राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : आईजी प्रमोशन से पूर्व एसपी !
10-Sep-2021 5:36 PM
छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : आईजी प्रमोशन से पूर्व एसपी !

आईजी प्रमोशन से पूर्व एसपी !

गुजरे दिनों राजधानी रायपुर में एक पादरी को थाना में घुसकर पीटने की घटना से पुलिस महकमे में हुए फेरबदल में 2004 बैच के आईपीएस बद्रीनारायण मीणा सबसे ज्यादा फायदे में दिख रहे हैं। डीआईजी स्तर के मीणा करीब सवा माह पहले केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटे हैं। प्रदेश पुलिस में आमद देते ही मीणा को पादरी के साथ हुए हाथापाई के बाद सूबे के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गृह जिले दुर्ग का एसपी बना दिया गया। मीणा की पोस्टिंग इसलिए प्रशासनिक हल्के में चर्चा में है, अगले साल जनवरी में वह प्रमोशन से आईजी बन जाएंगे। वैसे मीणा का प्रदेश में एसपी के तौर पर लंबा कार्यकाल रहा है। रायगढ़ एसपी का कार्यकाल पूरा होते ही वह डीआईजी पदोन्नत होने के फौरन बाद केंद्र में चले गए। दुर्ग की पोस्टिंग को एसएसपी स्तर का माना जाता है। सुनते हैं कि आईजी प्रमोशन तक करीब चार माह तक मीणा एसपी बने रह सकते हैं। यानी जनवरी में दुर्ग में नए एसपी की तैनाती तय है। मीणा ने अपने लंबे प्रशासनिक करियर में किसी से सीधा टकराव का रवैया नहीं रखा। भाजपा सरकार में उनके कांग्रेस नेताओं से भी अच्छे ताल्लुकात रहे। राज्य पुलिस के इतिहास में सम्भवत: यह पहला अवसर रहेगा जब आईजी प्रमोशन से पहले किसी अफसर को एसपी की कमान मिली है।

छत्तीसगढ़ी फिल्मों की यात्रा...

छत्तीसगढ़ में हर साल तकरीबन 100 फिल्में रिलीज होती हैं लेकिन सामाजिक योगदान और कलात्मकता की दृष्टि से खरी कितनी होती हैं इस पर सवाल समीक्षक उठाते रहते हैं। शुक्रमनाना चाहिए छत्तीसगढ़ी में भोजपुरी फिल्मों की तरह अश्लीलता अभी नहीं आ पाई है लेकिन ये फिल्में छत्तीसगढ़ के मिजाज को भी प्रतिबिंबित नहीं करती हैं। समीक्षक कहते हैं कि वे मुंबईया फिल्मों की नकल होती हैं। अब, जब छत्तीसगढ़ सरकार ने बरसों की मांग को ध्यान में रखते हुए फिल्म पॉलिसी हरी झंडी दी है और तरह-तरह की केटेगरी में अनुदान देने पर सहमति जताई है, दिन कुछ बदलने के आसार हैं।

छत्तीसगढ़ी फिल्मों की लोक यात्रा 1948 से ही शुरू हो चुकी थी जब किशोर साहू ने हिंदी में ‘नदिया के पार’ फिल्म बनाई थी। फिर मनु नायक की फिल्म 1965 में आई थी-‘कहि देबे संदेश’। उसके बाद आई निरंजन तिवारी, जमाल सेन और हरि ठाकुर की, सन् 1971 में घर-द्वार। रफी, सुमन कल्याणपुर के सुमधुर गीत- झन मारो गुलेल, सुन-सुन मोर मया पीरा के संगवारी रे.., अब भी घरों में गूंजा करते हैं।

सन 2000 में राज्य बनने के बाद आई सतीश जैन की फिल्म ‘मोर छैया भुइयां’ ने सफलता के पिछले सारे रिकॉर्ड्स तोड़ डाले। आनंद टॉकीज में टिकट के लिए इतनी भीड़ कि पुलिस तैनात करनी पड़ी। लोगों में नया राज्य मिलने के जुनून ने भी इस फिल्म को कई शहरों में सिल्वर जुबली हिट बना दिया। इसी सफलता से प्रभावित होकर छत्तीसगढ़ी फिल्मों का जो सिलसिला निर्माताओं ने शुरू किया वह अब तक जारी है।

कैबिनेट की बैठक में छत्तीसगढ़ी फिल्मों और टीवी इंडस्ट्री के विकास के लिए नीति बनाने और एक फिल्म सिटी नया रायपुर में तैयार करने का निर्णय लिया गया है। संस्कृति मंत्री ने कहा है कि राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाली फिल्मों को पुरस्कृत किया जाएगा। इसमें पहला पुरस्कार ‘भूलन द मेज’ को देने की भी घोषणा कर दी गई है। संजीव बख्शी के उपन्यास ‘भूलन कांदा’ पर आधारित रायपुर के मनोज वर्मा की इस फिल्म को कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में तो पुरस्कृत किया गया किंतु 65 साल में पहली बार किसी छत्तीसगढ़ी फिल्म को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलने का श्रेय भी है।

उम्मीद की जानी चाहिए संस्कृति विभाग बिना किसी राजनीतिक और प्रशासनिक हस्तक्षेप के उन फिल्मों के प्रोत्साहित करेगी जिससे छत्तीसगढ़ की पहचान ऊंचाइयों को छुए और यहां की  कला, प्रथा, परंपरा और रीति-रिवाज को देश दुनिया को बताया जा सके।

रायपुर की एक और तस्वीर..

बीते साल एक सर्वेक्षण में केंद्र सरकार ने यह बताया था कि रायपुर सुकून से रहने वाले टॉप शहरों में एक है। इसे 13वां स्थान दिया गया था। ऐसा लगता है कि इस आकलन में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का आंकड़ा सामने नहीं था। एनजीटी के आदेश का राजधानी में पालन ही नहीं हो रहा है। उसकी ओर से हाल ही में रायपुर सहित प्रदेश के कई नगरीय निकायों को आगाह किया गया है कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और अपशिष्ट प्लास्टिक प्रबंधन के निपटारे में राजधानी फेल है। एनजीटी ने समीक्षा की तो पाया प्रदेश के अधिकांश शहरों में इसके लिए कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है। कचरा बटोरने की जो नियमित व्यवस्था है वह कारगर नहीं है। इसके लिए अलग से टेंडर जारी करने का निर्देश है, पर यह हुआ नहीं। अफसोस, मामला जटिल और गंभीर है पर प्रशासन और जनप्रतिनिधि ऐसे आदेशों, सलाहों को भी अपशिष्ट की कैटेगरी में रखा करते हैं।

नजर घुमाये तो नंबर कटा...

छत्तीसगढ़ की एकमात्र सेंट्रल यूनिवर्सिटी बिलासपुर में गुरु घासीदास के नाम पर स्थापित है। कोरोना महामारी की दिक्कतों की वजह से इस बार यहां की प्रवेश परीक्षा ऑफलाइन नहीं हो रही है। यह ऐसी यूनिवर्सिटी है जहां देश-विदेश के छात्र प्रवेश लेते हैं। देश के कई बड़े शहरों में प्रवेश परीक्षा के लिए सेंटर बनाए जाते हैं। पर इस बार यहां ऑनलाइन प्रवेश परीक्षा होने वाली है। ऑनलाइन परीक्षा के लिए कुछ शर्तें तय की गई हैं। छात्रों को मोबाइल फोन के जरिए भी 2 घंटे के भीतर 100 सवालों का जवाब देने की छूट रहेगी लेकिन सलाह यह है कि वह कंप्यूटर या लैपटॉप का इस्तेमाल करें। किसी ऐसे कमरे में बैठें जहां शोरगुल न हो। उस कमरे में इस 2 घंटे के भीतर किसी का भी आना-जाना नहीं होना चाहिए। सबसे बड़ी बात यह है कि आप अपनी सीट से उठेंगे, नजर घुमाएंगे, यहां तक कि आंख भी घुमा कर इधर-उधर देखेंगे तो गिन लिया जायेगा। ऐसा 10 बार किया गया तो आपको परीक्षा से बाहर कर दिया जाएगा।

यह जानकारी खास तौर पर उन विद्यार्थियों के लिए काम की है जिन्हें 90 फीसदी अंक आराम से दिलाई गई बारहवीं बोर्ड परीक्षा में मिले, और जिनकी पीठ पैरेंट्स और टीचर्स ने थपथपाई थी।

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