राजपथ - जनपथ
पैसेंजर ट्रेनों में भी स्पेशल किराया?
लोगों का आवागमन सडक़ और रेल दोनों ही रास्तों से कठिन होता जा रहा है। पेट्रोल 86 रुपये से अधिक और डीजल 83 से ज्यादा में मिल रहा है। इधर लोकल ट्रेनें भी नहीं चल रही हैं। बसों में ड्योढ़ा किराया हो चुका है तो रेलवे ने भी यात्रियों की जेब ढीली करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। उन लोगों से भी कमाई हो रही है जो बर्थ कन्फर्म होने की उम्मीद रखते हुए टिकट कटा लेते हैं। रेलवे ने प्लेटफॉर्म पर स्टाफ की तैनाती कर रखी है। टिकट कन्फर्म नहीं होने पर आप भीतर नहीं घुस पायेंगे, लेकिन टिकट ले ली है तो ऐसे कठिन नियम बनाये गये हैं कि वापसी के लिये पसीना बहाना पड़ेगा। इसके लिये 50 से 80 फीसदी तक रकम काटी जा रही है। इस रवैये के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की गई है। रेलवे ने अपने जवाब में कई बातों को साफ नहीं किया। हालांकि उस पर दबाव बढ़ा है और इसी महीने से लोकल ट्रेनों को चलाने की बात कही जा रही है। देखना यह होगा कि लोकल ट्रेनों का किराया पहले जैसा होगा या फिर स्पेशल ट्रेनों की तरह उनमें भी सरचार्ज के नाम पर ज्यादा वसूली की जायेगी। इससे बड़ी बात क्या इनमें भी सिर्फ कन्फर्म टिकट पर ही सफर करने की इजाजत होगी?
सरकार से खफा संगठन !
सरकार के मंत्रियों ने राजीव भवन में पार्टी पदाधिकारियों के सामने अपने विभागों के कामकाज का ब्यौरा दिया, तो उन्हें अंदाजा नहीं था कि पदाधिकारी इतना ज्यादा मीन मेख निकालेंगे। दो-तीन बार तो पीएल पुनिया को मंत्रियों के बचाव में आगे आना पड़ा। सबसे पहले मोहम्मद अकबर ने अपने विभाग की गतिविधियों से अवगत कराया। अकबर ने पॉवर पाइंट प्रेजेंटेशन दिया। जिलाध्यक्षों ने कुछ खामियां गिनाई, और शिकायतें की, तो तुरंत अकबर ने संबंधित विषयों को दिखवाने की बात कर किसी तरह उन्हें संतुष्ट किया।
गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू की बारी आई, तो उन्होंने पुलिस और पीडब्ल्यूडी की उपलब्धियों का बखान किया। इस पर एक ने तो यहां तक कह दिया कि आईजी और एसपी, जिलाध्यक्ष और प्रभारियों के फोन तक नहीं उठाते। खुलेआम जुआ-सट्टा चल रहा है। शिकायतों को अनदेखा किया जा रहा है। कुछ और लोगों ने भी इसी तरह की बातें की, तब पुनिया ने हस्तक्षेप कर पदाधिकारियों को समझाइश दी कि अभी इसी तरह की बातें करना ठीक नहीं होगा।
रविन्द्र चौबे और प्रेमसाय सिंह, पदाधिकारियों की शिकायतों से असहज हो गए। स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह को जिले के एक पदाधिकारी ने यह कहकर घेरा कि जिन अफसरों के खिलाफ विधानसभा चुनाव के ठीक पहले निर्वाचन अधिकारी से शिकायत की गई थी, उन्हें ही डीईओ और अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे दी गई। रविन्द्र चौबे भी बचाव की मुद्रा में दिखे, और यह कहते रहे कि उनकी शिकायतों को दूर किया जाएगा। बाद में पुनिया ने सभी मंत्रियों को नसीहत दी कि जिलों का दौरे से पहले संबंधित जिले के अध्यक्ष और प्रभारियों को इसकी सूचना जरूर दें। उनके ज्ञापन-प्रस्तावों को अनदेखा न करें।
बैठक से काफी खुश
कांग्रेस के पदाधिकारी मंत्रियों के साथ बैठक से काफी खुश नजर आए। उन्हें प्रदेश प्रभारी की मौजूदगी में एक-एक कर मंत्रियों के समक्ष अपनी भड़ास निकालने का मौका मिल गया। एक जिले के प्रभारी ने तो बैठक के बाद प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम से मिलकर उन्हें धन्यवाद दिया। मरकाम ने कहा कि आप लोगों ने विधानसभा जैसा माहौल बना दिया। उन्होंने आश्वस्त किया कि भविष्य में भी इस तरह की बैठकें होती रहेंगी।
जिसका इंतजार है वह नहीं मिल रहा
प्रदेश से जिन कांग्रेस नेताओं को बूथ मैनेजमेन्ट का प्रशिक्षण देने असम भेजा गया है उनमें से कुछ मुख्यमंत्री के तो, कुछ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के सर्वाधिक विश्वस्त हैं। इन्हीं में कुछ को सत्ता में भी जिम्मेदारी मिल चुकी है पर कई लोग अब भी अपनी बारी आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जैसे प्रदेश उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव। मरवाही उप-चुनाव, बिलासपुर नगर निगम में महापौर व जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में उन पर बड़ी जिम्मेदारी थी। मुख्यमंत्री ने मरवाही नतीजे के बाद उनकी तारीफ भी सोशल मीडिया पर लिखी। अब फिर संगठन के एक बड़े काम के लिये बनी टीम में उन्हें शामिल कर लिया गया है। उनके समर्थक इस जवाबदारी को लेकर खुशी तो जता रहे हैं, पर मायूसी भी है। एक कार्यकर्ता ने कहा कि जब विपक्ष में थे तब भी संगठन के लिये काम कर रहे थे, अब सरकार बन गई है तब भी वही काम। सरकार का आधा कार्यकाल खत्म होने वाला है, सत्ता में भागीदारी कब मिलेगी?
भारत दर्शन में रुचि घटी
पिछले कई सालों से आईआरसीटी देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों के लिये भारत दर्शन ट्रेनें चलाती है। हर साल इन ट्रेनों में सफर के लिये लोगों में बड़ा उत्साह देखा गया है क्योंकि एक तो सीट कन्फर्म होती है और ट्रैवल्स एजेंसियों के अनाप-शनाप रहने, घूमने के खर्च से बच जाते हैं। पर इस बार इस बार लोग भारत दर्शन में रुचि नहीं दिखा रहे। मार्च महीने से शुरू होने जा रही ट्रेनों की सीटें भर नहीं पा रही है। आईआरसीटीसी तो 50 फीसदी सीटें भरने पर भी ट्रेनों को चलाने तैयार है। और सवारियों का इंतजार हो रहा है। लोगों में कोरोना का भय तो अब खत्म सा है, कम से कम सफर के मामले में तो ऐसा कहा जा सकता है। दूसरी वजह शायद ज्यादा ठीक है कि इन दिनों लोग हाथ खींचकर खर्च कर रहे हैं।