राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : दिल्ली में गाड़ी लगे तो बता दें...
11-Mar-2021 5:44 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : दिल्ली में गाड़ी लगे तो बता दें...

दिल्ली में गाड़ी लगे तो बता दें...

केन्द्र सरकार ने कल आईपीएस अफसरों की एक लिस्ट निकाली जिसमें 1996 से 2001 तक के 22 अफसरों को केन्द्र सरकार के स्तर पर आईजी के रूप में इम्पैनल  किया गया है। हाल के बरसों में आईपीएस लोगों का इम्पैनलमेंट कम हो गया है क्योंकि केन्द्र सरकार ने इसके लिए कड़े पैमाने तय किए हैं। प्रदेशों में तो अफसर बरसों पहले आईजी बन जाते हैं, लेकिन केन्द्र सरकार में आईजी का दर्जा मिलना मुश्किल होता है, और इसके लिए केन्द्र सरकार देश भर से कई तबकों से राय लेती है कि अफसर इस लायक है कि नहीं? यह भी पता लगाया जाता है कि अफसर पर भ्रष्टाचार के कोई आरोप तो नहीं है? यह पूछताछ रिटायर हो चुके अफसरों से लेकर मीडिया तक के लोगों से की जाती है, और इसे केन्द्र सरकार की जुबान में 360 डिग्री कहा जाता है, 360 डिग्री का मतलब चारों तरफ से परख लेना।

कल की लिस्ट में छत्तीसगढ़ के एक आईजी, आनंद छाबड़ा का नाम शामिल है। वे 2001 बैच के आईपीएस हैं, और रायपुर के आईजी होने के साथ-साथ प्रदेश के आईजी इंटेलीजेंस भी हैं। अब केन्द्र के साथ कड़े टकराव वाले भूपेश बघेल के खुफिया चीफ के बारे में केन्द्र सरकार ने खासा ही पता लगाया होगा, तभी उन्हें इम्पैनल किया होगा। दिक्कत यह है कि केन्द्र सरकार में इम्पैनल होने को आम लोग यह मान बैठते हैं कि यह केन्द्र सरकार में पोस्टिंग है। आनंद छाबड़ा को आज सुबह से केन्द्र सरकार में जाने के लिए बधाईयां मिल रही हैं, और लोग शिष्टाचार में कह भी रहे हैं कि दिल्ली में गाड़ी की जरूरत हो, या मकान मिलने तक गेस्ट हाऊस की जरूरत हो तो बेझिझक याद कर लें। इसके पहले जब कुछ लोग केन्द्र में इम्पैनल हुए थे, तब उनके पास एक-दो ऐसे शुभचिंतक पहुंच गए थे जो कि रायपुर में छूटने वाले फर्नीचर को खरीदने का प्रस्ताव लेकर गए थे। आम लोगों की समझ के लिए यह बता देना जरूरी है कि केन्द्र में इम्पैनल होना वहां जाने की पात्रता भर देता है, उसके बाद राज्य सरकार की मंजूरी, केन्द्र सरकार की मंजूरी, और भी किलो भर औपचारिकताएं बाकी रहती हैं। राज्यों में कई ऐसे बड़े अफसर रहते हैं जो इम्पैनल हो जाने के बाद भी केन्द्र में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते क्योंकि उतने बड़े सागर में जाकर छोटी मछली बनने का हौसला सबका नहीें रहता।

राजनीतिक दल और वकील

भाजपा ने हाईकोर्ट में विधि विधायी इकाई गठित किया है। इसमें  आरएसएस और भाजपा की विचारधारा से जुड़े वकीलों को रखा है। इसके संयोजक यशवंत सिंह ठाकुर हैं, जो कि पिछली सरकार में एडिशनल एडवोकेट जनरल थे। प्रकोष्ठ में आशुतोष सिंह कछवाहा, और शरद मिश्रा भी हैं। कछवाहा भी एडिशनल एडवोकेट जनरल थे, तो शरद पिछली सरकार में सरकारी वकील थे। प्रकोष्ठ में तेजी से उभर रहे विवेक शर्मा को भी रखा गया है। विवेक शर्मा, पूर्व सांसद अभिषेक सिंह से लेकर निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता की पैरवी कर चुके हैं।

वैसे तो वर्तमान में भी कई सरकारी वकील सक्रिय राजनीति में रहे हैं। एडवोकेट जनरल सतीशचंद्र वर्मा, छत्तीसगढ़ समाज पार्टी से जुड़े रहे हैं, और वे धरसींवा से विधानसभा का चुनाव भी लड़े थे। पूर्व एडवोकेट जनरल कनक तिवारी, तो अविभाजित मप्र कांग्रेस कमेटी के महामंत्री रहे हैं। वे दिग्विजय सिंह सरकार में एमपी हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन भी रहे। इसी तरह सरकारी वकील केके शुक्ला भी कांग्रेस के विधि प्रकोष्ठ के पदाधिकारी रहे हैं। कुल मिलाकर जमीनी स्तर पर पार्टी के खिलाफ लड़ाई से परे कानूूनी लड़ाई के लिए अच्छे वकीलों को साथ रखना जरूरी है, और भाजपा के हाईकोर्ट में विधि विधायी संगठन को इसी नजरिए से देखा जा रहा है।

गोबर खरीदी योजना को मिलती तारीफें

लोकसभा की कृषि मामलों की स्थायी समिति ने छत्तीसगढ़ सरकार की गोबर खरीदी योजना की तारीफ करते हुए सुझाव दिया है कि पूरे देश में इस तरह की योजना लागू की जाये। इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी, रोजगार मिलेगा और जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा।

केन्द्र में भाजपा गठबंधन की सरकार है। उसकी ओर से की गई यह तारीफ पहली बार नहीं है। सितम्बर महीने में केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी इस योजना की प्रशंसा करते हुए ‘वेस्ट टू वेल्थ’ का अच्छा उदाहरण बताया था। मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के पशुपालन मंत्री प्रेम सिंह पटेल इस योजना की प्रशंसा कर चुके हैं और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पटेल ने भी इस तरह की योजना लाने की बात कही है। छत्तीसगढ़ में गौ सेवा से जुड़े राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पदाधिकारी तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलकर इस योजना की तारीफ कर चुके हैं।

इन तारीफों का महत्व इसलिये है कि योजना शुरू होने के बाद भाजपा के कुछ नेताओं ने इसको लेकर लगातार चुटकियां ली, कुछ तंज भी कसे। पर आज यह फैसला केन्द्र व अन्य राज्यों में उनकी पार्टियों के नेता पसंद कर रहे हैं। वैसे जब यूपीए सरकार थी और केन्द्र के मंत्री डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ आते थे तो, कभी माओवादियों से निपटने की रणनीति तो कभी राशन दुकान व्यवस्था की तारीफ कर दिया करते थे और यह राज्य सरकार के विरोध में खड़ी कांग्रेस को असहज लगता था।

अब गोबर खरीदी योजना पर कुछ न भी बोलते बने तो क्रियान्वयन पर निगरानी रखने, खामियों, गड़बडिय़ों की ओर ध्यान दिलाने की जिम्मेदारी तो विपक्ष बनती की ही बनती है।

अहम् क्यों चेम्बर का चुनाव?

छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कामर्स के चुनाव में धुआंधार प्रचार अभियान के बीच पहले चरण के मतदान की प्रक्रिया आज शुरू हो गई। मैदान पर उतरे पैनल जिस तरह की जोर आजमाइश कर रहे हैं, कांग्रेस और भाजपा के दिग्गज नेता अपने-अपने दावेदारों के समर्थन में मैदान में उतरे हैं, उसने खेल रोमांचक बना दिया है। दरअसल, 15 साल के शासनकाल में सत्तारूढ़ भाजपा की चेम्बर में अच्छी पकड़ रही और लगातार उनके समर्थक जीतते आये।

सशक्त सरकार वही है जिसकी केवल ब्यूरोक्रेट में ही अच्छी पकड़ नहीं, बल्कि उन सब संगठनों, संस्थाओं पर हो जो खेल, सामाजिक, व्यापारिक, राजनीतिक आदि सभी दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं।

राज्य में चेम्बर ऑफ कामर्स व्यापारियों का सबसे बड़ा संगठन है। इसमें 16 हजार से ज्यादा सदस्य हैं। वोटों के लिहाज से भी और पूरे छत्तीसगढ़ में फैले होने के कारण क्षेत्रफल के हिसाब से भी। आम मतदाताओं के बीच भी व्यापारियों की पैठ होती ही है। ऐसे में यदि कांग्रेस भाजपा नेता चुनाव अभियान में खुलकर सामने आये हैं तो अचरज नहीं होना चाहिये। भाजपा को अपनी पकड़ बनाये रखने की चिंता है तो कांग्रेस सोच रही है कि जब सरकार हमारी है, तो चेम्बर में हमारे लोग क्यों न हों?

पांडे कवासी की मौत का राज खुलेगा?

बस्तर में नक्सलियों से लोहा लेने के लिये पुलिस और सुरक्षा बल सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों, खेल, शिक्षा आदि से जुडक़र उनका भरोसा जीतने की कोशिश कर रहे हैं। पर संदिग्ध मौतों से उठने सवालों के कारण आपसी विश्वास में जुड़ता ही नहीं।

दंतेवाड़ा के गुड़से गांव की युवती पांडे कवासी की पुलिस हिरासत में मौत ने एक बार फिर अप्रिय स्थिति पैदा कर रही है। पुलिस कहती है कि अपनी सहेली के साथ उनके कैम्प में आ गई थी, जिस पर पुलिस ने पांच लाख का इनाम रखा था। यहां से वह जाना नहीं जाहती थी क्योंकि मां-बाप उसकी जबरन शादी कराना चाहते थे। पुलिस यह भी मानती है कि उसके नक्सली गतिविधियों में शामिल होने का कोई प्रमाण नहीं था। उसने गांव जाने पर खतरा बताया इसलिये, पुलिस के मुताबिक उसे सुरक्षा की दृष्टि से कैम्प में रखा गया था। पर वह एक तौलिये को फंदा बनाकर फांसी पर लटक गई। गांव के लोग, वहां की सरपंच और दूसरे जनप्रतिनिधि पुलिस की कहानी को सिरे से नकारते हुए, अलग किस्सा बताते हैं- उसे पुलिस एक अन्य महिला के साथ जबरन पकडक़र ले गई थी। पुलिस ने यह भी कहा है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसके फांसी लगने से मौत होने की पुष्टि हुई है। वैसे कलेक्टर ने इस मामले की दंडाधिकारी जांच का आदेश दिया है। अब जबकि यह मामला विधानसभा में भी उठा है, राष्ट्रीय मीडिया में भी लगातार आ रहा है।

पूरे मामले में कुछ तो ऐसा है जो छिपाया जा रहा है। अतीत में बस्तर पुलिस बेकसूरों को नक्सली बताकर सरेंडर कराती रही है, अनेक मौतों में पुष्टि नहीं हुई कि उसका नक्सली रिकॉर्ड रहा है। फिर वैसा ही खेल फिर शुरू हो तो नहीं गया?

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