राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : ऑटो चलाते पीएचडी हासिल की थी
27-Apr-2021 6:06 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : ऑटो चलाते पीएचडी हासिल की थी

ऑटो चलाते पीएचडी हासिल की थी

कोरोना से जंग लड़ते हुए छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग के सहायक संचालक  डॉ. छेदीलाल तिवारी भी अब हमारे बीच नहीं रहे। छेदी लाल जी को जो लोग जानते हैं उनके लिए यह बहुत दुखद खबर है। उन्होंने काफी संघर्ष के बाद विभाग में एक मुकाम हासिल किया था। शुरू में वे उसी विभाग में एक चतुर्थ वर्ग कर्मचारी थे। विभाग में वे एक ड्रायवर बनकर कभी जीप, तो कभी आटो चलाते थे। दिनभर काम करने के बाद वे रोज शाम को आटो चलाकर अख़बारों को प्रेस नोट भी बांटा करते थे। उन दिनों आज की तरह इंटरनेट नहीं था। शाम होते ही सभी प्रेस वाले छेदीलाल का इंतजार करते थे। छेदीलाल खुद आटो चलाकर सभी प्रेस जाते और प्रेस नोट बांटा करते थे। प्रेस नोट देकर सभी का वे मुस्कुराकर अभिवादन भी करते थे। इतने विनम्र कि देरी होने पर कुछ प्रेसवाले उन्हें डांट भी दिया करते थे, लेकिन वे किसी को कोई जवाब नहीं देते और मुस्कुराकर आगे बढ़ जाते थे। छेदीलाल देर रात तक विभाग में काम करते और घर आकर पढ़ाई भी करते थे। छेदीलाल ने अभाव को कभी मुश्किल नहीं माना। एक दिन अचानक लोगों को पता चला कि छेदीलाल ने पीएचडी कर ली है। तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने डॉ. छेदीलाल जी को भोपाल बुलाकर उनका सार्वजनिक रूप से सम्मान किया। विभाग में उन्हें चतुर्थ वर्ग कर्मचारी से अधिकारी बना दिया। अपने अच्छे और मिलनसार व्यवहार के कारण वे सबके प्रिय थे। बीती रात कोरोना उन्हें ले गया। (गोकुल सोनी की फेसबुक पोस्ट)

घर पर मास्क लगाने की सलाह

नीति आयोग ने यह कहकर एक बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है कि घरों में मास्क पहनना शुरू किया जाये। कोरोना संक्रमण से बचने के लिये लोगों को बाहर निकलने से मना करते हुए लोगों को दार्शनिक तरीके से अब तक समझाया जाता रहा है कि घरों में रहिये, परिवार के साथ समय बितायें। जिन लोगों से बात करने का, साथ बैठकर टीवी देखने, खाना-खाने, हाल-चाल जानने, बताने का मौका नहीं मिल रहा था, अब घर में रहकर वह सब कीजिये। आंकड़े हैं कि इस बार पूरे परिवार को कोरोना संक्रमण का सिलसिला चल पड़ा है। युवा और बच्चे भी नहीं बच पा रहे हैं। कई परिवारों में एक से अधिक सदस्यों की मौत भी हो गई। ऐसा इसलिये भी हुआ कि कोई एक सदस्य किसी काम से घर से बाहर निकला और अपने साथ वायरस चिपका लाया। वायरस घर के दूसरे सदस्यों पर भी वार कर गया। इसलिये, घर पर मास्क पहनने की बात अटपटी जरूर लग रही हो, पर ऐसी स्थिति में जब कोरोना मरीजों को बेहतर इलाज मिल पाना युद्ध जीतने की तरह हो, सुझाव पर विचार तो करना ही पड़ेगा।

एमपी पर सवाल तो बनता है..

वैक्सीन की कीमत राज्यों से अधिक लिये जाने के विरोध में कांग्रेस नेताओं ने कल भाजपा के सांसदों, विधायकों को गुलाब फूल दिया और केन्द्र सरकार से दाम कम कराने की सिफारिश की। इस तरह के फ्लावर पॉलिटिक्स से कोई फ्लेवर निकलेगा इसकी उम्मीद तो कम है पर पक्ष-विपक्ष की लड़ाई में कई बातों की तरफ आम लोगों का ध्यान जरूर खिंच जाता है। गुलाब सौंपने पर भाजपा की तरफ से आई प्रतिक्रियाओं में एक यह भी है कि राज्यसभा सदस्य केटीएस तुलसी जी क्या कर रहे हैं, उनका पता बतायें। वे छत्तीसगढ़ से चुनकर गये हैं। वे गुलाब लेकर प्रधानमंत्री के पास जाते और वैक्सीन तथा अन्य संसाधन उपलब्ध कराने के लिये धन्यवाद देते।

वैसे आज की बात नहीं, पहले भी देखा गया है कि ऐसे राज्यसभा सदस्य जो संख्या बल के आधार पर दिल्ली में शीर्ष नेताओं के बीच पकड़ रखने के कारण चुने जाते हैं उनका चुने गये राज्य की समस्याओं, जरूरतों, मांगों की तरफ कोई ध्यान नहीं रहता। कम से कम वे 6 साल उस राज्य के साथ अपने को जोड़ सकते हैं। पर, शायद वे सोचते हैं कि ऐसा करने की जरूरत क्या है, कौन सा आगे चलकर यहां से चुनाव लडऩा है, आलोचना या शिकायत हो तो होती रहे।

दिल्ली को मिला छत्तीसगढ़ से ऑक्सीजन

दिल्ली की टूटती सांसों को थामने में छत्तीसगढ़ ने भी अपनी जिम्मेदारी निभाई। आज सुबह 64.55 टन ऑक्सीजन रेलवे के रास्ते से दिल्ली पहुंच गया। इसे कल सुबह रायगढ़ से रवाना किया गया था। दिल्ली देश की राजधानी है। कोरोना पीडि़तों की हाहाकार सब न्यूज चैनल, सोशल मीडिया और अखबारों में है। हालांकि छत्तीसगढ़ की स्थिति भी अच्छी नहीं है। ऑक्सीजन की कमी नहीं होते हुए भी यहां मरीजों की मौतें थम नहीं रही हैं। इसके दूसरे कई कारण है। कवर्धा का ही लें, यह केबिनेट मंत्री मोहम्मद अकबर और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का क्षेत्र है। यहां सात वेंटिलेटर हैं, पर एक भी काम नहीं कर रहा। राजधानी और एक दो बड़े शहरों को छोड़ दें तो अन्य जिलों, कस्बों में भी यही हाल है। कई जगह वेंटिलेटर बिगड़े हैं तो कई अस्पतालों में इन्हें ऑपरेट करने के लिये दक्ष लोगों की कमी है। ऑक्सीजन तो हैं, पर ऑक्सीजन बेड तैयार नहीं हैं। ऑक्सीजन की फिलिंग के लिये सिलेंडर्स की कमी से भी कई शहर जूझ रहे हैं।

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