राजपथ - जनपथ
तीनों मुखिया साथ के !
आईएएस के 89 बैच के अफसर अमिताभ जैन राज्य के प्रशासनिक मुखिया बनाए गए हैं। यह भी संयोग है कि अमिताभ के साथ-साथ हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स राकेश चतुर्वेदी और डीजीपी डीएम अवस्थी रायपुर में पदस्थ रहे हैं। अमिताभ रायपुर कलेक्टर थे, तब राकेश चतुर्वेदी डीएफओ रायपुर थे। दोनों एक साथ काम कर चुके हैं। बाद में डीएम अवस्थी भी रायपुर एसएसपी रहे। खास बात यह है कि तीनों ही इंजीनियरिंग बैकग्राउंड के हैं।
अजीत जोगी जब सीएम थे तब उन्होंने वीआईपी रोड में उद्यान बनाने के लिए कहा था। अमिताभ जैन और राकेश चतुर्वेदी ने 14 एकड़ बंजर जमीन पर कुछ महीनों के भीतर बेहतरीन उद्यान विकसित कर दिया, जिसे राजीव स्मृति वन के रूप में जाना जाता है। शहर के बाहरी इलाके में पर्यटन का अच्छा केन्द्र बन चुका है। लो-प्रोफाइल में रहने वाले शांत स्वभाव के अमिताभ जैन पर कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों सरकारों का भरोसा रहा है। यही वजह है कि वे हमेशा अपेक्षाकृत महत्वपूर्ण विभागों में पदस्थ रहे।
अविभाजित मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के सीएम रहते उनके गृह जिले राजगढ़ के भी कलेक्टर रहे। दिलचस्प बात यह है कि मौजूदा सरकार के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे उस वक्त राजगढ़ के प्रभारी मंत्री थे। जोगी सरकार में एक मौका आया, जब भाजपा नेताओं पर लाठी चार्ज के लिए विधानसभा की कमेटी ने तत्कालीन कलेक्टर अमिताभ जैन और एसपी मुकेश गुप्ता को दोषी माना था, और कार्रवाई की सिफारिश भी कर दी थी, लेकिन विधानसभा ने कमेटी का फैसला पलट दिया।
अमिताभ की काबिलियत ऐसी रही कि भाजपा सरकार सत्ता में आने के बाद उन्हें एक के बाद एक अहम दायित्व सौंपती रही। अमिताभ के पूर्ववर्ती आरपी मंडल को प्रशासनिक-निर्माण कार्यों के लिए जाना जाता है, लेकिन कई मौकों पर वे पेपरवर्क में कमजोर दिखे। मगर अमिताभ उन चुनिंदा अफसरों में हैं, जिनकी हर क्षेत्र में पकड़ रही है। लेकिन उनके साथ एक दिक्कत यह है कि उन्हें खुद पहल करके काम करने वाला नहीं माना जाता, लोग कहते हैं कि वे दखल देने से बचते हैं. मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्था में अनुभवी अफसरों की बेहद कमी है। ऐसे में अमिताभ की जिम्मेदारी काफी चुनौतीपूर्ण मानी जा रही है।
मुख्य सचिवों की कहानी...
अमिताभ जैन के मुख्य सचिव बनने के साथ ही चित्तरंजन खेतान के मुख्य सचिव बनने की संभावनाएं खत्म हो गईं। पहले आर.पी. मंडल ने खेतान का मौका पा लिया, और अब अमिताभ ने। खेतान के बारे में साख यह है कि वे एक सीमा से अधिक लचीले होकर सत्ता की मर्जी पूरी नहीं कर पाते। दूसरी तरफ मंडल की साख बेहद लचीलेपन की थी, इसलिए वे मौका पा गए। अब जब नौकरी के आखिरी आठ महीनों के लिए खेतान का मुख्य सचिव बनना हो सकता था, तो सत्ता को अमिताभ अधिक लचीले लगे। यह तो आने वाला वक्त बताएगा कि वे कितने लचीले साबित होते हैं, या किसी बात पर अड़ भी जाते हैं। वे चुप रहकर काम करने के आदी हैं, लेकिन उनका कार्यकाल इतना लंबा बाकी है कि वे मौजूदा सरकार के कार्यकाल पूरे होने के बाद भी नौकरी में रहेंगे, और शायद इसलिए वे सत्ता की मर्जी के साथ-साथ अपनी बकाया नौकरी की फिक्र भी करेंगे।
वे लगातार दूसरे ऐसे मुख्य सचिव हैं जिनके पिता ने दुर्ग जिले में काम किया हुआ है, और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता भी दुर्ग जिले से ही राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनकारी रहे हैं, और खुद भूपेश दुर्ग जिले से ही विधायक हैं। अमिताभ जैन के पिता ने बीएसपी में काम किया था, मंडल के पिता ने रेलवे में, और भूपेश का घर भी इन दोनों जगहों से कुछ किलोमीटर ही दूर रहा।
विवेक ढांड के बाद से छत्तीसगढ़ के सीएस बनने का सिलसिला चल रहा है। उनके बाद अजय सिंह सीएस बने जिनके पिता, तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के पिता के वकालत के दौर में ही वकालत करते थे। इसके बाद मंडल, और अब अमिताभ, ये सभी स्थानीय लोग ही रहे।
पीडीएस को पारदर्शी बनाने में रोड़ा
राशन दुकानों में उपभोक्ताओं से ज्यादा कीमत वसूलने, स्टाक की मात्रा पर गड़बड़ी रोकने के लिये खाद्य विभाग ने सीसीटीवी कैमरा लगाने और जीपीएस से जोडऩे की घोषणा की थी। उपभोक्ता अपने मोबाइल पर घर बैठे देख सकते हैं कि किस राशन दुकान में कितनी मात्रा में चावल, शक्कर उपलब्ध है और सरकार ने उसकी कीमत क्या तय की है।
पर खाद्य विभाग इस योजना को लागू करने के लिये गंभीर नहीं दिखती। अब पारदर्शिता पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। राज्य में 12 हजार 306 राशन दुकानें चल रही हैं पर आपको ढूंढना मुश्किल होगा कि आखिर ये व्यवस्था किस दुकान में मौजूद है। एक वक्त था जब छत्तीसगढ़ के पीडीएस सिस्टम को सराहा गया और दूसरे राज्यों के प्रतिनिधियों ने भी इसका अध्ययन करने के लिये दौरा किया। ढिलाई क्यों बरती जा रही है? शायद खाद्य विभाग के अधिकारियों को चिंता सता रही है कि इतनी खुली पारदर्शी व्यवस्था कहीं उनकी ही पोल न खोल दें।
धान खरीदी की खुशी के बीच चिंता
धान खरीदी शुरू होने के बाद किसानों की लम्बी प्रतीक्षा खत्म हुई। पहले ही दिन करीब 10 लाख क्विंटल धान खरीदी की गई। मंत्रियों, विधायकों सहित कांग्रेस पदाधिकारियों ने खरीदी केन्द्रों में जाकर तराजू, बांट की पूजा की और किसानों को तिलक लगाया।
खरीदी शुरू होने के बाद भी अब तक सरकार ने स्पष्ट नहीं किया है कि उन्हें किस दर से भुगतान किया जायेगा। चुनावी वायदे पर अमल किया जाये तो हर साल 2500 रुपये क्विंटल की दर से भुगतान किया जाना है। पहले समर्थन मूल्य का भुगतान उसके बाद राजीव किसान न्याय योजना के तहत बाकी किश्तें। हालांकि पिछले साल की एक किश्त अभी भी बाकी है। इसका भुगतान इसी वित्तीय वर्ष में करने का आश्वासन कृषि मंत्री ने दिया है पर यह इंतजार लम्बा हो रहा है।
खरीदी शुरू होते ही कई खरीदी केन्द्रों में ताला लगे होने की खबर आई। कई नये खरीदी केन्द्रों को खोलने और पुराने केन्द्रों को बंद करने का विरोध भी होने लगा। कम से दो जगह चक्काजाम तो किसानों ने पहले ही दिन कर दिया। 72 घंटे के भीतर धान के परिवहन का समय तय किया गया है पर बीते सालों का अनुभव कहता है कि समय पर उठाव नहीं होने के कारण खरीदी रोकनी पड़ी।
छोटे किसानों को पहले टोकन देने की बात की गई है लेकिन इसका पालन सोसाइटियों में कई जगह नहीं हो रहा। धान पकने के बाद हुई बारिश ने किसानों चिंता में डाला, पर नमी को लेकर कोई रियायत नहीं दी गई है। हालांकि यह कहा गया है कि सूखत के नाम पर अतिरिक्त धान नहीं लिया जायेगा पर व्यवहार में अधिक धान ले ही लिया जाता है। बारदाने के संकट को एक हद तक दूर कर लेने का दावा किया गया है। उम्मीद करनी चाहिये कि जिस उत्साह से मंडियों, सोसाइटियों में पहले दिन राजनैतिक कार्यकर्ता पहुंचे हैं वह आने वाले दिनों में वहां दिखाई देंगे।
कलाकारों पर कोरोना का कहर
रायगढ़ की एक छत्तीसगढ़ी कलाकार ने आग लगाकर खुद की जान लेने की कोशिश की। नजदीकी बताते हैं कि कोरोना के बाद पैदा हुई आर्थिक तंगी के चलते उसने यह कदम उठाया।
इन दिनों आत्महत्या की कई घटनायें सामने आ रही हैं। कुछ आंकड़े आये हैं जिनमें बताया गया है कि खुदकुशी और खुदकुशी की कोशिश करने की घटनायें इस साल बढ़ी है। राज्य मानसिक चिकित्सालय में रिकॉर्ड 500 से ज्यादा लोगों ने काउन्सलिंग के जरिये अपने मानसिक तनाव से उबरने की कोशिश की है। अनलॉक के बाद भी जो क्षेत्र अब तक संभल नहीं पाये हैं उनमें कला जगत भी है। अनेक लोगों की आजीविका का यह एकमात्र जरिया रहा है।
शादी-ब्याह में दी गई थोड़ी छूट से कुछ राहत तो मिली लेकिन इनमें सांस्कृतिक कार्यक्रम करने पर रोक लगी हुई है। प्रदेशभर की अदालतें जब बंद थीं तो वकीलों ने आर्थिक सहायता की मांग की थी। थोड़ी बहुत सहायता उन्हें मिली भी लेकिन उनके एसोसियेशन और कौंसिल की ओर से।
न केवल कलाकार या प्रोफेशनल बल्कि मजदूर वर्ग के लोगों में भी यह प्रवृति बढ़ी है। कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिये सरकार ने कई कदम उठाये। मजदूरों और किसानों की मामूली ही सही, आर्थिक मदद भी की गई लेकिन कलाकारों की आजीविका कैसे चले इस पर गंभीर कदम नहीं उठाये गये। यह वर्ग स्वाभिमानी भी होता है, मदद के लिये गुहार लगाने से भी हिचकता है। ऐसे में कोई रास्ता निकाला जाना जरूरी है।