राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मंत्रियों की टेंशन
15-Jul-2020 6:30 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मंत्रियों की टेंशन

मंत्रियों की टेंशन

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मंगलवार को संसदीय सचिवों को शपथ दिलाते समय आत्मविश्वास से भरे नजर आ रहे थे। समीक्षकों का मानना है कि यह आत्मविश्वास दरअसल तसल्ली का भाव था कि देर से ही सही विधायकों को संतुष्ट करने का काम तो पूरा हुआ। 12 मंत्री और 15 संसदीय सचिवों को मिला लिया जाए तो 27 विधायक तो सरकार के पास हैं। वे अब सरकार की मर्जी के बिना हिल-डुल भी नहीं सकते। सीएम ने नए संसदीय सचिवों को भरोसा दिलाया कि अभी कामकाज सीख लें, फिर तो उन्हें ही मंत्री बनकर सरकार चलाना है। मुखिया ने उन्हें भविष्य का भी सपना दिखा दिया है। अब तो वे संसदीय सचिव के रूप में बेहतर करने के लिए जुट जाएंगे, ताकि मंत्री बनने का मौका मिल सके, लेकिन इससे मंत्रियों की चिंता बढ़ गई है, क्योंकि कैबिनेट का आकार तो बढ़ नहीं सकता। नए मंत्रियों के लिए पुरानों को जाना पड़ेगा। ऐसे में वे मंत्री ज्यादा टेंशन में है, जिनके परफार्मेंस से मुखिया खुश नहीं है। उनके सामने तो चुनौती खड़ी हो गई है।

दरअसल कांग्रेस पार्टी कोई भी फैसला लेने में, या किसी लिस्ट को मंजूरी देने में जिस तरह महीनों लगा देती है, उससे पार्टी में असंतोष बढ़ते चलता है। अब मध्यप्रदेश और राजस्थान की गड़बड़ी के बाद बाकी राज्यों में भी कांग्रेस को अपना संगठन, या अपनी सरकार, या दोनों सम्हालने की जरूरत है। छत्तीसगढ़ में निगम-मंडल में भी कुछ विधायक एडजस्ट होंगे, और कुल मिलाकर 45 ऐसे विधायक हमेशा ही सरकार के काबू में रहेंगे जिनसे विधानसभा में बहुमत साबित होता है। छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार देश में सबसे सुरक्षित कांग्रेस सरकार हैं, लेकिन मोदी-शाह जिस तरह एक-एक प्रदेश को निशाने पर लेकर चल रहे हैं, सबको अपने दरवाजे मजबूत रखने चाहिए।

नेम प्लेट में पद बदलने की खुशी

छत्तीसगढ़ में संसदीय सचिवों ने शपथ ले ली है। इससे उनका सामाजिक और क्षेत्र में ओहदा तो बढ़ गया है, लेकिन सरकार में क्या स्थिति रहने वाली है, यह स्पष्ट नहीं हो पाया है, क्योंकि लाभ का पद मानते हुए अदालत ने कई तरह की बंदिशें लगा दी थीं। जानकारों की मानें तो संसदीय सचिव के पास न तो फाइल जाएगी और न ही विधानसभा में वे सवालों के जवाब दे सकेंगे। कुल मिलाकर संसदीय सचिव का पद लॉलीपॉप ही है। हालांकि कुछ विधायक तो नेम प्लेट में पद बदलने से ही खुश है। अब देखना है कि उनकी यह खुशी कब तक रहती है।

दिलचस्प बात यह है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहले संसदीय सचिव बनाने के खिलाफ थे, और सरकार बनने के बाद जल्द ही उनके एक करीबी मंत्री मोहम्मद अकबर ने बयान दिया था कि संसदीय सचिव बनाए जाएंगे, और तुरंत ही भूपेश बघेल ने इसके खिलाफ बयान दिया था कि ऐसा कोई इरादा नहीं है। लेकिन वक्त बढऩे के साथ-साथ ओवरलोड कांग्रेस विधायक दल में बेचैनी बढ़ रही थी, इसलिए अधिक से अधिक लोगों को सत्ता में भागीदारी देना जरूरी हो गया था। राज्य बनने के बाद किसने सोचा था कि एक दिन कांग्रेस विधायक दल का इतना बड़ा आकार रहेगा?

मना करने वाले भी हैं...

खबर है कि सीनियर विधायक रामपुकार सिंह ने निगम-मंडल पद लेने से मना कर दिया। रामपुकार सिंह सबसे ज्यादा आठवीं बार विधायक बने हैं। वे जोगी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। सीधे-सरल इस आदिवासी नेता के मंत्री बनने की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। वे औरों की तरह जोड़-तोड़ से दूर रहे हैं। मंत्री पद नहीं मिला,  तो वे कोप भवन में नहीं गए।

अब पार्टी के प्रमुख नेताओं ने उन्हें निगम-मंडल अथवा संसदीय सचिव का पद का ऑफर दिया। मगर उन्होंने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया। इसी तरह पूर्व सांसद करूणा शुक्ला को भी निगम-मंडल में पद के लिए ऑफर किया गया था। करूणा शुक्ला ने पद लेने से मना कर दिया। चर्चा है कि करूणा की इच्छा राज्यसभा में जाने की है। मगर उनकी इच्छा पूरी होती है अथवा नहीं, देखना है।

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