राजपथ - जनपथ
सरकारी बंगलों पर खर्च
सरकारी बंगलों में साज-सज्जा और मरम्मत के नाम हर साल लाखों-करोड़ों रुपए फूंक दिए जाते हैं। मंत्रियों के बंगलों में तो खर्च ज्यादा होता है। कुछ साल पहले विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल ने अपने सरकारी बंगले में 50 से अधिक एयर कंडीशनर लगाए, तो इसकी चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हुई। यह एक अलग बात है कि गौरीशंकर अग्रवाल उस नहीं थे, वे शैलेन्द्र नगर के अपने निजी मकान में ही रहते रहे. और स्पीकर हाउस सिर्फ उनके मिलने-जुलने के लिए काम आता रहा.
सरकारी बंगलों पर यह सब खर्चा लोक निर्माण विभाग करता है, और राज्य बनने के बाद से अब तक सरकारी बंगलों के सौंदर्यीकरण के नाम होने वाले भारी भरकम खर्चों को रोकने के लिए कोई ठोस पहल नहीं हुई है। अलबत्ता, टीएस सिंहदेव अपवाद जरूर हैं, जिन्होंने सरकारी बंगले में अतिरिक्त निर्माण का खर्च खुद वहन किया है।
पीडब्ल्यूडी के लोग जो ड्राइंग डिजाइन लेकर आए थे वह उन्हें पसंद नहीं था। लिहाजा, उन्होंने वापस भेज दिया, और अपनी पसंद से निर्माण करवाया। ये अलग बात है, उसी बंगले में राजेश मूणत भी रहते थे, जिन्होंने वहां सरकारी खर्च पर काफी काम कराया था। पर सिंहदेव की बात अलग है, यह भी है कि हर किसी को विरासत में इतनी दौलत तो मिलती नहीं है ।
मैनेज करने के लिए
एक निर्माण विभाग में इंजीनियरों की सीनियारिटी को लेकर काफी किच-किच हो रही है। दैनिक वेतन भोगी से नियमित हुए सब इंजीनियरों ने एकजुट होकर सीनियारिटी के नए सिरे से निर्धारण के लिए दबाव बनाया है।
हाईकोर्ट ने इस मसले पर सरकार को कमेटी बनाकर याचिकाकर्ता सब इंजीनियरों के प्रकरणों के लिए भी कह दिया है। पेंच इसमें यह है कि ये सब इंजीनियर अपने दैनिक वेतन भोगी के रूप में सेवा अवधि को भी शामिल कर सीनियारिटी का निर्धारण करने पर जोर दे रहे हैं।
अगर ऐसा होता है तो उन इंजीनियरों को नुकसान हो सकता है जो परीक्षा देकर भर्ती हुए थे, और वर्तमान में दैवेभो से नियमित हुए सब इंजीनियरों से ऊपर हैं। सुनते हैं कि हर हाल में सीनियारिटी पाने लिए दैवेभो से नियमित हुए सब इंजीनियरों ने कमेटी को मैनेज करने के लिए डेढ़ करोड़ एकत्र भी कर लिए हैं।
इनके लिए सुविधाजनक स्थिति यह है कि कमेटी में दागी-बागी टाइप लोग ही हैं, जो खुद अलग-अलग तरह की जांच से घिरे हैं। अब कमेटी के फैसले का इंतजार हो रहा है। फैसला चाहे जो भी हो विभाग में गदर मचना तय है।
सांसद-विधायक निधि रुकने की पीड़ा
कोविड वैक्सीन की खरीदी और इस महामारी से निपटने की दूसरी व्यवस्था के लिये विधायक निधि रोकी गई। भाजपा नेता इस फैसले का पहले ही विरोध रहे थे। अब इसे बहाल करने की मांग उन्होंने फिर से इस आधार पर उठाई है कि केन्द्र सरकार ने सबको टीका मुफ्त लगाने की जिम्मेदारी ले ली है। अब राज्य को इस पर खर्च करना ही नहीं पड़ेगा। इधर कांग्रेस का जवाब है कि सांसद निधि को भी तो केन्द्र ने रोक रखा है। जब कोविड से निपटने के लिये पेट्रोल-डीजल और तमाम चीजें महंगी कर दी गई तो सांसदों को उनका पैसा क्षेत्र में खर्च करने के लिये जारी क्यों नहीं किया जाता?
सांसद हों या विधायक, दोनों के पास जो निधि होती है वह बड़े काम की है। वे इस राशि का बंटवारा बिना प्रशासनिक हस्तक्षेप के कर सकते हैं। कार्यकर्ताओं को वे इसी बहाने खुश भी कर पाते हैं। ये अलग बात है कि इसका कितना सदुपयोग होता है। लेकिन अब ये निधि ही नहीं है तो बंगलों की रौनक भी फीकी पड़ गई है। मांगने वाले पहुंच ही नहीं रहे। पीड़ा तो नेता कार्यकर्ता सबको है पर कैसे कहें, अपनी-अपनी पार्टी के अनुशासन से बंधे हैं।
वैक्सीन फ्री में कितनों को लगेगा?
केन्द्र सरकार द्वारा वैक्सीनेशन की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लिये जाने के बावजूद सबको फ्री वैक्सीन मिल पाना आसान नहीं है। निजी अस्पतालों के लिये 25 फीसदी कोटा तय किये जाने का मतलब और क्या हो सकता है? वैक्सीन की आपूर्ति में जो कमी बनी हुई है वह तुरंत दूर भी नहीं होने वाली है। शायद, हर चौथे व्यक्ति को वैक्सीन पर रूपये खर्च करने पड़ेंगे। जो लोग सरकारी आपूर्ति की प्रतीक्षा करने के लिये तैयार नहीं होंगे, उन्हें भले ही खर्च करना पड़े, सक्षम होंगे तो निजी अस्पतालों का रुख करेंगे।
केन्द्र सरकार ने यह भी निर्णय लिया है जो राज्य वैक्सीन बर्बाद करेंगे उनकी आपूर्ति में कटौती की जायेगी। हाल ही में केन्द्र ने कहा था कि छत्तीसगढ़ ने 30.2 प्रतिशत टीके खराब कर दिये। इस आरोप को छत्तीसगढ़ सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया है। राज्य सरकार कहती है कि हमने सिर्फ 0.79 प्रतिशत टीके बर्बाद किये जो राष्ट्रीय औसत से कम है। लेकिन केन्द्र ने राज्य के इस बात का कोई जवाब नहीं दिया है। यदि केन्द्र सरकार गणना के अपने तरीके पर कायम रहती है तो निश्चित रूप से राज्य को कम वैक्सीन मिलेंगे। इसका लाभ भी निजी अस्पतालों को ही होगा।
वैक्सीन लगवाने वाले से शादी
सोशल मीडिया पर फेक पोस्ट से हर बार नुकसान नहीं होता, कई बार मजे लेने के लिये भी डाल दिये जाते हैं। किसी अंग्रेजी अखबार के विज्ञापन की तरह दिखाई दे रही एक क्लिप ट्विटर और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खूब चल रही है। इसमें एक युवती वैवाहिक विज्ञापन में कह रही हैं कि उसे ऐसे लडक़े ही शादी करनी है जिसने कोविशील्ड वैक्सीन के दोनों डोज लगवा लिये हों। कई न्यूज पोर्टल और अखबारों की वेबसाइट में बाद में बताया गया कि ये कतरन फर्जी है। पर लोगों ने इसे एक अच्छा कदम बताते हुए शेयर भी कर दिया। जीनियस माने जाने वाले कांग्रेस नेता शशि थरूर को तो 15 हजार से ज्यादा लाइक मिल चुके। पर लोग चुटकी भी ले रहे हैं, जैसे एक ने उनकी पोस्ट की प्रतिक्रिया में कहा है- यू स्टिल सर्चिंग मेट्रोमोनियल पेजेस? ( आप अब भी वैवाहिक पेज खोज रहे हैं?)