राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : अति गरीबों के मोबाइल नंबर
02-May-2021 5:39 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : अति गरीबों के मोबाइल नंबर

अति गरीबों के मोबाइल नंबर

कोरोना वैक्सीन लगाने के तीसरे चरण की शुरुआत शुरुआत अंत्योदय राशन कार्डधारक अति गरीब परिवारों से की गई है। अभियान शुरू करने से पहले मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से कहा था कि जिस श्रेणी के लोगों के लिए यह टीका अभियान शुरू किया जा रहा है उनके पास मोबाइल फोन हो यह जरूरी नहीं है। इसलिए उनसे पीला कार्ड अंत्योदय वाला मांगें और उसी में वैक्सीनेशन का रिकॉर्ड दर्ज कर लें। जब पूरे प्रदेश में सभी का वैक्सीनेशन शुरू होगा तब इन सबका ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन भी कर लिया जाए। इसके बावजूद समन्वय की कमी देखने को मिली। विभिन्न जिलो में जारी की गई सूचना में राशन कार्ड लाने तो कहा ही गया, साथ ही मोबाइल फोन नंबर भी देने कहा जा रहा है। पता नहीं किस स्तर पर गड़बड़ी हुई कि सीएम के ध्यान दिलाने के बावजूद अधिकारियों ने मान लिया कि प्रत्येक अंत्योदय कार्डधारक के पास मोबाइल फोन हो सकता है। इनका कहना था कि डेटा एंट्री के लिए मोबाइल फोन नंबर का होना जरूरी है। कल शाम आते-आते स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव डॉ आलोक शुक्ला ने सभी कलेक्टरों कोएक नया संशोधित पत्र जारी किया है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि अभी कोविन पोर्टल पर इस टीकाकरण का रजिस्ट्रेशन नहीं होगा इसलिए डाटा रजिस्टर में दर्ज किया जाए। इतनी बात तो आदेश में साफ कर दी गई लेकिन जो अति गरीब मोबाइल फोन नहीं रखते उनका क्या होगा, इस आदेश में भी स्पष्ट नहीं है।

विद्युत शवदाह गृह में गबन

इन दिनों लोग जितनी जरूरत अस्पतालों और उ में सुविधाओं की जरूरत महसूस कर रहे हैं उतनी ही शवदाह के ठिकाने की भी। कोरोना महामारी से हर रोज हो रही दर्जनों मौतों के कारण शमशान घरों में भी लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। इन परिस्थितियों में अधिकारियों की तो बन आई है। बिना औपचारिकताएं पूरी किए हुए उन्हें कोरोना से संबंधित आपात सुविधाएं शुरू करने और फंड खर्च करने का मौका हाथ लगा है। सारा ध्यान जनप्रतिनिधियों का भी इस समय और लोगों को मौत के मुंह से बचाने में लगा हुआ है इसलिए किस तरह से खर्च किए जा रहे हैं, इस पर ज्यादा गौर नहीं किया जा रहा है।

इसी दौरान चिरमिरी नगर पालिका की मेयर का एक दर्द सामने आया है। यहां पर नगर निगम के अधिकारियों ने मंजूर की गई पूरी राशि का भुगतान ठेकेदारों को कर दिया लेकिन अब तक विद्युत शवदाह गृह शुरू नहीं हो पाया। इसकी शिकायत उन्हें कलेक्टर से करनी पड़ी है। नगर निगम की मुखिया होते हुए भी वह कार्रवाई नहीं कर पा रही हैं। जनप्रतिनिधियों पर अधिकारी किस तरह से हावी रहते हैं यह इसकी बानगी है। महामारी से निपटने के लिए हर जिले के लिये डीएमएफ, सीएसआर, विधायक निधि, सीएम रिलीफ फंड आदि से अच्छी खासी रकम जारी हो रही है। जो बजट बनाया जा रहा है बिना किसी क्रास चेक के मंजूर किया जा रहा है। जब कभी महामारी का प्रकोप कम होगा तब यदि हिसाब लगाया जाए की किस तरह से रकम खर्च की गई तब गड़बडिय़ों के कई पिटारे खुलेंगे और ठीक तरह से जांच हुई तो बहुत से लोग नपेंगे।

पैंसेजर ट्रेनों के थमने की शुरूआत

रेलवे ने खाली ट्रेनों को दौड़ाने की जगह पर उन्हें बंद करने की शुरुआत कर दी है। पहला झटका लगा है डोंगरगढ़ से बिलासपुर पैसेंजर को स्थगित करने से। यह ठीक है कि लॉकडाउन के कारण यात्रियों की संख्या घट गई है जिसके चलते ट्रेनों को चलाते रहने के बारे में रेलवे विचार करे। पर यह एकमात्र वजह नहीं है। काफी ना नुकर करने के बाद रेलवे ने पैसेंजर और लोकल ट्रेनों को चलाने की शुरुआत फरवरी माह से की थी। उस समय कोरोना महामारी का प्रकोप इस गति से पैर पसारेगा इसका अंदाजा न रेलवे को था ना यात्रियों को। गौर करने की बात यह भी है कि कोरोना महामारी के बाद नुकसान की भरपाई के लिए रेलवे ने अव्यवाहारिक तरीके से किरायों में वृद्धि की और रियायतें बंद की। बीते साल मार्च से ही मासिक सीजन टिकट, सीनियर सिटीजन टिकट सहित कई श्रेणियों में दी जाने वाली छूट खत्म कर दी गई। जब सितम्बर-अक्टूबर में दोबारा फेरे शुरू किये गये तो त्योहारों के नाम से स्पेशल ट्रेन का दर्जा देते हुए किराया लगभग सभी ट्रेनों का बढ़ा दिया गया। त्योहारों का सीजन निकलता गया लेकिन स्पेशल ट्रेनों का बढ़ा हुआ किराया अब तक लागू है। जो पैसेंजर ट्रेनें चालू की गईं उनमें भी स्पेशल के नाम पर एक्सप्रेस का ही किराया लिया जा रहा है। खर्च घटाने के नाम पर ट्रेनों में साफ-सफाई की व्यवस्था भी नहीं की जा रही है। कई ट्रेन जो पहले पैंट्री कार के साथ चलती थी, उनमें अब खाना नहीं मिलता है। स्टेशनों में कई फूड स्टॉल वालों ने अपने गिरे हुए शटर नहीं उठाए हैं क्योंकि रेलवे ने उनकी लाइसेंस फीस के बारे में कोई फैसला नहीं लिया है। इन सब उपायों पर रेलवे ने बार-बार यह सफाई दी है कि वह लोगों को अनावश्यक सफर से बचाना चाहती है ताकि कोरोना का संक्रमण ना फैले और लोग बीमार ना हो। रेलवे की मंशा पूरी हो रही है। यात्री इस बात पर अमल कर रहे हैं।

 आस्था को चोट न पहुंचे

कोरोना से होने वाली मौतों के सरकारी आंकड़ों पर लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है। अनेक रिपोर्टरों ने अलग-अलग शहरों में तस्वीरों के साथ बता दिया कि स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में जितनी मौतों का जिक्र है, उससे कहीं ज्यादा लाशें तो उन्होंने एक ही श्मशान गृह में जलते हुए देखा है। यूपी के अधिकारी इस तरह की रिपोर्ट को लेकर सचेत हैं। बात वहां के मुख्यमंत्री के इलाके की हो तब तो यह सतर्कता और बढ़ जाती है। इसीलिये गोरखपुर में नगर निगम ने श्मशान गृहों में फोटोग्रॉफी बैन कर दी है। हवाला हिन्दू रीति रिवाजों का दिया गया है। इसे दंडनीय अपराध भी बताया है पर किस एक्ट में कितनी सजा मिलेगी इसका जिक्र नहीं है।

लॉकडाउन से राहत मिले तो कैसे?

प्रदेश के अधिकांश शहरों में बीते 20-25 दिन से लॉकडाउन है। बीते साल के लॉकडाउन में कुछ रोमांच भी था, पर इस बार नीरस लग रहा है। व्यापार-व्यवसाय बंद होने के एक झटके से जैसे-तैसे संभल ही रहे थे कि फिर दूसरे लॉकडाउन से वे टूटा सा महसूस कर रहे हैं। कई छोटी नौकरी, व्यवसाय करने वालों की मार्मिक कहानियां सामने आ रही हैं। उन्हें घर खर्च चलाने के लिये पत्नी के गहने गिरवी रखने या बेचने, बच्चों की एफडी तुड़वाने की स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। किसी से कर्ज भी नहीं मिल रहा है। उद्योगपतियों ने तो मुख्यमंत्री से हुई चर्चा में उन्हें सलाह दी है कि अब मई के पहले सप्ताह में समाप्त होने वाले लॉकडाउन को आगे नहीं बढ़ाया जाये। दूसरी ओर संक्रमण के मामले में मध्यप्रदेश से ज्यादा और महाराष्ट्र से कुछ कम ही खराब छत्तीसगढ़ की हालत है। रोजाना मौतों और नये केस का आंकड़ा जिस तेजी से बढ़ रहा है क्या बाजार, दफ्तर खोल देने जैसा जोखिम उठाया जा सकेगा?

यह लोग मान रहे हैं कि पहले दौर के कोरोना के बाद गाइडलाइन का उल्लंघन न केवल आम लोगों ने बल्कि सरकार के नुमाइंदों ने भी किया था, जिसके चलते दूसरी लहर का प्रहार कुछ ज्यादा तेज है। जैसे ही लॉकडाउन उठाया जाता है लोग सोचते हैं कि जब सब निकल रहे हैं तो हम क्यों रुके। जब सब भीड़ में जा रहे हैं तो हम क्यों न जायें?

ऐसा तरीका तो निकाला जाना चाहिये कि लोग अपनी आजीविका के लिये घरों से तो निकलें पर पूरे समय कोरोना प्रोटोकॉल पर कड़ाई से अमल करें। जो पालन न करे, उन्हें रोकने-टोकने का काम भी पब्लिक ही संभाले। मगर क्या ऐसा मुमकिन है?

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