राजनीति
संदीप पौराणि
भोपाल, 17 सितंबर (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव से पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के ग्वालियर दौरे ने सियासी पारा चढ़ा दिया है। भाजपा जहां कमलनाथ के दौरे पर तंज कस रही है, वहीं कांग्रेस जनता के बढ़ते रुझान का दावा कर रही है।
राज्य की 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है और इनमें सबसे ज्यादा 16 सीटें ग्वालियर-चंबल इलाके से आती हैं। यही कारण है कि दोनों राजनीतिक दलों -- भाजपा व कांग्रेस का सबसे ज्यादा जोर इसी इलाके पर है। यह पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रभाव क्षेत्र भी माना जाता है। यही कारण है कि भाजपा लगातार सक्रियता बढ़ा रही है तो दूसरी ओर कांग्रेस भी सक्रिय हो चली है।
कमल नाथ का दो दिवसीय ग्वालियर दौरा शुक्रवार से शुरू हो रहा है। कांग्रेस इसे मेगा-शो बता रही है, जिसमें कमल नाथ रोड शो करेंगे और इस अंचल की 36 सीटों के कार्यकर्ताओं और नेताओं से संवाद करेंगे। लगभग दो साल में कमल नाथ का यह पहला ग्वालियर दौरा है।
कांग्रेस प्रवक्ता अजय सिंह यादव सियासी तौर पर कमल नाथ के इस दौरे को महत्वपूर्ण मानते हैं। उनका कहना है, पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद इस क्षेत्र की जनता की कांग्रेस और कमल नाथ से आशाएं बढ़ी है। वास्तव में इस इलाके का मतदाता और आम जनता का बड़ा वर्ग सिंधिया को नापसंद करता है, यह बात बीते कुछ दिनों में सामने भी आ गई है। सिंधिया खुद छह माह तक ग्वालियर नहीं गए और जब गए तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ। इस दौरे के दौरान सिंधिया को भारी विरोध का सामना भी करना पड़ा। इससे साबित होता है कि सिंधिया के खिलाफ जनता में कितना आक्रोश है।
वहीं, भाजपा की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने कमल नाथ के ग्वालियर दौरे पर कहा, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की जनता से झूठ बोला है, क्षेत्र के साथ अन्याय किया है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के दम पर ही बनी थी और जनता ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री देखना चाहती थी। लेकिन दिग्विजय-कमलनाथ ने इस क्षेत्र के साथ छल किया और कमलनाथ मुख्यमंत्री बन गए। अब इस क्षेत्र की जनता पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से यह जानना चाहती है कि उन्होंने ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के विकास के लिए क्या काम किया? क्यों इस क्षेत्र के विकास और सम्मान की पीठ में छूरा भोंका?
पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के दौरे पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कमल नाथ का यह दौरा क्षेत्र की राजनीति के लिहाज से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह क्षेत्र सिंधिया के प्रभाव का है, कमल नाथ सत्ता में रहते ग्वालियर आए नहीं, अब आ रहे है। कांग्रेस की पहली कतार भाजपा में जा चुकी है, कमल नाथ के सामने नई कतार खड़ी करने की चुनौती है, कमल नाथ का यह दौरा आने वाले उप-चुनावों की तस्वीर पर से कुछ धुंध हटाने वाला हो सकता है।
मनोज पाठक
पटना, 17 सितम्बर (आईएएनएस)| निर्वाचन आयोग की एक टीम बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियों की समीक्षा कर वापस लौट गई है तथा संभावना जताई जा रही है कि जल्द ही चुनाव की तिथियों की घोषणा भी कर दी जाएगी, लेकिन राज्य के दोनों गठबंधनों में अब तक सीट बंटवारे को लेकर घटक दलों में असमंजस कायम है।
घटक दलों के नेताओं में क्षेत्रों को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। भाजपा नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में अभी भी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) और जनता दल (युनाइटेड) में सीट बंटवारे को लेकर तानातनी बरकरार है।
लोजपा की बुधवार को नई दिल्ली में हुई बैठक में 143 सीटों पर चुनाव लड़ने के संकेत देकर राजग की बेचैनी बढ़ा दी है। हालांकि, बिहार के सियासी हलकों को इसे केवल दबाव की राजनीति बताई जा रही है।
इधर, भाजपा और जदयू ने भी अभी सीट बंटवारे को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं। बिहार भाजपा प्रदेष अध्यक्ष संजय जायसवाल कहते हैं कि भाजपा अपनी परंपरागत सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि गठबंधन को लेकर कहीं कोई असमंजस नहीं है।
उन्होंने कहा कि पिछले दिनों पार्टी के अध्यक्ष जे.पी. नड्डा बिहार दौरे पर मुख्यमंत्री और जदयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार से मिलकर स्पष्ट कर चुके हैं कि गठबंधन में कहीं कोई समस्या नहीं है।
इधर, विपक्षी दलों के महागठबंधन में सीटों को लेकर अभी भी तानातनी बनी हुई है। महागठबंधन में शामिल छोटे दल -- विकासशील इंसान पार्टी और राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (रालोसपा) 'वेट एंड वाच' की भूिमका में है।
सूत्रों के मुताबिक, सीट बंटवारे को लेकर अभी तक राजद के नेता तेजस्वी यादव ने बातचीत भी शुरू नहीं की है। घटक दलों के नेता राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह से बात कर रहे हैं।
महागठबंधन में शामिल कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि पार्टी के हिस्से कौन सी सीटें आएगी, यह भी कांग्रेस को पता नहीं है। ऐसे में प्रत्याशी अपने पसंदीदा क्षेत्र में क्या तैयारी करेंगे। उन्होंने रोष प्रकट करते हुए कहा कि सीट बंटवारे में हुई देरी के कारण ही लोकसभा में महागठबंधन की बुरी तरीके से हार हुई थी, इस चुनाव में भी फि र से वही स्थिति बन रही है।
रालोसपा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा भी सीट बंटवारे में हो रही देरी पर अपनी नाराजगी जताते हुए कह चुके हैं कि सीट बंटवारा जितना जल्दी हो जाए वह अच्छा होगा। पहले ही इसमें काफी देरी हो चुकी है।
उल्लेखनीय है कि महागठबंधन में समन्वय समिति की मांग नहीं माने जाने के कारण पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा पहले ही महागठबंधन को छोड़कर राजग में शामिल हो चुकी है।
बहरहाल, बिहार विधानसभा चुनाव के अक्टूबर और नवंबर महीने में होने की संभावना है। फि लहाल बनी परिस्थितियों में माना जा रहा है कि चुनाव में मुख्य मुकाबला दोनों गठबंधनों के बीच होगा, लेकिन अभी तक सीटों के बंटवारे को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं होने से दोनों गठबंधनों के नेताओं में मायूसी है।
मनोज पाठक
पटना, 16 सितम्बर (आईएएनएस)| बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा अब तक नहीं हुई है, लेकिन सभी प्रमुख राजनीतिक दल उन चुनावी मुद्दों की तलाश में जुटे हैं जो उन्हें बिहार की सत्ता के करीब पहुंचाने में मदद कर सके। लेकिन सबसे बड़ी बात है कि इस चुनाव में मुद्दा क्या होगा?
बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में आम लोग जहां क्षेत्रीय समस्याओं को अपने स्तर पर चुनावी मुद्दा बनाने में लगे हैं वहीं कई दल अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार मतदाताओं को आकर्षित करने के जुगाड़ में लगे हुए हैं।
वैसे बिहार में जातीय समीकरण के आधार पर जोड़-तोड की राजनीति कोई नई बात नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) विकास के मुद्दे पर चुनावी मैदान में उतरा था, लेकिन मुख्यमंत्री का चेहरा सामने नहीं था। इस बार राजग नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा कर चुकी है।
वैसे इस चुनाव में पिछले चुनाव की तुलना में परिस्थितियां बदली हुई हैं, जद (यू) एक बार फि र राजग में शामिल हो गई है वहीं राष्ट्रीय लेाक समता पार्टी (रालोसपा) विपक्षी दलों के महागठबंधन में कांग्रेस और राजद के साथ है।
राजनीतिक विश्लेषक सुरेन्द्र किशोर का मानना है कि इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का जीरो भ्रष्टाचार का दावा राजग के लिए प्रमुख मुद्दा होने की संभावना है।
उन्होंने कहा, इसके अलावे राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न पुरानी समस्याओं के निपटारे को भी राजग के नेता मतदाताओं के बीच लेकर जाएंगें। इसके अलावा बिहार में राजग की सरकार में किए गए विकास कायरें और केंद्र सरकार की मिल रही मदद के जरिए भी राजग के नेता मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश करेंगे।
इधर, राजद नेतृत्व वाले महागठबंधन के नेता कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों को मदद नहीं करने और बेरोजगारी को मुद्दा बनाने में जुटी है।
किशोर भी मानते हैं कि विपक्ष बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर सत्ता पक्ष को घेरने की कोशिश करेगा।
उन्होंने कहा कि महागठबंधन कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों के पैदल आने और उचित सहायता नहीं देने को लेकर चुनाव मैदान में जरूर उतरेगा, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि राजग के नेता आक्रामक रूप से इसका जवाब भी देंगे।
किशोर यह भी कहते हैं कि राजग के नेता एक बार फि र से बिहार में 'जंगलराज' की याद दिलाते हुए नजर आएंगें।
वैसे माना जाता है कि राजग के नेता चुनावी समर में यह भी कहते नजर आएंगे कि बिहार में भी उसी की सरकार बननी चाहिए जिसकी सरकार केंद्र में है। इससे आपसी तालमेल के जरिए विकास करना आसान हो जाता है।
माना जाता है कि विकास के पैमाने पर नीतीश और नरेंद्र मोदी दोनों खरे उतरते हैं। दोनों के राजनीतिक करियर में यही एक समानता है कि जब भी इन्हें मौका मिला, इन्होंने अपने नेतृत्व से विकास की एक ऐसी लकीर खींची, जिसके आम लोगों के साथ-साथ विरोधी भी प्रशंसा करते रहे हैं।
वैसे, कहा यह भी जा रहा है कि राज्य के कई क्षेत्र में स्थानीय मुद्दे भी इस चुनाव में अहम भूमिका निभाते नजर आएंगे।
बहरहाल, अब देखना होगा कि कौन सा मुद्दा यहां के मतदाताओं को आकर्षित करने में सफ ल होता है।
संदीप पौराणिक
भोपाल, 15 सितम्बर (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव के जरिए पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की राज्य की सियासत में वापसी के आसार बनने लगे हैं। लंबे अरसे बाद उनकी एक बार फि र राज्य में सक्रियता बढ़ी है, साथ में भाजपा के चुनावी मंच पर भी नजर आने लगी हैं।
राज्य में अब 28 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं और भाजपा की कोशिश है कि इन उप-चुनाव में ज्यादा से ज्यादा स्थानों पर जीत दर्ज की जाए और इसके लिए वह हर रणनीति पर काम कर रही है। उसी क्रम में भाजपा ने अब पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की राज्य में सियासी हैसियत का लाभ उठाने की दिशा में कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है।
उमा भारती की अगुवाई में भाजपा ने वर्ष 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी और वह मुख्यमंत्री भी बनी थी मगर हुगली विवाद के चलते उन्हें अपने पद से इस्तीफो देना पड़ा था। उसके बाद उमा भारती ने अलग पार्टी बनाई और उनकी प्रदेश की सियासत से दूरी बढ़ती गई। उमा भारती की भाजपा में वापसी हुई मगर राज्य की सियासत से उनका दखल लगातार कम होता गया और उन्हें भाजपा ने उत्तर प्रदेश से विधानसभा और लोकसभा का चुनाव लड़ाया और उनमें उन्होंने जीत भी दर्ज की।
उमा भारती को भाजपा की ओर से उत्तर प्रदेश का नेता स्थापित करने की कोशिशें हुई मगर वे खुद मध्य प्रदेश की सियासत में सक्रिय रहना चाहती रही है, परंतु उन्हें यह अवसर सुलभ नहीं हो पाया। राज्य के विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा, सभी में उमा भारती की राज्य से दूरी जगजाहिर रही। अब राज्य की सियासत में नए समीकरण बनने लगे हैं और इन स्थितियों ने शिवराज सिंह चौहान की उमा भारती के बीच नजदीकियां भी बढ़ा दी हैं। इस बात के संकेत उपचुनाव के दौरान नजर आने लगे हैं। बीते एक दशक में कम ही ऐसे अवसर आए है जब चौहान और उमा भारती ने एक साथ चुनाव प्रचार के लिए मंच साझा करते नजर आए हों, मगर अब दोनों की नजदीकी बढ़ी और वे मुंगावली व मेहगांव की सभा में दोनों नेताओं ने एक दूसरे की जमकर तारीफ की।
चौहान ने उमा भारती की तारीफ करते हुए कहा कि आत्मनिर्भर भारत के साथ हमारा संकल्प है कि हम आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश बनायेंगे। राज्य की संबल योजना पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के 'पंच ज' कार्यक्रम पर आधारित है और आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश का ग्राफ भी उमा भारती तैयार करेंगी।
इसी तरह उमा भारती ने भी चौहान की सराहना की और कहा कि प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ऐसा नेतृत्व चाहिए, जो आत्मविश्वास से भरा हो। केंद्र की योजनाओं का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए एक सक्षम हाथ चाहिए। शिवराज िंसंह चौहान में ये सभी खूबियां मौजूद हैं और विकास के काम में कोई कसर बाकी नहीं रखना उनका स्वभाव है। इसलिए प्रदेश को आत्मनिर्भर और मॉडल स्टेट बनाने के लिए आप आने वाले चुनाव में शिवराज को आशीर्वाद दें।
भाजपा के सूत्रों का कहना है की राष्ट्रीय स्तर के कुछ नेताओं के निशाने पर शिवराज सिंह चौहान और उमा भारती हैं, लिहाजा दोनों नेताओं को एक दूसरे के सहयोग और सहारे की जरूरत है। पार्टी के भीतर उभर रहे नए नेतृत्व ने इन नेताओं की चिंता बढ़ा दी है और यही कारण है कि अब चौहान और उमा भारती की नजदीकियां बढ़ गई हैं। अब तक चौहान ही उमा भारती को राज्य में सक्रिय होने से रोक रहे थे। वहीं भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष बी.डी. शर्मा की उमा भारती से काफी नजदीकियां है।
राजनीतिक विश्लेषक शिवम राज पटेरिया का कहना है कि भाजपा में सिर्फ दो पुराने ही ऐसे चेहरे हैं जिनकी राज्य के हर हिस्से में स्वीकार्यता है और वो है चौहान व उमा भारती। उन्हें कोई पसंद करे, नापसंद करें मगर नजरअंदाज (ग्इग्नोर) नहीं किया जा सकता। पार्टी के भीतर जो नए विकल्प सामने आ रहे हैं उनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरोत्तम मिश्रा, कैलाश विजयवर्गीय और विष्णु दत्त शर्मा जैसे नाम हैं मगर ये सभी क्षेत्रीय नेताओं के तौर में पहचाने जाते हैं।
राज्य में विधानसभा के उप-चुनाव में पिछड़ा वर्ग मतदाता नतीजों में बड़ी भूमिका निभा सकता है, लिहाजा उमा भारती पिछड़ा वर्ग का बड़ा चेहरा हैं, पार्टी इसका लाभ लेना चाहती है, यही कारण है कि उन्हें राज्य में सक्रिय किया जा रहा है। सियासी तौर पर चर्चा तो यहां तक है कि उमा भारती बड़ा मलेहरा विधानसभा क्षेत्र से उप-चुनाव भी लड़ सकती हैं, क्योंकि उमा भारती के करीबी प्रद्युम्न सिंह लोधी ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफो देकर भाजपा का दामन थामा है। प्रद्युम्न को खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम का अध्यक्ष बनाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया जा चुका है। पार्टी का कोई भी नेता इस मसले पर बात करने को तैयार नहीं है।
मनोज पाठक
पटना, 15 सितम्बर (आईएएनएस)| बिहार में अक्टूबर-नवंबर में संभावित विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ गई है। इधर, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेतृत्व वाले विपक्षी दलों के महागठबंधन में अभी तक सीट बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बनी है, लेकिन महागठबंधन के 'थिंकटैंक' गठबंधन के कुनबे को बढ़ाने में जुटे हैं।
कहा जा रहा है इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में वामपंथी दल तो महागठबंधन के घटक दलों में शामिल होंगे ही, झारखंड की सत्तारूढ़ पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) भी महागठबंधन में शामिल होकर चुनाव मैदान में उतरने वाली है, जिसके संकेत झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद दे चुके हैं।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दो दिन पूर्व रांची में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद से मिलने के बाद कह चुके हैं कि झामुमो बिहार में राजद के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरेगी।
उल्लेखनीय है कि झारखंड में झामुमो, कांग्रेस और राजद की सरकार है। सूत्र बताते हैं कि कई छोटे दलों को बड़े दलों में मर्ज करने के लिए भी दबाव बनाया जा रहा है।
सूत्रों का कहना है कि राजद राज्य के सभी 243 सीटों पर घटक दलों के प्रभाव और क्षेत्रों में उम्मीदवारों की लोकप्रियता का भी आकलन कर रही है। कहा जा रहा है कि राजद इस चुनाव को प्रतिष्ठा से जोड़कर देख रही है, यही कारण है कि राजद महागठबंधन में शामिल सभी घटक दलों से इच्छुक सीटों की सूची भी मांग रही है।
राजद नेतृत्व घटक दलों को स्पष्ट संकेत भी भेज चुका है कि इस चुनाव में जिताउ उम्म्ीदवारों को ही चुनाव मैदान में उतारा जाए।
राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी भी कहते हैं कि महागठबंधन का आकार अभी और बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि कई दलों से अभी बात हो रही है। इधर, सूत्र कहते हैं कि राजद ऐसे दलों को ही महागठबंधन में शामिल करना चाहता है जो राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के उतराधिकारी उनके छोटे पुत्र तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री उम्मीदवार को लेकर उंगली नहीं उठा पाए।
राजद प्रवक्ता तिवारी स्पष्ट कहते हैं कि राजद महागठबंधन में सबसे बड़ा दल है। राजद पूर्व में ही घोषणा कर चुकी है कि पार्टी तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरेगी और तेजस्वी ही मुख्यमंत्री के उम्मीदवार होंगे।
उल्लेखनीय है कि पिछले विधनसभा चुनाव में महागठबंधन में शामिल कांग्रेस, राजद और जदयू बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरे थे और राजद सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी।
इस चुनाव में जदयू राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल है। ऐसे में कहा जा रहा है कि राजद इस चुनाव में किसी भी हाल में पिछले चुनाव की तुलना में अधिक सीटों पर जीतने की योजना बना रही है, जिससे कोई भी तेजस्वी के नेतृत्व पर उंगली नहीं उठा सके।
सूत्रों का कहना है कि राजद नेतृत्व बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को भी महागठबंधन में लाने को लेकर प्रयासरत है।
बहरहाल, महागठबंधन का नेतृत्व भले ही अपना कुनबा बढ़ाकर खुद को और मजबूत करने में जुटी है, लेकिल कुनबा बढ़ने के बाद सभी की सहमति से सीट बंटवारा हो जाए, यह आसान नहीं होगा।
नई दिल्ली, 15 सितम्बर (आईएएनएस)| समाजवादी पार्टी के सांसद रामगोपाल यादव और कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने मंगलवार को राज्यसभा में बेरोजगारी के कारण लोगों के आत्महत्या करने का मुद्दा उठाया। यादव ने मांग की कि नौकरी गंवाने वाले लोगों को प्रति माह 15,000 रुपये दिए जाएं।
यादव की मांग का समर्थन करते हुए, कांग्रेस सांसद आनंद शर्मा ने कहा कि केंद्र को इस मामले को देखना चाहिए और ऐसे लोगों को वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए।
कांग्रेस लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों की मौतों का कोई आंकड़ा नहीं होने के लिए पहले ही सरकार की आलोचना कर चुकी है।
कांग्रेस नेता पी.एल. पुनिया ने भी मनरेगा मजदूरों के मामले को उठाया और मांग की कि मजदूरी को बढ़ाकर 300 रुपये प्रतिदिन किया जाए, जबकि कांग्रेस की एक अन्य सदस्य छाया वर्मा ने मनरेगा में एक साल में काम के दिनों की संख्या बढ़ाकर 200 करने की मांग की।
कांग्रेस ने पिछले हफ्ते एशियाई विकास बैंक (एडीबी) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की रिपोर्ट के हवाले से सरकार पर निशाना साधा था, जिसमें अनुमान लगाया गया है कि कोरोनावायरस के प्रसार के छह महीने में देश में बेरोजगारी की दर 32.5 प्रतिशत होने की आशंका है। इसके आगे, एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तीन महीनों में युवा बेरोजगारी की दर 29.5 प्रतिशत होगी। 2019 में यह दर 23.3 प्रतिशत थी।
वहीं, सरकार ने दावा किया कि मनरेगा योजना के तहत, जून में देश भर में औसतन 3.42 करोड़ लोगों को रोजाना काम मिला, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 83.87 प्रतिशत अधिक है।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, मई में मनरेगा के तहत औसतन 2.51 करोड़ लोगों को काम मिला, जो पिछले साल की इसी अवधि के 1.45 करोड़ के औसत आंकड़े से 73 प्रतिशत अधिक है। इसलिए, इस योजना के तहत मई में रोजगार में 73.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
संदीप पौराणिक
भोपाल 14 सितंबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा उपचुनाव के लिए उम्मीदवारों की पहली सूची जारी होते ही कांग्रेस में असंतोष के स्वर मुखरित होने लगे हैं। प्रमुख नेता मंच से पार्टी के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं।
राज्य में 27 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होना है, इनमें से 15 सीटों के लिए उम्मीदवारों की पहली सूची कांग्रेस द्वारा जारी कर दी गई है। इस सूची में दो पूर्व कांग्रेसी जो भाजपा से होते हुए वापस आए हैं, उन्हें उम्मीदवार बनाया गया है, तो वहीं तीन बसपा की पृष्ठभूमि वाले लोगों को मैदान में उतारने का फैसला हुआ है। इसी के चलते पार्टी के भीतर असंतोष पनपने लगा है।
दतिया जिले की भांडेर विधानसभा में आयोजित एक सभा में दावेदारों में से एक पूर्व गृह मंत्री महेंद्र बौद्घ ने पार्टी द्वारा फूल सिंह बरैया को उम्मीदवार बनाए जाने पर सख्त एतराज जताया। उन्होंने बरैया के भांडेर से चुनाव लड़ने पर सवाल उठाए और कहा कि वे भिंड के निवासी हैं, ग्वालियर से चुनाव लड़ चुके हैं, अन्य किसी स्थान से उन्हें लड़ाए जा सकता था क्योंकि वह राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं, मगर भांडेर से उम्मीदवार बनाया जाना न्याय उचित नहीं है। इस मंच पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी मौजूद थे।
इसी तरह के मामले कई अन्य विधानसभा क्षेत्रों से भी सामने आने लगे है, क्योंकि कई नेता दूसरे दल छोडकर कांग्रेस में शामिल हुए हैं और उन्हें इस पार्टी ने उम्मीदवार बना दिया है और आगामी समय में कई दल-बदल करने वालों को उम्म्मीदवार बनाया जा सकता है।
कांग्रेस के पनप रहे असंतोष के मसले पर प्रदेश इकाई के प्रवक्ता अजय सिंह यादव का कहना है कि कांग्रेस लोकतांत्रिक दल है, यहां सभी को अपनी बात कहने की आजादी है लिहाजा नेता अपनी बात कहते हैं। यह स्थिति भाजपा में नहीं है। कोई नेता अपनी बात कह भी नहीं सकता। कांग्रेस पार्टी सर्वेक्षण कराने के बाद उम्मीदवार तय कर रही है और आगामी उप चुनाव में यह नजर भी आएगा कि पार्टी के फैसले कितने सही थे।
राजनीतिक विष्लेशक रवींद्र व्यास का कहना है कि कांग्रेस का बड़ा हथियार भाजपा पर हमला करने का दल-बदल है, अब वह भी दल बदल करने वालों को उम्मीदवार बना रही है, ऐसे में पार्टी के भीतर जहां असंतोष पनपना लाजिमी है वहीं भाजपा को हमला करने का भी मौका मिलेगा, साथ ही कांग्रेस के दल-बदल के हमले की धार भी कमजोर होगी।
संदीप पौराणिक
भोपाल 13 सितंबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव में कांग्रेस के वोट बैंक में बहुजन समाज पार्टी सेंधमारी कर सकती है। इस सेंधमारी को रोकने की कांग्रेस ने बड़ी रणनीति बनाते हुए कभी बसपा मे रहे कई प्रमुख नेताओं को अपना उम्मीदवार बना दिया है।
राज्य के ग्वालियर-चंबल इलाके में बसपा का वोट बैंक है। यहां कई सीटें ऐसी हैं जहां बसपा भले ही चुनाव न जीते, मगर नतीजों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बसपा ने राज्य में होने वाले 27 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में से आठ क्षेत्रों के लिए अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं यही कारण है कि कांग्रेस ने बसपा की सेंधमारी को रोकने के लिए ऐसे जनाधार वाले नेताओं को कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया है, जो कभी बसपा में हुआ करते थे।
राज्य में 27 सीटों पर होने वाले विधानसभा के उपचुनाव में से 15 सीटों के लिए कांग्रेस ने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। इनमें से नौ उम्मीदवार ग्वालियर-चंबल अंचल के है, इन नौ उम्मीदवारों में से तीन विधानसभा क्षेत्र करैरा से प्रागी लाल जाटव, भांडेर से फूल सिंह बरैया और अंबाह से सत्य प्रकाश संखवार को उम्मीदवार बनाया है। यह तीनों नेता कभी बसपा में रहे हैं और उनका क्षेत्र में जनाधार भी है।
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस ने आगामी चुनाव में बसपा से होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई के लिए कभी बसपा में रहे नेताओं को कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया है। इसका कांग्रेस को लाभ मिल सकता है इसे नकारा नहीं जा सकता, लेकिन यह नेता क्या बतौर कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीत सकेंगे, यह बड़ा सवाल है। नतीजे आने पर ही सारी तस्वीर सामने आएगी कि कांग्रेस की रणनीति कितनी कारगर रही।
ज्ञात हो कि कांग्रेस ने उम्मीदवार चयन के लिए तीन बार सर्वे कराया है, जिस भी व्यक्ति के समर्थन में सर्वे रिपोर्ट आई है, उसे कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाने का ऐलान पहले ही किया था। उसी के मुताबिक, कांग्रेस ने अपनी पहली सूची जारी की है। इस सूची में कई नए चेहरों के नाम भी सामने आए है, वहीं बसपा छोड़कर कांग्रेस में आए नेताओं के पक्ष में भी माहौल होने की बात सामने आने पर उन्हें उम्मीदवार बनाया गया है ।
कांग्रेस की प्रदेश इकाई के सचिव श्रीधर शर्मा का कहना है कि कांग्रेस जनाधार वाले नेताओं को चुनाव मैदान में उतार रही है, उप-चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में जनता का रुख है। कमल नाथ एक बार फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनेंगे। जहां तक बसपा से आए लोगों को उम्मीदवार बनाने की बात है तो वर्तमान में जो नेता कांग्रेस में है उन्हें ही तो उम्मीदवार बनाया गया है, मीडिया उसका आंकलन किसी भी तरह से कर सकता है, मगर उनके जनाधार को नकारा नहीं जा सकता।
पूर्व मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के नजदीकी और विधानसभा चुनाव प्रचार अभियान समिति के समन्वयक रहे मनीष राजपूत का कहना है कि सिंधिया और उनके समर्थकों के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने से कांग्रेस के सामने उम्मीदवारों का संकट खड़ा हो गया। कई क्षेत्रों में तो कांग्रेस को उम्मीदवार खोजना मुश्किल हो गया, यही कारण है कि वे बसपा या भाजपा से आ रहे नेताओं को उम्मीदवार बनाने पर मजबूर है। आखिर कांग्रेस को उम्मीदवार तो मैदान में उतारना ही होगा, कई क्षेत्रों में यह महज खाना पूर्ति से आगे ज्यादा कुछ नहीं है।
बीते उप-चुनावों में बसपा ने कभी भी उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारे, मगर इस बार उप-चुनाव में उम्मीदवार उतार रही है, इसे बसपा और भाजपा के आपसी तालमेल से जोड़कर देखा जा रहा है। इस कारण से कांग्रेस की मुश्किलें कुछ ज्यादा हो गई है। इससे उबरने के लिए ही कांग्रेस ने बसपा के पूर्व नेताओं को मैदान में उतारने की रणनीति पर काम किया है, इससे दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में इन नेताओं के प्रभाव को भुनाया जा सकता है।
कांग्रेस के 15 प्रत्याशी घोषित
2018 के चुनाव की तरह इस बार भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने अपने प्रबंधन से भाजपा को चौंकाया, बीजेपी ‘गद्दार’ से परेशान, कांग्रेस ने चुनावी मैदान में मारी बाजी
-पंकज मुकाती
इंदौर, 11 सितंबर। मध्यप्रदेश में उपचुनाव की सरगर्मी तेज है। कांग्रेस लगातार बढ़त बनाती हुई दिख रही है। भाजपा को लगातार एक के बाद एक मुद्दे पर घेरने वाली कांग्रेस ने शुक्रवार को एक और बाजी मार ली। उप चुनाव वाली 27 सीटों में से 15 पर कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए। इससे नैतिक तौर पर कांग्रेस के प्रत्याशियों को बल मिलेगा। जनता के बीच भी कांग्रेस प्रत्याशी को ज्यादा मौका मिलेगा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने 2018 के विधानसभा चुनाव में भी इसी तरह की रणनीति से भाजपा को परास्त कर दिया था। इस बार भी नाथ उतने ही आक्रामक दिख रहे हैं, और प्रत्याशी चयन इसकी गवाही है। सरकार बनाकर खुद को इक्कीस बताने में जुटी भाजपा अभी अपने प्रत्याशियों की जीत को लेकर संदेह में है। समीक्षा बैठकों में भी ये उभरकर सामने आया है कि भाजपा के पक्ष में उनके चुनाव प्रभारी तक नहीं है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के जिस चेहरे से भाजपा को बड़ी उम्मीद थी वो भी तमाम सभाओं में गद्दार के नारों का सामना कर रहा है। भाजपा अभी तक सिंधिया कुनबे और भाजपा के बीच तालमेल में ही लगी है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने 2018 में भी चौकाने वाले परिणाम निकाले थे, इस बार भी कुछ ऐसा ही दिखाई दे रहा है। कांग्रेस की पहली सूची में युवा और अनुभवी दोनों का जोड़ है। सांवेर से राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी प्रेमचंद गुड्डू का मुकाबला तुलसी सिलावट से होगा। ऐसे ही आगर से विपिन वानखेड़े हैं। वानखेड़े जुझारू और युवा चेहरा है।]इलाके में पिछले चुनाव के बाद से ही सक्रिय है। बमोरी में अनुभवी नेता और पूर्व मंत्री कन्हैयालाल अग्रवाल है, उनके सामने सिंधिया समर्थक महेंद्र सिंह सिसोदिया रहेंगे। कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आये सिसोदिया से लोग बेहद नाराज है। सिसोदिया अपने करीबी लोगों में खुद स्वीकार चुके है कि चुनाव जीतना मुश्किल है। कांग्रेस के अग्रवाल पुराने नेता है और इलाके में जड़ों तक पकड़ हैं। अधिकांश नामों को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री और कमलनाथ की सहमति के बाद ही शामिल किया गया है।
पार्टी का प्रत्याशी चयन कमलनाथ ने खुद बेहद बारीकी से जमीनी रिपोर्ट के बाद किया है। हाटपिपल्या से राजबीर सिंह बघेल मैदान में हैं। ये राजनीतिक परिवार से हैं इनका चुनाव लडऩे और जीतने का तगड़ा अनुभव है। भाजपा में पूर्व मंत्री दीपक जोशी इस सीट पर अपनी ही पार्टी के खिलाफ खड़े दिखाई दे रहे हैं।
कांग्रेस ने भांडेर से फूलसिंह बरैया को टिकट देकर कई निशाने साधे हैं। बरैया की इलाके में मजबूत पकड़ है, वे कई सीटों पर दलित वोट को कांग्रेस के पक्ष में करने का दम रखते हैं। इसी तरह से साँची से मदनलाल चौधरी मैदान में हैं। चौधरी का मुकाबला प्रभुराम चौधरी से होना है। इस सीट पर भी दूसरी सीट की तरह भाजपा में बगावत है। वरिष्ठ नेता गौरीशंकर शेजवार और इलाके से जुड़े विधायक उमाकांत शर्मा भी कांग्रेस से भाजपा में आये प्रभुराम चौधरी के पक्ष में नहीं है।
भाजपा भी के पास उम्मीदवार बदलने का विकल्प नहीं
भारतीय जनता पार्टी को सिंधिया समर्थकों टिकट दिन मजबूरी है। ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशियों को देखकर उनकी ताकत के हिसाब से भी भाजपा अपने प्रत्याशी बदलने की स्थिति में नहीं है। यही कारण है कि कांग्रेस के पहले टिकट घोषित कर देने से भाजपा के सामने मुश्किलें और बढ़ गई है। खुद शिवराज कई मौके पर कह चुके है कि सरकार चली जाएगी, तो कुछ नहीं बचेगा। इस वक्त भाजपा में जो बगावत है उसका भी कांग्रेस को बड़ा लाभ मिलेगा।
उम्मीदवारों की सूची
दिमनी- राघवेंद्र सिंह तोमर
अंबाह (सुरक्षित)- सत्यप्रकाश सिकरवार
गोहद (सुरक्षित)- मेवाराम जाटव
ग्वालियर- सुनील शर्मा
डबरा- सुरेश राजे
भांडेर- फूल सिंह बरैया
करेरा (सुरक्षित)- प्रगीलाल जाटव
बमोरी- कन्हैयालाल अग्रवाल
अशोकनगर- आशा दोहरे
अनूपपुर (सुरक्षित)- विश्वनाथ सिंह कुंजाम
सांची (सुरक्षित)- मदनलाल चौधरी
आगर (सुरक्षित)- विपिन वानखेड़े
हाटपिपल्या- राजवीर सिंह बघेल
नेपानगर (सुरक्षित)- राम किशन पटेल
सांवेर (सुरक्षित)- प्रेमचंद गुड्डू
मनोज पाठक
पटना, 10 सितंबर (आईएएनएस)| आगामी विधानसभा चुनाव में चुनावी मैदान में उतरने के लिए करीब सभी राजनीतिक दल अपनी तैयारी को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। राजनीतिक दल इस चुनाव में कई ऐसे नए नारे भी गढ़े हैं, जिससे वे ना केवल मतदाताओं को आकर्षित कर सकें, बल्कि इन नारों के जरिए ही खुद को लोगों का सबसे बड़ा शुभचिंतक साबित कर सकें।
ऐसा नहीं कि कोई एक दल नारों के जरिए खुद को बेहतर साबित करने की तैयारी कर रहा है। सभी राजनीतिक दल ऐसा करने की तैयारी कर रहे हैं।
कहा तो जा रहा है कि कई दलों ने तो इसके लिए बजाप्ता एक अलग से टीम बना रखी है, जो चुनाव के समय के बढ़ने के साथ समय-समय पर नए नारे संबंधित दलों को उपलब्ध कराएंगे।
पिछले कई चुनावों से नारे और कार्यक्रम चर्चा का विषय बनते रहे हैं। राजनीतिक दलों का भी मानना है कि अच्छे और आसान चुनावी नारे और कार्यक्रम लोगों की जुबान पर चढ़ जाते हैं, जिसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभ संबंधित पार्टियों को मिलता है।
सूत्रों कहना है कि कोरोना काल में होने वाले इस चुनाव में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के कारण बड़ी रैलियां नहीं होनी है, ऐसे में सभी राजनीतिक दल प्रचार के लिए नारों का सहारा लेने की तैयारी में हैं।
बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल (युनाइटेड) पिछले चुनाव 'बिहार में बहार है, नीतीषे कुमार है' जैसे चर्चित नारों की तरह फि र से नए नारों के साथ चुनावी मैदान में उतरने जा रही है।
जदयू ने इस बार नये नारे 'न्याय के साथ तरक्की, नीतीश की बात पक्की' के सााथ चुनावी मैदान में उतरने जा रही है। इसके अलावे जदयू 'नीतीश के काम, नीतीश में विश्वास बिहार में विकास और विकसित बिहार' के पंच लाइन के साथ ही यह सरकार के विकास कार्यक्रमों को भुनाने में जुटी है।
भाजपा अभी तक 'भाजपा है तैयार, आत्मनिर्भर बिहार' लेकर सामने आ चुकी है। भाजपा इसी नारों के साथ चुनावी रथ मैदान में उतारने जा रही है।
सोशल मीडिया प्रदेश प्रमुख मनन कृष्ण कहते हैं कि 12 सितंबर के बाद और कई नारे सामने आएंगे, जो पार्टी की नीतियों और विकास कायरें से जुडे होंगे। जैसे-जैसे चुनाव का दौर बढ़ता जाएगा, नए नारे भी सामने आएंगें। उन्होंने कहा कि नारे से लोग सीधे तौर पर जुड़ते हैं।
इधर, राजद भी इस चुनाव में नारा गढ़ने में पीछे नहीं है। सरकार के खिलाफ कई नारों को गढ़कर राजद निशाना साध रही है। राजद इस चुनाव में 'लौटेगा बिहार का सम्मान-जब थामेंगे तेजस्वी कमान', 'शिक्षा क्षेत्र का हाल-भ्रष्ट सरकार ने किया बेहाल', 'बंद पड़े उद्योग चलाएंगे, नया बिहार बनायेंगे' जैसे नारों के साथ चुनावी मैदान में उतर चुकी है।
कांग्रेस ने इस चुनाव में सरकार के बदलने के आह्वान के साथ 'बोले बिहार- बदलें सरकार' के चुनावी नारे के साथ मैदान फ तह करने में उतर चुकी है।
अब देखना है कि नए नारों के जरिए कौन पार्टी मतदाताओं को पसंद आती है।
अमिता वर्मा
लखनऊ, 6 सितम्बर (आईएएनएस)| कांग्रेस एक और 'लेटर बम' के साथ पार्टी में होने वाले धमाके के लिए तैयार है, इस बार यह उत्तर प्रदेश (यूपी) से है।
पिछले साल पार्टी से निष्कासित नौ वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र भेजा है, जिसमें कहा गया है कि वह पार्टी को महज 'इतिहास' का हिस्सा बनकर रह जाने से बचा लें।
प्रियंका गांधी वाड्रा, जो कि यूपी की प्रभारी व पार्टी महासचिव हैं, उन्हें परोक्ष रूप से निशाने पर लेते हुए, चार पन्नों के पत्र में सोनिया गांधी से परिवार से ऊपर उठने का आग्रह किया गया है। पत्र में लिखा गया है, 'परिवार के मोह से ऊपर उठें' और पार्टी की लोकतांत्रिक परंपराओं को पुनस्र्थापित करें ।
पूर्व सांसद संतोष सिंह, पूर्व मंत्री सत्यदेव त्रिपाठी, पूर्व विधायक विनोद चौधरी, भूधर नारायण मिश्रा, नेकचंद पांडे, स्वयं प्रकाश गोस्वामी और संजीव सिंह के दस्तखत वाले पत्र में कहा गया है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है।
पत्र में कहा गया है, "इस बात की आशंका है कि आपको राज्य मामलों के प्रभारी द्वारा मौजूदा स्थिति से अवगत नहीं कराया जा रहा है। हम लगभग एक साल से आपसे मिलने के लिए अपॉइंटमेंट की मांग कर रहे हैं, लेकिन मना कर दिया जाता है। हमने अपने निष्कासन के खिलाफ अपील की थी जो अवैध था लेकिन केंद्रीय अनुशासन समिति को भी हमारी अपील पर विचार करने का समय नहीं मिला।"
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने आगे दावा किया कि पार्टी के पदों पर उन लोगों का कब्जा है जो वेतन के आधार पर काम कर रहे हैं और पार्टी के प्राथमिक सदस्य भी नहीं हैं।
पत्र में कहा गया है, "ये नेता पार्टी की विचारधारा से परिचित नहीं हैं, लेकिन उन्हें यूपी में पार्टी को दिशा देने का काम सौंपा गया है।"
इसमें आगे कहा गया है कि ये लोग उन नेताओं के प्रदर्शन का आकलन कर रहे हैं जो 1977-80 के संकट के दौरान कांग्रेस के साथ चट्टान की तरह खड़े थे। लोकतांत्रिक मानदंडों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और वरिष्ठ नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है, अपमानित किया जा रहा है और निकाला जा रहा है। वास्तव में, हमें मीडिया से हमारे निष्कासन के बारे में पता चला था, जो राज्य इकाई में नई कार्य संस्कृति की बात करता है।
पत्र में आरोप लगाया गया है कि नेताओं और पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच संवाद की कमी है।
इन्होंने आगे कहा कि यूपी में एनएसयूआई और युवा कांग्रेस निष्क्रिय से हो गए हैं।
नेताओं ने कांग्रेस आलाकमान से वरिष्ठ नेताओं के साथ संवाद को बढ़ावा देने का आग्रह किया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर यह मौजूदा मामलों की ओर आंख मूंद लेता है, तो कांग्रेस को यूपी में तगड़ा नुकसान होगा, जो कभी पार्टी का गढ़ हुआ करता था।
यह पत्र ऐसे समय में आया है जब पार्टी उत्तर प्रदेश में पहले से ही गुटबाजी, मतभेदों का सामना कर रही है।
मनोज पाठक
पटना, 5 सितम्बर (आईएएनएस)| बिहार में इस साल होने वाले चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल अपनी तैयारी को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। बिहार में सत्ताधारी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) भी इसमें पीछे नहीं है। जदयू के प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने सधे राजनीतिक चालों से न केवल चुनाव के पहले माहौल बदलने में जुटे हैं बल्कि सामाजिक समीकरणों को भी साधने में जुट गए हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहचान राजनीति में एक मंझे खिलाड़ी के रूप में होती है, जिन्हें 'सोशल इंजीनियरिंग' में भी दक्ष माना जाता है। बिहार में करीब 15 साल सत्ता में रहने के बाद इस चुनाव में भी नीतीश ने चुनाव के पहले ही माहौल को बदलने प्रारंभ कर दिए हें।
पिछले कई सालों से अपनी मांगों को लेकर कई बार सड़कों पर उतर चुके नियोजित शिक्षकों के लिए नई सेवाशर्त नियमावली को मंजूरी देकर नीतीश ने चार लाख शिक्षकों को खुश करने की कोशिश की है बल्कि इनके जरिए सरकार के प्रति इनकी नराजगी को भी दूर करने का प्रयास किया है।
इसी तरह कोरोना की जांच की संख्या में वृद्धि कर विपक्ष के इस मुद्दे को भी छीन लिया है। बिहार में फिलहाल प्रतिदिन औसतन एक लाख से अधिक कोरोना की जांच की जा रही है। स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि जांच बढ़ाए जाने के बाद रिकवरी रेट में भी वृद्धि हुई है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को महागठबंधन से तोड़कर अपने पक्ष में कर ना केवल दलित मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है, बल्कि मांझी के जरिए राजग में लोजपा के दबाव की राजनीति को भी कुंद करने की राजनीतिक चाल चली है।
उल्लेखनीय है कि हाल में राजग के दो घटक दलों लोजपा और जदयू में शीत युद्ध की स्थिति बनी हुई है। लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान विभिन्न मुद्दों पर नीतीश कुमार पर निशाना साधते रहे हैं।
इसके अलावा, मुख्यमंत्री ने चुनाव की घोषणा के पूर्व शुक्रवार को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कल्याण (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत गठित राज्य स्तरीय सतर्कता और मॉनीटरिंग समिति की हुई बैठक में किसी एससी या एसटी समुदाय के व्यक्ति की हत्या होने पर उसके परिवार के किसी एक सदस्य को नौकरी देने से संबंधित नियम तुरंत बनाने का निर्देश देकर दोनों समुदायों को साधने का प्रयास किया है।
दीगर बात है कि यह चुनाव के पूर्व संभव नहीं दिख रहा है।
इधर, चर्चा है कि वरिष्ठ समाजवादी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव भी जल्द ही जदयू के साथ आ सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो इसका लाभ भी नीतीश की पार्टी को लाभ मिलना तय माना जा रहा है।
जदयू के वरिष्ठ नेता और सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री नीरज कुमार कहते भी हैं कि नीतीश कुमार ने सत्ता संभालने के बाद ही न्याय के साथ विकास को मूलमंत्र बनाया। समाज के अंतिम पंक्ति पर खड़े लोगों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया गया है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि यहां के लोगों की पसंद नीतीश कुमार बने हुए हैं।
इसके अलावा, हाल के कुछ दिनों में नीतीश कुमार ने राजद के कई विधायकों और नेताओं को तोड़कर अपने पक्ष में लाकर भी उसे जोरदार झटका दिया है। ऐसे में कुछ महीने पहले तक कई परेशानियों में घिरे नीतीश कुमार अपनी सधी राजनीतिक चालों से माहौल बदलने में सफल दिखने लगे हैं।
लखनऊ, 4 सितम्बर (आईएएनएस)| योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में मुस्लिमों पर अत्याचार के लिए पोस्टर ब्वॉय बनकर उभरे डॉक्टर कफील खान आने वाले दिनों में राजनीतिक करियर चुन सकते हैं। कफील को कुछ विपक्षी पार्टियों से सहानुभूति मिल रही है। उन्होंने हालांकि कांग्रेस के प्रति अपने झुकाव को दिखाया है।
उन्होंने कहा, "मुश्किल समय में, प्रियंका गांधी वाड्रा ने मेरा समर्थन किया। मथुरा जेल से मेरी रिहाई के बाद उन्होंने फोन करके मुझसे बातचीत की।"
पूर्व कांग्रेस विधायक प्रदीप माथुर कफील खान की जेल से रिहाई के वक्त वहां मौजूद थे। उन्होंने कहा, "वरिष्ठ पार्टी नेताओं के दिशानिर्देश पर, मैं काफिल की रिहाई के लिए औपचारिकताओं को पूरा करने लगातार मथुरा और अलीगढ़ के जिला प्रशासन के संपर्क में था। मैं उन्हें राजस्थान बॉर्डर तक ले गया।"
कांग्रेस नेता ने कहा, "प्रियंका ने मानवता के लिए उनके समर्थन में और योगी सरकार द्वारा राज्य के निर्दोष लोगों के खिलाफ अत्याचार का विरोध करने के लिए अपनी आवाज बुलंद की । यह कफील पर निर्भर करता है कि वह कांग्रेस के साथ काम करना चाहते हैं या नहीं।"
डॉक्टर ने पहले ही घोषणा कर दी है कि वह बिहार, असम, केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य शिविर आयोजित करने के लिए जांएगे।
अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने कहा कि कफील के पास महत्वपूर्ण 2022 उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी का मुस्लिम चेहरा बनने की काबिलियत है, जिसके लिए पार्टी अपनी खोई जमीन वापस करने के लिए काम कर रही है।
उन्होंने कहा, "राज्य सरकार के खिलाफ उनकी लड़ाई ने उत्तरप्रदेश और अन्य राज्यों में समुदाय के लोगों के बीच बड़ी संख्या में समर्थन हासिल किया है।"
इस बीच, परिवार के एक सूत्र ने कहा कि क फील ने बीते तीन वर्ष से काफी कुछ झेला है और शायद उसके पास राजनीति में शामिल होने के सिवाय और कोई उपाय नहीं बचा।
परिवार के सदस्य ने कहा, "कई पार्टियों की ओर से ऑफर है, लेकिन उन्हें निर्णय करना है कि वे किसमें शामिल होना चाहते हैं। यह शायद कांग्रेस हो सकता है।"
डॉ. कफील खान को पहली अगस्त 2017 में बार बी.आर.डी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर में ऑक्सीजन हादसे के बाद गिरफ्तार किया गया था, जिसमें तीन दिन के अंदर 70 बच्चे की मौत हो गई थी।
विभागीय जांच में उन्हें क्लीन चिट दे दी गई, लेकिन उन्हें फिर से बहाल नहीं किया गया है।
मनोज पाठक
पटना, 4 सितम्बर (आईएएनएस)| बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (युनाइटेड) के प्रमुख नीतीश कुमार इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में विपक्षियों को मात देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाह रहे हैं। यही कारण है कि विपक्ष को घेरने के लिए वह सारी रणनीतियां तैयार की हैं, जिससे विपक्ष को चुनाव में नुकसान पहुंचाया जा सके। इस बीच, समाजवादी नेता शरद यादव के भी फिर से जदयू में लौटने की चर्चा प्रारंभ हो गई है।
सूत्रों के मुताबिक, पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोकतांत्रिक जनता दल के प्रमुख शरद यादव कुछ दिनों पहले बीमार थे और 30 अगस्त को स्वस्थ होने के बाद अस्पताल से वापस घर लौटे हैं। जल्द ही इनके बिहार आने की संभावना है।
लोकतांत्रिक जनता दल (लोजद) के प्रदेश महासचिव राजेंद्र सिंह यादव ने बताया कि शरद यादव बीते दिनों बीमार हो गए थे, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अब वे पूरी तरह स्वस्थ हैं और अपने घर को लौट आयें। वे जल्द ही बिहार आयेंगे। बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका भी अहम होने वाली है।
सूत्रों का दावा है कि इस बीच, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शरद यादव को फोनकर हालचाल जाना है। इसके बाद शरद यादव के जदयू में फिर से शामिल होने की अटकलें तेज हो गई हैं।
इधर, सूत्रों का दावा है कि जदयू के बड़े नेता भी शरद यादव से जाकर मिल चुके हैं। इसके बाद जदयू में उनके लौटने की संभावना को और बल मिला है।
उल्लेखनीय है कि शरद यादव ने जदयू से नाता तोड़कर 2018 में अपनी नई पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में वे महागठबंधन का हिस्सा थे और इसी के बैनर तले मधेपुरा से चुनाव भी लड़े लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
इधर, जदयू के सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार राजद से गठबंधन टूटने के बाद नाखुश यादव मतदाताओं को फिर से अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं। यही कारण है कि वे शरद यादव को फिर से जदयू में लाना चाहते हैं।
इस संबंध में जदयू के नेता हालांकि खुलकर कुछ भी नहीं कह रहे हैं। जदयू के प्रवक्ता राजीव रंजन कहते हैं कि शरद यादव वरिष्ठ समाजवादी नेता हैं। उनकी राजनीति में अलग पहचान है।
उल्लेखनीय है कि कुछ दिनों पहले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा भी जदयू के साथ हो गई है। अब देखने वाली बात होगी कि पूर्व केंद्रीय मंत्री यादव की लोकतांत्रिक जनता दल मांझी के रास्ते चल कर जदयू के साथ आती है या लोजद का विलय होगा।
संदीप पौराणिक
भोपाल 3 सितंबर (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश में विधानसभा के उप-चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ही जीत के लिए राजनीतिक दल और संभावित उम्मीदवारों ने बिसात बिछानी शुरू कर दी हैं। कोई बात विकास की कर रहा है, दल बदल को लेकर हमले बोले जा रहे हैं और अब तो मतदाताओं को लुभाने के लिए भगवान राम की भी एंट्री हो गई है।
राज्य में 27 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होना है। यह चुनाव राज्य की सियासत के लिहाज से काफी अहम माना जा रहे है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन चुनावों की हार-जीत का असर सीधे सरकार के भविष्य पर पड़ने वाला है। 27 विधानसभा क्षेत्रों में से 25 विधानसभा क्षेत्र वे हैं जहां से कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित होने वाले विधायक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफो देकर भाजपा में शामिल हुए हैं। संभावना इस बात की है कि इन सभी 25 पूर्व विधायकों को भाजपा उम्मीदवार बनाने वाली है।
उप-चुनाव में जहां कांग्रेस दल-बदल को बड़ा मुद्दा बनाए हुए है, वहीं भाजपा द्वारा विकास और पूर्ववर्ती सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर हमले कर रही है। सागर जिले के सुरखी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के संभावित उम्मीदवार परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने तो भगवान राम का सहारा लिया है। वे अपने विधानसभा क्षेत्रों में पांच रामशिला पूजन यात्राएं निकाल रहे हैं। यह यात्राएं लगभग 300 गांव तक पहुंचेंगीं।
राजपूत इन यात्राओं को सीधे तौर पर राजनीति से जोड़ने को तैयार नहीं है। वे यही कह रहे हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बनना है और इन शिलाओं को शिला पूजन के बाद अयोध्या राम मंदिर निर्माण के लिए भेजा जाएगा।
वहीं कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अजय सिंह यादव का कहना है कि दल-बदल कर भाजपा में जाने वाले राजपूत सहित अन्य पूर्व विधायकों के प्रति जनता में नाराजगी है क्योंकि उन्होंने जनमत को बेचा है और यही कारण है कि अब इनको जनता को लुभाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाने पड़ रहे हैं, मगर जनता उनके छलावे में आने वाली नहीं है।
वहीं राजनीतिक विश्लेषक विनेाद आर्य का कहना है कि चुनाव जीतना है तो राजनेता सारे रास्ते अपनाएंगे ही, ग्रामीण इलाकों के लोगों में भगवान के प्रति आस्था ज्यादा ही होती है और धर्म के सहारे मतदाताओं को प्रभावित किया जा सकता है। उसी रणनीति के तहत यह शिलापूजन यात्राएं निकाली जा रही हैं। साथ ही सवाल यह भी उठ रहा है जो लेाग पहले भाजपा पर राम के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाते थे, अब वही लोग भाजपा में आकर रामशिला पूजन यात्राएं निकालकर राम मंदिर की बात कर रहे हैं। इन कोशिशों का मतदाताओं पर कितना असर होगा यह तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे।
भाजपा के सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने रथयात्राएं निकालने की कोई आधिकारिक योजना नहीं बनाई है। क्षेत्रीय नेता अपनी योजना बनाकर रामशिला पूजन यात्राएं निकालने के साथ अन्य कार्यक्रम आयोजित कर रहे है, यह सब कार्यकर्ताओं को जोड़ने और मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने के लिए है।
लखनऊ, 30 अगस्त। उत्तर प्रदेश (यूपी) में साल 2022 की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जहां सभी राजनीतिक दलों ने तैयारियां करनी शुरू कर दी है और चीजों को व्यविस्थत करने में लगे हैं, वहीं यूपी में कांग्रेस खुद से ही लड़ने में व्यस्त है। पार्टी के भीतर अंदरूनी कलह जोरों पर है। पिछले हफ्ते हुई कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की बैठक के बाद, जहां पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं द्वारा लिखे गए एक पत्र ने भारी विवाद खड़ा कर दिया था, पार्टी आलाकमान के प्रति अपनी निष्ठा जताने के लिए अब कांग्रेस के नेता 'असंतुष्टों' को निशाना बना रहे हैं।
सबसे पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद को निशाने पर लिया गया। लखीमपुर खीरी इकाई ने विवादास्पद पत्र पर हस्ताक्षरकर्ता करने के लिए पार्टी से उनके निष्कासन की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया।
डीसीसी प्रमुख प्रहलाद पटेल ने दावा किया कि यह राज्यस्तरीय कांग्रेस नेतृत्व के एक पदाधिकारी के दबाव में पारित किया गया।
बगावत की आग की लपटों को बुझाने के बजाय, यूपीसीसी नेतृत्व ने इस मुद्दे पर जानबूझकर चुप्पी साध रखी है। दो स्थानीय कांग्रेस नेताओं के बीच बातचीत के एक असत्यापित ऑडियो क्लिप से पता चला कि प्रसाद के खिलाफ प्रदर्शन एक वरिष्ठ पार्टी नेता के इशारे पर किया गया था और कुछ मजदूरों को नारे लगाने के लिए भाड़े पर लिया गया था।
यूपीसीसी के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने दिलचस्प रूप से इस मामले में पार्टी का बचाव करते हुए कहा कि पार्टी के कुछ कार्यकर्ता अपनी भावनाओं को पार्टी आलाकमान तक पहुंचाना चाहते हैं।
इसके तुरंत बाद, पूर्व कांग्रेस एमएलसी नसीब पठान ने एक वीडियो संदेश डाला, जिसमें दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद को पार्टी से बाहर करने की मांग की गई थी। पठान ने कहा, "जैसा कि उन्होंने पार्टी के अनुशासन को तोड़ा है, उन्हें 'आजाद' कर दिया जाना चाहिए और पार्टी से निकाल दिया जाना चाहिए।"
नसीब पठान संयोग से, एक समय यूपी कांग्रेस में आजाद के कट्टर वफादारों में से एक हुआ करते थे।
अब, उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष निर्मल खत्री ने आजाद पर उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को कांग्रेस-समाजवादी पार्टी गठबंधन के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया है। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मात्र सात सीटें जीत सकी थी।
खत्री ने सोशल मीडिया पर आजाद पर निशाना साधते हुए कहा, "जहां तक मुझे पता है, राहुल गांधी भी गठबंधन के विरोध में थे, लेकिन आजाद की अड़ियल और पराजयवादी राजनीतिक सोच के कारण शायद चुप रहे। राजनीति विज्ञान के उनके सिद्धांत गठबंधन की राजनीति पर केंद्रित हैं।"
यूपीसीसी के पूर्व प्रमुख ने कहा, "आजाद ने अपने साक्षात्कार में कहा था कि पिछले 23 सालों से कांग्रेस कार्यकारिणी समिति (सीडब्ल्यूसी) का चुनाव नहीं हुआ है। सवाल यह है कि जब इन 23 सालों में वह समिति के खुद एक मनोनीत सदस्य थे, तब उन्होंने सवाल क्यों नहीं उठाया?"
खत्री ने कहा, "मुझे यह भी लगता है कि चुनाव हर स्तर पर होने चाहिए। लेकिन, आप जैसे नेताओं का मानना था कि नामांकन का तरीका बेहतर है।"
इसके अलावा, युवा कांग्रेस नेताओं का एक समूह पहले से ही समावेशी आधार पर पार्टी की विफलता को लेकर राज्य के नेतृत्व पर निशाना साध रहा है।
इन नेताओं ने अपने व्हाट्सएप ग्रुप में, यूपीसीसी प्रमुख पर ऊंची जातियों की अनदेखी करने और पार्टी में ओबीसी को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।
इन नेताओं का यह भी दावा है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को उनके सहयोगी यूपी कांग्रेस की स्थिति के बारे में गुमराह कर रहे हैं।
इस बीच, पार्टी ने 10 वरिष्ठ नेताओं के निष्कासन को रद्द करने में कोई रुचि नहीं दिखाई है, हालांकि यह उल्लेखनीय है कि कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हाल ही में पार्टी के वरिष्ठ नेता शकील अहमद के निष्कासन को रद्द कर दिया था।
गौरतलब है कि बिहार में मधुबनी से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद अहमद को पिछले साल कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया था। हालांकि अब कांग्रेस में उनकी वापसी हो गई है।(IANS)
मनोज पाठक
पटना, 29 अगस्त (आईएएनएस)| बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में वामपंथी दलों ने अपनी सीटें बढ़ाने के लिए विपक्षी दलों के महागठबंधन में शामिल होकर चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है। ऐसे में हालांकि अब तक सीट बंटवारे को लेकर पत्ते नहीं खोले जा रहे हैं, लेकिन प्रभाव वाले क्षेत्रों में तैयारी शुरू कर दी गई है।
वामपंथी दलों के भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक, वामपंथी दल के नेताओं ने राज्य के 18 जिलों के विधानसभा क्षेत्रो में चुनाव लड़ने की मंशा जताते हुए राजद को सीटों की सूची सौंप दी है।
एक राजद नेता ने बताया कि वामपंथी दलों के नेताओं के साथ दो चरणों की बात हो चुकी है। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि सीट इस दोस्ती के आड़े नहीं आएगी। राजद के सूत्रों का कहना है कि महागठबंधन में शामिल सभी दल बात कर अपनी इच्छा वाली सीटों की सूची सौंपेंगे, उसके के बाद मिल-बैठकर रणनीति को अंतिम रूप दिया जाएगा।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और भाकपा (माले) के शिष्टमंडल ने चुनावी रणनीति पर राजद के साथ चर्चा की है।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाकपा (माले) के तीन विधायक जीतकर आए थे। पिछले चुनाव में माले ने 99 सीटों पर, भाकपा ने 98 और माकपा ने 43 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से मात्र माले के ही तीन प्रत्याशी विधानसभा पहुंच सके थे।
वर्ष 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में वामपंथी दलों में भाकपा 56, माकपा 30 और माले ने 104 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। उस चुनाव में इन दलों को सिर्फ एक सीट मिली थी। इस अनुभव के आधार पर वामपंथी दल आगामी चुनाव में अपनी स्थिति को सुधारने में जुटी है।
माकपा के राज्य सचिव अवधेश कुमार ने कहा, "हमें उम्मीद है कि महागठबंधन से तालमेल होगा। बहुत जल्द ही स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। सीट को लेकर कोई टकराव नहीं होगा। जदयू और भाजपा को हटाने के लिए यह समय की मांग है कि सभी मिलकर चुनाव लड़ें।"
इधर, राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी भी कहते हैं कि वामपंथी दल के नेताओं ने महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की है। महागठबंधन मजबूत हो रहा है और कई दल इससे जुड़ने की इच्छा रखते हैं।
इससे पहले भी भाकपा और माकपा ने राजद या जनता दल के साथ गठबंधन में रहे हैं, लेकिन यह पहली बार होगा जब भाकपा (माले) भी राजद के इस गठबंधन में होगी।
भाकपा (माले) के राज्य सचिव कुणाल कहते हैं कि हमलोग भी महागठबंधन से चुनाव लड़ने को तैयार हैं। बिहार विधानसभा में राजद से अगर तालमेल होता है तो यह विधानसभा का पहला चुनाव होगा।
संदीप पौराणिक
भोपाल, 24 अगस्त (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश की सियासत में एक बार फिर पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया 'केंद्र' बनते जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव के समय जहां भाजपा का नारा था 'हमारे नेता तो शिवराज, माफ करो महाराज' वहीं अब नारा भी बदलकर 'साथ चलो शिवराज-महाराज' हो गया है। वहीं कांग्रेस के निशाने पर भी सिंधिया ही हैं।
राज्य में आगामी समय में 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं, इनमें से 16 सीटें ग्वालियर-चंबल इलाके से आती हैं और यह क्षेत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाला माना जाता है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके से कांग्रेस को बड़ी जीत मिली थी और कांग्रेस की डेढ़ दशक बाद सत्ता में वापसी हुई थी।
सिंधिया ने कांग्रेस का साथ छोड़ा तो कमल नाथ की सरकार गिर गई और सिंधिया ने भाजपा का दामन थामकर सत्ता में भाजपा की वापसी करा दी। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के निशाने पर सिंधिया ही थे, यही कारण है कि भाजपा ने नारा दिया था 'हमारे नेता तो शिवराज, माफ करो महाराज'। अब स्थितियां बदली हैं और नारा हो गया है, 'साथ चलो शिवराज-महाराज'।
सिंधिया भाजपा में शामिल होने और राज्यसभा सदस्य निर्वाचित होने के बाद पहली बार ग्वालियर-चंबल अंचल के दौरे पर आए हैं और इस मौके पर भाजपा ने तीन दिवसीय सदस्यता अभियान चलाया। इस सदस्यता अभियान के दौरान सिंधिया ने अपनी ताकत दिखाने का प्रयास किया है, क्योंकि कई हजार कार्यकर्ता भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर चुके हैं।
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने को लेकर कहा, "सिंधिया ने प्रदेश में दुरावस्था लाने वाली कांग्रेस की सरकार को गिराकर देश को जो संदेश दिया है, वो संदेश कई साल पहले ज्योतिरादित्य की दादी विजयराजे सिंधिया ने डी़ पी़ मिश्रा की सरकार को उखाड़कर पूरे देश को संदेश दिया था। इतना ही नहीं, जब कांग्रेस राम मंदिर का विरोध कर रही थी, तब भी सिंधिया ने मंदिर का समर्थन किया था, कश्मीर से धारा 370 हटाने और नागरिकता संशोधन कानून का भी समर्थन किया और इसकी वजह यह है कि उनकी दादी विजयराजे ने उनके मन-मस्तिष्क में राष्ट्रवाद का बीजारोपण किया था।"
सिंधिया स्वयं कांग्रेस पर हमलावर हैं। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ और दिग्विजय सिंह पर हमले बोले। सिंधिया ने कमल नाथ सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए कहा, "राज्य में 15 महीनों के शासनकाल में कमल नाथ सरकार ने जो भ्रष्टाचार और वादाखिलाफी की, उसके कारण हमें यह कदम उठाना पड़ा। कमल नाथ ने मुख्यमंत्री रहते कभी इस क्षेत्र में चेहरा नहीं दिखाया। दूसरी तरफ, शिवराज सिंह चौहान हैं, जिन्होंने यहां आने से पहले 250 करोड़ के कामों को मंजूरी दे दी। कमल नाथ हमेशा पैसों का रोना रोते रहते थे, लेकिन अब शिवराज ने जनता के लिए खजाना खोल दिया है।"
एक तरफ जहां भाजपा की ओर से कांग्रेस पर हमले बोले जा रहे हैं, वहीं कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ग्वालियर की सड़कों पर उतरकर विरोध दर्ज कराया।
पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने सिंधिया पर हमला बोलते हुए कहा, "अपने ईमान का सौदा करना, जनादेश को धोखा देना, पीठ में छुरा घोंपना, जनता व लाखों कांग्रेस कार्यकर्ताओं के विश्वास को तोड़ना, वह भी सिर्फ सत्ता की चाह के लिए, पद प्राप्ति के लिए, चंद स्वार्थपूर्ति के लिए, वो भी उस पार्टी के साथ जिसने मान-सम्मान, पद सब कुछ दिया, आखिर यह सब क्या कहलाता है? दल छोड़ना व जनता के विश्वास का सौदा करने में बहुत अंतर है। राजनीतिक क्षेत्र में आज भी कई लोग सिर्फ अपने मूल्यों, सिद्धांतों व आदर्शो के लिए जाने जाते हैं और कइयों का तो इतिहास ही धोखा, गद्दारी से जुड़ा हुआ है।"
ग्वालियर-चंबल में भाजपा के सदस्यता अभियान के चलते सिंधिया एक बार फिर सियासत के 'केंद्र' में आ गए हैं। भाजपा जहां उनके बचाव में खड़ी है तो दूसरी ओर कांग्रेस की ओर हमले बोले जा रहे हैं। इस क्षेत्र के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आगामी समय में होने वाले विधानसभा के उपचुनाव में सिंधिया के इर्दगिर्द ही सियासत घूमती नजर आएगी। ऐसा इसलिए, क्योंकि सिंधिया का सियासी भविष्य यहां मिलने वाली हार जीत पर जो निर्भर करेगा। इसके चलते भाजपा और कांग्रेस देानों ही अपना सारी ताकत लगाने में चूक नहीं करेगी।
एक खास इंटरव्यू में पूर्व प्रदेश कॉग्रेसाध्यक्ष ने कहा
नई दिल्ली, 21 अगस्त (आईएएनएस)| राज्यसभा सांसद और पंजाब में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिह को तानाशाह करार दिया है और उनके काम करने के तरीकों पर निशाना साधा है। बाजवा ने मुख्यमंत्री पर स्मगलर और मादक पदार्थ की तस्करी करने वालों को बचाने का आरोप लगाया है।
दरअसल यह मतभेद हाल ही में जहरीली शराब पीकर 121 लोगों की मौत के बाद उभरे हैं। राज्यसभा सांसद ने कहा कि कैप्टन कुछ बाबुओं के सहारे सरकार चला रहे हैं।
यहां प्रताप सिंह बाजवा के साथ साक्षात्कार के कुछ अंश पेश हैं।
प्रश्न : आपके और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच झगड़े का क्या कारण है?
उत्तर : मेरे और कैप्टन के बीच कोई निजी दुश्मनी नहीं है। यह मैं था, जिसने चुनाव से पहले पीसीसी अध्यक्ष के रूप में काम किया। बीते 3 वर्षो में यह मेरा ही कठिन परिश्रम था, जिसके अच्छे नतीजे रहे। इसलिए कोई निजी एजेंडा नहीं है।
समस्या यह है कि चुनाव के दौरान वादे किए गए , लेकिन यह वादे पूरे नहीं किए गए और हम मूक दर्शक बने नहीं रह सकते।
अमरिंदर ने कहा था कि उन्हें चुनाव के दौरान 4 हफ्तों का समय चाहिए। उन्होंने कहा था, "मैं सबकुछ ठीक कर दूंगा और उन पांच माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करूंगा। लेकिन कोई भी कार्रवाई नहीं की गई और मैं उनसभी का नाम ले सकता हूं, लेकिन सभी इन माफियाओं का नाम जानते हैं।"
प्रश्न : और अन्य मुद्दे जो विवाद के केंद्र में हैं?
उत्तर : मुख्यमंत्री के साथ मतभेद के अन्य मुद्दे गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी को लेकर है, क्योंकि इससे पहले की अकाली सरकार राजनीतिक स्वार्थ के लिए डेरा सच्चा सौदा के साथ हाथ मिला रही थी और गलत कार्यो में फंस गई और बड़े पैमाने पर आंदोलन हुए, जिसमें दो युवा मारे भी गए।
अमरिंदर सिंह ने मामले को देखने का वादा किया था और जिन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की थी, उन्हें कटघरे में लाने का भी वादा किया था। उन्होंने यह भी कहा था कि दोनों युवाओं को न्याय दिलाया जाएगा। लेकिन वह भी नहीं हुआ।
प्रश्न : क्या आप यह संकेत दे रहे हैं कि सरकार स्मगलिंग और मादक पदार्थो की तस्करी में शामिल लोगों के साथ बराबर की भागीदार है?
उत्तर : यह वही है जो मैंने उन्हें कहा था, निश्चित तौर पर अगर आप उन्हें समाप्त नहीं करेंगे तो यह क्या दिखाता है?
मुख्यमंत्री खुद आबकारी मंत्री और गृहमंत्री हैं, और बीते तीन साल में जहरीली शराब की वजह से पंजाब को करीब 2700 करोड़ रुपये की हानि हुई है और आबकारी विभाग उस लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं।
यह पहली बार है कि इस बाबत लक्ष्य पूरा नहीं होगा और इससे खजाने में हानि होगी, जहां पहले से ही त्रासदी हुई है और इसमें 121 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है।
प्रश्न : इससे पहले क्या प्रक्रिया थी?
उत्तर : पहले बोली लगती थी। पहले से ही एक निश्चित लक्ष्य था-यह वह पैसा था, जिसे आप शराब से हासिल कर सकते थे। यह पहली बार है जब लक्ष्य पूरा नहीं होगा और राज्य पहले ही 2700 करोड़ रुपये की हानि झेल रहा है और राज्य में अगस्त के पहले सप्ताह में जहरीली शराब पीने से तीन जिलों में 121 लोगों की मौत हो गई। पूरी चीजें किसी आबकारी माफिया की ओर इशारा करती हैं।
प्रश्न : लेकिन पार्टी ने कहा है कि आपको पार्टी के अंदर मामला उठाना चाहिए। आप सीधे राज्यपाल के पास क्यों गए?
उत्तर : हम मामला उठाते रहे हैं। इसे कई बार उठाया गया है।
यहां तक की दो महीने पहले, कैप्टन ने पंजाब के सभी विधायकों की बैठक बुलाई। मेरे सहयोगी व विधायक शमशेर सिंह डुल्लो और मैंने यह मामला उठाया। और भी कुछ विधायक थे, जिन्होंने हमारा इस मुद्दे पर समर्थन किया और उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसा लगता है कि सरकार इस तरह के तत्वों को समर्थन देती है।
वे कहते हैं, "आप उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करते"
प्रश्न : फिर क्या हुआ?
उत्तर : जब मीडिया पंजाब के मुख्यमंत्री से हमारे पत्रों के बारे में पूछती है तो वह कहते हैं कि 'मुझे ये पत्र नहीं मिले हैं और अगर मुझे यह मिलता भी है तो इसका जवाब देना जरूरी नहीं है। यह मेरा कोई निजी काम नहीं है।' वह मीडिया को कहते हैं, 'हम एक एजेंडा सेट करने के बारे में बात करते हैं।'
हम राज्यपाल के पास क्यों गए? क्योंकि जांच के आदेश जालंधर कमिश्नर को दिए गए हैं और कैसे जालंधर के कमिश्नर उन लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दे सकते हैं जो शक्तिशाली हैं और उसका क्या हो जो मुख्यमंत्री के कार्यालय में मौजूद हैं।
हम माननीय राज्यपाल के पास सीबीआई जांच या ईडी की जांच के लिए गए थे, क्योंकि ये सर्वोच्च संस्थाएं हैं और दोषी को पकड़ा जा सकता है।
प्रश्न : तो फिर आप क्या सोचते हैं कि पार्टी आपके और मुख्यमंत्री के बीच निर्णय लेगी?
उत्तर : यह बात सही नहीं है, क्योंकि मैंने कभी नहीं कहा कि मैं मुख्यमंत्री पद का दावेदार हूं।
मुद्दा यह है कि काफी सारा समय बीत गया, जनादेश का सम्मान नहीं किया गया और पंजाब के लोग यह सोचते हैं कि हमने जनादेश का अपमान किया है।
कैप्टन वादे के ठीक विपरीत काम कर रहे हैं।
लेकिन आप अगर पार्टी को बचाना चाहते हैं तो, कांग्रेस को अमरिंदर सिंह और प्रदेश पार्टी अध्यक्ष को हटाने का निर्णय लेना होगा। बदलाव के लिए ऐसे व्यक्ति को लाना होगा, जो कांग्रेसमैन है। पहले वरिष्ठता दूसरा इमानदारी और तीसरा क्षमता पर विचार करना होगा।
प्रश्न : क्या आपको लगता है कि अमरिंदर कांग्रेस कार्यकर्ताओं की नहीं सुन रहे हैं?
उत्तर : यह पसंद गलत थी, क्योंकि 1984 से 1998 के बीच अमरिंदर अकाली दल के साथ थे और इसलिए वह पार्टी की विचारधारा से जुड़े नहीं हैं और कांग्रेस कार्यकर्ता पूरी तरह से निराशा महसूस कर रहे हैं।
ऐसा लगता है कि पंजाब में राज्यपाल का शासन है। ऐसा लगता ही नहीं है कि राज्य में लोकप्रिय कांग्रेस शासन है।
प्रश्न : क्या आपको लगता है कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व कमजोर है, जो मुख्यमंत्री को और इस तरह के विभेदों पर काबू नहीं कर पा रहा है।
उत्तर : मैं इसपर कुछ नहीं कहना चाहता हूं और हम राज्य में इस संकट पर काफी चिंतित हैं।
प्रश्न : क्या वह तानाशाही स्टाइल में काम कर रहे हैं?
उत्तर : उन्हें पटियाला के महाराज की तरह व्यवहार करना बंद करना चाहिए और अगर वह लोकतांत्रिक मुख्यमंत्री की तरह कार्य का संचालन नहीं करते हैं तो फिर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए।
वह पांच महीने बाद अपने फार्महाउस से बाहर आए, जब हमने जहरीली शराब के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। अगर कोई मुख्यमंत्री अपने घर से पांच महीने बाद बाहर आएगा तो उस राज्य की हालत क्या होगी।
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने राजीव गांधी की जयंती पर राजीव के हिंदुत्व और मंदिर निर्माण में बड़ी भूमिका का विज्ञापन देकर हिंदुत्व की राजनीति का रुख मोड़ दिया, कमलनाथ वैसे भी पुराने हनुमान भक्त हैं।
-कुमार दिग्विजय
हनुमानभक्त कमलनाथ राम मंदिर को लेकर इतने खुले तौर पर सामनेआयेंगे,इसकी कल्पना भाजपा ने कभी नही की होगी। दरअसल राम मंदिर को मुद्दा बनाकर सत्ता के शीर्ष तक का सफर तय करने वाली भारतीय जनता पार्टी पिछले कुछ दिनों से हैरान हैऔर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के तेवरों को देखकर परेशान भी है। राम मंदिर के भूमिपूजन के ठीक पहले 4 अगस्त को हनुमान चालीसा का उद्घोष मध्यप्रदेश के कोने कोने में सुनाई दिया।
कमलनाथ ने राम मंदिर को लेकर साफ कहा था कि इसकी शुरुआत तो राजीव गाँधी के कार्यकाल में ही हो गई थी और इसका श्रेय राजीव गाँधी को ही दिया जाना चाहिए। इसका असर पूरे मध्यप्रदेश में दिखाई दिया, कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने एकजुटता से गाँव गाँव समारोहपूर्वक हनुमान पाठ करवाए। इस समय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा पर कांग्रेसने बढ़त ले ली।
अब राजीव गाँधी की जयंती पर एक बार फिर कमलनाथ की फोटो के साथ जो विज्ञापन जारी हुआ है,उसमे कांग्रेस ने राम राज्य की कल्पना को लेकर खुले तौर पर अपनी भावनाओं का इजहार किया है। विज्ञापन में राजीव गाँधी को याद करके लिखा गया है कि राजीव गांधी के समय में ही रामराज्य की नींव रखने की कवायद शुरू हो चुकी थी। उस समय ही राजीव गांधी ने भारतीयों की आस्था और धार्मिकता का सम्मान किया था। कांग्रेस ने इस बात को भी विज्ञापन में शामिल किया है कि महात्मा गांधी के रामराज्य की भावना का प्रभाव राजीव गांधी पर पड़ा था जिसके कारण ही 1985 में दूरदर्शन पर रामायण का टेलीकास्ट शुरू हुआ था।
इसके बाद ही 1986 में यूपी के तत्कालीन सीएम वीरबहादुर सिंह को राम जन्मभूमि के ताले खोले थे और 1989 में राममंदिर शिलान्यास को इजाजत मिली तथा तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह को इसके लिए भेजा गया। इतना ही नहीं यह भी बताया गया है कि चेन्नई में राजीव गांधी ने अपनी अंतिम प्रेस कांफ्रेस में कहा था कि अयोध्या में ही राममंदिर बनेगा।
कांग्रेस ने राजीव गांधी को नवोदय स्कूल खोलने का श्रेय देते हुए बताया है कि राजीव गांधी रामराज्य की गतिशील यात्रा के कुशल सारथी थे जो आधुनिक भारत में राम राज्य का सपना देखते थे। विज्ञापन को लेकर कांग्रेस का राम मंदिर और राम राज्य को लेकर खुले तौर स्वीकारोक्ति से यह भी साफ हो गया है कि अब कांग्रेस हिंदुत्व को लेकर भाजपा के सामने है।
पुराने हनुमान भक्त है कमलनाथ
ऐसा भी नही है कि कांग्रेस यह सिर्फ दिखावे के लिए कर रही है क्योंकि कमलनाथ हनुमान भक्त है और उन्होंने अपने गृह जिला छिंदवाड़ा में भगवान हनुमान की एक विशाल मूर्ति स्थापित की हुई है। यह देश की सबसे ऊंची हनुमान प्रतिमाओं में से एक है जो प्रदेश के छिंदवाड़ा जिला मुख्यालय से 15 किमी सिमरिया के मंदिर में है।
इस हनुमान प्रतिमा की ऊंचाई लगभग 101 फीट की है। मंदिर के रखरखाव के लिए छिंदवाड़ा मंदिर ट्रस्ट भीबनाया,जिसकी मुख्य ट्रस्टी सांसद कमलनाथ की पत्नी अलका नाथ हैं।
कमलनाथ जब मुख्यमंत्री बने तब भी उन्होंने हनुमान भक्ति को लेकर अपनी भावनाओं का खुलकर इजहार किया था और इस साल जनवरी में हनुमान जयंती पर भोपाल के मिन्टों हाल में एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन कर इसका सीधा प्रसारण दुनिया के कई देशों में किया गया था।
इसके पहले 2018 विधानसभा चुनाव के समय से ही कमलनाथ को हनुमान भक्त बताया गया था और सरकार बनने के बाद राम वन गमन पथ योजना हो, गौशालाओं के निर्माण की योजना हो या मंदिरों के सौंदर्यीकरण की योजना हो, कांग्रेस ने खुद को हिंदुत्व से दूर नहीं होने दिया
नेहरू ने सोमनाथ का जीर्णोद्धार कराया, पर कांग्रेस ने कभी प्रचार नहीं किया
अभी तक कांग्रेस नेताओं का धर्म को लेकर सार्वजनिक प्रदर्शन और बयानबाज़ी नकरने का एक कारण यह भी रहा कि आज़ादी के आन्दोलन में सबकी भागीदारी रही और इसीलिए सबका सम्मान करने के लिए कांग्रेस नेताओं ने आस्था कोउदारता पूर्वक स्वयं तक सीमित रखा। महमूद गजनवी द्वारा तोड़े गये सोमनाथमंदिर का जीर्णोद्धार पंडित नेहरु के कार्यकाल में ही हो गया था,लेकिन कांग्रेस ने कभी इसे चुनावी मुद्दा नही बनाया। कुल मिलाकर अभी तक हिंदुत्व को लेकर कांग्रेस पर हमलावर रहनेवाली भाजपा हैरान है की यदि यह मुद्दा उनके हाथ से निकल गया तो मुकाबले में कांग्रेस बहुत आगे निकल जायेगी।(politics)
लखनऊ, 17 अगस्त (आईएएनएस)| ऐसे समय में जब उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण राजनीति पहले से ही उबाल पर है, सुल्तानपुर के भाजपा विधायक देवमणि द्विवेदी ने आगामी विधानसभा सत्र के लिए एक सवाल उठाकर अपनी ही पार्टी को शर्मिदा कर दिया है। उन्होंने पिछले तीन वर्षों में मारे गए ब्राह्मणों की संख्या को लेकर सवाल किया है। 20 अगस्त से शुरू हो रहे विधानसभा के सत्र के लिए विधायक ने रविवार को विधानसभा सचिवालय को अपनी 'अल्पसूचित' (अल्पकालिक) प्रश्न पेश किया।
अपने प्रश्न में, द्विवेदी ने यह जानने की मांग की है कि पिछले तीन वर्षों में कितने ब्राह्मण मारे गए हैं और इस अवधि में कितने आरोपी गिरफ्तार किए गए हैं। उन्होंने यह जानने की भी कोशिश की है कि कितने मामलों में पुलिस आरोपियों को सजा दिलाने में सफल रही है।
विधायक ने आगे पूछा है कि क्या राज्य सरकार ने ब्राह्मणों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोई योजना बनाई है या नहीं और क्या सरकार प्राथमिकता के आधार पर ब्राह्मणों को हथियार लाइसेंस प्रदान करेगी।
उन्होंने सरकार से उन ब्राह्मणों की संख्या के बारे में भी पूछा है, जिन्होंने शस्त्र लाइसेंस के लिए आवेदन किया है और उनमें से कितने को अनुमति दे दी गई है।
विधायी इतिहास में यह संभवत: पहली बार हुआ है कि किसी विधायक ने ऐसा सवाल किया है जो पूरी तरह जातिवादी है।
सुल्तानपुर की लम्भुआ सीट से पहली बार विधायक बने द्विवेदी हाल ही में तब खबरों में आए थे, जब वह स्थानीय भाजपा विधायक राजकुमार सहयोगी के समर्थन में अलीगढ़ गए थे, जो कि पुलिस के साथ विवाद में शामिल थे।
द्विवेदी ने यहां तक कहा था कि यदि बात विधायकों के सम्मान पर आएगी तो वह अपना इस्तीफा सौंपने में भी संकोच नहीं करेंगे।
जाहिर सी बात है कि उनके द्वारा उठाया गया ये सवाल विधानसभा में राज्य सरकार पर विपक्ष के हमले को तेज करेगा।
जयपुर, 17 अगस्त (आईएएनएस)| राजस्थान को आखिरकार अजय माकन के रूप में नया कांग्रेस प्रमुख मिल गया है, जिन्होंने राज्य में पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अविनाश पांडे का स्थान लिया है। राजस्थान में सियासी संकट दिल्ली के पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के हस्तक्षेप से सुलझा लिया गया। पूर्व उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस प्रमुख सचिन पायलट हाल ही में अपने खेमे के 18 विधायकों के साथ दिल्ली गए थे और कहा था कि गहलोत सरकार अल्पमत में है। हालांकि, बाद में कांग्रेस नेताओं प्रियंका गांधी वाड्रा, राहुल गांधी, अहमद पटेल और वेणुगोपाल के प्रयासों से एक सुलह के बाद वे जयपुर वापस आ गए।
पायलट ने कांग्रेस आलाकमान के साथ अपनी बैठक के दौरान उन्हें उन मुद्दों से अवगत कराया जो उनके मुताबिक पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे थे।
पायलट की सिफारिश पर, उनकी और उनकी टीम द्वारा दर्ज की गई शिकायतों को देखने के लिए एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया। इस टीम में अजय माकन, अहमद पटेल और के सी वेणुगोपाल शामिल हैं।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस को बताया, " अविनाश पांडे ने राज्य कांग्रेस के प्रमुख के तौर पर अपने कर्तव्यों का सही पालन नहीं किया। पार्टी राज्य प्रमुख होने के नाते वह राज्य और कांग्रेस आलाकमान के बीच नोडल अधिकारी थे। हालांकि, वह चुप रहे। पायलट और गहलोत के बीच बढ़ते मतभेद और हाईकमान को मामले की जानकारी नहीं दी।"
उन्होंने कहा कि हालांकि राज्य में संगठनात्मक और सरकारी ढांचे को संतुलित करने के लिए एक नई समिति का गठन किया गया था, लेकिन पार्टी और सरकार को परेशान करने वाले मुद्दों को हल करने के लिए कोई बैठक नहीं बुलाई गई। डेढ़ साल में कोई राजनीतिक नियुक्ति नहीं की जा सकी।
इस बीच, तीन-सदस्यीय समिति में माकन को शामिल करने के साथ कांग्रेस कार्यकर्ता उम्मीद से भरे दिखे और कहा कि माकन ने हाल के संकट के दौरान कड़ी मेहनत की और विधायकों से फीडबैक लिया जो आलाकमान को भेजा गया था। माकन का मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ पुराना संबंध है क्योंकि गहलोत उस समय कांग्रेस के महासचिव थे जब माकन दिल्ली से सांसद थे।
2013 में राजस्थान की स्क्रीनिंग कमेटी का अध्यक्ष होने के नाते वे राजस्थान कांग्रेस के अधिकांश विधायकों और पदाधिकारियों के संपर्क में रहे हैं।
माकन, राहुल गांधी के काफी करीबी माने जाते हैं और यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं।
जयपुर, 14 अगस्त (आईएएनएस)| राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने विधानसभा में विश्वास मत जीत लिया है। इसके साथ ही सदन की कार्यवाही 21 अगस्त तक स्थगित कर दी गई है। इस दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भाजपा पर जमकर निशाना साधा और कहा कि ऐसे समय में जब पूरी दुनिया कोरोनावायरस से लड़ रही है, बीजेपी सरकार गिराने का काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने राजस्थान को गोवा या मध्यपदेश नहीं बनने दिया। गहलोत ने कहा कि पूरी पार्टी संगठित है और एकजुट है।
आपको बता दें कि सचिन पायलट के व्रिदोह के बाद गहलोत सरकार पर संकट के बादल छा गए थे, लेकिन अब सरकार खतरे से बाहर है।
नई दिल्ली, 14 अगस्त (आईएएनएस)| भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को बिहार विधानसभा चुनाव में उतारने की तैयारी में है। उन्हें राज्य का चुनाव प्रभारी बनाया जा सकता है। यह जानकारी पार्टी सूत्रों ने दी है। बिहार चुनाव के मोर्चे पर फडणवीस को लगाने के पीछे उनकी नेतृत्व क्षमता, चुनावी रणनीति बनाने में कुशलता के साथ ही सुशांत सिंह राजपूत फैक्टर को भी अहम वजह माना जा रहा है। भाजपा की नेशनल यूनिट के एक नेता ने आईएएनएस से देवेंद्र फडणवीस को बिहार चुनाव में अहम जिम्मेदारी मिलने की पुष्टि की, हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अभी औपचारिक घोषणा होनी बाकी है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि जिस तरह से सुशांत सिंह राजपूत का मामला सुर्खियों में आया है बिहार के लोग महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार से नाराज हैं और वे भावनात्मक रूप से इस पूरे मामले से जुड़े हैं। ऐसे में महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के राजनीतिक प्रतिद्वंदी देवेंद्र फडणवीस को बिहार चुनाव के मोर्चे पर लगाकर पार्टी बड़ा दांव चलने की कोशिश में है। फडणवीस उद्धव ठाकरे सरकार पर लगातार हमलावर रहे हैं। बीजेपी अगर सुशांत सिंह राजपूत के मामले को चुनावी मुद्दा बनाएगी तो फडणवीस इसमें कारगर भूमिका निभा सकते हैं।
पार्टी के एक दूसरे नेता ने आईएएनएस से कहा कि राष्ट्रीय महासचिव और बिहार के प्रभारी भूपेंद्र यादव महाराष्ट्र चुनाव में भी प्रभारी रहे थे। उस वक्त देवेंद्र फडणवीस और उन्होंने मिलकर धारदार चुनावी रणनीति बनाई थी। यह अलग बात है कि गठबंधन से शिवसेना के अलग हो जाने के कारण महाराष्ट्र में सरकार नहीं बन सकी। लेकिन पार्टी का प्रदर्शन और स्ट्राइक रेट अपेक्षा के अनुरूप था। ऐसे में चुनावी रणनीति बनाने में कुशल माने जाने वाले दोनों नेताओं की जोड़ी के जरिए भाजपा बिहार में सफलता हासिल करना चाहती है।
नई दिल्ली / जयपुर, 14 अगस्त (आईएएनएस)| बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने राजस्थान में फ्लोर टेस्ट के दौरान अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ वोट करने के लिए अपने पूर्व विधायकों को एक व्हिप जारी किया है। गौरतलब है कि शुक्रवार से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र के दौरान फ्लोर टेस्ट आयोजित किया जा सकता है। पिछले साल बसपा के छह विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इसे बसपा ने अवैध करार दिया था और अदालत में चुनौती दी थी।
यह व्हिप पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा द्वारा जारी किया गया है। उन्होंने छह विधायकों को दसवीं अनुसूची के सेक्शन 2 (1) (ए) के तहत जारी व्हिप के अनुसार वोट करने या दसवीं अनुसूची के 2 (1) (बी) के तहत अयोग्यता का सामना करने के निर्देश दिए हैं।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी गया, लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट में यह मामला लंबित होने के कारण कोई आदेश पारित नहीं किया गया।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दावा किया कि राजस्थान में 7 दिसंबर, 2018 को हुए विधानसभा चुनाव में बसपा द्वारा जारी किए गए टिकटों पर पार्टी के छह विधायक चुने गए थे।
ये छह विधायक -- संदीप यादव, वाजिब अली, दीपचंद खेरिया, लखन मीणा, जोगेंद्र अवाना और राजेंद्र गुढ़ा हैं, जिन्होंने बाद में सितंबर 2019 में कांग्रेस का दामन थाम लिया था।
सचिन पायलट के साथ हुए विवाद के बाद कांग्रेस सरकार विधायकों की संख्या के मामले में सुरक्षित है, क्योंकि पार्टी के पास आवश्यक बहुमत से अधिक विधायक हैं। वहीं कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की बैठक में पायलट और अशोक गहलोत ने पार्टी ऑब्जर्वर की मौजूदगी में हाथ मिलाया।
वहीं सीएलपी की बैठक से पहले दोनों नेता -- अशोक गहलोत और सचिन पायलट भी मिले।
बैठक में गहलोत ने बीती बात को भुलाने का आह्वान करते हुए कहा, "अपने ताउ अपने होते हैं। हम इन 19 विधायकों के बिना भी सदन के पटल पर बहुमत साबित कर सकते थे, लेकिन तब चारों ओर खुशी नजर नहीं आएगी।"
गहलोत ने आगे कहा, "हम खुद ही अविश्वास प्रस्ताव को आगे बढ़ाएंगे। हम अपने उन विधायकों की शिकायतों को भी हल करेंगे जो हमसे नाराज हैं।"
वहीं भाजपा ने गुरुवार को घोषणा की कि वह विशेष विधानसभा सत्र शुरू होने पर गहलोत सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी।