देशों में किए गए थे, लेकिन समीक्षा में कहा गया है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य को ज्यादा खतरा हो सकता है. इसकी वजह यह है कि गरीब महिलाओं के पास गर्मी से बचाव का ज्यादा साधन नहीं होता है. उन्हें गर्भावस्था के आखिरी दिनों में भी ‘गर्मी सहने की क्षमता की सीमा' ज्यादा होने के बाद भी काम करना पड़ सकता है.
डब्ल्यूआरएचआई की एक शोधकर्ता डॉ दर्शनिका पेमी लाखू का कहना है, "अलग-अलग आबादी के बीच तापमान के प्रभाव का असर वाकई में अलग-अलग होने जा रहा है. यह उनके रहने के इलाके पर निर्भर करता है. एक ही शहर में रहने वाले लोगों के लिए, तापमान में वृद्धि का अनुभव अलग-अलग होगा.”
डॉ थरियानी कहती हैं, "भारत में आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाओं के पास एयर-कंडीशनर या कूलर उपलब्ध नहीं होता है. कभी-कभी तो उनके पास पंखे भी नहीं होते हैं, क्योंकि नियमित तौर पर बिजली नहीं होती है.”
हाल में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 32.3 करोड़ लोगों के पास कूलिंग की सुविधा नहीं है. बसवाल उन भाग्यशाली लोगों में से एक हैं जिनके घर में एयर-कंडीशनर है. अल्ट्रासाउंड के बाद बसवाल को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. उन्हें आराम करने और खुद को हाइड्रेटेड रखने की सलाह दी गई. हालांकि, हाल के हफ्तों में गर्मी बढ़ने और बिजली की बढ़ती मांग के कारण हर दिन दो से तीन घंटे बिजली की कटौती हुई है. वह कहती हैं, "बिजली कटने के बाद, तापमान बढ़ जाता है. उसी समय मुझे चक्कर आने लगते हैं और उल्टी होने लगती है.”
नवजात बच्चों के लिए भी खतरनाक है ज्यादा गर्मी
तापमान बढ़ने से सिर्फ अजन्मे बच्चों को ही खतरा नहीं है, बल्कि नवजात बच्चों के लिए भी यह खतरनाक साबित हो सकता है. अहमदाबाद में 2010 की गर्मी के दौरान बिना एयर कंडीशनिंग वाले अस्पताल में नवजात शिशुओं की देखभाल करने वाली इकाई में एक अध्ययन किया गया था. इस अध्ययन में पाया गया कि 42 डिग्री से हर एक डिग्री तापमान ऊपर बढ़ने पर भर्ती होने वाले नवजात शिशुओं की संख्या 43 फीसदी बढ़ी.
डॉ एना का कहना है कि गर्मी की वजह से सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कई महिलाएं अपने बच्चों को स्तनपान नहीं करा पा रही थीं. वह कहती हैं, "अगर महिला के शरीर में पानी ही नहीं रहेगा, तो वह बच्चों को अपना दूध कैसे पिला पाएगी?”
भारत पहले से ही बाल कुपोषण के उच्च स्तर से जूझ रहा है. पांच साल से कम उम्र के बच्चों की करीब दो तिहाई मौतों के लिए कुपोषण जिम्मेदार है. स्वास्थ्य पर बढ़ते तापमान का प्रभाव लंबे समय से शोधकर्ताओं के लिए एक चिंता का विषय रहा है. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बढ़ती गर्मी भोजन और पानी की कमी को बढ़ाएगी. इससे संक्रामक रोगों का प्रसार भी होगा. गर्भवती महिलाओं और बच्चों सहित समाज के निचले पायदान पर मौजूद लोगों को सबसे अधिक खतरा होगा. उदाहरण के लिए, हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण नए क्षेत्रों में डेंगू तेजी से फैल रहा है. इससे सबसे ज्यादा बच्चों की मौत होती है.
खोज और नीति में बदलाव
डॉ लखू का मानना है कि गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य पर गर्मी के असर के प्रत्यक्ष प्रभाव को लेकर और अधिक शोध की जरूरत है. वह कहती हैं, "कई ऐसे अप्रत्यक्ष प्रभाव और दूसरी चीजें हैं जिनके बारे में पता नहीं लगाया गया है. अनुसंधान में निम्न और मध्यम आय वाले देशों का प्रतिनिधित्व कम है.”
डॉ थरियानी भी इस बात से सहमत हैं. डीडब्ल्यू को दिए अपने साक्षात्कार के बारे में वह कहती हैं, "यह पहली बार है जब कोई इस तरह के विषय पर मेरी राय पूछ रहा है." अरमान लू की लक्षण वाले रोगियों की पहचान और उनकी निगरानी के लिए स्वास्थ्य कर्मचारियों को प्रशिक्षित करता है. उन्हें यह जानकारी दी जाती है कि हाइड्रेटेड रहना कितना जरूरी है. हालांकि, डॉ थरियानी का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान गर्मी के जोखिम के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए सरकार को और अधिक प्रयास करना चाहिए.
लखू कहती हैं कि हमारे पास जितने ज्यादा नतीजे होंगे, बेहतर नीतिगत उपायों के साथ-साथ मौजूदा स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने में उतनी ही मदद मिलेगी. वह कहती हैं, "जलवायु परिवर्तन हमारी सदी में स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा होने जा रहा है. इसलिए, इस क्षेत्र में वाकई में खोज करने की जरूरत है, ताकि जो नतीजे मिले उसके मुताबिक लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सके.”
डब्ल्यूआरएचआई ने जिस डेटा को इकट्ठा किया है उसका इस्तेमाल दक्षिण अफ्रीका में एक जिला स्वास्थ्य निगरानी प्रणाली को संचालित करने के लिए किया जाएगा. यह प्रणाली तापमान बढ़ने के दौरान स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए चेतावनी देने के तंत्र के तौर पर काम करेगी. लखू बताती हैं, "मान लें कि अगर हमें पता है कि किसी खास स्तर पर तापमान पहुंचने के बाद, चार से पांच बच्चों का जन्म समय से पहले होगा, तो हम उन बच्चों की देखभाल के लिए पहले से ही तैयार रह सकते हैं. इससे हमारी स्वास्थ्य प्रणाली पर अतिरिक्त बोझ नहीं बढ़ेगा.”
वह आगे कहती हैं, "इस क्षेत्र में काम करना, हर समय सिर्फ शोध करने के बारे में नहीं है. यह वास्तव में एक वकील होने जैसा है.” (dw.com)
छोटे और कमर्शियल वाहनों के लिए सबसे अच्छे विकल्प क्या हैं. बैटरी-चालित इलेक्ट्रिक वाहन सस्ते हो रहे हैं और दूसरी तरफ ई-फ्यूल भी बाजार में उतरने को तैयार हैं.
डॉयचे वैले पर गेरो रुइटर की रिपोर्ट-
टेस्ला के इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) प्रचार से आगे, बैटरी चालित कारें आखिरकार बाजार पर छाने लगी हैं जहां लंबे समय तक पेट्रोलियम से चलने वाले इंजन का बोलबाला रहा है. नॉर्वे में बिकी 84 प्रतिशत नयी कारें इलेक्ट्रिक थीं.
उच्च कार्बन वाले पेट्रोल वाहनों की तुलना में, शून्य उत्सर्जन वाली कारें कम शोर करती हैं. ज्यादा तेजी से रफ्तार पकड़ती हैं और चलते हुए सीओटू नहीं छोड़ती. कई देशों में चार्जिंग की सुविधा में विस्तार होने से इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रति उत्साह और बढ़ा है.
इलेक्ट्रिक वाहन मिलते जल्दी और सस्ते
हाल तक इलेक्ट्रिक वाहन, तेल के वाहनों के मुकाबले कमोबेश दोगुनी कीमत पर मिलते थे. लेकिन इलेक्ट्रिक मॉडल, ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस (बीएनईएफ) के एक अध्ययन के मुताबिक, फॉसिल ईंधन वाले वाहनों से कीमत के लिहाज से 2026 तक बराबरी पर आ जाएंगे और दशक के अंत तक 10-30 फीसदी सस्ते हो जाएंगे.
इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ एक अच्छी बात ये है कि ड्राइविंग के दौरान वे करीब 95 फीसदी ऊर्जा की बचत करते हैं जबकि तेल से चलने वाले इंजन दो तिहाई ऊर्जा, गर्म होने में ही गंवा देते हैं. तेल की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई हासिल कर रही हैं, ऐसे में इलेक्ट्रिक वाहनों को चलाना और सस्ता पड़ने लगा है.
दो यूरो प्रति लीटर की मौजूदा तेल कीमत को देखते हुए, एक डीजल कार को 100 किलोमीटर चलाने में 14 यूरो खर्च होंगे. इसकी तुलना में, 100 किलोमीटर के सफर के लिए करीब 15 किलोवाट बिजली की खपत करने वाले इलेक्ट्रिक वाहन को चलाने में, प्रति किलो वॉट 20 यूरो सेंट के औसत बिजली खर्च के साथ, महज तीन यूरो की लागत आती है.
कीमत में इस महत्त्वपूर्ण लाभ की वजह से, जानकार उम्मीद करते हैं मुख्यधारा के बाजार में बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहनों का जल्द ही राज होगा. बीएनईएफ के अध्ययन का अंदाजा है कि यूरोपीय संघ में नयी बिकी 70 फीसदी कारें, 2030 तक बैटरी चालित हो सकती हैं.
उपभोक्ता के स्तर पर ईवी क्रांति क्षितिज पर उभर आई है, ऐसे में भारी कमर्शियल वाहन जैसे ट्रक, रेल, विमान और जहाज ऐसी प्रौद्योगिकी को कितना दूर तक अमल में ला सकते हैं?
भारी परिवहन के लिए हाइड्रोजन पर हावी बैटरियां
इस बारे में बहस उठने लगी हैं कि एक दिन में सैकड़ों किलोमीटर चलने वाले ट्रकों में शून्य उत्सर्जन कैसे हासिल किया जाए.
माल ढोने वाले इलेक्ट्रिक वाहन तेजी से सस्ते होने लगे हैं, लेकिन वे कम बिकेंगे. क्योंकि लंबी दूरी वाले मार्गों में चार्जिंग स्टेशन, निरंतरता में लगाने होंगे.ट्रकों के लिए एक कार्बन-न्यूट्रल विकल्प है हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स जो वाहनों में ऊर्जा के लिए बिजली पैदा करती हैं.
दिक्कत यही है कि इसकी कीमत ज्यादा है. हाइड्रोजन से चलने वाले ट्रक, सामान्य इलेक्ट्रिक ट्रकों के मुकाबले ज्यादा महंगे हैं. जर्मन वैज्ञानिक शोध संस्थान, फ्राउनहोफर आईएसई के हाल के अध्ययन के मुताबिक, उनकी ताकत भी कम होती है.
मान, स्कानिया और फॉक्सवागेन जैसे ब्रांडों की निर्माता और एक प्रमुख कंपनी, ट्रैटन समूह ने एक अध्ययन कराया था. उसमें इस बात की पुष्टि की गई कि बैटरियों वाले ई-ट्रक, हाइड्रोजन की तुलना में लागत बचाते हैं.
ट्रैटन समूह की मुख्य तकनीकी अधिकारी कैथरीना मोडाल-निलसन ने एक बयान में बताया कि, "ट्रकों के मामले में खासकर लंबी दूरियों में, विशुद्ध रूप से ई-ट्रक ज्यादा सस्ते और ज्यादा पर्यावरण अनुकूल समाधान होंगे."
उनके मुताबिक, "ऐसा इसलिए है क्योंकि हाइड्रोजन ट्रकों में एक निर्णायक नुकसान है. करीब एक चौथाई आउटपुट ऊर्जा ही वाहन को चलाती है, तीन चौथाई परिवर्तन की प्रक्रियाओं में गंवा दी जाती है. ई-ट्रकों के मामले में, ये अनुपात उलट जाता है.
होड़ में बने रहने के लिए ई-ईंधनों का संघर्ष
सिंथेटिक ई-फ्यूल के उत्पादन में वर्षों लगे हैं, उन्हें अब तेल से चलने वाली कारों और ट्रकों के लिये ऐसे विकल्प के रूप में प्रोत्साहित किया जा रहा है जिनका जलवायु पर असर नहीं होता. ये ईंधन पानी और नवीनीकृत बिजली से पैदा हरित हाइड्रोजन का इस्तेमाल करते हैं. उसे सीओटू के साथ मिलाकर डीजल, गैसोलीन या केरोसीन जैसा सिंथेटिक ईंधन बनाया जाता है.
जर्मन कार निर्माता पोर्शे ने इस प्रौद्योगिकी में भारी निवेश किया है. उसका इरादा इस साल एक ई-फ्यूल तैयार करने का है. कंपनी के प्रवक्ता पीटर ग्रेव के मुताबिक "इससे तेल फूंकने वाले वाहनों का करीब करीब जलवायु निरपेक्ष ऑपरेशन चालू हो जाएगा."
हालांकि ई-फ्यूल, शून्य कार्बन की दुनिया में तेल फूंकने वाले इंजनों की लाइफ बढ़ाने में मददगार तो हो सकता है लेकिन बैटरी तकनीकी के मुकाबले वे कमतर ही होते हैं. और वे काफी महंगे भी हो जाते हैं.
जर्मन ऊर्जा एजेंसी के कराए एक अध्ययन के मुताबिक, ई-फ्यूल पर चलने वाले वाहनों की खपत बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहनों से पांच गुना ज्यादा होती है. भविष्य में उनसे प्रति किलोमीटर का सफर करीब आठ गुना ज्यादा महंगा होगा.
जीरो कार्बन वाले जहाज, ट्रेन और विमान
प्रोपेलर से चलने वाले छोटे विमान और यात्री नावों में अब ऊर्जा के लिए बैटरी का इस्तेमाल बढ़ने लगा है, वहीं ज्यादा ऊर्जा खाने वाली ट्रेनों में ओवरहेड इलेक्ट्रिक तार काम आते हैं. उनका इस्तेमाल ई-बसों और ई-ट्रकों में भी अपेक्षाकृत कम कीमत पर किया जा सकता है.
आज की बैटरी तकनीक कमर्शियल विमानों और बड़े मालवाहक जहाजों के लिए भी अपर्याप्त है. लेकिन यहीं पर ई-ईंधन एकमात्र जलवायु अनुकूल विकल्प हो सकता है.
दुनिया का पहला कमर्शियल ई-ईंधन संयंत्र दक्षिणी चिली में बनाया जा रहा है. जर्मनी के ही प्रौद्योगिकी सिरमौर सीमेंस एनर्जी के साथ मिलकर पोर्शे, कम कीमत वाली पवन ऊर्जा की मदद से कार्बन न्यूट्रल ई-ईंधन बनाना चाहती है.
फिनलैंड की एलयूटी यूनिवर्सिटी में वैश्विक ऊर्जा परिदृश्यों के विशेषज्ञ क्रिस्टियान ब्रेयर का अनुमान है कि "दस साल में, ऐसी परियोजनाएं मशरूम की तरह जहातहां सामने आ जाएंगी और बिजली पानी और हवा से मिलकर जलवायु तटस्थ ईंधन बनाया जाने लगेगा."
शून्य उत्सर्जन भविष्य की ओर
इलेक्ट्रिक वाहन बैटरियां, अपने संभावित मुख्तलिफ फायदों की बदौलत कार्बन तटस्थ परिवहन वाले भविष्य में ई-ईंधनों से बाजी मार लेंगी.
करीब 50 किलोवाट घंटों की भंडारण क्षमता के साथ, ईवी बैटरियां कार को भी ऊर्जा दे सकती हैं और जर्मनी में एक सप्ताह के लिए दो व्यक्तियों वाले घर की औसत बिजली जरूरत को पूरी कर सकती हैं.
मकान मालिक अपने घरों की छत पर लगी सस्ती सौर ऊर्जा से दिन में कार की बैटरी चार्ज कर सकते हैं और शाम ढलते ही उससे घर में बिजली चला सकते हैं.
फॉक्सवागेन जैसी कार बनाने वाली कंपनियां इस दोहरे काम के लिए अपने मॉडलों को तैयार कर रही हैं. ऊर्जा आपूर्ति करने वाले भी ईवी बैटरियों के उपयोग में दिलचस्पी लेने लगे हैं. उसकी मदद से वे भारी मांग के समय पावर ग्रिड को पावर दे सकते हैं.
फिलहाल ये तकनीक अभी शुरुआती चरण में हैं, चुनिंदा बैटरी वॉल बक्से ही बिजली को वापस ग्रिड में डाल सकते हैं. ऊर्जा के सप्लायर अभी कार मालिकों को बिजली सप्लाई करने के लिए भुगतान करने में समर्थ नहीं हैं. हालांकि जानकार कहते हैं कि ईवी को ग्रिड फीडिंग से जोड़ने वाले लोग, हर साल करीब 800 यूरो कमा सकते हैं. ये बस एक और पहल है जो इलेक्ट्रिक वाहनों को बड़े पैमाने पर खरीदने की मुहिम को बढ़ाएगी. (dw.com)
उत्तर प्रदेश में ज्ञानवापी मस्जिद और शाही ईदगाह मस्जिद का मामला अभी कोर्ट में है मगर देश की कई मस्जिदों में हिन्दू धार्मिक प्रतीकों और देवी-देवताओं के होने और उनका पता लगाने के लिए अदालतों में याचिकाओं की बाढ़ आ गई है.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-
पिछले कुछ दिनों में अदालतों में मस्जिदों के भीतर ‘मंदिर के अवशेष' होने संबंधी इतनी ज्यादा याचिकाएं आने लगीं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक प्रमुख मोहन भागवत तक को कहना पड़ गया कि हमें हर एक मस्जिद में भगवान की मूर्तियां ढूंढ़ने की जरूरत नहीं है.
मस्जिदों में भगवान
शुक्रवार को मथुरा के कृष्णजन्मभूमि-शाही ईदगाह मामले के हिंदू पक्षकारों ने पुरातत्व विभाग और कुछ अन्य सरकारी संस्थाओं को एक लीगल नोटिस दिया है जिसमें मांग की गई है कि आगरा की जामा मस्जिद में लोगों की आवाजाही रोकी जाए. महेंद्र प्रताप सिंह और अन्य लोगों का दावा है कि मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे से ठाकुर केशवदेव का विग्रह निकालकर हिंदू पक्ष को सुपुर्द किया जाए. इन लोगों ने का यह भी कहना है कि ऐसा नहीं करने पर तय समय के बाद अदालत में मुकदमा दायर किया जाएगा.
पिछले दिनों दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में हिंदू और जैन देवताओं की मूर्तियां होने का दावा करते हुए पूजा के अधिकार की मांग करने वाली एक याचिक दिल्ली के साकेत कोर्ट में दायर की गई. याचिकाकर्ता के वकील हरि शंकर जैन ने मंदिर के साक्ष्य और पूजा के अधिकार की बात करते हुए कोर्ट में दलीलें रखीं. उनका कहना था कि इस बात के सबूत हैं कि खंडहर के ऊपर कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद बनी है. वहीं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई का कहना है कि सरकार ने इसे संरक्षित इमारत माना है और कानून राष्ट्रीय स्मारक पर पूजा की इजाजत नहीं देता है. कोर्ट इस मामले में नौ जून को अपना फैसला सुनाएगा.
वाराणसी में ही ज्ञानवापी विवाद के बाद एक और मामला तूल पकड़ रहा है. पंचगंगा घाट स्थित बिंदु माधव में धरहरा मस्जिद में नमाज पर रोक लगाने को लेकर कुछ लोगों ने सिविल जज जूनियर डिवीजन की अदालत में याचिका दी है. अदालत ने सुनवाई की तारीख चार जुलाई तय की है.
अदालतों में याचिकाओं का अंबार
ऐसे कई मामले पिछले कुछ दिनों में उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों के अलावा देश के अन्य हिस्सों से भी आए हैं और कई मस्जिदों में नमाज पर रोक लगाकर उनके भीतर ‘मंदिर के अवशेष' ढ़ूंढ़ने की इजाजत या फिर परिसर उन्हें सौंपने की मांग की गई है. कई मामलों में अदालतों ने याचिकाकर्ताओं को फटकार भी लगाई लेकिन ज्यादातर मामले स्वीकार कर लिए गए हैं और उन पर सुनवाई चल रही है.
पिछले दिनों इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने आगरा के ताजमहल में बंद पड़े 22 कमरों को खुलवाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इस मामले में कड़ी फटकार भी लगाई और कहा कि पहले ताजमहल के बारे में पढ़कर आओ. हालांकि कमरों को खुलवाने और सर्वे कराने की याचिका दाखिल करने वाले बीजेपी नेता डॉक्टर रजनीश सिंह का कहना है कि अब वो इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे.
पिछले दिनों जब वाराणसी में सिविल जज ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वे का आदेश दिया था तब इस आदेश पर टिप्पणी करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने न्यूज वेबसाइट द क्विंट में एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने कहा था कि यह आदेश 1991 के अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन या टकराव के रूप में प्रतीत होता है.
पूजा स्थल अधिनियम 1991 की परवाह नहीं
दरअसल, ये मामले तब अदालतों में धड़ाधड़ पहुंच रहे हैं और वहां विचार के लिए इन्हें स्वीकार भी कर लिया जा रहा है जबकि देश में पूजा स्थल अधिनियम 1991 मौजूद है और जिसके अनुसार किसी भी उपासना या पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को परिवर्तित नहीं किया जा सकता है. कानून के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 की स्थिति में जो उपासना स्थल (अयोध्या विवाद को छोड़कर) जैसे थे, उन्हें उसी स्थिति में रखा जाये, उन्हें बदला नहीं जा सकता.
यहां तक कि अयोध्या मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी इस कानून के महत्व पर जोर देते हुए कहा था कि यह अधिनियम ऐसे मामलों में नए मुकदमे या न्यायिक कार्यों के गठन को रोकता है.
बावजूद इसके, इस उपासना स्थलों के मौजूदा स्थिति को चुनौती देने वाली याचिकाएं दायर की जा रही हैं, अदालतों में उन्हें स्वीकार भी किया जा रहा है और कहीं न कहीं सुप्रीम कोर्ट से भी उन याचिकाओं को पोषण मिल रहा है.
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
अयोध्या विवाद पर चर्चित पुस्तक "एक रुका हुआ फैसला” के लेखक और सुप्रीम कोर्ट कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मिश्र कहते हैं कि अदालतों में ऐसी याचिकाएं स्वीकार करने से पहले थोड़ी संवेदनशीलता दिखाने की जरूरत है. उनके मुताबिक, "पूजा स्थल कानून लागू होता है या नहीं, यह तय करना निचली अदालतों के दायरे में नहीं है. इसे उन्हें ऊंची अदालतों पर छोड़ देना चाहिए, जैसा कि ताजमहल के मामले में हुआ. जब मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में है तो सुप्रीम कोर्ट को एक आदेश पारित कर देना चाहिए कि इन मामलों में दूसरी कोर्ट में याचिकाएं ना दायर की जाएं और ना वहां स्वीकार किया जाए.”
प्रभाकर मिश्र कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट को एक आदेश पारित करके पूजा स्थल कानून से संबंधित मामलों को खुद ही डील कर लेना चाहिए, जैसा कि धर्म संसद की याचिकाएं जगह-जगह दायर हुईं, कोरोना की हुईं तो सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया और कहा कि इन याचिकाओं को हम सुनेंगे.
निचली अदालतों और उच्च अदालतों में भी लाखों की संख्या में मामले कई वर्षों से लंबित हैं, ऐसे में इन याचिकाओं को तुरंत स्वीकार करना और उनकी सुनवाई भी शुरू कर देना थोड़ा हैरान करने वाला है. यूपी में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शाहनवाज आलम कहते हैं, "पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह एक खास राजनीतिक प्रवित्ति वाली याचिकाएं अदालतों द्वारा स्वीकार की जा रही हैं उससे यह संदेश जा रहा है कि न्यायपालिका का एक हिस्सा सरकार के साथ सांठगांठ में है और न्यायतंत्र के स्थापित मूल्यों के खिलाफ जा रहा है. ऐसी धारणा बन रही है कि जो काम सीधे सरकार नहीं कर पा रही है उसे न्यायपालिका के एक हिस्से से कराया जा रहा है ताकि विरोध ना हो.”
ज्ञानवापी का उदाहरण देते हुए वो कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने कथित सर्वे की रिपोर्ट के लीक होने पर तो नाराजगी जताई लेकिन उसके आधार पर मीडिया द्वारा प्रसारित किए जा रहे सांप्रदायिक अफवाहों पर कोई रोक नहीं लगाई. उन्होंने आशंका जताई है कि कहीं यह कथित जन भावना के निर्माण की कोशिश तो नहीं है जिसके आधार पर बाद में इसे मंदिर घोषित कर दिया जाएगा.
क्या पूजा स्थल कानून खत्म करने की तैयारी है
यही नहीं, 1991 के पूजा स्थल कानून की वैधानिकता भी कोर्ट की चहारदीवारी के भीतर पहुंच गई है और लगातार कई याचिकाएं दायर की जा रही हैं. बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट में वकील अश्विनी उपाध्याय ने गत 31 अक्टूबर को जनहित याचिका दाखिल कर इस कानून की धारा 2, 3 और 4 को संविधान का उल्लंघन बताते हुए रद्द करने की मांग की है.
याचिका में कहा गया है कि इस कानून में अयोध्या में श्रीरामजन्म स्थान को छोड़ दिया गया जबकि मथुरा में कृष्ण जन्म स्थान को नहीं छोड़ा गया. जबकि दोनों ही भगवान विष्णु के अवतार हैं. याचिका में यह भी कहा कहा गया है कि केंद्र सरकार को यह कानून बनाने का अधिकार ही नहीं है क्योंकि संविधान में तीर्थ स्थल राज्य का विषय है. अश्विनी उपाध्याय के अलावा इस तरह की कुछ अन्य याचिकाएं भी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं.
आशंकाएं यह भी जताई जा रही हैं कि क्या इस कानून को खत्म करने की तैयारी है?
हालांकि इस कानून का विरोध उस वक्त भी हुआ था जब जुलाई 1991 में कांग्रेस के नेतृत्व में तत्कालीन केंद्र केंद्र सरकार ये कानून लेकर आई थी. उस वक्त संसद में भारतीय जनता पार्टी ने इसका विरोध किया था और बीजेपी के नेताओं ने इस मामले को संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी के पास भेजने की मांग की थी. हालांकि इस विरोध के बावजूद संसद से यह कानून पास हो गया था. (dw.com)
भारत और म्यांमार की सीमा पर मौजूद मोरे का बाजार सीमा बंद होने से बदहाली के दिन देख रहा है. सीमा पार के व्यापारियों और ग्राहकों से गुलजार रहने वाले बाजार में मायूसी और नाउम्मीदी है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
"सीमा व्यापार बंद होने का काफी असर पड़ा है. इधर के व्यापारी म्यांमार पर निर्भर थे और उधर के व्यापारी मोरे पर. लेकिन लंबे अरसे से यहां कारोबार लगभग ठप हो गया है. अब दिन भर दुकान खोल कर बैठे रहते हैं. लेकिन कभी-कभार ही ग्राहक आते हैं,” यह कहते हुए बर्तनों के व्यापारी ख्वाजा मोइनुद्दीन के चेहरे पर उदासी साफ झलकती है. वे पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की राजधानी से कोई 110 किमी दूर म्यांमार की सीमा से सटे मोरे में दशकों से रह रहे हैं. लेकिन इतना बुरा दौर उन्होंने कभी नहीं देखा था.
सीमा पार बाजार
म्यांमार सीमा पर बसा मोरे कस्बा बीते दो साल से भी लंबे अरसे से बदहाली से जूझ रहा है. इसकी वजह है अंतरराष्ट्रीय सीमा का बंद होना. पहले कोविड के कारण यह सीमा बंद हुई थी और उसके बाद सैन्य तख्तापलट के कारण उसे अब तक खोला नहीं जा सका है. अब यह कब तक खुलेगी, यह कहना भी मुश्किल है. इस राज्य की 398 किमी लंबी सीमा म्यांमार से सटी है.
देश के आजाद होने के बाद से ही सीमा के दोनों ओर रहने वाले लोग एक-दूसरे के इलाकों में जाकर खरीद-फरोख्त करते थे और यह कस्बा लगातार फल-फूल रहा था, लेकिन अब तस्वीर एकदम बदल गई है. तमाम संगठन सीमा को दोबारा खोलने की मांग कर रहे हैं. भारत-म्यांमार के बीच हुए एक समझौते के तहत दोनों देशों के लोग बिना पासपोर्ट के ही एक-दूसरे की सीमा के 16 किमी भीतर तक जा सकते हैं.
मोरे भारत-म्यांमार-थाईलैंड के बीच प्रस्तावित 1360 किमी लंबे एशियन हाइवे के किनारे बसा है. इसे दक्षिण एशिया का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है. इंफाल से मोरे के रास्ते में पहाड़ियों को काट कर हाईवे बनाने का काम भी चल रहा है. इसका आधा काम पूरा हो गया है.
सीमा बंद तो कारोबार ठप्प
अब सीमा व्यापार बंद होने से अवैध कारोबार और तस्करी को बढ़ावा मिला है. इस सीमा पर दो गेट भले बने हैं बाकी सीमा खुली होने से लोगों को आवाजाही में खास दिक्कत नहीं होती. इससे कारोबारियों को भारी नुकसान हो रहा है. मोरे में आपको म्यामांर की बनी तमाम चीजें मिल जाएंगे. फुटपाथ पर इनको बेचने वाले ज्यादातर लोग भी सीमा पार यानी म्यांमार के हैं जो पहले सीमा चौकी से लगे बाजार में दुकान लगाते थे.
मोरे में दुकान चलाने वाली एक महिला टीका आचार्य कहती हैं, "सीमा बंद होने से कारोबार पर काफी प्रतिकूल असर पड़ा है. काम लगभग ठप्प है. सबको तकलीफ हो रही है.” मोरे के दूसरे कारोबारियों की भी यही राय है.
तख्तापलट से बिगड़ा खेल
बीते साल फरवरी में इस सीमा को खोलने की तारीख लगभग तय हो गई थी, लेकिन उससे एक दिन पहले ही म्यांमार में हुए सैन्य तख्तापलट ने सब कुछ बिगाड़ दिया. मणिपुर और म्यांमार के बीच अनौपचारिक सीमा व्यापार तो देश की आजादी से भी पहले से होता रहा है. इसे औपचारिक जामा पहनाया गया दोनों देशों के बीच वर्ष 1994 में हुए एक सीमा व्यापार समझौते के जरिए. उसके तहत वर्ष 1995 में मोरे से लगी सीमा पर एक लैंड कस्टम स्टेशन की स्थापना की गई.
मोरे से सीमा पार कर म्यांमार की धरती पर पहुंचने पर वहां से रिक्शा के जरिए पांच मिनट में नाम्फालांग पहुंचा जा सकता है. वह कस्बा भी मोरे जैसा ही है, लेकिन दो साल से वहां भी मुर्दनी छाई है. वहां से तीन किलोमीटर दूर बसा है तामू शहर जो इलाके का प्रमुख बाजार है. रोजी-रोटी की मजबूरी में वहां से कुछ लोग अवैध तरीके से सीमा पार कर मोरे में सामान भेज रहे हैं. मोरे में फुटपाथ पर दुकान चलाने वाले म्यांमार के नागरिक खिन माउंग कहते हैं, "क्या करें? हमारे सामने परिवार पालने की मजबूरी है. सीमा कब खुलेगी, यह कहना मुश्किल है. लेकिन पेट तो नहीं मानेगा.” खिन और उनके कई परिचित कुलियों के सिर पर सामान रख कर रात को अवैध तरीके से सीमा पार करते हैं.
मोरे के व्यापारियों को उम्मीद है कि जल्दी ही चीजें सामान्य होगी और सीमा दोबारा खोल दी जाएगी. लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो उनके सामने मोरे छोड़ कर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा. (dw.com)
सैन फ्रांसिस्को, 4 जून | माइक्रोसॉफ्ट ने पहले गैर-दस्तावेजी लेबनान-आधारित गतिविधि ग्रुप का पता लगाया और उसे अक्षम कर दिया है जो इजराइल में संगठनों पर हमला करने के लिए ईरान के खुफिया और सुरक्षा मंत्रालय (एमओआईएस) से संबद्ध अन्य लोगों के साथ काम कर रहा है। माइक्रोसॉफ्ट थ्रेट इंटेलिजेंस सेंटर (एमएसटीआईसी) ने ग्रुप को 'पोलोनियम' नाम दिया है।
तकनीकी दिग्गज ने पोलोनियम एक्टर्स द्वारा बनाए गए 20 से अधिक दुर्भावनापूर्ण वनड्राइव एप्लीकेशन्स को निलंबित कर दिया।
कंपनी ने एक बयान में कहा, "हमारा लक्ष्य पोलोनियम रणनीति को बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ साझा करके भविष्य की गतिविधि को रोकने में मदद करना है।"
समूह ईरानी सरकार से जुड़ा हुआ है और तेहरान से इस तरह के सहयोग या दिशा 2020 के अंत से खुलासे की एक कड़ी के साथ संरेखित होगी कि 'ईरान सरकार अपनी ओर से साइबर ऑपरेशन करने के लिए थर्ड पार्टी का उपयोग कर रही है।'
पोलोनियम ने पिछले तीन महीनों में इजराइल में स्थित 20 से अधिक संगठनों और लेबनान में संचालन के साथ एक अंतर सरकारी संगठन को लक्षित या समझौता किया है।
माइक्रोसॉफ्ट को समझाया, "इस एक्टर ने अद्वितीय उपकरण तैनात किए हैं जो अपने अधिकांश पीड़ितों में कमांड और नियंत्रण (सी2) के लिए वैध क्लाउड सेवाओं का दुरुपयोग करते हैं। पोलोनियम को वैध वनड्राइव अकाउन्ट्स का निर्माण और उपयोग करते हुए देखा गया था, फिर उन खातों का उपयोग सी2 के रूप में उनके हमले के संचालन के हिस्से को निष्पादित करने के लिए किया गया था।"
यह गतिविधि वनड्राइव प्लेटफॉर्म पर किसी भी सुरक्षा समस्या या कमजोरियों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है।
फरवरी के बाद से, पोलोनियम को मुख्य रूप से इजराइल में महत्वपूर्ण विनिर्माण, आईटी और इजराइल के रक्षा उद्योग पर ध्यान केंद्रित करने वाले संगठनों को लक्षित करते हुए देखा गया है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, कम से कम एक मामले में, एक आईटी कंपनी के साथ पोलोनियम का समझौता डाउनस्ट्रीम एविएशन कंपनी और लॉ फर्म को एक आपूर्ति श्रृंखला हमले में लक्षित करने के लिए इस्तेमाल किया गया था, जो लक्षित नेटवर्क तक पहुंच प्राप्त करने के लिए सेवा प्रदाता क्रेडेंशियल्स पर निर्भर है। (आईएएनएस)