राजपथ - जनपथ
स्मार्ट सिटी के खर्चों पर सब मौन!
रायपुर स्मार्ट सिटी के निर्माण कार्यों पर अंधाधुंध खर्च हो रहे हैं, इसमें अनियमितता की कई शिकायतें आई हैं। स्मार्ट सिटी के मद से बूढ़ातालाब सौंदर्यीकरण का काम चल रहा है। चर्चा है कि गेट बनाने में ही 90 लाख रूपए खर्च किए गए। म्यूजिकल फव्वारे के टेंडर में अनियमितता की शिकायत तो अदालत की दहलीज तक चली गई है। सामान्य सभा का हाल यह रहा कि सबकुछ जानते हुए भी भाजपा पार्षदों ने मुंह तक नहीं खोला। जबकि स्मार्ट सिटी के चेयरमैन सांसद सुनील सोनी हैं।
स्मार्ट सिटी के कार्यों पर भाजपा नेताओं की चुप्पी के पीछे कुछ लोग वजह गिना रहे हैं। सुनते हैं कि भाजपा के पूर्व मंत्री के करीबी ठेकेदार को काम मिला हुआ है। बड़े अफसर का दखल है ही, ऐसे में सबने चुप्पी साध ली है। यहां संविदा पर काम कर रहे अफसरों को महंगी गाड़ी मिली हुई है। एक अफसर तो भाईदूज मनाने स्मार्ट सिटी की गाड़ी से महाराष्ट्र तक हो आए। स्मार्ट सिटी का कामकाज ‘सबका साथ सबका विकास’ के अंदाज में हो रहा है। अब स्थानीय नेता-अफसर चुप रहेंगे, तो अनियमितताओं की जांच नहीं होगी? ऐसा सोचना भी गलत है। स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए केन्द्र सरकार से अंशदान मिलता है। कई लोगों ने यहां की अनियमितता की शिकायत केन्द्र सरकार में भी की है। शिकायतकर्ता भी प्रभावशाली है। ऐसे में देर सवेर परियोजना के कार्यों की जांच पड़ताल शुरू हो जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
केन्द्र के कृषि कानून का असर दिखने लगा...
धान की सरकारी खरीद शुरू होने में अभी 10 दिन बाकी है। सोसाइटियों में एक दिसम्बर के बाद मचने वाली आपा-धापी का किसानों को अंदाजा है। वे यह भी मानकर चल रहे हैं कि न तो पहले दिन ही उनका धान बिक पायेगा और न ही तत्काल नगदी उनके हाथ में आयेगी। इधर प्रदेश की मंडियों में 19 नवंबर से धान की खरीदी शुरू की गई। जो रेट खुला उसने किसानों को निराश कर दिया। उन्हें वेरायटी के हिसाब से 1350 से 1500 रुपये के बीच ही कीमत मिल पा रही है। यह रकम पिछले साल से करीब 400 रुपये कम है। धान तो वही है, मांग भी कम नहीं हुई। फिर इसकी क्या वजह हो सकती है? एक अनुमान यह है कि सरकार ने अब तक रुख साफ नहीं किया है कि केन्द्र सरकार की सहमति- मंजूरी मिलने की प्रक्रिया की प्रतीक्षा किये बगैर वह इस बार भी 2500 रुपये में धान खरीदने जा रही है। बीते साल की ही बकाया रकम की एक किश्त नहीं मिल पाई है। राज्य सरकार का वह बिल अब तक राज्यपाल के पास रुका हुआ है जिसमें केन्द्र के कृषि कानून को निष्प्रभावी करने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदना जरूरी किया गया है। फिलहाल मंडियों में खरीदी तो केन्द्र के घोषित समर्थन मूल्य के आसपास है पर राज्य सरकार के अतिरिक्त प्रोत्साहन से यह काफी पीछे है।
धान बोनस का सबसे ज्यादा फायदा किसे?
छत्तीसगढ़ में आटोमोबाइल सेक्टर की दीपावली खूब अच्छी रही। कारों और दोपहिया वाहनों की बिक्री के आंकड़े आये हैं। त्यौहारों में 35 हजार से ज्यादा बाइक और 4 हजार से अधिक कारों की बिक्री हुई। यह संख्या बीते साल के मुकाबले करीब दुगुनी है। इस सेक्टर से जुड़े लोगों का कहना है कि इनमें से 70 फीसदी खरीदी ग्रामीण क्षेत्रों से हुई। कोरोना के चलते आई मंदी का असर शहर के नौकरीपेशा लोगों पर पड़ा तो दूसरी ओर किसानों को धान का बोनस, गोबर बिक्री की राशि, केन्द्र सरकार व राज्य सरकार की ओर से दूसरी नगद राशि मिली। इसके अलावा बड़ी संख्या में कोरोना दौर में प्रवासी मजदूर भी लौटे और उन्होंने भी अपनी अच्छी-खासी बचत यहीं छत्तीसगढ़ में खर्च की। एक तरफ वे किसान हैं जिनके पास छोटी खेती है, वे धान से कुछ नगद आ सके इंतजार कर रहे हैं। दूसरी तरफ गांवों में फर्राटे मारती कारें और बाइक्स भी दिखेंगी।