राजपथ - जनपथ
छत्तीसगढ़ के कन्धों पे चढक़र?
क्या छत्तीसगढिय़ों के बूते पर असम में कांग्रेस की सरकार बन पाएगी? यह सवाल राजनीतिक हल्कों में चर्चा का विषय है। दरअसल, असम की 126 सीटों में से 47 सीटों पर छत्तीसगढ़ मूल के लोगों का अच्छा प्रभाव है, और कई सीटों पर तो निर्णायक भूमिका में हैं। छत्तीसगढ़ के लोगों को साधने के लिए कांग्रेस के करीब 6 सौ नेता-कार्यकर्ता वहां डेरा डाले हुए हैं।
कांग्रेस हाईकमान ने सीएम भूपेश बघेल को वहां प्रचार की जिम्मेदारी दी थी, और संसदीय सचिव विकास उपाध्याय को असम कांग्रेस का प्रभारी सचिव बनाया था, तब छत्तीसगढ़ी नेताओं के प्रभाव को लेकर ज्यादा कोई चर्चा नहीं हो रही थी। अब जब पहले चरण का मतदान 27 तारीख को होने वाला है, पार्टी यहां कांटे की टक्कर दे रही है।
असम में छत्तीसगढ़ के नेताओं को काफी महत्व मिल रहा है। कांग्रेस के उत्साही नेताओं का मानना है कि छत्तीसगढ़ के लोग खूब साथ निभा रहे हैं, और कोई ज्यादा उठा पटक नहीं हुआ, तो असम में कांग्रेस की सरकार बनना तय है। कांग्रेस को ज्यादा डर अपने ही पुराने कांग्रेस नेता हेमंत बिस्वा शर्मा से है, जो कि असम सरकार में नंबर-2 की हैसियत रखते हैं। हेमंत पार्टी में अंदरूनी विवाद के चलते भाजपा में चले गए थे, और उन्होंने न सिर्फ विधायकों को तोड़ा बल्कि ब्लॉक स्तर तक के नेताओं को भाजपा में ले गए।
चुनाव के पहले तक मुकाबला भाजपा के पक्ष में एकतरफा दिख रहा था, लेकिन छत्तीसगढ़ कांग्रेस नेताओं की मेहनत से पार्टी खड़ी हो गई है, और हर सीट पर कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। कांग्रेस नेताओं का यह भी मानना है कि यदि पूर्ण बहुमत नहीं मिला, तो सरकार बनाने में दिक्कत हो सकती है। वजह यह है कि कांग्रेस के कई नेता अभी भी हेमंत बिस्वा शर्मा से याराना रखते हैं। कुछ भी हो, छत्तीसगढ़ी नेताओं ने दम तो दिखाया है। देखना है चुनाव नतीजे अनुकूल आते हैं, या नहीं।
मिलिये भूपेश बघेल के नये दोस्त से..
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने असम चुनाव प्रचार के दौरान एक नन्हें से बालक की तस्वीर सोशल मीडिया पर पेश की है, जिसकी पूरी वेशभूषा कांग्रेस के चुनाव चिन्ह के प्रतीकों से भरी हुई है। उन्होंने लिखा है असम में आज एक नया दोस्त बना, उससे नोट्स लिये कि चुनाव अभियान के दौरान कैसे कपड़े पहनने चाहिये। इस बालक ने आश्वस्त किया कि देश का भविष्य सुरक्षित हाथों में है। देश का भविष्य कांग्रेस है।
निजी स्कूलों की नाफरमानी
कोविड महामारी ने दुबारा आकर हालात इस तरह से बदले कि बच्चे स्कूलों में पढ़ाई, मौज-मस्ती और एक दूसरे के ज्ञान के आदान-प्रदान से वंचित रह गये और परीक्षायें शारीरिक मौजूदगी के साथ नहीं कर पाये। निजी स्कूलों की चिंता यह है कि फीस की वसूली कैसे हो। वे दावा कर रहे हैं कि शिक्षकों, स्टाफ को वेतन देने, स्कूलों की साफ-सफाई, बिजली, पानी, किराया देने के लिये उन्हें फीस वसूल करना जरूरी है। कहा कि जब तक फीस पूरी नहीं देंगे, उन्हें न तो पास किया जायेगा न ही ट्रांसफर सर्टिफिकेट दिया जायेगा।
पानी सिर से ऊपर जा चुका तब छत्तीसगढ़ सरकार जागी है। स्कूल शिक्षा मंत्री ने निजी स्कूलों को चेतावनी दे दी है कि जो स्कूल ट्रांसफर सर्टिफिकेट देने से मना करेंगे उन्हें सरकारी स्कूलों में इस दस्तावेज के बिना भी प्रवेश दे देंगे। और जहां तक उत्तीर्ण करने की बात है,इसका तो जनरल प्रमोशन होने के कारण कोई मतलब ही नहीं है।
निजी स्कूलों ने हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद कितने स्टाफ बाहर किये, जिन्हें अब तक रखा है उनकी तनख्वाह में कितनी कटौती की गई है उस पर भी सर्वे सरकार करा ले तो कलई और खुल जाने वाली है।