राजपथ - जनपथ
विधायक प्रतिनिधि होने का दर्द
प्रदेश भाजपा के बड़े नेता लीलाराम भोजवानी पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के विधायक प्रतिनिधि क्या नियुक्त हुए, उनकी सियासी ताकत बढऩे के बजाए कम हो गई। ऐसा उनके करीबी लोग महसूस कर रहे हैं। खुद भोजवानी भी नई जिम्मेदारी से नाखुश बताए जा रहे हैं।
वे निजी चर्चाओं में इसका इजहार भी कर रहे हैं। भोजवानी को पहले तो विष्णुदेव साय की टीम में जगह नहीं मिली, उसके बाद मंडलों की कार्यकारिणी में उन्हें स्थाई आमंत्रित सदस्य के लायक नहीं समझा गया। इससे खफा भोजवानी ने भाजपा के प्रदेश स्तरीय प्रशिक्षण में भी यह कहकर जाने से इंकार कर दिया कि प्रदेश संगठन में किसी ओहदे पर नहीं होने से वह प्रशिक्षण के लिए पात्र नहीं हंै।
उनका दर्द यह भी है कि नांदगांव भाजपा में उनके बराबर के नेता खूबचंद पारख प्रदेश में उपाध्यक्ष बन गए और उनसे सालों जूनियर नीलू शर्मा प्रवक्ता नियुक्त हो गए। उनसे जुड़े लोग मानते हैं कि यदि भोजवानी विधायक प्रतिनिधि नहीं होते, तो उन्हें अहम जिम्मेदारी दी जा सकती थी। अब रमन सिंह सीएम तो है नहीं, ऐसे में उनका प्रतिनिधि होना उनके जैसे सीनियर नेता के लिए कोई सम्मान की बात नहीं है। फिलहाल तो नांदगांव में रमन विरोधी नेता, भोजवानी की नाराजगी पर चुटकी ले रहे हैं।
इस बार धान की कीमत क्या मिलेगी?
एक दिसम्बर से होने वाली धान खरीदी को लेकर जारी आदेश साफ नहीं होने की वजह से किसानों की सांस अटक गई है। राज्य में केन्द्र की ओर से निर्धारित किये गये समर्थन मूल्य पर धान खरीदने की घोषणा तो की गई है पर हर साल 2500 रुपये प्रति क्विंटल खरीदने के वादे को पूरा कैसे किया जायेगा, स्पष्ट नहीं किया गया है। पिछली बार भी केन्द्र के सख्त रुख के चलते 2500 रुपये में खरीदी का फैसला टालना पड़ा था पर समर्थन मूल्य के बाद की अतिरिक्त राशि का भुगतान राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत बांटने का निर्णय लिया गया। इसकी तीन किश्तें मिल चुकी हैं। तीसरी किश्त 1 नवंबर को मिली। एक किश्त बाकी है, जो कब दी जायेगी इस पर भी अभी तक कोई घोषणा नहीं की गई है। बीते साल कर्ज माफी पर सरकार को करीब 11 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करना पड़ा था लेकिन इस बार ऐसी समस्या नहीं है। किसान बेसब्री से बची हुई चौथी किश्त और धान की कीमत पर स्थिति साफ होने की प्रतीक्षा में हैं।
कृषि विधेयक का क्या होगा?
छत्तीसगढ़ विधानसभा के 27 अक्टूबर के विशेष सत्र में कृषि उपज मंडी संशोधन विधेयक पारित कर दिया है। विधेयक के प्रावधान केन्द्र द्वारा लागू किये गये तीन कृषि बिलों को एक हद तक बेअसर कर देंगे। इस पर अब राज्यपाल का हस्ताक्षर होना है। दूसरी ओर पंजाब का मामला हमारे सामने है। वहां राज्यपाल ने इस विधेयक पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। संकट पैदा हो गया है। मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह ने इस मामले में राष्ट्रपति से मिलने का समय मांगा, नहीं मिला। पंजाब में किसानों का रुख ज्यादा आक्रामक है। रेल पटरियों पर बैठकर आंदोलन किया जा रहा है। इसके चलते यात्री ट्रेनें तो प्रभावित हैं, माल परिवहन भी बाधित है। बाद में किसानों ने मालगाडिय़ों को नहीं रोकने की घोषणा भी कर दी पर रेलवे ने सभी तरह की ट्रेनों को आंदोलन से प्रभावित क्षेत्रों में रोक रखा है। इसके चलते वहां के बिजलीघरों में कोयले की आपूर्ति नहीं हो पा रही है अब बिजली उत्पादन पर असर पडऩे की आशंका है। छत्तीसगढ़ में राज्यपाल और सरकार के बीच टकराव की बात बीच-बीच में आई हैं और दोनों तरफ से इसका खंडन भी किया गया। पंजाब के परिप्रेक्ष्य में यह देखना होगा कि छत्तीसगढ़ में विधेयक का आने वाले दिनों में क्या हश्र होने वाला है।
टाइगर के बिना टाइगर रिजर्व
उंदती सीतानदी इलाके में लोगों ने इसके टाइगर रिजर्व एरिया के दर्जे को खत्म करने की मांग पर आंदोलन शुरू किया है। इनका कहना है कि बीते कई सालों से यहां किसी ने टाइगर नहीं देखा। जंगल में 200 ट्रैप कैमरे लगाये गये हैं। उनमें भी अब तक कोई बाघ कैद नहीं हुआ। फिर भी हर साल 30-40 करोड़ रुपये खर्च कर दिये जाते हैं। इस इलाके में निर्माण कार्य और सुविधाओं पर रोक लगी हुई है। 40 गांवों में रहने वाले करीब 30 हजार लोग सडक़, पुल-पुलिया, स्कूल भवन से वंचित हो गये हैं। इन्हें विस्थापित किये जाने का खतरा भी बना हुआ है। लगभग यही स्थिति अचानकमार टाइगर रिजर्व की है। यहां कभी 19 बाघ तो कभी 40 बाघ होने का दावा किया जाता है पर ये न तो पर्यटकों को दिखाई देता न ही भीतर के गांवों में बसे लोगों को। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत यहां 600 मकान स्वीकृत किये गये थे लेकिन उस पर रोक लगा दी गई। बिलासपुर से पेन्ड्रारोड और अमरकंटक को जोडऩे वाली सडक़ की मरम्मत वर्षों से नहीं हुई है। पहले यहां से गुजरना भी रोक दिया गया था पर अब विरोध के कारण दिन में आने-जाने की छूट दी गई है। एक निश्चित समय में जंगल को पार करना भी जरूरी है। यह बात जरूर है कि दूसरे जंगली जानवर इस क्षेत्र में है पर टाइगर होने न होने पर हमेशा संदेह जताया जाता रहा है। टाइगर रिजर्व न बतायें तो वन विभाग को बजट किस बात पर मिलेगा? वन विभाग की सहूलियत आम लोगों की परेशानी का सबब है।