राजपथ - जनपथ
कोरोना के बाद कोचिंग सेंटर्स का हाल
स्कूल-कॉलेजों की पढ़ाई के भरोसे प्रतिस्पर्धा में आना मुश्किल माना जाता है। कोचिंग सेंटर्स युवाओं की उपलब्धि के अनिवार्य संस्थान के रूप में विकसित हो चुके हैं। इस स्थिति को बहुत से लोग अच्छा भी नहीं मानते। कोचिंग संस्थानों की फीस इतनी ज्यादा होती है कि सक्षम परिवारों के मुकाबले गरीब परिवारों के बच्चे पिछड़ जाते हैं। कोचिंग सेंटर्स की अहमियत देखकर कुछ सरकारी योजनायें भी प्रतिभावान गरीब बच्चों के लिये चल रही हैं। हालांकि इन पर किये जाने वाले खर्च के मुकाबले नतीजे उत्साहजनक नहीं मिलते। कोचिंग सेंटर्स का व्यवसाय कुछ सालों से छत्तीसगढ़ में खूब फलता-फूलता दिख रहा है। भिलाई, रायपुर, बिलासपुर जैसे शहरों में इनकी भरमार है।
अब स्थानीय कोचिंग संस्थायें दूसरे नंबर पर आती हैं। कोटा, दिल्ली, कोलकाता, नागपुर जैसे शहरों की पापुलर ब्रांड की ब्रांच की तरफ युवाओं का रुझान ज्यादा दिखाई देता है। धंधे में कुछ संचालकों ने तो इतनी कमाई कर ली कि टिकट की दौड़ में भी लग गये। दूसरी ओर इन कोचिंग संस्थानों के भरोसे, नौकरी से वंचित कई प्रतिभावान युवाओं को रोजगार भी मिल जाता है। आमदनी का बहुत थोड़ा हिस्सा उनके पास आता है फिर भी इससे खर्च चलाने में उन्हें मदद तो मिल जाती है।
पर, कोविड महामारी ने सब गड्ड-मड्ड कर दिया। अनेक कोचिंग संस्थानों की इतने दिनों में हालत खराब हो गई है। स्टाफ और टीचर्स का वेतन, फ्रेंचाइजी फीस, भवन किराया, बिजली बिल पटाने के दबाव में जो टूटे कि दुबारा ताला खोलने की स्थिति नहीं रह गई है।
लॉकडाउन का दूसरा असर यह हुआ कि ऑनलाइन कोचिंग का व्यापार खूब पनपा। विद्यार्थी जो सचमुच कैरियर को लेकर गंभीर है वे इसे ज्यादा सुविधाजनक पा रहे हैं और वे अब कोचिंग सेंटर्स की तरफ दुबारा रुख करने से बच रहे हैं। छत्तीसगढ़ पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा 14 फरवरी को होने जा रही है। इसमें शामिल होने वाले ज्यादातर विद्यार्थियों ने ऑनलाइन तैयारी की है। ऑनलाइन क्लासेस का असर, फिजिकल क्लासेस की तरह नहीं है पर फीस काफी कम है।
कोचिंग इंस्टीट्यूट्स को 50 प्रतिशत उपस्थिति और कोरोना गाइडलाइन के पालन के साथ खोलने की अनुमति दी गई है पर अनेक संस्थानों का बोर्ड अब उतर चुका है। कुछ फिर खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं। देखना होगा कि इन ठिकानों पर पहले की तरह चहल-पहल में कितना वक्त लगता है या फिर जो बदलाव अभी दिख रहा है वह एक नया स्थायी ट्रेंड बन जायेगा।
आईपीएस का फिटनेस वीडियो
बहुत से आईपीएस अधिकारी हैं जो नियमित रूप से वर्कआउट कर अपनी फिटनेस बनाये रखते हैं। वे जब सोशल मीडिया पर इसकी फोटो, वीडियो पोस्ट करते हैं तो जाहिर है इसका प्रभाव उनके मातहतों पर भी पड़ता है और उन्हें भी फिट दिखने की इच्छा होती है। आईपीएस रतनलाल डांगी के अनेक फिटनेस वीडियो फेस बुक, ट्विटर पर पोस्ट होते रहते हैं। 7 फरवरी की उनकी दौड़ के वीडियो को 41 लाख लोगों ने देखा है। अन्य वीडियोज भी हजारों बार देखे जा चुके हैं। सब वीडियो, फोटो मिला दें तो उन्हें देखने वालों की संख्या करीब एक करोड़ है और शेयर करने वाले भी कई हजार। भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों को सुविधा रहती है कि वे आम दिनों में काम और व्यायाम के घंटे खुद तय कर सकें।
आईजी दीपांशु काबरा, डीजी आर के विज, अपनी कसरत की तस्वीरें पोस्ट करते रहते हैं. दीपांशु और उनकी पत्नी साईकिल पर 25 -50 किलोमीटर चले जाते हैं।
फील्ड पर काम करने वाले टीआई, हवलदार, सिपाही इतना वक्त इन गतिविधियों को दे सकें तो और भी बेहतर। इन्हें काम का बोझ इतना होता है कि वे अपना शरीर नहीं संभाल पाते, बीमारियां घेर लेती हैं और, कई बार तो मानसिक तनाव के चलते बहुत अप्रिय घटनायें भी सुनने को मिलती रहती है।
अब होली का इंतजार
बीते साल कोरोना महामारी से बचाव के लिये लॉकडाउन होली त्यौहार के ठीक कुछ दिनों बाद लगा था। कुछ लोग घबरा रहे थे कि होली मनाने के दौरान वे वायरस के सम्पर्क में तो नहीं आ गये। पर अनेक लोगों को राहत भी थी कि चलो कम से कम त्यौहार तो मना लिया। बीच में अनेक तीज-त्यौहार गुजरे। सबमें सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी थी। धार्मिक स्थलों पर ताला लगा रहा। एक जगह एकत्रित होने पर मनाही थी। पर अब तो हर तरफ ढील दी जा रही है। लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि होली तक क्या इतनी बेहतर स्थिति हो पायेगी कि लोगों को गुलाल लगाने, गले लगने, रंग डालने की मंजूरी मिल जाये। मिल भी जाये तो क्या लोग बेफिक्री से हर बार की तरह अगली होली मना पायेंगे। वैसे इस साल की होली मार्च के अंत में 29 तारीख को है। यानि, तय करने में अभी लगभग डेढ़ माह का वक्त है।