राजपथ - जनपथ
बीस साल एक कुर्सी पर
आयुष संचालक डॉ. जी एस बदेशा बुधवार को रिटायर हो गए। वे राज्य गठन के बाद से अब तक संचालक रहे। उनके नाम 20 साल संचालक के पद पर रहने का रिकॉर्ड कायम हो गया है। आयुष संचालनालय के अधीन आयुर्वेद, होम्योपैथी, और योग-नेचुरोपैथी चिकित्सा-शिक्षा आते हैं। बतौर संचालक डॉ. बदेशा के नाम पर कोई खास उपलब्धि नहीं रही। बावजूद वे पद पर बने रहे।
राज्य बनने के बाद कई नए मेडिकल कॉलेज खुले, लेकिन एकमात्र नया सरकारी आयुर्वेद कॉलेज बिलासपुर में खुल पाया। इससे परे होम्योपैथी चिकित्सा शिक्षा तो पूरी तरह निजी हाथों में है। जबकि पिछले सीएम डॉ. रमन सिंह खुद आयुर्वेद चिकित्सक थे। बावजूद इसके 15 साल में आयुर्वेद-होम्योपैथी चिकित्सा के क्षेत्र में कोई खास प्रगति नहीं हो पाई।
आयुर्वेद के कई प्रतिष्ठित चिकित्सक रायपुर आयुर्वेदिक कॉलेज को गुजरात के जामनगर विश्वविद्यालय की तर्ज पर विश्वविद्यालय के रूप में अपग्रेड करने के पक्ष में थे। इस सिलसिले में भरपूर कोशिशें भी हुई, लेकिन आगे कुछ नहीं हो पाया। कई लोग इसके लिए डॉ. बदेशा को जिम्मेदार ठहराते हैं। कुछ जानकारों का मानना है कि राज्य बनने के पहले, और बाद में आयुर्वेद-होम्योपैथी, और नेचुरोपैथी चिकित्सा कभी भी किसी भी सरकार की प्राथमिकता में नहीं रहा। ऐसे में डॉ. बदेशा को अकेले जिम्मेदार ठहराया जाना सही नहीं है।
बंगलों का राज
सरकार बदलने के बाद भी मंत्री बंगला नहीं छोडऩे पर बृजमोहन अग्रवाल भाजपा के भीतर अपने विरोधियों के निशाने पर रहे हैं। दबे-छिपे ढंग से इसकी शिकायत पार्टी हाईकमान तक पहुंच चुकी है। बृजमोहन के बाद नंदकुमार साय का बंगला पार्टी नेताओं के आंखों की किरकिरी बन चुका है। साय किसी भी सरकारी पद पर नहीं हैं, लेकिन जेल रोड स्थित बहुत बड़ा सरकारी बंगला अभी भी उनके कब्जे में हैं। नंदकुमार साय, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे तब उन्हें यह बंगला आबंटित किया गया था।
बाद वे सांसद बने, और कुछ समय पद में नहीं रहने के बाद भी पिछली सरकार ने उन्हें बंगला खाली नहीं कराया। इसके बाद वे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष बन गए। यह पद केन्द्र सरकार के कैबिनेट मंत्री के समकक्ष है। बतौर अध्यक्ष उनका कार्यकाल खत्म हो गया, लेकिन उन्होंने बंगला नहीं छोड़ा है। मौजूद सरकार को भी उनके बंगले में कोई रूचि नहीं दिखती है। वैसे भी नंदकुमार साय अपनी पार्टी के कुछ नेताओं के खिलाफ मुखर रहते हैं, जिससे सरकार के लोग काफी खुश हैं। जाहिर है एक बंगले की वजह से सरकार इस दिग्गज नेता को अपने पाले से जाने नहीं देना चाहती है।
कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त प्रवक्ता !
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पद संभालते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ दिया था। उन्होंने करीब दो साल पहले पद छोडक़र एक व्यक्ति एक पद का संदेश दिया था, लेकिन लगता है कि प्रदेश के मुखिया के इस संदेश का कांग्रेसियों में कुछ असर नहीं पड़ा। प्रदेश कांग्रेस को देख लीजिए, जहां कई ऐसे नेता हैं, जिन्हें लालबत्ती मिल गई है, फिर भी संगठन के पद पर जमे हुए हैं। इसी तरह दूसरे लालबत्तीधारी नेता भी संगठन के दूसरे महत्वपूर्ण पदों पर हैं। इनमें से कई नेताओं को अब सरकार ने कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दे दिया है। ऐसे में संचार विभाग के दूसरे सदस्यों ने चुटकी लेना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि अब कांग्रेस में कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त पदाधिकारी मीडिया को बयान जारी करेंगे। फिलहाल यह बात हंसी-मजाक में हो रही है, लेकिन बात में तो पूरी गंभीरता दिखाई दे रही है। संभव है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा बन जाए।
गोबर का गुड गोबर
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार की फ्लैगशिप गोधन न्याय योजना पर अफसरों ने पलीता लगाना शुरू कर दिया है। बिलासपुर के तखतपुर ब्लॉक के मॉडल गौठान से गड़बड़ी की खबर निकलकर सामने आई है। इसके जांच के आदेश भी दे दिए गए हैं। जबकि सरकार ने गोबर खरीदी में 100 करोड़ के आंकड़े को पार कर लिया है और इसे जोर-शोर से प्रचारित किया जा रहा है। खरीदी के आंकड़ों को गौर किया जाए, तो प्रदेश भर के गौठानों में 50 लाख क्विंटल गोबर की उपलब्धता होनी चाहिए। इससे वर्मी कम्पोस्ट बनाने का काम भी चल रहा है, तो कुल गोबर का 40 फीसदी यानी करीब 20 लाख क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट होना चाहिए, जबकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 3 लाख क्विंटल से कुछ अधिक ही वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया गया है। ऐसे में कहा जा रहा है कि अभी तो एक जिले से गड़बड़ी की खबर आई है। अगर, बारीकी से जांच की जाए, तो संभव है कि प्रदेशभर से ऐसी और गड़बड़ी निकलकर सामने आ सकती है। इस चर्चा के बाद हाल में ही कलेक्टर बने कई साहब काफी परेशान दिख रहे हैं। उनकी चिंता है कि गुड गोबर करे कोई और परिणाम उनको भुगतना पड़ेगा, इसलिए कुछ ने तो गुपचुप जांच भी शुरू कर दी है, ताकि वे जवाब दे सकेंगे। संभव है कि जवाब देकर नए अधिकारी बच जाएं, लेकिन वाकई गड़बड़ी हुई होगी, तो सरकार को जवाब देना मुश्किल हो सकता है।