राजपथ - जनपथ
गांवों का नये जिले में जाने से इन्कार
गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही, जीपीएम जिले के गठन के साथ ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कोरबा जिले के उन 19 गावों को नये जिले में शामिल करने की घोषणा की थी जिनके लिये गौरेला मुख्यालय आना सुविधाजनक है। इनमें ज्यादातर गांव पोड़ी-उपरोड़ा अनुभाग के पसान क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। गौरेला की दूरी इन गांवों से एक घंटे में पूरी हो सकती है जबकि कोरबा के लिये उन्हें दो घंटे या उससे ज्यादा का सफर करना पड़ता है। पर यह घोषणा अभी पूरी नहीं हो पाई है। दरअसल, गांवों को नये जिले में शामिल करने के लिये ग्राम सभाओं की सहमति मांगी गई। इनमें से केवल 8 गांवों ने नये जिले में शामिल होने की इच्छा जताई बाकी 11 लोगों ने मना कर दिया। मना करने वाले गांव गौरेला की दिशा में भी हैं। गौरेला से ज्यादा नजदीक गांवों ने नये जिले में आने से मना कर दिया है, कुछ दूर वाले गांव के लोग आना चाहते हैं। मना करने वालों का कहना है कि जिले में आखिर उनका काम ही कितना पड़ता है? एसडीएम, तहसीलदार तो कटघोरा और पोड़ी-उपरोड़ा में भी मिल जाते हैं। बाजार भी कटघोरा का पास है और गौरेला के बाजार से कहीं बड़ा। छत्तीसगढ़ में बहुत से जिलों का नक्शा इसीलिये भूल-भुलैया जैसा है। रायपुर से बिलासपुर की ओर चलें तो एक छोर पर बेमेतरा, दूसरी तरफ दुर्ग, एक तरफ मुंगेली तो दूसरी ओर बलौदाबाजार जिले के हिस्से मिलते हैं। बहुत पहले नदियों और बड़े नालों से सीमा तय कर दी जाती है, पर अब सडक़ों के जरिये भी इसका निर्धारण किया जा रहा है। इस मामले में केवल 8 गांवों की सहमति मिलने के कारण मुख्यमंत्री की घोषणा पर अमल नहीं करने का निर्णय राजस्व विभाग ने लिया है।
नये राज्य में पहली बार नियमित शिक्षक
कोरोना संकटकाल के चलते सरकारी स्कूलों में पढ़ाई को हुए नुकसान की भरपाई अब स्कूलों को खोलकर पहले की तरह पढ़ाई शुरू करने की कोशिश की जा रही है। राज्य शासन ने बिना किसी शोर-शराबे के छत्तीसगढ़ के लोक शिक्षण संचालनालय को मेरिट के आधार पर नियमित शिक्षक के करीब 14 हजार पदों पर नियुक्ति को हरी झंडी दे दी है। नियुक्तियों की प्रक्रिया करीब दो साल पहले शुरू हुई थी पर कोरोना और शिक्षा कर्मियों के संविलियन जैसे दूसरे कारणों से आगे की प्रक्रिया टलती जा रही थी। खास बात यह है कि अब से करीब 25 साल पहले जब पंचायतों और नगरीय निकायों को शिक्षाकर्मियों की नियुक्तियों का अधिकार दिया गया था, शिक्षा विभाग ने सीधी नियुक्ति बंद कर दी थी। राज्य बनने के बाद पहली बार नियुक्ति हो रही है। बस, दिक्कत यह है कि ये नियुक्तियां एक साथ नहीं होंगी बल्कि ज्यों-ज्यों स्कूल खुलेंगे और कक्षाओं का लगना शुरू होगा, नियुक्ति पत्र थमाने की पक्रिया चलेगी। यानि चयनित शिक्षकों को शिक्षा विभाग के बार-बार चक्कर लगाकर अपने स्टेटस का पता लगाना पड़ेगा। ऐसे में हाथ में नियुक्ति आदेश पाने के लिये कितना खर्च करना पड़ सकता है, थोड़ा अनुमान आप भी लगा सकते हैं।
कोरोना काल में बबल जोन कहां था?
कोरोना महामारी के दौरान ज्ञान में आये कई नये शब्दों से लोगों में दहशत थी, जैसे लॉकडाउन, क्वारांटीन और कंटेनमेन्ट जोन। शहीद वीर नारायण सिंह अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में शुरू होने वाले रोड सेफ्टी वर्ल्ड क्रिकेट सीरिज के खिलाडिय़ों को एक सप्ताह पहले बुलाया जा रहा है। वे नया रायपुर के रिसोर्ट में रुकेंगे। वे इस रिसोर्ट से प्रैक्टिस के लिये स्टेडियम तो निकलेंगे पर और उनका कहीं आना-जाना प्रतिबंधित रहेगा। यहां देखभाल के लिये तैनात स्टाफ और सुरक्षा में तैनात जवानों के लिये भी यही गाइडलाइन है। वे किसी से मिल नहीं सकेंगे, अपने परिवार से भी नहीं। इस व्यवस्था को बबल जोन नाम दिया गया है। बबल जोन उस इलाके को कहा जाता है जहां भीड़ इक_ी न हो, संघर्ष और कानून व्यवस्था की कम से कम परेशानी खड़ी हो। केवल बबल का हिन्दी में मतलब तो बुलबुला होता है जो आम लोगों को समझ में आता है। कोरोना काल में कंटेनमेन्ट की दहशत को कम करने के लिये बबल जोन भी नाम दिया जा सकता है, पर जाने दीजिये अब तो वह दौर गुजर चुका है।