राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कलेक्टर की ताकत, और कमरे
04-Jun-2020 5:58 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कलेक्टर की ताकत, और कमरे

कलेक्टर की ताकत, और कमरे

एक जिले के कलेक्टर रहे अफसर को उसी जिले में बलात्कार के आरोप का सामना करना पड़े, यह एक भयानक नौबत है। कलेक्टर महज एक अफसर नहीं होते हैं, वे सरकारी ढांचे के भीतर एक संस्था कहे जाते हैं। बहुत सारे लोग यह बात कहते और लिखते हैं कि सरकारी ढांचे में तीन एम काम के होते हैं, बाकी केवल उनका साथ देने के लिए रहते हैं, पीएम, सीएम, और डीएम। उत्तर भारत के कुछ प्रदेशों में कलेक्टर शब्द का इस्तेमाल कम होता है, और वहां डीएम शब्द ही चलता है, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट। ऐसे में इस कुर्सी के साथ इतनी अधिक ताकत जुड़ जाती है कि उस पर बैठकर दिमाग को काबू में रखना बड़ा ही मुश्किल हो जाता है। कई लोगों को यह गलतफहमी हो जाती है कि कलेक्टर रहते हुए वे ईश्वर के सीधे प्रतिनिधि हो गए हैं, और ईश्वर की सारी ताकत का मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके बाद जिला खनिज निधि आ जाने से छोटे से छोटे जिलों के कलेक्टर भी करोड़ों रूपए मनमानी खर्च करने की ताकत रखने लगे हैं, और ऐसे में जाहिर है कि इनके आसपास तरह-तरह के एनजीओ के लोग मंडराने लगें। भोपाल में पिछले बरस जो भयानक हनी ट्रैप सामने आया था, उसमें ढेर सारे आईएएस और आईपीएस अधिकारी थे जो कि एनजीओ को करोड़ों रूपए देने के एवज में महिलाओं की देह पाते थे। मानो उसी अविभाजित मध्यप्रदेश से प्रेरणा पाकर जगत प्रकाश पाठक ने जांजगीर जिले में कलेक्टर रहते हुए जिस तरह एक महिला पर डोरे डाले, और महिला की लिखाई रिपोर्ट के मुताबिक जिस तरह उसके सरकारी कर्मचारी पति पर कार्रवाई की धमकी दी, वह सब कुछ कलेक्टर की कुर्सी पर बैठकर आई बददिमागी थी। अलग-अलग लोग इस ताकत से जमीनें, दौलत, राजनीतिक जोड़तोड़, और बदन, जैसी हसरत हो वैसा पाने की कोशिश करते हैं। इस अफसर ने जितने बेहूदे और अश्लील तरीके से इस महिला को पाने के लिए फोन पर खुले संदेश भेजे, वह इस कुर्सी पर बैठाए जाने वाले अफसरों के स्तर पर बड़े सवाल खड़े करता है।

गनीमत यह है कि यह शिकायत आने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कुछ दिनों की ही जांच के बाद जुर्म दर्ज करने और निलंबित करने के आदेश दे दिए। वरना पिछली सरकार में मातहत कर्मचारी के सेक्स-शोषण के आरोपों के बाद बड़े अफसर न सिर्फ प्रमोशन पाते रहे, बल्कि सरकार अपनी पूरी ताकत से राष्ट्रीय महिला आयोग, अदालत, सभी को झांसा देने की कोशिश करती रही, और उस वक्त के मामले को आज की सरकार ने भी छुआ नहीं है। लेकिन इस मामले में हुई कार्रवाई से हो सकता है कि बाकी पीडि़त महिलाओं को भी इंसाफ मिलने की सच्ची या झूठी उम्मीद बंध जाए। उनके वकील एक बार फिर कोशिश कर सकते हैं।

दूसरी बात यह कि सरकारी दफ्तरों में दरवाजों को भीतर से बंद करने का इंतजाम खत्म ही कर देना चाहिए। सिर्फ शौचालय का दरवाजा भीतर से बंद हो, बाकी को बंद किया भी क्यों जाना चाहिए? अगर कमरों के भीतर की सिटकनी की व्यवस्था खत्म हो जाए, तो कम से कम दफ्तरों में तो इस दर्जे के बलात्कार नहीं हो पाएंगे? राष्ट्रीय महिला आयोग को चाहिए कि देश भर के सभी सरकारी दफ्तरों में शौचालय छोड़ बाकी तमाम कमरों और हॉल के भीतर की सिटकनी हटवाने का काम करे।

छत्तीसगढ़ में कम से कम एक अफसर ऐसे हैं जो अपने कमरे में अपने टेबिल पर फोकस कैमरा लगवाकर रखते हैं, और उससे कमरे का नजारा बाहर टीवी स्क्रीन पर सबको दिखता है। प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के सीईओ आलोक कटियार पहले भी ऐसा करते आए हैं, और आज भी उनका कमरा दो कमरे बाहर से टीवी स्क्रीन पर दिखते रहता है।

इस ताजा नया जांजगीर सेक्सकांड ने अफसरशाही को करीब से जानने वाले लोगों के बीच में एक बार फिर सनसनीखेज चर्चाओं को शुरू कर दिया है कि इसके पहले किस-किस सरकारी दफ्तर में ऐसे कांड हुए थे, और सरकारी दफ्तरों के बाहर भी इन जगहों पर कौन-कौन से अफसर कैसे सेक्सकांड में फंसे थे। यह सब कुछ देखें, और मध्यप्रदेश के हनी ट्रैप को भी देखें तो लगता है कि जिन अफसरों को केन्द्र और राज्य सरकारें बहुत काबिल और माहिर मानकर उन्हें लाखों-करोड़ों जनता का जिम्मा दे देती हैं, उनमें से कुछ किस परले दर्जे के मूर्ख रहते हैं।

जानकार पुलिस अफसरों के मुताबिक पाठक नाम के इस अफसर ने जैसे घटिया संदेश इस महिला को भेजे, उसके बदन की तस्वीरें मंगवाईं, और अपने बदन की तस्वीरें भेजीं, वे सब निलंबन नहीं, बर्खास्तगी के लायक है क्योंकि नौकरी की सेवा शर्तों में एक बड़ी विस्तृत असर वाली शर्त भी रहती है जिसके तहत किसी को भी बर्खास्त किया जा सकता है, और वह शर्त है अनबिकमिंग ऑफ एन ऑफिसर।

सब दुखी हैं...

प्रदेश भाजपा पद से हटाए जाने से विक्रम उसेंडी आहत हैं। उन्होंने पार्टी द्वारा दी गई इनोवा कार लौटा दी। हालांकि सौदान सिंह और पवन साय, उनसे कहते रहे कि अभी गाड़ी को लौटाने की जरूरत नहीं है। मगर उसेंडी नहीं माने। उसेंडी का दर्द यह था कि उन्हें ठीक से काम करने का मौका ही नहीं दिया गया। उसेंडी की मन:स्थिति भांपते हुए सौदान सिंह और पवन साय ने उन्हें समझाने की कोशिश कि उन्हें कोई अहम जिम्मेदारी दी जाएगी। थोड़ी देर दोनों नेताओं को सुनने के बाद उसेंडी चले गए। न सिर्फ उसेंडी बल्कि अध्यक्ष पद के बाकी दावेदार रामविचार नेताम, नारायण चंदेल और अन्य नेता भी दुखी हैं। और तो और खुद नए अध्यक्ष विष्णुदेव साय भी दुखी हैं। वे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष बनना चाहते थे। अनौपचारिक चर्चाओं में अध्यक्ष पद के दावेदार रहे नेताओं के समर्थक रमन और सौदान सिंह की जोड़ी को कोस रहे हैं। ऐसे में नए अध्यक्ष विष्णुदेव साय के लिए सबको साथ लेकर चलना कठिन चुनौती हो गई है।

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