राजपथ - जनपथ
प्रदर्शन कामयाब कैसे हो ?
धान खरीद में अव्यवस्था का आरोप लगाकर भाजपा 22 तारीख को जोरदार प्रदर्शन की तैयारी कर रही है। चूंकि प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी भी प्रदर्शन में शामिल होंगी, ऐसे में कहीं कोई कसर बाकी न रह जाए, इसके लिए पार्टी के प्रमुख नेता व्यक्तिगत रूचि ले रहे हैं। जिला और मोर्चा की बैठक चल रही है, जिसमें ज्यादा से ज्यादा भीड़ लाने पर जोर दिया गया है। सुनते हैं कि युवा मोर्चा की बैठक में तो बड़े नेताओं ने यहां तक कहा कि प्रदर्शन को तभी सफल माना जाएगा, जब बैरीकेट्स टूटे। यानी संकेत साफ है कि प्रदर्शन उग्र होगा। देखना है कि पुलिस संभावित उग्र प्रदर्शन पर कैसे काबू पाती है।
किस-किसने कितना धान बेचा ?
धान खरीद में अव्यवस्था पर किचकिच चल रही है। भाजपा ने अव्यवस्था के चलते धान खरीद बंद का आरोप लगाया, तो कांग्रेस ने उन भाजपा नेताओं की सूची जारी कर दी, जिन्होंने हाल में अपने इलाके के सरकारी केन्द्रों में धान बेचा है। जिसमें रमन सिंह, अभिषेक सिंह, धरमलाल कौशिक, विष्णुदेव साय, संतोष पाण्डेय, रामप्रताप सिंह समेत दर्जनभर से अधिक नेताओं के नाम हैं।
सूची में यह भी बताया गया कि किस-किस नेता को कितना भुगतान हुआ है। मसलन, रमन सिंह को पौने 4 लाख, अभिषेक सिंह को ढाई लाख, धरमलाल कौशिक को सवा दो लाख भुगतान किया गया। राजीव न्याय योजना के तहत भी इन सभी के खाते में राशि गई हैं। इसमें कोई गलत भी नहीं है। लेकिन सूची जारी होने से भाजपा नेता खफा हैं, मगर इस तरह की सूची पहली बार जारी नहीं हुई थी।
पिछली सरकार ने भी एक बार सरकारी धान खरीद को अपनी उपलब्धियों के तौर पर प्रचारित कर विधानसभा में यह बताया गया था कि किस-किस कांग्रेस नेता ने कितनी मात्रा में धान बेचा है, और उन्हें कितनी राशि मिली है। इसमें रविन्द्र चौबे और अन्य नेताओं के नाम थे। अब सरकार बदल गई है, तो कांग्रेस नेता भी धान खरीद को अपने सरकार की उपलब्धियों के तौर पर प्रचारित कर रहे हैं। और अब जब खरीदी बंद होने का आरोप लग रहा है, तो प्रमाण के तौर पर धान बेचने वाले भाजपा नेताओं की सूची जारी कर दी गई। स्वाभाविक है कि खरीदी बंद न होने का इससे बड़ा प्रमाण और नहीं हो सकता था।
वैक्सीन से बचने के दस बहाने..
कई स्वास्थ्य कर्मचारी, कोरोना वारियर्स टीका लगवाने से भाग रहे हैं। वैक्सीनेशन सेंटर से फोन जाने पर फोन ही नहीं उठाते, जो उठा रहे हैं उनके पास तरह-तरह के बहाने हैं। एक ने कहा- मेरी इम्युनिटी कमजोर है तो दूसरे ने बताया उसे बुखार है। कई तो व्यस्त होने का बहाना कर रहे हैं। एक ने कहा वह खेत में गेहूं की फसल को पानी देने पहुंचा है, जो टीका लगवाने से ज्यादा जरूरी है। एक और स्वास्थ्य कर्मी का जवाब था- जब दस माह की कोरोना वार्ड में ड्यूटी करने के बावजूद संक्रमण से बचा रह गया तो अब क्या करूंगा लगवाकर?
वैक्सीनेशन और कोरोना थमने का सिलसिला साथ-साथ चल रहा है। लोगों में कोरोना से घबराहट पहले की तरह रह नहीं गई। छत्तीसगढ़ में वैक्सीनेशन की दर 55 से 60 प्रतिशत तक ही पहुंच पा रही है। यह आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, हेल्थ वर्कर, मितानिन आदि का है जिन पर गांव-कस्बों में लोगों को स्वास्थ्य के लिये सचेत करने की जिम्मेदारी है। जब वे खुद से डर, बच रहे हों तब वे अगले चरण में और लोगों को कैसे टीकाकरण के लिये तैयार कर सकेंगे?
बिलासपुर को मिला पहला केबिनेट मंत्री !
यह पहली मर्तबा हुआ कि सरकार बनने पर छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल में बिलासपुर से कोई भी शामिल नहीं था। जाहिर तौर पर तो यही कहा गया कि पहली बार चुने गये विधायक मंत्री नहीं बनाये जायेंगे लेकिन लोगों ने इस फैसले के पीछे जिले में कांग्रेसियों के बीच चलने वाली उठापठक को भी महसूस किया। जिले से केवल दो ही विधायक कांग्रेस से हैं, उनमें से एक रश्मि सिंह को बीते वर्ष संसदीय सचिव का दर्जा दिया गया। सरकार ने हाईकोर्ट में कबूल किया है, इसलिये किसी संसदीय सचिव को मंत्रियों के समकक्ष कोई सुविधा भी नहीं दी जा रही है।
2013 से 2018 के बीच कांग्रेस के जिन नेताओं ने धरना, प्रदर्शन कर गिरफ्तारियां दीं, टिकट से वंचित रह गये, वे अब तक सत्ता में हिस्सेदारी मांग रहे हैं। पर 70 वर्षीय कांग्रेस नेता बैजनाथ चंद्राकर जिले में सबसे आगे हो चुके हैं। उन्हें बीते साल जुलाई में राज्य सहकारी बैंक (अपेक्स) का अध्यक्ष बनाया गया। नवंबर में उन्हें ठाकुर प्यारेलाल सहकारिता सम्मान मिला और अब सामान्य प्रशासन विभाग ने उन्हें केबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया है। कुछ लोग कह रहे हैं, देर से सही केबिनेट मंत्री के समकक्ष बिलासपुर को एक पद तो मिला। दूसरी तरफ शेष नियुक्ति में अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे नेता चिंतित हैं कि असंतुलन के बहाने अब उनका पत्ता साफ तो नहीं जायेगा?
ऐसी शरारत तो मत करिये..
प्रदेश में प्रधानमंत्री आवास योजना की हालत बहुत अच्छी नहीं है। इस योजना में केन्द्र सरकार को 60 फीसदी देना होता है और 40 प्रतिशत रकम राज्य सरकार को। कोरोना, किसानों के भुगतान और कुछ दूसरे कारण होंगे राज्य सरकार ने पीएम आवास में अपनी हिस्से की राशि इस वित्तीय वर्ष में कम कर दी। केन्द्र की तरफ से तो 6 लाख लोगों के लिये आवास की मंजूरी दी गई थी पर राज्य सरकार ने इसे घटाकर 1.20 लाख कर दिया। केन्द्र व राज्य सरकार का फंड मिलाकर हितग्राहियों के खाते में, जैसे-जैसे निर्माण होता है, राशि जमा की जाती है। इस बार बहुत से आवास समय पर फंड नहीं मिलने के कारण अधूरे रह गये। कुछ ने कर्ज लेकर काम आगे बढ़ा लिया, पर अगली किश्त का अब तक इंतजार ही कर रहे हैं।
इधर बालोद जिले के डौंडीलोहारा नगर पंचायत में तो गजब ही हो गया। यहां दिल्ली से ग्रामीण विकास मंत्रालय से कुछ लोगों के पास बधाई की चिट्ठी पहुंच गई। बधाई इस बात कि उनका प्रधानमंत्री आवास बन गया। पत्र लिखने वाले अधिकारी ने कुशल मंगल भी पूछ लिया है। मगर हकीकत यह है कि आवास का बनना तो दूर इनके आवास का आवेदन भी मंजूर नहीं हुआ है। इनमें से कुछ लोगों को आवास स्वीकृत होने की जानकारी दी जा रही है, पर किश्त नहीं आई है। अब यह गड़बड़ी कैसे हो गई? मकान कोई बधाई की चिट्ठी लिखने जैसा आसान काम तो है नहीं, पर जो काम आसान है अधिकारियों ने कर दिया, जो कठिन है वह रुका हुआ है।