राजपथ - जनपथ
मरवाही से कौन?
जाति विवाद के चलते मरवाही में अमित जोगी या उनकी पत्नी डॉ. ऋचा जोगी चुनाव मैदान में नहीं उतर पाए तो क्या होगा, इस पर राजनीतिक गलियारों में बहस चल रही है। हल्ला यह है कि जोगी दंपत्ति के चुनाव मैदान में नहीं उतर पाने की स्थिति में गुंडरदेही के पूर्व विधायक आरके राय जनता कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते हैं। सुनते हैं कि पार्टी के अंदरखाने में इस पर मंत्रणा भी हुई है। आरके राय जोगी परिवार के भरोसेमंद माने जाते हैं।
पुलिस की नौकरी छोडक़र राजनीति में कदम रखने वाले आरके राय मरवाही की भौगोलिक स्थिति से वाकिफ हैं, और वे दर्जनों बार अजीत जोगी, अमित के साथ क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं। मरवाही जोगी परिवार का गढ़ है। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर राय को जिताने की जिम्मेदारी स्वाभाविक तौर पर रेणु जोगी और अमित जोगी की रहेगी। कुछ लोगों का मानना है कि वे कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे। एक विकल्प और है कि कांग्रेस से असंतुष्ट और भाजपा के बागी संयुक्त प्रत्याशी उतारने की रणनीति बना रहे हैं। जोगी परिवार इस मोर्चा को समर्थन दे सकता है। खैर जितनी मुंह उतनी बातें। अगले दो-तीन दिनों में मरवाही की तस्वीर साफ होने की उम्मीद है।
धंधा तो ठीक है पर महर्षि वाल्मीकि का नाम...
इंटरनेट और सोशल मीडिया पर लोगों को तरह-तरह का झांसा देने का काम चलते ही रहता है। इसमें एक लोकप्रिय झांसा कमाई का है। लोगों का ऐसी अंधाधुंध कमाई का भरोसा दिलाया जाता है कि उनकी जिंदगी ही बदल जाएगी। अभी एक किसी मोबाइल नंबर से इस अखबारनवीस को वॉट्सऐप पर मैसेज मिला कि एक मोबाइल फोन और सौ रूपए से हर दिन 10 हजार से 30 हजार रूपए रोज कमाए जा सकते हैं, और कोई समय सीमा भी नहीं है। जो लोग ऐसी कमाई चाहते हैं वे नीचे दिए गए वॉट्सऐप नंबर को अपने फोन पर जोड़ लें।
अब जिस नंबर से यह संदेश आया है उसकी प्रोफाईल खोलकर देखने पर महर्षि वाल्मीकि की तस्वीर डली हुई है। महर्षि वाल्मीकि के बारे में कहा जाता है कि एक समय वे डकैत थे, और बाद में वे एक महान धार्मिक लेखक हो गए थे। उन्होंने रामायण की रचना की थी।
अब उनकी तस्वीर का इस्तेमाल करते हुए यह संदेश बढ़ाया जा रहा है कि हिन्दुस्तान में 30 करोड़ लोग इस मनीमेकिंग मॉडल से जुड़ चुके हैं। अब अगर 30 करोड़ लोग हर दिन 10 हजार रूपए से लेकर 30 हजार रूपए तक कमा रहे हैं, तो हिन्दुस्तान में गरीबी बचना क्यों चाहिए। केन्द्र सरकार को चाहिए कि हर किसी को एक मोबाइल और सौ रूपए दे दे, तो सरकार पर से गरीबी हटाने का बोझ भी हट जाएगा। महर्षि वाल्मीकि के मानने वालों को देखना चाहिए कि उनकी तस्वीर का इस्तेमाल यह किस धंधे में हो रहा है।
क्रिमिनल दामाद?
फैशन में कई जगह गैरकानूनी कामकाज से जुड़े नामों का इस्तेमाल होता है। कई महंगे इत्र पॉइजन, ओपियम (अफीम), आऊटलॉ, जैसे ब्रांड या सामान बाजार में रहते हैं। अभी दो दिन पहले राजनांदगांव के एक ढाबा मालिक का जो लडक़ा किडनैप किया गया, आज जब उसकी तस्वीरें सामने आई हैं तो उसने जेल में बंद कैदियों की तरह छापे वाले टी-शर्ट पहनी हुई है, और उस पर क्रिमिनल दामाद छपा हुआ दिख रहा है। फिलहाल तो वह पुलिस या फिरौती की मेहरबानी से पुलिस के दामाद की तरह उनके बीच बैठकर लौट रहा है, और ऐसी चर्चा है कि क्रिकेट-सट्टे के लेन-देन के चक्कर में उसका अपहरण हुआ था। बाकी मां-बाप अपने बच्चों के बारे में सोच लें कि वो सीने पर मुजरिम दामाद जैसा कुछ टांगकर अगर चल रहे हैं, तो उन्हें अगली पटरी पर ले आएं।
एसटी-एससी युवाओं को कर्ज की कड़ी शर्तें
आर्थिक मंदी और कोरोना के दौर में लोग नया कारोबार शुरू करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। लोन लेकर रोजगार शुरू करना तो और भी मुश्किल दिखाई दे रहा है। अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के बेरोजगारों को उनके लिये बनाये गये वित्त निगम से कुछ आसान शर्तों पर वर्षों से ऋण दिया जाता रहा है। दस्तावेज और कागजी प्रक्रिया में भी कुछ ढील दी जाती रही। ब्याज में छूट तथा अनुदान भी मिलता है। पर अब शर्तें इतनी कड़ी कर दी गई है कि बेरोजगार युवकों के होश उड़े हुए हैं। उनसे जमीन के पट्टे के कागज जमा करने कहा जा रहा है साथ ही जमानतदार के तौर किसी सरकारी कर्मचारी को पेश करने कहा जा रहा है। प्रदेश के ज्यादातर जिलों में इसके चलते लोन देने का लक्ष्य पूरा नहीं हो पा रहा है। कोरबा के कांग्रेस पदाधिकारियों ने बकायदा मुख्यमंत्री को चि_ी लिखकर प्रावधानों में संशोधन की मांग की है। किसी बेरोजगार के पास अपनी कोई जमीन नहीं है तो परिवार का पट्टा जमा करना होगा। परिवार लोन के लिये अपनी इकलौते जमीन के टुकड़े को बंधक बनाने राजी हो जायेंगे यह कैसे संभव है? और किसी शासकीय सेवक को क्या पड़ी है कि कि वह जमानतदार बनने की उदारता दिखाये। दूसरा पहलू, इन योजनाओं में रिकव्हरी की स्थिति भी अच्छी नहीं है। हो सकता है कि कुछ ऋणी व्यवसाय में नुकसान के कारण कर्ज नहीं चुका पाते हों पर अधिकारियों को कमीशन देने में भी काफी पैसा लोन लेने के दौरान ही खर्च हो जाता है। हितग्राहियों के दिमाग में बिठाया जाता है कि ऐश करो, लोन वापस करना जरूरी नहीं है। अक्सर ऐसे विभागों के कामकाज की समीक्षा मंत्री, सचिव स्तर पर नहीं हो पाती है, प्राथमिकता में नहीं है। अफसर ही नियम बनाते हैं और योजना संचालित करते हैं। अब जब रोजगार की जरूरत हर तबके को है, ऐसी योजनायें बेहतर और व्यवहारिक तरीके से लागू करना जरूरी है।
धान की खरीद कब से शुरू होगी?
केन्द्र सरकार ने बीते साल समर्थन मूल्य से अधिक दर पर धान खरीदे जाने की स्थिति में राज्य से चावल का कोटा उठाने से मना कर दिया था। बाद में मूल्य वही रखा गया। किसानों को राजीव न्याय योजना के तहत अतिरिक्त राशि दी जा रही है। केन्द्र और राज्य सरकार के बीच उपजे विवाद के चलते पिछली बार खरीदी शुरू करने की तारीख बहुत आगे 1 दिसम्बर तक चली गई। धान पर बोनस नहीं देने पर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर हमला बोला था वहीं भाजपा ने धान खरीदी की तारीख आगे बढ़ाये जाने को लेकर सवाल उठाये थे। लगता है इस बार भी ऐसा कुछ होने जा रहा है। केन्द्र का कृषि बिल राष्ट्रपति की दस्तखत के बाद अब कानून बन चुका है। राज्य सरकार ने यह जरूर कहा है कि वह अपने यहां यह कानून लागू नहीं करेगी लेकिन नया कानून बनायेगी। नये कानून पर अभी विचार-विमर्श की स्थिति नहीं बनी है। खरीदी की तारीख अब तक घोषित नहीं हुई है। दूसरी तरफ अब किसानों की फसल पकने लगी है। अर्ली वेरायटी धान की कटाई कुछ दिन में शुरू हो जायेगी। किसानों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि जबसे समर्थन मूल्य पर धान खरीदी शुरू हुई है उन्होंने संग्रह करने की जगह कोठी बनाना बंद कर दिया है। वे धान के पैसे का इंतजार करते रहते हैं क्योंकि उन्हें कई रुके काम पूरे करने होते हैं। बीते साल खुली बिक्री पर पाबंदी के बावजूद मिलर्स और आढ़तियों ने जबरदस्त खरीदी की थी। इस बार यदि नये कानून के चलते रोक नहीं लगी तो यह काम चोरी-छिपे करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। अच्छा होता यदि धान खरीदी की तारीख को पिछली बार की तरह एक दिसम्बर तक नहीं खींचा जाये। इसे पहले की तरह 1 नवंबर ही रखा जाये ताकि सरकारी कीमत पर ही लोग धान बेच सकें।