राजपथ - जनपथ
दवा कम्पनी पर मेहरबानी के लिये जान से खिलवाड़?
सरकारी अस्पतालों में दवाओं की गुणवत्ता को लेकर कई बार सवाल उठते हैं पर मामले दब जाते हैं। खुलते हैं तो भी कार्रवाई में इतनी देर कर दी जाती है कि वे कम्पनी का कोई नुकसान नहीं होता, भले ही मरीजों की जान पर खतरा क्यों न हो। पेट दर्द और एसिडिटी की दवा एल्यूमिनियम हाईड्रोक्साइड सिरप मुंगेली, गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही और बिलासपुर जिले में अमरवती की कम्पनी ग्लेशियर ने अगस्त 2019 में करनी शुरू की थी। सरकारी निगम सीजीएमएससी के जरिये ही इस तरह की खरीदी होती है। डॉक्टरों और मरीजों की ओर से शिकायत आने लगी कि दवा किसी काम के नहीं, बल्कि इसके साइड इफेक्ट भी हो रहे हैं। शिकायत के बावजूद पहला पत्राचार जुलाई 2020 में किया गया। कम्पनी से जवाब नहीं आया और इधर दवाईयां भी मरीजों को पिलाई जाती रही। अब जब ज्यादातर दवाईयां खप चुकी हैं, कम्पनी को ब्लैक लिस्टेड किया गया है और दवाओं को वापस मांगा जा रहा है। ऐसी दवायें जाहिर है सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने वालों में बांटी जाती है, जिनमें से ज्यादातर लोग गरीब वर्ग के होते हैं। इन दवाओं के चलते किसी की मौत होने की कोई ख़बर नहीं है इसलिये इस मामले ने तूल नहीं पकड़ा, वरना अपने प्रदेश का नसबंदी कांड भी लोगों को याद है जिसमें 16 महिलाओं की मौत हुई थी।
आत्महत्या भी हो तो गंभीरता कम नहीं
यह स्वाभाविक है कि विधानसभा में पाटन इलाके के बठेना में हुई पांच मौतों का मामला गूंजा। फंदे पर एक साथ लटकती दो लाशें, तीन महिलाओं के अधजले, जले शव और सुसाइडल नोट। विवेचना अधिकारियों को मामले की तह तक पहुंचने की जिम्मेदारी है। इसी इलाके के खुड़मुड़ा गांव में चार लोगों की हत्या का मामला अब तक सुलझ नहीं पाया है। दोनों को लेकर पुलिस को आलोचना तो झेलनी पड़ रही है। गृह मंत्री को भी कानून व्यवस्था के मुद्दे पर सरकार का बचाव करना पड़ रहा है। गृह मंत्री इसे आत्महत्या बता रहे हैं तो विपक्ष ने एक साथ लटके दो शवों के आधार पर इसे हत्या का मामला कहा है। कुछ खबरों में कहा गया कि जुए, सट्टे की वजह से काफी खेती मृतक परिवार के मुखिया को बेचनी पड़ी और कर्जदारों का उस पर भारी दबाव था। अपराध होने के बाद सारी जिम्मेदारी पुलिस पर आती है और सवाल कानून व्यवस्था पर उठते हैं। पर ऐसी घटनाओं के लिये समाज का बिगड़ता माहौल कितना जिम्मेदार है, इस पर निगरानी रखने की जवाबदेही किस पर है, इसके लिये कोई ठोस तंत्र नहीं है। राज्य में बढ़ते अपराध, जुए सट्टा, सूदखोरी, शराबखोरी के चलते हो रहे अपराधों को रोकने के लिये कौन कदम उठाये, वे कदम क्या हों, इस पर भी इन गंभीर मामलों को देखते हुए अब बात होनी चाहिये।
कोरोना वारियर्स से वैक्सीन की कीमत?
वैक्सीनेशन के दूसरे चरण में 60 वर्ष से अधिक और गंभीर बीमारियों से पीडि़त 45 साल से अधिक उम्र के लोगों को टीका लगाने का अभियान चल रहा है। सरकारी केन्द्रों में यह मुफ्त है, पर अब निजी अस्पतालों में इसके लिये 250 रुपये देने हैं। दो बार टीका लगना है अत: 500 रुपये कुल खर्च है। दूसरा चरण शुरू होने के बावजूद बड़ी संख्या में वे लोग बचे रहे हैं जिन्हें पहले चरण में टीका लग जाना था। इनमें स्वास्थ्य कर्मी, कोरोना वारियर्स, डॉक्टर आदि शामिल हैं। अब तक इन्हें प्राइवेट अस्पतालों में मुफ्त टीका लग रहा था लेकिन अब इनसे भी वही राशि वसूल की जायेगी जो अन्य से ली जा रही है। यह फैसला कुछ अटपटा लग रहा है क्योंकि हाल ही में कोविड-19 के मामले फिर से बढऩे के बाद वैक्सीनेशन की रफ्तार भी बढ़ गई है। सरकारी अस्पतालों में भीड़ बढ़ रही है। लम्बा वक्त लग रहा है। सर्वर डाउन भी हो रहा है। ऑन द स्पॉट रजिस्ट्रेशन सुविधा शुरू होने के कारण भी वक्त लग रहा है। ऐसे में कोरोना के खिलाफ जंग लडऩे वालों से किसी भी अस्पताल में टीका लगवाने का शुल्क क्यों लगना चाहिये?