राजपथ - जनपथ
टीकाकरण की रफ्तार इतनी घटी क्यों?
राज्य में जिस तेजी से कोरोना का संक्रमण बढ़ता जा रहा है, उसी रफ्तार से वैक्सीनेशन धीमा पड़ता जा रहा है। अप्रैल की शुरुआत में जहां दो लाख से ज्यादा लोगों को टीके लगाये जा रहे थे, अब वह 50-50 हजार के बीच सिमटकर चुका है। टीकाकरण में लगे डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना के नये स्ट्रेन के बारे में लोगों के मन में यह बात घर कर रही है कि बाहर निकलने पर उन्हें संक्रमण घेर लेगा। महामारी का असर कुछ कम हो तो टीका लगवाने निकलें। आंकड़ों के साथ सरकार द्वारा दिये गये स्पष्टीकरण के बावजूद बहुत से यह भी सोच रहे हैं कि टीके लगवाने के बाद नहीं होने हो तब भी कोरोना न हो जाये। अप्रैल के पहले हफ्ते में लोगों ने यह भी देखा कि हर दिन नये संक्रमित लोगों और मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है। अब एक मई से 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को टीका लगाने का अभियान शुरू हो रहा है। इसके लिये बड़ी संख्या में नये वैक्सीनेशन सेंटर तो खोलने ही पड़ेंगे। वरना मौजूदा केन्द्रों में फिर बड़ी भीड़ जमा होगी और फिर टीका लगवाने से लोग कतरायेंगे।
उद्योगों में ताले लगने का असर?
यह बात साफ है कि छत्तीसगढ़ में अस्पतालों को सप्लाई करने के लिये ऑक्सीजन की कमी नहीं है। दिक्कत ऑक्सीजन बेड और सिलेंडर की है। छत्तीसगढ़ के सरप्लस ऑक्सीजन की महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में आपूर्ति भी की जाती है। पर केन्द्र ने निर्देश दिया है कि उद्योगों को दिया जाने वाला ऑक्सीजन तुरंत बंद कर दिया जाये। ऑक्सीजन की सबसे ज्यादा औद्योगिक खपत स्टील इंडस्ट्री में होती है। छत्तीसगढ़ इसका हब है। राजस्व का बड़ा हिस्सा इन्हीं उद्योगों से मिलता है। बड़ी संख्या में, अनुमानित करीब 4 लाख लोगों को इससे रोजगार भी मिला हुआ है। इससे किसी को इन्कार नहीं है कि अस्पतालों को सबसे पहले ऑक्सीजन मिलनी चाहिये, लेकिन यदि ऐसा उद्योगों को पूरी तरह बंद किये बिना क्यों नही किया जा सकता? सीएम ने प्रधानमंत्री के साथ हुई बैठक में ऐसा कहा भी था कि एक सिरे से सारे ऑक्सीजन निर्भर उद्योगों को बंद न किया जाये। आगे क्या रास्ता निकलता है देखना होगा।
100 शिक्षकों की मौत!
शिक्षकों का सेटअप किसी भी राज्य में सबसे बड़ा होता है। इसलिये जब भी व्यापक स्तर पर मैदानी अमले की जरूरत होती है तो सबसे पहले उनको ही ड्यूटी लगाई जाती है। जनगणना, आर्थिक सर्वेक्षण, मतदान जैसे कार्यों में तो उनकी ड्यूटी हर बार लगती ही है। इस बार अभूतपूर्व कोरोना संकट में भी उन पर बड़ी-बड़ी जिम्मेदारी डाली गई है। अस्पतालों में आने वाले मरीजों के रजिस्ट्रेशन से लेकर श्मशान घाट में जलाये जाने वाले शवों की गिनती तक कई काम उन्हें सौंपे जा रहे हैं। इधर, शिक्षक संगठनों का दावा है कि उनसे जोखिम भरा काम लिया जा रहा है पर सुरक्षा के कोई साधन नहीं दिये गये हैं। इसके चलते अब तक प्रदेश के 100 से ज्यादा शिक्षकों की मौत हो चुकी है। अब शिक्षकों के लिये 50 लाख रुपये का बीमा और आश्रितों के लिये नौकरी की मांग की जा रही है। यदि मौतों का आंकड़ा सही है तो बेहद चिंताजनक है। ड्यूटी करने के दौरान इतनी सुविधा तो मिलनी ही चाहिये कि उन्हें मौत के मुंह में न जाना पड़े।