राजपथ - जनपथ
पत्रकारिता विवि को भारी पड़ा वेबीनार
छत्तीसगढ़ का एकमात्र पत्रकारिता विवि लगातार विवादों के कारण सुर्खियों में रहता है। नया विवाद एक कार्यक्रम को लेकर है। राज्य के पहले सीएम अजीत जोगी के निधन के बाद राज्य सरकार ने तीन दिनों का राजकीय शोक घोषित किया था। राजकीय शोक में शासकीय कार्यक्रमों, सेमीनार पर रोक होती है, लेकिन इन सब से बेखबर विवि प्रबंधन ने राजकीय शोक के दौरान वेबीनार का आयोजन किया। कार्यक्रम की खबर छात्र कांग्रेसियों को लग गई, तो बैठे-बिठाए उनको मुद्दा मिल गया। विवि में संघ की पृष्ठभूमि वाले कुलपति की नियुक्ति के कारण कांग्रेसी पहले से खार खाए बैठे हैं। ऐसे में इस मुद्दे को हवा देने के लिए एक छात्र नेता ऑनलाइन वेबीनार में शामिल हो गए और हंगामा शुरु कर दिया। जैसे ही आयोजकों और विवि रजिस्ट्रार को माजरा समझ आया उन्होंने तुरंत तकनीकी कारण बताकर वेबीनार को स्थगित कर दिया। विवि का प्रबंधन इस बात से राहत महसूस कर रहा है कि वेबीनार में कुलपति नहीं जुड़े पाए थे, वरना फजीहत और ज्यादा होती। हालांकि कुलपति लगातार ऐसे कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे हैं। वे फिलहाल दिल्ली से लौटने के बाद 14 दिन का क्वारंटाइन पीरियड काट रहे हैं। दूसरी तरफ छात्र कांग्रेसियों ने इस पूरे मामले की शिकायत सरकार में बैठे प्रमुख लोगों से की है। इसके पहले कुलपति के एबीवीपी के फेसबुक पर लाइव करने की भी शिकायत हुई थी, लेकिन छात्र कांग्रेसियों की दिक्कत यह है कि उनकी कोई सुनवाई हो नहीं रही है। वे लगातार नेतागिरी का धर्म तो निभा रहे हैं, लेकिन सरकार में बैठे लोग दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। छात्र कांग्रेसियों को उम्मीद है कि एक ना एक दिन तो उनकी सुनवाई होगी। चलिए उम्मीद पालने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि सरकार में आने से पहले छोटी-छोटी गड़बडिय़ों पर हल्ला बोलने वाले अचानक कहां गायब हो गए हैं, जिन्हें अपने ही कार्यकर्ताओं की शिकायत सुनाई नहीं दे रही है।
सोचना जरा आराम से ?
मान लीजिए कि मैंने पीएम/सीएम राहत कोष में 2000 रुपये दान किए। दूसरी ओर, मेरे एक भाई ने 2000 रुपये की व्हिस्की खरीदी।
अब सवाल यह है कि किसने अधिक योगदान दिया?
1. मेरे द्वारा दान किए गए 2000 रुपये पर मुझे 30 प्रतिशत कर छूट मिली। इसलिए, मंैने वास्तव में 600 रुपये वापस कमाए। दूसरे शब्दों में 2000 रुपये का दान करके मैंने सिर्फ 1400 रुपये का शुद्ध योगदान दिया।
2. शराब पर, कुल करों (उत्पाद शुल्क और जीएसटी) ने लगभग 72 प्रतिशत एमआरपी तक जोड़ा। इसलिए जब मेरे भाई ने 2000 रुपये का भुगतान किया, तो 1440 रुपये सरकारी खजाने में गए। और 750 एमएल व्हिस्की की बोतल से 12 पेग का सुख उसे मिला। इसलिए, न केवल उसने अधिक योगदान दिया, उसने डिस्टिलरी में नौकरियों का निर्माण किया, उनके आपूर्तिकर्ताओं के लेबल, बोतलें, ढक्कन, मशीनरी आदि, मार्केटिंग कंपनी में नौकरियां, वाइन शॉप पर नौकरियां और इसके अलावा वह उच्च आत्माओं में था, जबकि मुझे यह भी पता नहीं है कि मेरा दान का पैसा कहां गया?
-सतवीर सिंह मालवी (सोशल मीडिया पर)
क्या से क्या हो गया...
छत्तीसगढ़ में थोक में आईएएस अफसरों के तबादलों के बाद आईपीएस का भी छोटा फेरबदल हुआ था। यह बदलाव अपेक्षाकृत छोटा था, लेकिन इसकी भी बड़ी चर्चा हो रही है। सबसे पहले खुफिया चीफ हटाए गए। हालांकि उनकी नियुक्ति पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। वे पिछले सरकार में बस्तर के आईजी थे, उस समय दुर्भाग्य से सबसे बड़ा नक्सल अटैक झीरम हुआ था। इस हमले में कांग्रेस के बड़े नेताओं की जान गई थी। तब कांग्रेस ने इस हमले के लिए पुलिस और खुफिया तंत्र की विफलता को जिम्मेदार माना था। उसके बाद भी गुप्ता बस्तर से दुर्ग रेंज के आईजी के रुप में पदस्थ किए गए। यह रेंज इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण थी कि यह सीएम और एचएम का गृह जिला है। उसके बाद गुप्ता खुफिया विभाग के प्रमुख बनाए गए। खुफिया विभाग सीधे मुख्यमंत्री से जुड़ा रहता है और इंटेलीजेंस प्रमुख ही एकमात्र ऐसा अफसर होता है, जो बिना रोक-टोक के सीएम से कभी भी मिल सकता है। कुल मिलाकर उनकी नियुक्ति को देखें तो लगता है कि सरकार की खास पसंद रहे होंगे। ऐसे में रातों-रात क्या हो गया जिसकी वजह से उन्हें खुफिया चीफ के पद से छोटे से कार्यकाल के बाद विदा कर दिया गया? इसी तरह ईओडब्ल्यू और एसीबी चीफ जीपी सिंह के तबादले के भी मायने निकाले जा रहे हैं। हाल ही में लॉकडाउन के दौरान उन्होंने कई बड़े मामलों में जांच शुरु की थी। माना जा रहा था कि सरकार से उन्हें फ्री हैंड दिया गया था।
इस फेरबदल से एक और खास संयोग सामने आया है। हिमांशु गुप्ता और जीपी सिंह को बिना किसी दायित्व के पीएचक्यू भेजा गया है। इसके पहले एसआरपी कल्लूरी भी बिना कामकाज पीएचक्यू में है। कल्लूरी 94 बैच के आईपीएस हैं। हिमांशु गुप्ता और जीपी सिंह भी 94 बैच के ही हैं। इस तरह 94 बैच के तीन अफसर पीएचक्यू में बिना प्रभार के पदस्थ किए गए हैं। इस संयोग को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि 94 बैच के अफसरों की ग्रह दशा ठीक नहीं चल रही है।
दुआओं का असर...
कोरोना को कोसने वाले तो अरबों हैं, लेकिन डॉक्टरों की खूब मेहनत के बावजूद कोरोना मर क्यों नहीं रहा है? वह रात-दिन लोगों को मार रहा है, हर मिनट एक मौत हो रही है, फिर भी वह जिंदा है, मस्ती से घूम रहा है, और लोगों को यमराज के मुकाबले अधिक रफ्तार से मार रहा है। वैज्ञानिक दुनिया भर में लगे हुए हैं, लेकिन उससे बचाव का टीका नहीं बन पा रहा है। तो दुनिया की कौन सी ऐसी ताकत है जो कोरोना को ताकत दे रही है?
इस बारे में इस अखबारनवीस ने खासी जांच-पड़ताल की तो पता लगा कि कोरोना के शुरू होने के बाद से लगातार लोग शाकाहारी हुए चल रहे हैं। बहुत से देश-प्रदेश में तो सरकारों ने ही मांस-मछली-मुर्गी की बिक्री रोक दी थी, और बाकी जगहों पर भी लोग अपनी दहशत में हाथ खींच चुके थे। बाहर की मुर्गी के बजाय लोगों को घर की दाल ज्यादा अच्छी लगने लगी थी। अब इन दो-तीन महीनों में दुनिया में कई अरब प्राणियों की जान बच गई है। जिन मुर्गों ने जिंदगी का तीसवां दिन नहीं देखा था, वे अब कई महीनों के होकर घूम रहे हैं। बकरों का हाल यह है कि कल ही हमने तस्वीर छापी थी कि बिलासपुर में पीने के पानी के एक टैंकर की धार से बकरे का मालिक उसे साबुन-शैम्पू के झाग से नहला रहा था। इन तमाम प्राणियों की दुआएं इंसानों के बजाय कोरोना के साथ है। और फिर इंसानों का जंगलों में घुसना कम हुआ है, खुद शहरों में इंसान कम निकले हैं, इसलिए जंगली जानवरों को भी घूमने के लिए जंगल भी खूब मिले, और शहर की सडक़ों पर भी वे दुनिया में जगह-जगह देखे गए। इन सबकी दुआ कोरोना को मिली है। फिर आसमान में एक बड़ा सा छेद ओजोनलेयर में बन गया था जिससे पूरी धरती खतरे में आ रही थी, और पिछले महीनों में प्रदूषण जमीन पर औंधेमुंह आ गिरा है, उसका भी नतीजा है कि धरती की दुआ भी कोरोना को मिल रही है। कुछ लोगों से बातचीत में धरती ने कहा भी है कि उसके लिए तो इंसानों से बेहतर कोरोना है, जो कि धरती का कुछ भी नहीं बिगाड़ रहा है। इन्हीं सब दुआओं का नतीजा है कि कोरोना को मारना आसान नहीं हो रहा है, बल्कि तमाम धर्मों के ईश्वर भी उसे कोई चेतावनी दिए बिना अपने-अपने कपाट बंद करके बैठे हुए हैं।