राजपथ - जनपथ
मंत्रालय भी गरीब और अमीर !
वैसे तो केन्द्र सरकार में राज्य से सिर्फ रेणुका सिंह ही मंत्री हैं मगर कई मंत्री ऐसे हैं, जिनका छत्तीसगढ़ से सीधा नाता रहा है। ये छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी अथवा चुनाव प्रभारी रहे हैं। इनमें राजनाथ सिंह, धर्मेन्द्र प्रधान और रविशंकर प्रसाद शामिल हैं। ये मंत्री प्रदेश के छोटे-बड़े नेताओं से परिचित हैं और प्रदेश से जब कोई नेता उनसे मुलाकात के लिए जाते हैं, तो वे अच्छी खातिरदारी भी करते हैं। पिछली सरकार में विष्णुदेव साय भी मंत्री थे और वे भी प्रदेश से लोगों की आवभगत में कोई कमी बाकी नहीं रखते थे।
विष्णुदेव साय भले ही राज्यमंत्री थे, लेकिन उनके पास इस्पात जैसा भारी भरकम महकमा था। लिहाजा एनएमडीसी और सेल के ऑफिस से साय के लोगों के लिए खाने-पीने का बंदोबस्त हो जाता था। मगर केन्द्र में पहली बार की एक मंत्री को अपने लोगों को खुश करना भारी पड़ गया। हुआ यूं कि मंत्री के यहां कुछ महीने पहले क्षेत्र के लोग दिल्ली पहुंचे थे। क्षेत्र के लोग आए हैं, तो स्वाभाविक है कि खाने-पीने की व्यवस्था की जिम्मेदारी भी मंत्री स्टॉफ की थी। खाने-पीने का बिल भी दो लाख से अधिक पहुंच गया। मंत्री स्टॉफ ने बिल मंत्रालय भेज दिया।
दो दिन बाद मंत्रालय से जवाब आ गया कि इतनी बड़ी राशि के भुगतान की व्यवस्था नहीं है। मंत्री के स्टाफ के लोग काफी दिनों तक मंत्रालय के लोगों को मनाने की कोशिश करते रहे, लेकिन मंत्रालय के लोग टस से मस नहीं हुए। आखिरकार मंत्री ने मंत्रालय के प्रमुख लोगों को बुलाया और निवेदन किया कि कोई रास्ता निकालें क्योंकि रोज होटलवाला बिल लेकर पहुंच जाता है।
मंत्रालय के लोगों ने काफी मंथन के बाद रास्ता निकाला कि खाने-पीने के बिल को चाय-नाश्ते में बदल दिया जाए। दिक्कत यह भी थी कि दो लाख की चाय के बिल भुगतान से जांच-पड़ताल का खतरा पैदा हो सकता था। इसलिए टुकड़े-टुकड़े में बिल का भुगतान करने का निर्णय लिया गया। मंत्रीजी के स्टॉफ को भी नसीहत दी गई है कि गरीबों का मंत्रालय है, इसलिए 20-25 हजार महीने से ज्यादा की आवभगत न करें। मंत्रीजी को भी बात समझ में आ गई और उन्होंने अब क्षेत्र के लोगों को दिल्ली आने के लिए कहना बंद कर दिया है।
मन में बहुत ही उत्साह हो तो...
छत्तीसगढ़ में निगम-मंडल की कुर्सियों पर बिठाए गए लोग पदभार लेते समय कम से कम विभागीय मंत्री, संभव हो सके तो मुख्यमंत्री, कई दूसरे मंत्री, मुख्यमंत्री के सलाहकार, और दूसरे बड़े नेताओं की मौजूदगी की कोशिश कर रहे हैं। यह एक किस्म से शक्ति प्रदर्शन भी हो जाता है, और बड़े नेताओं को महत्व देना भी। लेकिन इन मौकों पर एक-दूसरे को मिठाई खिलाना, आसपास खड़े रहना, मास्क उतारकर मजाक करना, खतरनाक भी होते चल रहा है। कुछ लोग पदभार सम्हालते हुए कोई दावत नहीं रख पा रहे हैं कि पन्द्रह बरस तो लोगों के यहां दावत खाई ही है, और आज जब खुशी की घड़ी आई है, तो लोगों को कैसे न बुलाएं।
कुछ लोग इस खुशी में मिठाई भेज रहे हैं, तो कुछ दूसरे लोग उन्हें यह समझा रहे हैं कि इन दिनों बहुत से लोग बाहर से आई हुई मिठाई खाने से परहेज कर रहे हैं, वे डिब्बे या तो दूसरों में बांट दे रहे हैं, या गाय-कुत्तों को खिला दे रहे हैं। किसी ने सुझाया कि मिठाई की जगह मेवे के डिब्बे भेजना ठीक रहेगा जिन्हें लोग कुछ दिन धूप में रखने के बाद घर में ले सकेंगे, और खा भी सकेंगे। लेकिन फिर यह बात उठी कि अभी तो निगम-मंडल का हिसाब भी नहीं देखा है, अभी से मेवे जैसा पैसा आएगा कहां से? ऐसे में उन कुछ समझदार लोगों का भला हो जिन्होंने खुद फोन करके नए बने अध्यक्षों को कह दिया कि मेहरबानी करके मिठाई न भेजें क्योंकि वे अपने घर बाहर का बना कुछ आने नहीं दे रहे हैं। फिलहाल समझदारी इसी में है कि न तो भीड़ इक_ा होने दें, और न ही मिठाई खाएं-खिलाएं, या घर भेजें। खुशी मनाने की पुरानी शैली को अब बदलना पड़ेगा। एक पुराने पत्रकार ने अपने करीबी एक नए अध्यक्ष बने नेता से कहा- एक काम करना, मन में बहुत ही उत्साह हो तो नगदी भेज देना...।