राष्ट्रीय
भोपाल, 3 मई । कांग्रेस नेता राहुल गांधी के रायबरेली से लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन करने पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने चुटकी ली है। उन्होंने कहा कि अब राहुल गांधी की रायबरेली में हार होने वाली है।
मीडियाकर्मियों से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि राहुल गांधी पिछली बार अमेठी से हारकर केरल तक भागे थे। वायनाड से हार की आशंका को देखते हुए राहुल गांधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ने का फैसला किया है। स्मृति ईरानी ने अमेठी में पांच साल तक काम किया है और उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में पांच विधानसभा में से चार में कांग्रेस की जमानत जब्त कराई।
उन्होंने आगे कहा कि यूपी का माहौल मोदीमय हो चुका है। पुराना रिकॉर्ड भी हम तोड़ने जा रहे हैं। राहुल गांधी अब अमेठी की बजाए रायबरेली से चुनाव लड़ने जा रहे हैं तो रायबरेली की जनता उनका इंतजार कर रही है। कांग्रेस ने जितने विकास में अवरोध पैदा किए, पीएम नरेंद्र मोदी के बारे में जितनी हल्की बातें की, उन सभी बातों का कांग्रेस को हिसाब देना पडे़गा। रायबरेली से भी राहुल गांधी की हार तय है।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने पर मुख्यमंत्री मोहन यादव ने तंज कसते हुए कहा कि प्रियंका गांधी तो रण के पहले ही रण-छोड़ हो गईं।
(आईएएनएस)
मंडी, 3 मई । हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के सचिव किशोरी वालिया ने शुक्रवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मंडी लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार कंगना रनौत को निशाने पर लिया है।
उन्होंने कंगना रनौत पर कांग्रेस प्रत्याशी विक्रमादित्य सिंह को लेकर अनाप-शनाप बयान देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कंगना रनौत को विक्रमादित्य सिंह और उनके परिवार के बारे में पढ़ना चाहिए। स्वगीर्य राजा वीरभद्र सिंह, प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य का प्रदेश के विकास में काफी योगदान रहा है।
उन्होंने कहा कि कंगना रनौत चुनाव-प्रचार करें, लेकिन मर्यादा को ध्यान में रखते हुए मुद्दों पर बात करें। राज्य में जब आपदा आई थी तो सभी वर्ग के लोगों ने मदद की थी, उस समय कंगना कहां थीं। उस समय उनको मंडी की याद नहीं आई।
हिमाचल के नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि आप जगह-जगह प्रदेश सरकार को बदलने की बात कर रहे हैं, वह सपना दिल से निकाल लें, जनता भाजपा की कुरीतियों को जानती है। विधानसभा उपचुनाव और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रचंड जीत हासिल करेगी।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 मई । उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि राहुल गांधी अपनी पुश्तैनी सीट (अमेठी) छोड़कर भाग गए हैं। उन्होंने यह बातें दक्षिण दिल्ली से भाजपा प्रत्याशी रामवीर सिंह बिधूड़ी के रोड शो में कही।
शुक्रवार को दिल्ली की चांदनी चौक सीट से भाजपा उम्मीदवार प्रवीण खंडेलवाल और दक्षिण दिल्ली लोकसभा सीट के उम्मीदवार रामबीर सिंह बिधूड़ी ने अपने-अपने नामांकन से पहले रोड शो निकला। दक्षिण दिल्ली से भाजपा उम्मीदवार रामबीर सिंह बिधूड़ी के रोड शो में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी मौजूद रहे।
दिल्ली में आयोजित रोड शो के दौरान उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि अमेठी संसदीय सीट राहुल गांधी की पुश्तैनी सीट थी। हालांकि, राहुल इस सीट को छोड़कर भाग गए हैं। धामी का कहना है कि जिस प्रकार राहुल ने अमेठी लोकसभा क्षेत्र से पलायन किया है, वैसे ही उनकी पूरी कांग्रेस पार्टी भी पलायन करने वाली है।
गौरतलब है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। शुक्रवार को राहुल गांधी ने रायबरेली सीट से नामांकन भी कर दिया। अमेठी से कांग्रेस ने किशोरी लाल शर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 मई । दक्षिण-पूर्व दिल्ली में एक लड़की के चलते 18 वर्षीय लड़के की नाबालिग समेत दो लोगों ने चाकू मारकर हत्या कर दी। एक अधिकारी ने शुक्रवार को बताया कि पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है।
पुलिस ने बताया कि गुरुवार को ओखला थाने में शाम 5:27 बजे एक लड़के के घायल होने के संबंध में दो कॉल मिलीं। इसके बाद पुलिस की टीम मौके पर पहुंची।
एक अन्य पीसीआर कॉल शाम 6:22 बजे ओखला औद्योगिक क्षेत्र में अपोलो अस्पताल से मिली। इसमें बताया गया कि ओखला फेज-2 में जेजे कैंप निवासी शिवम नाम के एक मरीज को घायल अवस्था में लाया गया। ओखला के सलोरा पार्क में इसका झगड़ा हुआ था।
दक्षिण पूर्वी दिल्ली के डीसीपी राजेश देव ने कहा, "लड़के को आईसीयू में भर्ती कराया गया। बाद में इलाज के दौरान डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। अपराध टीम और फोरेंसिक विशेषज्ञों को भी मौके पर बुलाया गया। टीम ने अपराध स्थल का निरीक्षण किया।"
पूछताछ के दौरान पता चला कि शिवम और उसी इलाके के रहने वाले धर्मेंद्र (18) और एक नाबालिग शाम लगभग 5:11 बजे सलोरा पार्क आए थे। 7 से 8 मिनट के बाद शिवम पार्क से बाहर आया। जब वह अपनी बाइक पर बैठा, तो अचानक फुटपाथ पर गिर गया और उसकी गर्दन से खून बह रहा था।
डीसीपी ने कहा कि आगे की जांच में पता चला कि नाबालिग ने शिवम की गर्दन पर चाकू मारा था। आईपीसी की धारा 302/34 के तहत केस दर्ज किया गया है और दोनों आरोपियों को पकड़ लिया गया है।
(आईएएनएस)
पटना, 3 मई । पाटलिपुत्र लोकसभा से महागठबंधन की प्रत्याशी मीसा भारती ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता को केवल चुनाव के समय ही बिहार की याद आती है।
उन्होंने कहा कि भाजपा के नेताओं को 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान की गई घोषणाओं और वादों को याद करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि बिहार को स्पेशल पैकेज कब मिलेगा, यहां की बंद फैक्ट्रियां कब चालू होंगी। सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष 2 करोड़ रोजगार का वादा किया गया था। एनडीए सरकार के शासन काल में बिहार के कितने नौजवानों को रोजगार मिला? बिहार के डबल इंजन की सरकार को बताना चाहिए कि बिहार के लोगों को रोजगार कब मिलेगा? साथ ही स्पेशल पैकेज की घोषणा कब होगी?
उन्होंने कहा कि देश का माहौल महागठबंधन के पक्ष में है और देश की जनता ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए सरकार की विदाई का मन बना लिया है।
(आईएएनएस)
अमेठी, 3 मई । भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अमेठी से उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने कांग्रेस पर निशाना साधा है।
उन्होंने कहा कि हम लोग अतिथियों के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। अमेठी से गांधी परिवार का न लड़ना, इस बात का संकेत है कि कांग्रेस पार्टी चुनाव में वोट पड़ने से पहले ही अमेठी से अपना हार स्वीकार कर चुकी है।
स्मृति ईरानी ने शुक्रवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि कांग्रेस ने अमेठी से हार स्वीकार कर ली है।
उन्होंने आगे कहा कि अगर उन्हें लगता कि यहां जीत की कोई भी गुंजाइश हो, तो वे यहां से लड़ते।
स्मृति ईरानी ने कहा कि अमेठी से गांधी परिवार का न लड़ना इस बात का संकेत है कि कांग्रेस ने वोट से पहले ही हार मान ली है। उन्हें लगता है कि जीत सकते तो प्रॉक्सी को चुनाव नहीं लड़ाते।
ज्ञात है कि अमेठी से राहुल गांधी 2019 का चुनाव स्मृति ईरानी से चुनाव हार गए थे। इस बार काफी कयास लगाए जा रहा था कि राहुल गांधी यहां से चुनाव लड़ेंगे। लेकिन अंतिम समय में यहां से गांधी परिवार के करीबी के एल शर्मा को प्रत्याशी बना दिया गया।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 मई । पश्चिम बंगाल के बर्धमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को एक रैली को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने टीएमसी और कांग्रेस पार्टी को जमकर घेरा। वहीं रैली में एक दिलचस्प नजारा भी देखने को मिला। दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी जब रैली को संबोधित कर रहे थे, इसी दौरान उनका ध्यान एक साधु पर गया जो हजारों की भीड़ के बीच रुद्राक्ष की माला पकड़े हुए थे।
पीएम मोदी मंच से साधु से कहते हैं कि आप मेरे लिए प्रसाद लेकर आए हैं। तभी पीएम मोदी साधु के सामने खड़े होकर कैमरामैन से कहते हैं कि वह प्रसाद लेकर मुझे दे दीजिए। वो साधु को कहते हैं कि आप परेशान मत होइए, आपका प्रसाद मुझे मिल जाएगा। प्रधानमंत्री साधु से आगे कहते हैं कि आप काफी देर से हाथ ऊपर कर खड़े हैं, ऐसे में आप थक जाएंगे। इस उम्र में आप इतना आशीर्वाद दे रहे हैं। मैं यहां से आपको प्रणाम करता हूं।
पीएम मोदी हाथ जोड़कर साधु का अभिवादन करते हैं, जिस पर वह भी हाथ जोड़कर उनको प्रणाम करते हैं। इस पूरे वाकया का वीडियो भी सामने आया है। जो अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर छाया हुआ है। इस पर यूजर्स अलग-अलग कमेंट भी कर रहे हैं।
हालांकि, यह पहला वाकया नहीं है, जब पीएम मोदी की रैली के दौरान इस तरह का अनोखा नजारा देखने को मिला हो। इसके पहले कर्नाटक के बागलकोट में भी पीएम मोदी की रैली में दिलचस्प नजारा देखने को मिला था। जहां एक बच्ची भीड़ में प्रधानमंत्री की तस्वीर लेकर खड़ी हुई थी।
इसके बाद पीएम मोदी एसपीजी कमांडो से बच्ची से तस्वीर लाने के लिए कहते हैं और वह बच्ची से फोटो के पीछे अपना नाम और पता लिखने के लिए भी कहते हैं। मंच से पीएम मोदी सबके सामने बच्ची से वादा भी करते हैं कि वह उसे जरूर चिट्ठी लिखेंगे।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 मई । भाजपा राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत गौतम ने राहुल गांधी के रायबरेली से लोकसभा चुनाव लड़ने पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि जनता ने इन्हें नकार दिया है और इनकी हालत यह हो गई है कि "भाग राहुल भाग,सनातनी आ रहे हैं।" यही चलने वाला है। ये अमेठी से भाग कर वायनाड गए, उन्हें धोखा दिया और अब वहां से हार रहे हैं तो भाग कर रायबरेली आ गए। उनके मन के अंदर डर बैठ गया है कि जनता उन्हें नकार रही है।
उन्होंने कहा कि सनातन की आलोचना करने वाले ये अब पूजा कर रहे हैं। ये मानसिक संतुलन खो चुके व्यक्ति जैसा काम कर रहे हैं।
भाजपा मुख्यालय में मीडिया से बात करते हुए उन्होंने यह भी कटाक्ष किया कि इनमें चुनाव लड़ने की हिम्मत तक नहीं बची है और प्रियंका गांधी की हालत आप समझ सकते हैं।
कांग्रेस पर बाबा साहेब अंबेडकर का अपमान करने और संविधान को बदलने का आरोप लगाते हुए दुष्यंत गौतम ने कहा कि कांग्रेस ने बाबा साहेब द्वारा बनाए गए संविधान की मूल प्रस्तावना में छेड़छाड़ करके 'सेक्युलर' शब्द जोड़ दिया, जोकि गलत था।
वहीं कांग्रेस द्वारा संविधान बदलने के लगाए जा रहे आरोपों को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह स्पष्ट कर चुके हैं कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान को न तो कोई बदल सकता है और ना ही कोई आरक्षण छीन सकता है।
उन्होंने कांग्रेस पर हमेशा से ही आरक्षण के खिलाफ रहने का आरोप लगाते हुए कहा कि जवाहरलाल नेहरू ने आरक्षण के खिलाफ मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा था। कांग्रेस की वजह से बाबा साहेब अंबेडकर को इस्तीफा देना पड़ा, कांग्रेस ने ही उन्हें चुनाव तक हरा दिया जबकि भाजपा ने उन्हें हमेशा सम्मान देने का काम किया, उनका समाधि स्थल भी बनाया।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के कारण अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिलिया इस्लामिया में एससी, एसटी और ओबीसी को आरक्षण का लाभ तक नहीं मिल पा रहा है।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 मई । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर विपक्ष के नेता भी इस बात का बार-बार जिक्र करते रहे हैं कि वह कड़ी मेहनत करते हैं। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से अलग विपक्ष के ज्यादातर नेता इस बात को मानते भी हैं और यह कहते भी रहे हैं कि वह प्रखर वक्ता होने के साथ हमेशा ऊर्जा से भरे हुए रहते हैं।
वहीं विपक्ष के नेताओं सहित कई लोग नरेंद्र मोदी को एक अभिभावक के तौर पर भी देखते हैं। इसको लेकर बीजू जनता दल के पूर्व नेता और सांसद, भर्तृहरि महताब ने स्वास्थ्य संकट के दौरान पीएम मोदी का एक मार्मिक विवरण साझा किया है। जिसमें वह बता रहे हैं कि संकट की घड़ी में पीएम मोदी कैसे उनके लिए चिंता कर रहे थे।
महताब कहते हैं, ''परिवार के एक बुजुर्ग की तरह उन्होंने हमें लापरवाह होने के लिए डांटा भी था।''
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि क्यों विपक्ष के सदस्य भी पीएम मोदी का बहुत सम्मान करते हैं। भर्तृहरि महताब कहते हैं कि दो साल पहले मैं स्ट्रोक से जूझ रहा था। मुझे दो दिनों से दवा दी जा रही थी। दवाई देने के दो दिन के बाद मैं बहुत ही असामान्य महसूस करने लगा। मुझे सांस लेने में ज्यादा तकलीफ होने लगी तो मैं दिल्ली स्थित आरएमएल अस्पताल चला गया। वहां मुझे स्टंट लगाया गया। ये सारी बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा स्पीकर और अन्य सभी को पता चल गई।
भर्तृहरि महताब ने आगे कहा कि लेकिन, फोन सबसे पहले पीएम मोदी का आया मेरे बेटे के पास। उन्होंने कहा कि मेरे बेटे ने बताया कि जिस तरह दादा जी अपने बच्चे को निर्देश देते हैं, डांटते हैं उस हिसाब से पीएम मोदी ने भी मुझे डांट लगाई।
पीएम मोदी ने कहा कि तुम्हें पता कैसे नहीं चला कि यह सब हो रहा है, उन्हें तीन दिन से परेशानी हो रही थी। तुमने तीन दिन की देरी क्यों की अस्पताल जाने में।
भर्तृहरि महताब ने कहा कि यह प्रधानमंत्री मोदी का मेरे परिवार के प्रति लगाव था जो मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा।
उन्होंने आगे कहा कि जब मैं अपने बेटे से पूछता हूं कि पीएम मोदी ने तुम्हें क्या कहा तो वह हर बार यही कहता है कि शायद मेरे दादा जी भी मुझे इस तरह से डांट नहीं लगाते जिस तरह से हमारी गलती के लिए उन्होंने डांट लगाई। लेकिन, उस डांट में फिक्र ज्यादा थी, प्यार ज्यादा था, परवाह ज्यादा थी। ये डांट अच्छे के लिए थी।
भर्तृहरि महताब ने कहा कि पीएम मोदी की यह जो भागीदारी और फिक्र है, वह इसलिए है कि वह हमेशा मानते हैं कि हम उनके अपने हैं। उनका यह जो व्यवहार और आचरण है वह देशवासियों के लिए भी है।
(आईएएनएस)
अमेठी, 3 मई । उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार किशोरी लाल शर्मा ने शुक्रवार को अपना नामांकन कर दिया। नामांकन से पहले कांग्रेस कार्यालय से रोड शो निकालते हुए वह कलेक्ट्रेट पहुंचे।
इस दौरान सैकड़ों की संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता मौजूद रहे। केएल शर्मा को गांधी परिवार करीबी माना जाता है। वह मूल रूप से पंजाब के लुधियाना के रहने वाले हैं।
1983 के आसपास राजीव गांधी उन्हें पहली बार अमेठी लेकर आए थे। तब से वह यहीं के होकर रह गए।
1991 में राजीव गांधी की मौत के बाद जब गांधी परिवार ने यहां से चुनाव लड़ना बंद किया तो भी शर्मा कांग्रेस पार्टी के सांसद के लिए काम करते रहे।
रायबरेली से सोनिया गांधी के सांसद चुने जाने के बाद उनके प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते रहे।
यूपी की वीआईपी सीटों में शुमार अमेठी से वर्ष 1999 में सोनिया गांधी ने अपना पहला चुनाव लड़ा था। बाद में उन्होंने वर्ष 2004 में यह सीट राहुल गांधी के लिए छोड़ दी।
राहुल गांधी 2004, 2009, 2014 में चुनाव जीत गए लेकिन, वह 2019 में भाजपा की स्मृति ईरानी से चुनाव हार गए।
(आईएएनएस)
हैदराबाद, 3 मई । वन अधिकारियों ने पिछले पांच दिनों से हैदराबाद के बाहरी इलाके शमशाबाद में राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट (आरजीआईए) के आसपास घूम रहे एक तेंदुए को शुक्रवार सुबह पकड़ लिया।
तेंदुए की मौजूगी से एयरपोर्ट के आसपास के गांवों में दहशत फैल गई थी। वन अधिकारियों के लगाए गए पिंजरे में तेंदुआ फंस गया है। इसके बाद लोगों ने राहत की सांस ली। 28 अप्रैल को इलाके में तेंदुआ देखे जाने के बाद लोग अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित थे।
वन अधिकारियों ने बताया कि तेंदुए को शहर के नेहरू जूलॉजिकल पार्क में शिफ्ट कर दिया गया है। जांच और उसकी स्थिति की निगरानी के बाद तेंदुए को अमराबाद टाइगर रिजर्व में छोड़ दिया जाएगा।
वन विभाग की टीम पिछले पांच दिनों से इलाके में सक्रिय थी। तेंदुए को पकड़ने के लिए पांच पिंजरे और 20 ट्रैप कैमरे लगाए गए थे। वह भोजन के लालच में एक पिंजरे में फंस गया।
रंगारेड्डी जिले के शमशाबाद नगर पालिका के अंतर्गत गोलापल्ली के पास एयरपोर्ट क्षेत्र में तेंदुए को देखा गया था।
एयरपोर्ट स्टाफ ने गोलापल्ली के पास तेंदुए को एयरपोर्ट की बाउंड्री वॉल से छलांग लगाते हुए देखा। उन्होंने तुरंत वन विभाग को सतर्क किया, जिसने इसे पकड़ने के लिए एक अभियान चलाया।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 मई । दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने मुठभेड़ के बाद गोगी गिरोह के एक सदस्य को गिरफ्तार कर लिया है। इसके खिलाफ हत्या सहित तीन मामले दर्ज हैं।
आरोपी की पहचान मोहम्मद फैजान उर्फ नन्हे उर्फ कालू उर्फ गोगा (35) के रूप में हुई और वह दिल्ली के सावदा का रहने वाला है।
पुलिस उपायुक्त (स्पेशल सेल) अमित कौशिक ने कहा, ''हमें विशेष सूचना मिली थी कि फैजान अपने साथियों से मिलने के लिए शुक्रवार को लगभग 2.15 बजे अपनी काले रंग की मोटरसाइकिल से जापानी पार्क, सेक्टर -10, रोहिणी, दिल्ली के पास आएगा।''
डीसीपी ने कहा, ''इस जानकारी के आधार पर जापानी पार्क, रोहिणी, दिल्ली के गेट नंबर 3 के पास एक जाल बिछाया गया। रात करीब ढाई बजे एक मोटरसाइकिल सवार को रोका गया। जब उसे पता चला कि पुलिस ने उसे घेर लिया है, तो उसने तुरंत पुलिस टीम पर गोलियां चला दीं और मौके से भागने की कोशिश की।''
उन्होंने आगे कहा, ''पुलिस टीम की जवाबी फायरिंग में फैजान के दाहिने पैर में चोट लग गई। अपराधी के पास से सेमी-ऑटोमेटिक पिस्टल और तीन जिंदा कारतूस बरामद किए गए। उसे इलाज के लिए डॉ. बीएसए अस्पताल में शिफ्ट किया गया है। उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जा रही है।''
(आईएएनएस)
पटना, 3 मई । अमेठी और रायबरेली सीट से कांग्रेस के उम्मीदवारों के नाम घोषित होने पर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कांग्रेस ने अमेठी से किशोरी लाल शर्मा और रायबरेली से राहुल गांधी को मैदान में उतारा है।
लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान का ने कहा, “निश्चित तौर पर जिस तरीके से वह अमेठी में चुनाव हारने के बाद वहां कभी नहीं गए, रायबरेली की जनता यह देखेगी कि क्या वहां से चुनाव हारने के बाद फिर कभी आएंगे? ऐसे लोगों को वहां की जनता साथ नहीं देगी।“
जेडीयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने भी राहुल के रायबरेली से चुनाव लड़ने पर कहा, “उनको मालूम है, डर सता रहा है, जो लोग लगातार लोकतंत्र पर हमला कर रहे हैं, वो परिवार तंत्र से घिरे हुए हैं। बिहार में देख रहे हैं, तेजस्वी कैसे उछल रहे हैं, पिछली बार खाता भी नहीं खुला था, दिल्ली के युवराज का भी यही हाल होगा।“
जीतनराम मांझी ने भी राहुल के रायबरेली से चुनाव लड़ने पर कहा, “पांच जगह से भी वो अगर चुनाव लड़ेंगे, तो हार जाएंगे।“
उधर, अमेठी के सियासी रण में कांग्रेस द्वारा उतारे जाने के बाद किशोरी लाल शर्मा की प्रतिक्रिया भी सामने आई। उन्होंने कहा, “मैं कांग्रेस पार्टी का आभारी हूं जिसने इतने छोटे कार्यकर्ता को इतनी बड़ी जिम्मेदारी के काबिल समझा। मैं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा का तहे दिल से आभारी रहूंगा।"
(आईएएनएस)
पटना, 3 मई । बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा है कि 2025 तक राज्य में 10 लाख लोगों को नौकरी देंगे।
उन्होंने कहा कि 2025 तक सीएम नीतीश कुमार 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देंगे। जनता से किए गए सभी वादों को पूरा किया जाएगा। हम लालू यादव जैसे नहीं हैं, जो जनता से वादा करें, लेकिन उसे पूरा ना करें।
इसके साथ ही उन्होंने राहुल गांधी के रायबरेली से चुनाव लड़ने पर भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “जिस अमेठी की सीट पर उनका पूरा खानदान चुनाव लड़ रहा था, वहां से राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी भाग खड़ी हुई।“
लंबी जद्दोजहद के बाद कांग्रेस ने शुक्रवार को अमेठी और रायबरेली सीट पर अपने प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर दिया।
अमेठी में जहां इस बार कांग्रेस ने किशोरी लाल शर्मा पर दांव लगाया है, वहीं, रायबरेली से राहुल गांधी को चुनावी मैदान में उतारा गया है।
अमेठी के सियासी रण में उतारे जाने के बाद किशोरी लाल शर्मा ने कहा, "मैं कांग्रेस पार्टी का आभारी हूं, जिसने इतने छोटे कार्यकर्ता को इतनी बड़ी जिम्मेदारी के काबिल समझा। मैं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा का तहे दिल से आभारी रहूंगा।"
(आईएएनएस)
पटना, 3 मई । राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उनके कथित पसंदीदा शब्दों को लेकर तंज कसा है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए यह भी कहा कि वे नौकरी-रोजगार, गरीबी-किसानी जैसे शब्द भूल गए हैं।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने सोशल साइट एक्स पर देशवासियों को संबोधित करते हुए लिखा कि हिंदी भाषा में आज लगभग 1.5 लाख शब्द बताये जाते हैं तथा अध्ययन की सभी शाखाओं में तकनीकी शब्दों को मिलाकर लगभग 6.5 लाख शब्द हैं।
उन्होंने आगे लिखा, "लेकिन, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे पसंदीदा शब्द हैं: पाकिस्तान, श्मशान, कब्रिस्तान, हिन्दू-मुसलमान, मंदिर-मस्जिद, मछली-मुगल, मंगलसूत्र, गाय-भैंस। ऊपर की लिस्ट पहले दो चरणों के चुनाव होने तक की है। सातवें चरण तक इस लिस्ट में कुछ दो चार नाम और बढ़ सकते हैं।"
लालू ने आगे कहा कि वे नौकरी-रोजगार, गरीबी-किसानी, महंगाई-बेरोजगारी, विकास-निवेश, छात्र-विज्ञान-नौजवान इत्यादि मुद्दे भूल गए है।
(आईएएनएस)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह तब तक वैध नहीं है जब तक उचित रीति-रिवाजों और समारोहों के साथ ना किया जाए.कोर्ट ने तलाक के मुकदमे में शादी प्रमाणपत्र को खारिज किया और कहा हिंदू शादी तो रीति रिवाज से ही वैध होती है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने दो पायलटों के केस में यह आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि सप्तपदी (पवित्र अग्नि के चारों ओर सात फेरे) जैसे वैध रीति के अभाव में एक हिंदू विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती है.
19 अप्रैल को जारी अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत एक जोड़े द्वारा अग्नि के चारों ओर उठाए गए सात कदम, जो एक दूसरे से किए गए सात वचनों या सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करते हैं, अगर ये रस्म नहीं निभाए जाते हैं तो उसे हिंदू विवाह नहीं समझा जा सकता.
शादी का मतलब नाच-गाना नहीं है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह "नाचने और गाने", "खाने और पीने" या "व्यावसायिक लेनदेन" का अवसर नहीं है और ना ही अनुचित दबाव डालकर दहेज या उपहार मांगने का अवसर है. कोर्ट ने कहा यह एक पवित्र बंधन है जो एक महिला और पुरुष के बीच संबंध स्थापित करने के लिए है, जो भविष्य में एक विकसित परिवार के लिए पति और पत्नी का दर्जा हासिल करते हैं, जो भारतीय समाज की एक बुनियादी इकाई है.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार है, जिसे भारतीय समाज में एक महान मूल्य की संस्था के रूप में दर्जा दिया जाना चाहिए. बेंच ने भारतीय युवाओं से आग्रह किया "युवा पुरुषों और महिलाओं को विवाह की संस्था में प्रवेश करने से पहले ही इसके बारे में गहराई से सोचना चाहिए और यह भी जानें कि भारतीय समाज में उक्त संस्था कितनी पवित्र है."
हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों पर गौर करते हुए बेंच कहा, "जब तक विवाह उचित समारोहों और उचित रूप में नहीं किया जाता है, तब तक इसे अधिनियम की धारा 7 (1) के अनुसार 'संपन्न' नहीं कहा जा सकता है." बेंच ने आगे कहा, "ऐसे समारोह के बिना किसी संस्था द्वारा सिर्फ प्रमाण पत्र जारी करने से न तो वैवाहिक स्थिति की पुष्टि होगी और न ही हिंदू कानून के तहत विवाह स्थापित हो सकेगा."
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि विवाह रजिस्ट्रेशन का फायदा यह कि विवादित मामले में शादी के तथ्य का प्रमाण देता है, लेकिन अगर हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 के मुताबिक कोई शादी नहीं हुई है तो रजिस्ट्रेशन विवाह को वैधता प्रदान नहीं करेगा.
क्या है मामला
दरअसल सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी दो पायलटों की अर्जी पर आई है. सुप्रीम कोर्ट में एक महिला ने याचिका देकर तलाक की अर्जी बिहार के मुजफ्फरपुर की एक अदालत से झारखंड के रांची की एक अदालत में ट्रांसफर करने की मांग की थी. याचिका के लंबित रहने के दौरान महिला और उनके पति ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत एक संयुक्त आवेदन दायर करके विवाद को सुलझाने का फैसला किया.
इस जोड़े की सगाई 7 मार्च, 2021 को होने वाली थी और उन्होंने दावा किया कि उन्होंने 7 जुलाई, 2021 को अपनी शादी 'संपन्न' कर ली. उन्होंने वैदिक जनकल्याण समिति से एक "विवाह प्रमाण पत्र" हासिल किया और इस प्रमाण पत्र के आधार पर दोनों ने उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियम, 2017 के तहत विवाह का पंजीकरण कराया. उनके परिवारों ने हिंदू संस्कार और रीति-रिवाजों के मुताबिक विवाह समारोह की तारीख 25 अक्टूबर, 2022 तय की. इस बीच वे अलग-अलग रहते थे, लेकिन उनके बीच मतभेद पैदा हो गए और मामला कोर्ट जा पहुंचा.
प्रमाण पत्र से हिंदू विवाह को मान्यता नहीं
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए बेंच ने कहा कि जब हिंदू विवाह सात फेरों, रीति-रिवाजों और संस्कारों जैसे समारोहों के अनुसार नहीं होता है, तो उस विवाह को हिंदू विवाह नहीं माना जाएगा. कोर्ट के मुताबिक अधिनियम के तहत एक वैध विवाह के लिए अपेक्षित समारोहों का आयोजन किया जाना चाहिए और कोई मुद्दा या विवाद की स्थिति में उक्त समारोह के प्रदर्शन का प्रमाण होना चाहिए.
बेंच ने अपने आदेश में कहा, "जब तक दोनों पक्षों ने इस तरह का समारोह नहीं किया है, तब तक अधिनियम की धारा 7 के अनुसार कोई हिंदू विवाह नहीं होगा और अपेक्षित समारोहों के अभाव में किसी संस्था द्वारा प्रमाणपत्र जारी करना, ना ही किसी वैवाहिक स्थिति की पुष्टि करेगा." अदालत ने वैदिक जनकल्याण समिति द्वारा जारी प्रमाण पत्र और उत्तर प्रदेश पंजीकरण नियम, 2017 के तहत जारी 'विवाह प्रमाण पत्र' को "हिंदू विवाह" के प्रमाण के तौर पर अमान्य घोषित कर दिया.
तथ्यों को देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनके तलाक की प्रक्रिया और पति व उसके परिवार पर लगाया दहेज का मुकदमा खारिज कर दिया.
क्या मतलब है शादी का
हिंदू धर्म और संस्कृति के बारे में गहरी जानकारी रखने वाले डॉ. लक्ष्मीकांत त्रिपाठी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वागत योग्य बताते हैं और कहते हैं कि कोर्ट ने युगांतरकारी फैसला किया है. उनके मुताबिक कोर्ट के आदेश से पूरा युग बदल जाएगा. वो कहते हैं, "जहां लोगों ने विवाह को सिर्फ नाच-गाना, गिफ्ट मांगना, दहेज मांगना उसके बाद पुलिस में शिकायत करना तक सीमित कर दिया है. उस परिप्रेक्ष्य में यह फैसला आया है, तो यह बहुत ही सकारात्मक परिवर्तन देगा और मनुष्य जाति को सुख देना वाला फैसला है."
त्रिपाठी कहते हैं कि हिंदू विवाह जो है वह बहुत पवित्र रिश्ता है और इसको मांग का पर्याय बना दिया गया है. उनके मुताबिक, "हर आदमी सुख मांगता है इसलिए विवाह टिक नहीं रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने बहुत बड़ी बात कही है कि इसकी पवित्रता पर विचार किया जाए. आज के जो युवा हैं, जो महिलाएं हैं उनको इसकी पवित्रता पर विचार करना चाहिए ना कि इसके भोग पर, यह नहीं सोचना चाहिए कि विवाह हमारे भोग का साधन है."
सुप्रीम कोर्ट के पारंपरिक हिंदू शादी पर जोर दिए जाने पर त्रिपाठी बताते हैं कि कई जगहों पर देखा गया है कि लोगों के पास विवाह के लिए समय ही नहीं है. उन्होंने कहा, "पूरा टाइम तो कैमरामैन ही ले जाता है, रात भर यही फंक्शन होते हैं प्री वेडिंग शूट और आफ्टर वेडिंग शूट जबकि सबसे महत्वपूर्ण मुहुर्त तो वही होता है जब दोनों को जुड़ना चाहिए और संकल्प लेना चाहिए. फिर पंडित से कहा जाता है कि कम से कम समय में शादी करा दीजिए. या फिर समय नहीं रहने पर पंडित से कह दिया जाता है कि रहने दीजिए केवल आशीर्वाद दे दीजिए."
शादी में सात फेरों का महत्व
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 7 के तहत इसमें सप्तपदी (सात फेरों जैसी रीति) का पालन होना चाहिए नहीं तो शादी मान्य नहीं होगी. इन फेरों के महत्व के बारे में त्रिपाठी विस्तार से बताते हैं कि यह सात वचन होते हैं. वो कहते हैं कि अग्नि के चारों घुमते हुए हर फेरे में वचन दिया जाता है. जीवन में आगे बढ़ने के लिए सात फेरे हैं. हर फेरे में अलग वचन होता है और लड़की एक-एक कर सात वचन लेती है.
त्रिपाठी यह भी कहते हैं कि जिनकी शादी रीति-रिवाजों और सात फेरों के बिना हुई है उन्हें फिर से शादी करने पर विचार करना चाहिए और सात फेरों में दिए गए वचन को सुनना और समझा भी चाहिए. (dw.com)
अल्मोड़ा, 3 मई । उत्तराखंड में वनों में लगी आग अब विकराल रूप लेने लगी है। जंगलों की आग वन्य जीवों के साथ ही अब इंसानों की जान पर भी भारी पड़ने लगी है।
अल्मोड़ा जिले की सोमेश्वर विधानसभा सीट के स्यूनराकोट में गुरुवार देर शाम लगी जंगल की आग में लीसा बीन रहे 4 मजदूर इसकी चपेट में आ गए, जिसमें 2 की जलकर मौत हो गई। दो अन्य श्रमिक बुरी तरह झुलस गए हैं, उन्हें तुरंत उपचार के लिए हल्द्वानी के अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
लीसा श्रमिकों के वनाग्नि की चपेट में आने से इलाके में हड़कंप मचा हुआ है।
लीसा ठेकेदार रमेश भाकुनी ने कहा कि जंगल की आग में 4 लीसा श्रमिक बुरी तरह झुलस गए, जिसमें एक की मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि तीन घायल श्रमिकों के लिए चार घंटे बाद भी एंबुलेंस मौके पर नहीं पहुंची। घायलों को स्थानीय लोगों की मदद से निजी वाहन से अल्मोड़ा के बेस अस्पताल में इलाज के लिए ले जाया गया।
बेस अस्पताल के सीएमएस डॉ अशोक ने बताया कि अस्पताल में आग से झुलसे हुए तीन लोगों को लाया गया। ये लोग करीब 90 प्रतिशत से अधिक जल चुके थे। अस्पताल में बर्न वार्ड नहीं है। इलाज के दौरान एक लीसा श्रमिक ज्ञानेश ने दम तोड़ दिया। दो मजदूर तारा और पूजा को प्राथमिक उपचार के बाद हायर सेंटर हल्द्वानी रेफर कर दिया गया। अब हल्द्वानी के हायर सेंटर में तारा और पूजा का इलाज चल रहा है।
इस हादसे में दीपक बहादुर नाम के श्रमिक की मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि ज्ञानेश नाम के श्रमिक ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।
(आईएएनएस)
लैंगिक पहचान को सीमित करने का भाषा एक अहम माध्यम है. महिला और पुरुष के खांचे में बंटी भाषा क्वीयर समुदाय को कैसे अदृश्य बना देती है?
डॉयचे वैले पर रितिका की रिपोर्ट-
"जब मैं पांच साल का था तब से ही अपने नाम से खुद को जुड़ा हुआ महसूस नहीं कर पाता था. घर और स्कूल में जिस भाषा और शब्दों का इस्तेमाल मेरे लिए किया जाता था वे मुझे अपने नहीं लगते थे. सबसे बड़ी चुनौती निजी रिश्तों में ही देखने को मिली. कहा गया कि सिर्फ कह देने भर से कोई औरत से आदमी नहीं हो जाता.”
डीडबल्यू से बातचीत के दौरान दिल्ली के रहने वाले कबीर मान ने ये बातें कही. कबीर खुद को एक ट्रांस पुरुष के रूप में चिन्हित करते हैं. वह क्वीयर अधिकारों, लैंगिक समानता, भाषा की भूमिका जैसे मुद्दों पर स्कूलों और अलग अलग संस्थाओं में जाकर युवाओं और बच्चों को ट्रेनिंग देते. अपना अनुभव साझा करते हुए वह भाषा और लैंगिक पहचान से जुड़ी चुनौतियों की ओर इशारा करते हैं.
लैंगिक पहचान और भाषा की भूमिका
जेंडर यानी लिंग के संदर्भ में भाषा को हमेशा एक खांचे में देखा गया है. अधिकतर भाषाओं में वैसे महिलाओं और पुरुषों को संबोधित करने के लिए तो कई शब्द हैं, लेकिन क्या होगा अगर कोई व्यक्ति खुद की लैंगिक पहचान इन दोंनो जेंडर से अलग रखता हो? बीते कुछ दशकों से क्वीयर अधिकारों के अलग-अलग आयामों की चर्चा मुख्यधारा में आई है. इसके साथ ही क्वीयर समुदाय के संदर्भ में भाषा के लिंग की चर्चा शुरू हुई.
2019 में मरियम वेबस्टर डिक्शनरी ने अंग्रेजी में थर्ड पर्सन, प्लूरल के लिए इस्तेमाल होने वाली ‘दे' यानी वे शब्द की एक नई परिभाषा जोड़ी थी, "एक ऐसा व्यक्ति जिसकी लैंगिक पहचान नॉन बाइनरी है, यानी वह खुद को पुरुष या महिला नहीं मानते.” यह शब्द जेंडर न्यूट्रल भाषा के केंद्र बिंदु की तरह है. जेंडर न्यूट्रल भाषा का मतलब ऐसी भाषा से है जहां किसी भी इंसान को शब्दों के जरिये महिला या पुरुष की बाइनरी में नहीं बांटा जाता.
क्यों गलत नहीं है 'वे' सर्वनाम का इस्तेमाल
बड़ी संख्या में क्वीयर समुदाय के लोग खुद को मेल या फीमेल यानी पुरुष या महिला के खांचे में सीमित नहीं करते. हालांकि, अधिकतर भाषाएं लोगों को जेंडर के खांचे में जरूर सीमित करती हैं. ऐसे में खुद के लिए जेंडर न्यूट्रल भाषा या प्रोनाउन यानी सर्वनाम का इस्तेमाल करते हैं. जैसे अंग्रेजी के सर्वनाम ‘दे' ‘देम' यानी ‘वे' का इस्तेमाल करना.
अंतरराष्ट्रीय मार्केट रिसर्च कंपनी यूगव के एक सर्वे के मुताबिक ऐसे लोग जो खुद के लिए वे सर्वनाम का इस्तेमाल करते हैं उनकी संख्या बढ़ रही है. अमेरिका में एक तिहाई लोगों ने माना कि वे कम से कम एक ऐसे इंसान को जरूर जानते हैं जो 'वे' सर्वनाम का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, सबसे बड़ी चुनौती उन भाषाओं में है जो लैंगिक आधार पर शब्दों और व्याकरण का इस्तेमाल करते हैं.
उदाहरण के तौर हिन्दी भाषा में जेंडर न्यूट्रल शब्दों का इस्तेमाल मुश्किल है. सुदीप्ता दास पश्चिम बंगाल के रहने वाले हैं. सुदीप्ता खुद के लिए वे सर्वनाम का इस्तेमाल करते हैं. पेशे से लेखक सुदीप्तो क्वीयर अधिकारों, जाति और भाषा के मुद्दे पर काम करते हैं.
वे कहते हैं, "बांग्ला में कई ऐसे शब्द हैं जिनका कोई जेंडर नहीं होता है, लेकिन जैसे ही हिन्दी में मैं खुद को संबोधित करूं तो मेरे लिए वह एक चुनौती बन जाती है. सुनने में बहुत सामान्य बात लग सकती है लेकिन भाषा के पास वह ताकत होती है जिससे वह किसी भी चीज या इंसान की लैंगिक पहचान तय करती है.”
भाषा का व्याकरण और लैंगिक पहचान की चुनौती
जर्मनी के राज्य बवेरिया में आधिकारिक दस्तावेजों और सरकारी स्कूलों में लैंगिक रूप सेसंवेदनशील भाषा के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई. राज्य सरकार ने दलील दी कि भाषा ऐसी होनी चाहिए जो साफ हो और समझ में आए. दूसरी कई भाषाओं की तरह जर्मन में भी शब्दों से लैंगिक पहचान तय हो सकती है.
अमेरिका की मेडिकल लाइब्रेरी नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक जिन इलाकों में जेंडर न्यूट्रल भाषा का इस्तेमाल होता है वहां लैंगिक असमानता की दर कम देखने को मिलती है. जेंडर न्यूट्रल भाषा के संदर्भ में यह भी तर्क दिया जाता है कि यह किसी भी भाषा के व्याकरण को बिगाड़ती है. लोगों के लिए भाषा में अचानक से आए इस बदलाव को समझना आसान नहीं है. लेकिन यही भाषा लोगों के साथ हो रहे लैंगिक भेदभाव की वजह भी बनती है.
अपनी लैंगिक पहचान में भाषा की भूमिका पर कबीर बताते हैं, "अब जब अपनी लैंगिक पहचान को लेकर मैं सहज हूं तो समझ पाता हूं कि आपकी लैंगिक पहचान तय करने में भाषा की क्या भूमिका है. मेरे साथ पहला लैंगिक भेदभाव तो भाषा के स्तर पर ही शुरू हुआ था. भाषा का दायरा हमने बहुत सीमित कर रखा है. हम इस चुनौती से जूझ रहे हैं कि जो हमें सिखाया गया उसे बदला कैसे जाए. अगर आप सर्वनाम और भाषा के व्याकरण की बात करते हैं तो कहा जाता है कि ये भाषा तो खुद क्वीयर लोगों ने इजाद की है, इसकी कोई बुनियाद नहीं है.”
लोगों को अदृश्य बनाती है भाषा
अगर भाषा सिर्फ दो लैंगिक पहचानों पुरुष और महिला तक सीमित होती है वह अन्य लैंगिक पहचान से आने वाले लोगों को अदृश्य करती है. सरकारी दस्तावेजों पर महिला, पुरुष के अलावा अन्य का विकल्प दिए जाने पर सुदीप्तो कहते हैं, "हम भाषा का इस्तेमाल लोगों को जेंडर के खांचे में बांटने के लिए करते हैं. जैसे कई जगह फॉर्म या दस्तावेजों में अन्य का इस्तेमाल किया जाता है. इसका मतलब तो यही है ना कि हमारे पास शब्द ही नहीं हैं यह बताने के लिए कि ये अन्य कौन हैं."
खुद की पहचान नॉन बाईनरी के रूप में करने वाले लोग भी ‘वे' सर्वनाम का इस्तेमाल करते हैं. वे खुद को महिला या पुरुष की लैंगिक पहचान से जुड़ा हुआ नहीं पाते. इस सर्वनाम का इस्तेमाल उनके लिए सिर्फ भाषा का मुद्दा नहीं है. सुदीप्ता कहते हैं, "हम खुद के लिए कौन से सर्वनाम इस्तेमाल करते हैं, यह बेहद अहम है. यह मेरी पहचान का एक हिस्सा है.”
अगर किसी को उसके गलत सर्वनाम से संबोधित किया जाता है तो इसके मायने यह भी होते हैं कि उस व्यक्ति की लैंगिक पहचान को भी अस्वीकार किया जा रहा है. हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के मुताबिक जब लोगों को उनकी गलत लैंगिक पहचान से संबोधित किया जाता है तो यह उनके स्वास्थ्य और रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करता है.
"भाषा लोगों के लिए है, लोग भाषा के लिए नहीं”
संयुक्त राष्ट्र ने 1987 में ही जेंडर न्यूट्रल दिशा निर्देश जारी किए थे जिसे 2021 में संशोधित कर अधिक समावेशी बनाया गया. यह दिशा निर्देश बताते हैं कि लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में लैंगिक रूप से समावेशी भाषा की एक अहम भूमिका है. ऐसी भाषा के जरिये सांस्कृतिक और सामाजिक रूढ़िवादी व्यवहार को भी बदला जा सकता है.
सुदीप्तो कहते हैं, "लोग भाषा से नहीं बनते बल्कि भाषा लोगों से बनती है. हमने यह मानसिकता बना ली है कि भाषा और उसका व्याकरण विकसित नहीं हो सकते, जो चला आ रहा है वही चलता रहेगा. अगर हम भाषा की लैंगिक सीमाओं से आगे बढ़ पाएंगे तो यहां बहुत सारी संभावनाएं हैं.” (dw.com)
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने असम के डिटेंशन सेंटरों में दो साल से ज्यादा अरसे से रहने वाले लोगों के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी है. कोर्ट ने सेंटर में रह रहे लोगों के हालात की जानकारी के लिए एक टीम भेजने को भी कहा है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्र और राज्य सरकार को ऐसे मामलों में कुछ कार्रवाई करनी होगी जिनमें संबंधित व्यक्ति दो साल से ज्यादा समय से इन सेंटरों में रह रहा है. इस मामले में दायर एक याचिका पर सुनवाई के बाद अदालत ने ऐसे विदेशियों को मिलने वाली सुविधाओं का पता लगाने के लिए मौके पर एक टीम भेजने का भी निर्देश दिया है. इस मामले की अगली सुनवाई 16 मई को होगी. असम में वर्ष 2008-09 में राज्य की तत्कालीन तरुण गोगोई सरकार के शासन में पहला डिटेंशन सेंटर खोला गया था.
ढाई साल से डिटेंशन सेंटर में
असम के गोलाघाट जिले की रहने वाली तबस्सुम की बताती हैं, "मेरे पति के पास तमाम दस्तावेज होने के बावजूद उनको एक विदेशी न्यायाधिकरण ने विदेशी घोषित कर दिया था. उनका नाम नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) में नहीं था. परिवार के बाकी सदस्यों के नाम इसमें शामिल थे. उसके बाद उनको एक डिटेंशन सेंटर में भेज दिया गया जहां वो करीब ढाई साल से रह रहे हैं. हमने तमाम जगह गुहार लगाई लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई."
यह कहानी सिर्फ तबस्सुम की नहीं है. एनआरसी की कवायद के बाद ऐसे हजारों लोगों को 'विदेशी' घोषित कर राज्य के छह स्थानों पर बने डिटेंशन सेंटरों में भेज दिया गया था. वर्ष 2020 में वहां ऐसे एक हजार से ज्यादा लोग रह रहे थे. उनमें से कइयों को वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद गुवाहाटी हाईकोर्ट से जमानत मिल चुकी है.
असम में अगस्त 2019 में एनआरसी प्रकाशित होने के बाद उसमें से करीब 19 लाख लोगों के नाम बाहर रह गए थे. ऐसे लोगों का भविष्य अनिश्चित हो गया था. उनमें से कइयों को गिरफ्तार कर विभिन्न डिटेंशन सेंटरों में भेज दिया गया. हालांकि असम सरकार ने अब इनका नाम बदल कर ट्रांजिट कैंप कर दिया है. विदेशी न्यायाधिकरणों ने दिसंबर 2021 तक 1.43 लाख लोगों को विदेशी घोषित कर दिया था. राज्य भर में फैले ऐसे 100 से ज्यादा न्यायाधिकरणों के सामने फिलहाल 1.23 लाख लोगों के मामले लंबित हैं.
सबसे बड़ा डिटेंशन सेंटर
असम सरकार ने विदेशी घुसपैठियों के लिए राज्य के ग्वालपाड़ा जिले के मातिया में देश का सबसे बड़ा डिटेंशन सेंटर बनाया है जिसे मातिया ट्रांजिट कैंप के नाम से जाना जाता है. बीते साल वहां 68 विदेशियों के पहले जत्थे को दूसरे डिटेंशन सेंटरों से शिफ्ट किया गया था.
असम की छह जेलों में बने डिटेंशन सेंटर शुरू से ही विवादों के केंद्र में रहे हैं. खासकर नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) लागू होने के बाद ऐसे सेंटर लगातार सुर्खियों में रहे हैं. इन सेंटरों में कैदियों की अमानवीय हालात और उनकी मौतों की खबरें भी अक्सर सुर्खियां बटोरती रही हैं.
ऐसे एक डिटेंशन सेंटर में रहने वाले अब्दुल कलाम सवाल करते हैं, मैं तो बांग्लादेशी नहीं हूं. मैंने वर्ष 1985 में मतदान किया था. लेकिन एक विदेशी न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया था कि कलाम नागरिकता के लिए तय कटऑफ तारीख 24 मार्च 1971 के बाद भारत आए थे. इसलिए उन्हें विदेशी घोषित कर दिया गया. दिलचस्प यह है कि उनकी पत्नी आयशा खातून और परिवार के बाकी लोगों को भारतीय नागरिक माना गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2019 में अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि विदेशी घोषित जो लोग दो साल से ज्यादा समय से डिटेंशन सेंटर में रह रहे हैं उनको जमानत पर रिहा किया जा सकता है. उसके बाद सैकड़ों लोगों को जमानत मिली थी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, फिलहाल दो सौ लोग इन डिटेंशन सेंटर या ट्रांजिट कैंप में रह रहे हैं.
डिटेंशन सेंटर से जुड़ा ताजा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने इस सप्ताह एक याचिका पर सुनवाई करते हुए असम राज्य कानून सेवा प्राधिकरण से ऐसे लोगों की तादाद बताने को कहा है जो दो साल से ज्यादा समय से ऐसे सेंटर में रह रहे हैं. एक एडवोकेट की ओर से दायर याचिका में ऐसे लोगों की जमानत पर रिहाई का निर्देश देने की अपील की गई है. अदालत की एक खंडपीठ ने प्राधिकरण को एक टीम गठित करने का भी निर्देश दिया है जो ऐसे तमाम डिटेंशन सेंटर का दौरा कर वहां रहने वालों को मिल रही सुविधाओं पर भी 15 मई तक रिपोर्ट सौंपेगी.
असम में विदेशी घोषित होने वाले नागरिकों और उनको डिटेंशन सेंटर में रखने के सवाल पर पहले भी सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं. अदालत के निर्देश के बाद कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक रहता है, लेकिन बाद में स्थिति फिर वैसी ही बन जाती है. अपने पति की रिहाई की तबस्सुम की उम्मीदें भी अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं. (dw.com)
बीजेपी ने यूपी के कैसरगंज के सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगने के बाद गुरुवार को उनकी जगह उनके बेटे करण भूषण सिंह को टिकट दिया. महिला पहलवान इस फैसले की आलोचना कर रही हैं.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
छह बार के सांसद और भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष रहे बृजभूषण शरण सिंह के उत्तर प्रदेश की कैसरगंज सीट से चुनाव लड़ने को लेकर जारी कई हफ्तों की अटकलों का अंत गुरुवार को हो गया, जब बीजेपी ने उनकी जगह उनके बेटे करण भूषण सिंह को वहां से उम्मीदवार बना दिया.
बृजभूषण के छोटे बेटे करण भूषण उत्तर प्रदेश कुश्ती संघ के अध्यक्ष हैं. वह गोंडा जिले के नवाबगंज में एक सहकारी बैंक के अध्यक्ष भी हैं.
बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है, जिसकी वजह से उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा था. महिला पहलवानों ने सिंह के खिलाफ दिल्ली में जंतर-मंतर पर कई दिनों तक विरोध प्रदर्शन भी किया था.
इन प्रदर्शनों का नेतृत्व देश के जाने माने पहलवानों ने किया था, जिनमें बजरंग पुनिया, साक्षी मलिका और विनेश फोगाट शामिल थीं.
छह बार के सांसद को लेकर बढ़ते दबाव और यौन उत्पीड़न के आरोपों के बीच बृजभूषण को बदलने का बीजेपी का फैसला आया है. पिछले साल जून में दिल्ली पुलिस ने इस मामले में बृजभूषण शरण के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी.
"बेटियां हार गईं"
2020 के टोक्यो ओलंपिक में कांस्य मेडल जीतने वाले और बृजभूषण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले पहलवानों में से एक बजरंग पुनिया ने सिंह के बेटे को टिकट दिए जाने पर एक्स पर लिखा, "बीजेपी खुद को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी मानती है, पर उसने अपने लाखों कार्यकर्ताओं में से बृजभूषण के बेटे को टिकट दिया, वो भी तब जब बीजेपी प्रज्वल रेवन्ना के मुद्दे पर घिरी हुई है."
उन्होंने कहा, "यह देश का दुर्भाग्य है कि मेडल जीतने वाली बेटियां सड़कों पर घसीटी जाएंगी और उनका यौन शोषण करने वाले के बेटे को टिकट देकर सम्मानित किया जाएगा."
रियो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली साक्षी मलिक ने एक्स पर लिखा, "देश की बेटियां हार गईं, बृजभूषण जीत गया. हम सभी ने अपना करियर दांव पर लगाया, कई दिन धूप-बारिश में सड़क पर सोये. आज तक बृजभूषण को गिरफ्तार नहीं किया गया है. हम कुछ नहीं मांग रहे थे. सिर्फ इंसाफ की मांग थी."
उन्होंने आगे कहा, "गिरफ्तारी छोड़ो, आज उसके बेटे को टिकट देकर आपने देश की करोड़ों बेटियों का हौसला तोड़ दिया है. टिकट जाएगा तो एक ही परिवार में, क्या देश की सरकार एक आदमी के सामने इतनी कमजोर होती है."
बृजभूषण के बेटे को टिकट क्यों
मीडिया में कहा जा रहा है कि बृजभूषण का कैसरगंज निर्वाचन क्षेत्र में गहरा प्रभाव है और उन्होंने उत्तर प्रदेश में गोंडा और बलरामपुर निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया है. बीजेपी इस क्षेत्र में छह बार के सांसद के राजनीतिक प्रभाव को समझती है. इसलिए, पार्टी ने बृजभूषण के बदले बेटे को चुना है.
बेटे को टिकट मिलने के बाद बृजभूषण ने मीडिया से बातचीत में पार्टी का आभार जताया है. कैसरगंज सीट को लेकर उन्होंने कहा, "हमें नहीं लगता है कि यहां कोई चुनौती है. कैसरगंज में कभी चुनौती थी ही नहीं."
कांग्रेस ने बृजभूषण के बेटे को टिकट दिए जाने पर बीजेपी पर तीखा हमले करते हुए कहा है कि इस पार्टी में थोड़ी भी "नैतिकता" नहीं है. कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा, "जब हम सोच रहे थे कि प्रज्वल रेवन्ना मामले ने भाजपा की चरित्रहीनता के सबसे निचले स्तर को उजागर कर दिया है, तब उन्होंने दिखाया कि गिरने के मामले में उनका कोई निचला स्तर है ही नहीं."
रमेश ने आगे लिखा, "अब उन्होंने कई महिला पहलवानों से यौन शोषण के आरोपी बृजभूषण शरण सिंह को सम्मानित करते हुए उसके बेटे को टिकट दिया है. यह एक ऐसी पार्टी है जिसमें थोड़ी भी नैतिकता नहीं है. इसका नेतृत्व एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में है, जिसका मक्सद सिर्फ और सिर्फ सत्ता में बने रहना है, चाहे इसके लिए किसी भी हद तक क्यों न गिरना पड़े."
पिछले साल जब बृजभूषण के करीबी संजय सिंह को भारतीय कुश्ती महासंघ का अध्यक्ष चुना गया था तब साक्षी मलिक ने पहलवानी छोड़ने का ऐलान किया था. (dw.com)
रांची, 3 मई । झारखंड हाईकोर्ट ने जेल में बंद झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को 6 मई को अपने चाचा के श्राद्ध कर्म में पुलिस कस्टडी में शामिल होने की अनुमति दी है।
सोरेन ने याचिका दायर कर प्रोविजनल बेल की गुहार लगाई थी, लेकिन कोर्ट ने इसे नामंजूर कर दिया।
जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय की कोर्ट ने कहा है कि सोरेन चाचा के श्राद्ध में कुछ देर के लिए पुलिस कस्टडी में शामिल हो सकते हैं।
अदालत ने यह सख्त निर्देश दिया है कि इस दौरान सोरेन मीडिया से कोई बातचीत नहीं करेंगे और ना ही कोई राजनीतिक चर्चा करेंगे। वह गवाहों से भी मुलाकात नहीं करेंगे।
बता दें कि हेमंत सोरेन के चाचा राजा राम सोरेन का 30 अप्रैल की सुबह निधन हो गया था। तब उन्होंने पीएमएलए (प्रिवेन्शन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट) की विशेष कोर्ट में 13 दिनों की प्रोविजनल बेल के लिए याचिका दायर की थी।
पीएमएलए कोर्ट ने इसे नामंजूर कर दिया था, जिसके खिलाफ सोरेन हाईकोर्ट पहुंचे थे।
(आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम, 3 मई । राहुल गांधी के रायबरेली से चुनाव लड़ने के फैसले पर वायनाड में उनकी प्रतिद्वंद्वी माकपा की एनी राजा ने उनकी आलोचना की। उनका कहना है कि राहुल गांधी को अपने फैसले का पहले ही खुलासा करना चाहिए था।
वायनाड में लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान हुआ था।
एनी राजा ने कहा, "उन्हें राजनीतिक नैतिकता दिखानी चाहिए थी। उन्हें वायनाड के लोगों को रायबरेली के बारे में जानकारी देनी चाहिए थी। यह ठीक नहीं है कि उन्होंने अपने फैसले को वायनाड के लोगों से साझा नहीं किया।"
गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी का वायनाड से चुनाव लड़ने का निर्णय एक बड़ा आश्चर्य था। उन्होंने 4.37 लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी।
-- (आईएएनएस)
जयपुर, 3 मई । उत्तर प्रदेश की एक एनईईटी (नीट) अभ्यर्थी, जो राजस्थान के कोचिंग हब कोटा से "सुसाइड नोट" छोड़ने के बाद लापता हो गई थी, गुरुवार को लुधियाना में पाई गई। यह जानकारी पुलिस ने दी।
थाना प्रभारी भूपेंद्र सिंह ने बताया कि यूपी के कौशांबी की रहने वाली छात्रा कोटा में एक पीजी आवास में रहकर नीट की तैयारी कर रही थी। 23 अप्रैल को अनंतपुरा थाने में उसके लापता होने की सूचना दी गई थी।
वह 21 अप्रैल को परीक्षा देने के लिए कोचिंग इंस्टीट्यूट गई, लेकिन लौटी नहीं। उसके परिवार के सदस्यों के कई बार कॉल करने के बावजूद कोई जवाब नहीं मिला। मकान मालिक ने उसके लापता होने की सूचना उसके परिवार वालों को भी दी और वे उसकी तलाश में कोटा पहुंचे।
कोटा छोड़ने से पहले उसने अपने कमरे में एक "सुसाइड नोट" छोड़ा था, जिसमें चंबल नदी में कूदने की अपनी योजना बताई थी। नोट के आधार पर पुलिस ने नदी में छात्रा की तलाश की, लेकिन उसका कोई सुराग नहीं मिला।
इस बीच, पुलिस जांच के दौरान छात्रा की नोटबुक में राधा और रानी का नाम लिखा हुआ पाया गया, जबकि जांच में पता चला कि छात्रा होली पर वृंदावन गई थी और वहां इस्कॉन मंदिर के पास रुकी थी। इसके बाद पुलिस ने दो टीमें बनाईं, जिनमें से एक चंबल में उसकी तलाश करती रही और दूसरी टीम वृंदावन चली गई। हालांकि, छात्रा दोनों जगह नहीं मिली।
मंगलवार शाम को उसकी लोकेशन लुधियाना में पाई गई, जिसके बाद पुलिस की एक टीम पंजाब के लुधियाना शहर पहुंची, जहां पाई गई। पुिलस उसे वापस कोटा ले आई, जहां उसे उसके परिवार को सौंप दिया गया।
(आईएएनएस)
इंफाल, 3 मई । सशस्त्र हमलावरों के एक समूह ने गुरुवार को मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के सालबुंग में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की एक शाखा से 20 लाख रुपये लूट लिए। यह जानकारी अधिकारियों ने दी।
इंफाल में पुलिस अधिकारियों ने प्रारंभिक रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि चार हथियारबंद लोगों ने लगभग 20 लाख रुपये नकद लूट लिए, जिनकी अभी तक पहचान नहीं हो पाई है।
पुलिस ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से बताया कि नकाब और हेलमेट पहने हथियारबंद लोग डकैती के बाद तेजी से इलाके से चले गए।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के नेतृत्व में सुरक्षा बल तुरंत घटनास्थल पर पहुंचे और लुटेरों को पकड़ने के लिए तलाशी शुरू की गई।
(आईएएनएस)
गाजियाबाद, 3 मई । गाजियाबाद के थाना नंदग्राम हिलाके के हिंडन विहार से हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां पर दो सगे भाइयों में पैतृक संपत्ति को लेकर विवाद हो गया।
कई दिनों से जारी विवाद खूनी संघर्ष में बदल गया। छोटे भाई ने बड़े भाई की चाकू मारकर हत्या कर दी और फरार हो गया। फिलहाल, पुलिस मामले की जांच कर रही है। पुलिस ने आरोपी की तलाश के लिए दो टीमों का गठन किया है।
नंदग्राम इलाके के एसीपी ने बताया, "संज्ञान में आया है कि थाना नंदग्राम क्षेत्र के हिंडन विहार में सुंदर उर्फ गुलजार ने अपने बड़े भाई हाजी मूसा की हत्या कर दी। सूचना मिलते ही तुरंत पीआरवी और स्थानीय पुलिस मौके पर पहुंची। जहां पता चला की सुंदर और हाजी मूसा के बीच पैतृक सम्पत्ति को लेकर विवाद था।
घटना के बाद तुरंत हाजी मूसा को अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। परिजनों से तहरीर मिली है और कार्रवाई शुरू कर दी गई है।
(आईएएनएस)