राजपथ - जनपथ

भ्रष्टाचार पर पॉवर पॉइंट
नई सरकार में कामकाज का तरीका भी नया नया होने लगा है। अपनी अपनी जिम्मेदारी सम्हालने के बाद विभागों के अधिकारी मातहतों के साथ बैठक कर विभाग के पुराने और नये कार्यों की प्रगति आंक रहे हैं। इसी दौरान साहब लोग विभाग में भ्रष्टाचार न होने की हिदायत भी दे रहे। पढ़ाई, लिखाई वाले विभाग के एक साहब ने आयुक्त,संयुक्त सचिव, ओएसडी, अवर सचिव, और अनुभाग अधिकारियों की बैठक ली। साहब ने निचले क्रम के मातहतों के भ्रष्टाचार के तरीकों पर अपने लैपटॉप पर स्लाइड्स के साथ एक प्रेजेंटेशन तक दिखाकर चेता दिया। प्रेजेंटेशन देखने वाले दांतों तले उंगली दबाए देखते रहे। अब देखना यह है कि इसका कितना असर होता है।
ननकीराम की नसीहत
भाजपा नेता ननकी राम कंवर कभी चुनाव जीते, कभी हार जाते हैं। कभी उनकी पार्टी सरकार में होती है, कभी कांग्रेस की बन जाती है। पर उनका तेवर बदलता नहीं। जो कहना है साफ-साफ कहते हैं। वे लंबे समय से आदिवासी मुख्यमंत्री तथा शराब बंदी की मांग करते रहे हैं। इस बार वे अपनी परंपरागत सीट रामपुर से हार गए। सरकार भाजपा की बनी है, उनकी अपनी पार्टी की। मगर कुछ खरी खरी बातें उन्होंने कह दी है। कंवर का कहना है कि सरकार की चाल सुस्त है। मंत्रिमंडल का गठन भी देर से हुआ। हाल में हुई नक्सल हिंसा पर भी यह कहा कि जितनी देर एक्शन लेने में होगी, अपराध उतने ही बढ़ेंगे।
कंवर बीजेपी के वरिष्ठतम नेताओं में से हैं। वे पहले भी पार्टी लाइन की परवाह किए बिना बेबाकी से अपनी बात कहते रहे हैं। अब सरकार के ऊपर है की उनकी बात को गंभीरता से वह लेती है या नहीं।
इतिहास कौन सा रचेंगे पायलट?
कांग्रेस प्रभारी बनने के बाद छत्तीसगढ दौरे पर आने में सचिन पायलट ने काफी देर लगाई। स्वागत से अभिभूत होकर उन्होंने ऐलान किया कि छत्तीसगढ़ में हम इतिहास रचेंगे। लोग इसका मतलब अलग अलग अपने हिसाब से लगा रहे हैं। जैसे बीजेपी के एक नेता का कहना है कि वे सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पास बची रह गई दो सीटों की बात कह रहे हैं।
तब जो नेहरू ने लिखा था ...
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल हों ना हों, इस पर काफी ऊहापोह के बाद कांग्रेस ने फैसला ले लिया। कांग्रेस ने इसे आरएसएस और भाजपा का इवेंट बताते हुए शामिल होने से मना कर दिया। राम जन्मभूमि ट्रस्ट की ओर से सोनिया गांधी ,मल्लिकार्जुन खडग़े और अधीर रंजन चौधरी को निमंत्रण दिया गया था। पार्टी की ओर से बयान पर कांग्रेस के कई नेताओं ने इस पर अफसोस और विरोध व्यक्त किया है।
इसी तरह की स्थिति सन 1951 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के सामने भी पैदा हुई थी, जब सोमनाथ मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी। उन्होंने एक पत्र लिखा था। इसमें यह कहा गया कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का प्रमुख होने के नाते किसी धार्मिक आयोजन में उनका शामिल होना उचित नहीं होगा। साथ ही उन्होंने यह भी लिखा था कि कोई भी एक व्यक्ति के रूप में इसमें हिस्सेदारी कर सकता है। इसका मतलब कांग्रेस से जुड़े लोगों से भी था, जिनकी सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण में भी भागीदारी थी। ताजा मामले में कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं को यह स्पष्टीकरण देना जरूरी नहीं समझा कि वे चाहे तो कार्यक्रम में शामिल हो जाएं। अब नेहरू के इस पत्र का हवाला देकर अयोध्या जाने के इच्छुक कांग्रेसी चाहे तो आगे आ सकते हैं।
(rajpathjanpath@gmail.com)