राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : विधानसभा कैसे चलेगी?
01-Jun-2020 5:56 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : विधानसभा कैसे चलेगी?

विधानसभा कैसे चलेगी?

कोरोना संक्रमण के बीच विधानसभा की कार्रवाई किस तरह संचालित की जाए, इसको लेकर मंथन चल रहा है। विधानसभा का मानसून सत्र जुलाई में प्रस्तावित है, लेकिन अब यह अगस्त में हो सकता है। सुनते हैं कि प्रस्तावित सत्र के संचालन की रूपरेखा तैयार की जा रही है। पहले यह चर्चा थी कि वेबीनार से सदन की कार्रवाई चलाई जा सकती है, मगर यह संभव होता नहीं दिख रहा है, क्योंकि इसमें कई तरह की व्यावहारिक दिक्कतें हैं।

दूसरी तरफ, संसद के सत्र को लेकर भी दिल्ली में विचार मंथन का दौर चल रहा है। चूंकि दिल्ली हॉटस्पॉट बन गया है। ऐसे में संसद की कार्रवाई मुश्किल दिख रही है। पिछले दिनों दिल्ली में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई थी जिसमें संसद की कार्रवाई को लेकर फार्मूला तैयार किया गया था। इस पर छत्तीसगढ़ विधानसभा की निगाहें हैं। फार्मूले के मुताबिक सामाजिक और शारीरिक दूरी बनाए रखने के लिए सीमित संख्या में सदस्यों को सदन में प्रवेश की अनुमति देने पर विचार किया गया। अर्थात जिस सांसद का सवाल होगा, वे ही सदन में मौजूद रहेंगे। मंत्रियों और अफसरों की संख्या भी सीमित रहेगी। दर्शकदीर्घा पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगी।

कुछ इसी तरह का फैसला छत्तीसगढ़ विधानसभा के संचालन को लेकर भी लिया जा सकता है। विभागवार सवाल-जवाब के दिन तय रहते हैं। जिस दिन जिस विभाग का सवाल होगा, उस दिन संबंधित विभाग के मंत्री और सवाल पूछने वाले विधायक सदन में आएंगे। इससे सामाजिक दूरी बनी रहेगी। माना जा रहा है कि विधानसभा के कार्य संचालन को लेकर अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत जल्द ही बैठक ले सकते हैं। इसमें सदन की कार्रवाई को लेकर कोई रूपरेखा तैयार की जा सकती है।

कोरोना, लॉकडाऊन, और कुछ बातें

मजदूरों को लेकर देश के लोगों के बीच मिलीजुली प्रतिक्रिया है। शहरी लोगों को यह भी लग रहा है कि आज केन्द्र सरकार की बदइंतजामी की वजह से लॉकडाऊन में बेरोजगार हुए करोड़ों मजदूर बेघर हुए, बुरी तरह से तकलीफ पा रहे हैं, लेकिन दुबारा चुनाव में वोट देने का मौका आएगा तो ये लोग कुछ सौ रूपए लेकर फिर इसी सरकार को चुन लेंगे। उनका मानना है कि मजदूरों की बहुतायत ही किसी सरकार को चुनने के लिए जिम्मेदार होती है, और यह बहुतायत चुनाव के वक्त बिकने को तैयार रहती है। दारू और नगदी, बस इसके बाद वे देश को डुबाने के लिए तैयार हो जाते हैं।

मजदूरों से परे दिल्ली का एक बुरा तजुर्बा सुनने मिला। देश की राजधानी कोरोना पॉजिटिव और मौतों के बोझ से दबी हुई है। ऐसे में वहां एक रिहायशी इमारत में जब पड़ोस की एक महिला को अस्पताल ले जाया गया, तो बगल के फ्लैट के लोगों ने घर में रह गए एक किशोर और एक बच्चे से उनके खाने-पीने के इंतजाम के बारे में पूछा। पड़ोस की जिम्मेदारी मानकर उन्होंने हर दिन इन बच्चों से पूछना जारी रखा कि कोई जरूरत तो नहीं है। एक दिन इन बच्चों ने जवाब दिया कि उन्होंने अपनी मां को बताया है कि पड़ोस के लोग रोज पूछ रहे हैं कि कोई जरूरत तो नहीं है, तो उनकी मां ने फोन पर कहा है कि तुरंत पुलिस में रिपोर्ट करो कि ये लोग हमें परेशान कर रहे हैं!

कोरोना-लॉकडाऊन का एक और तजुर्बा यह है कि जो लोग कोरोना से बचाव के लिए सरकार ओहदों पर जिम्मेदार लोग हैं, उनमें से बहुत से लोग इस खतरे और समस्या के बारे में तो कुछ नहीं कह रहे, वे लगातार अपनी खुद की अलग-अलग तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं, इसे अंग्रेजी में कहते हैं बिजिनेस एज युजुअल।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में मजदूरों के मोर्चे पर रात-दिन सडक़ चौराहों पर काम करने वाली एक सामाजिक कार्यकर्ता मंजीत कौर बल ने उनके साथ काम कर रही उनकी टीम को लेकर एक दिलचस्प बात फेसबुक पर पोस्ट की है। उन्होंने लिखा है कि आपदा के दौरान दो माह से बिना आराम किए काम करने वाले वालंटियर्स को आपदाओं में काम करने की इतनी आदत हो गई है कि अब बोल रहे हैं- टिड्डी दल पर काम करने चलें क्या?

इस पर कुछ लोगों ने मजा लेते हुए लिखा कि आपके साथियों को फूड पैकेट बांटने की इतनी आदत हो गई है कि टिड्डियों को भी खाना देने लगेंगे।

पहेलियां सुलझ नहीं पा रहीं...

छत्तीसगढ़ में हफ्ते भर में जितने बड़े-बड़े तबादले हुए हैं, उसने लोगों को हक्का-बक्का कर दिया है, खासकर सरकार में ऊंचे ओहदों पर बैठे हुए आला अफसरों को। कई लोगों के लिए ये तबादले ऐसी पहेली हैं जिसे वे सुलझा नहीं पा रहे हैं। बड़े अफसरों के टेलीफोन अब सिमकार्ड से वॉट्सऐप पर चले गए हैं, और वॉट्सऐप से सिग्नल या टेलीग्राम पर। जिस तरह लोगों को यह भरोसा नहीं है कि सामने वाले को कोरोना है या नहीं है, उसी तरह यह भरोसा भी नहीं है कि उसके टेलीफोन कॉल कोई सुन रहे हैं या नहीं। नतीजा यह है कि तबादलों की पहेली सुलझाने के लिए भी लोगों को बातचीत करनी है तो लोग सिमकार्ड को भूल ही गए हैं। कुछ अधिक संपन्न और सावधान लोग ऐसे हैं जो एप्पल के आईफोन की किसी मैसेंजर सर्विस पर ही भरोसा कर रहे हैं, जो कि दूसरे किसी फोन पर चलती नहीं है, और खुद एप्पल ने जिसका तोड़ नहीं निकाला है। बहुत से लोगों को राज्य सरकार के विभागों पर शक है कि वहां से उनके फोन टैप हो रहे हैं, और बहुत से लोगों को केन्द्र सरकार की एजेंसियों पर शक है कि वे उनके फोन टैप करवा सकती हैं। कुल मिलाकर चारों तरफ से खतरा ऐसा है कि कोरोना और इंटरसेप्शन के बीच कड़ा मुकाबला है, दोनों ही अदृश्य हैं, और दोनों खतरनाक हैं।

जानवरों जैसी मेहनत का फल...

इस बीच बहुत मेहनत करने वाले एक ईमानदार, और काबिल आला अफसर का नाम कतार में है कि आज शायद उसका भी तबादला हो जाए। यह अफसर जानवरों की तरह मेहनत करने वाला और सरकारी चारे को न छूने वाले इस अफसर का तबादला कुछ दिनों से जानकारों की जानकारी में था, और अब मामला एकदम कगार पर पहुंच गया है। इस एक तबादले से विभाग के बाकी लोगों में भी यह संदेश चले जाएगा कि चारे की चौकीदारी करने के बजाय नांद में खाने और खिलाने के लिए तैयार रहना चाहिए। देखें तबादला आदेश आज आता है, या कल।

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