राजपथ - जनपथ
प्रशासनिक फेरबदल-1
कोरोना महामारी के बीच थोक में कलेक्टरों के तबादले किए गए। राज्य बनने के बाद पहला मौका है, जब एक साथ 22 कलेक्टरों को बदला गया। वैसे तो, पहले जिलों की संख्या भी कम थी। मगर इतने बड़े पैमाने पर फेरबदल कभी नहीं हुआ। कुछ को अच्छे काम की वजह से बड़ा जिला मिला, तो दिग्गज नेताओं की सिफारिशों को भी महत्व दिया गया।
दंतेवाड़ा कलेक्टर टोपेश्वर वर्मा को राजनांदगांव भेजा गया। टोपेश्वर ने दंतेवाड़ा में बेहतर काम किया था। दंतेवाड़ा विधानसभा चुनाव में विपरीत परिस्थितियों में कांग्रेस को जीत मिली थी, तो इसका ईनाम मिलना ही था। सूरजपुर कलेक्टर दीपक सोनी को दंतेवाड़ा भेजा गया हैं। दंतेवाड़ा में 62 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं। सरकार ने लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठाने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं। दीपक का काम बेहतर रहा है, और उन पर इन कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है।
लंबे समय से लूप लाइन में रहे सत्यनारायण राठौर को आखिरकार कलेक्टरी का मौका मिल गया। उनके खिलाफ पूर्व में विभागीय जांच चल रही थी। वे जांजगीर-चांपा जिले के रहवासी हैं और चर्चा है कि विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत की पसंद पर उन्हें कोरिया कलेक्टर बनाया गया है। वैसे भी कोरिया, डॉ. महंत की पत्नी सांसद ज्योत्सना महंत के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा भी है। इसी तरह संचालक भू अभिलेख रमेश कुमार शर्मा को कवर्धा कलेक्टर का दायित्व सौंपा गया है।
रमेश मूलत: राजनांदगांव जिले के रहवासी हैं। उन्हें राजस्व अभिलेखों के कम्प्यूटराईजेशन का श्रेय दिया जाता है। मगर पिछली सरकार में उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं मिली थी। उन्हें कवर्धा कलेक्टरी का मौका मिला है और चर्चा है कि उनकी पोस्टिंग में परिवहन मंत्री मोहम्मद अकबर की भी भूमिका रही है। कवर्धा अकबर का विधानसभा क्षेत्र है। कुछ लोगों के खिलाफ पहले शिकायतें रही हैं, लेकिन मौजूदा सरकार ने उन्हें कलेक्टर बनाकर खुद को साबित करने का मौका भी दिया है। इनमें गरियाबंद के नए कलेक्टर छत्तर सिंह डेहरे और सूरजपुर कलेक्टर रणवीर शर्मा शामिल हैं।
महासमुंद और बलौदाबाजार-भाटापारा के कलेक्टरों की अदला-बदली की गई है। अब सुनील कुमार जैन औद्योगिक जिले बलौदाबाजार-भाटापारा पहुुंच गए हैं, तो कार्तिकेश गोयल के लिए संतोषजनक बात यह है कि वे पुराने जिले महासमुंद में काम करेंगे। एक चौंकाने वाली पोस्टिंग भूरे सर्वेश्वर नरेंद्र की रही है। उन्हें साल भर के भीतर मुंगेली से दुर्ग में पदस्थ किया गया। दुर्ग मुख्यमंत्री का गृहजिला भी है। यह राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से अहम जिला रहा है और इसकी पोस्टिंग को बहुत बेहतर माना जाता है। कोई बड़ी उपलब्धि न होने के बावजूद नरेंद्र ने लंबी छलांग लगाई है।
भीम सिंह, रजत बंसल और जयप्रकाश मौर्य, ऐसे अफसर हैं, जिनके खिलाफ स्थानीय स्तर पर शिकायतें भले ही हो, लेकिन सरकार के रणनीतिकारों के पसंदीदा रहे हैं। यही वजह है कि भीम सिंह को रायगढ़, बंसल को बस्तर और मौर्य को नांदगांव से धमतरी भेजा गया है। धमतरी अपेक्षाकृत छोटा जिला है, लेकिन कलेक्टरी का अपना अलग ही रूतबा है। मौर्य की पत्नी रानू साहू को बालोद कलेक्टर से हटाकर जीएसटी कमिश्नर बनाया गया है। खास बात यह है कि रानू साहू को हटाने के लिए कांग्रेस के आदिवासी विधायकों का एक प्रतिनिधि मंडल सीएम से मिला था। इसके बाद से उनका हटना तय माना जा रहा था। इससे परे पुष्पेंद्र कुमार मीणा को पहली बार कलेक्टरी का मौका मिला है। उन्हें नारायणपुर कलेक्टर बनाया गया है। मीणा के साथ-साथ रितेश कुमार अग्रवाल और जन्मेजय महोबे को पहली बार कलेक्टर बनने का मौका मिला है।
वैसे तो सारांश मित्तर, संजीव कुमार झा को अपेक्षाकृत बड़े जिले क्रमश: बिलासपुर और सरगुजा की कमान सांैपी गई है। दोनों को अहम दायित्व सौंपा गया है। शिखा राजपूत तिवारी को गौरेला-पेंड्रा-मरवाही नए जिले से हटाकर नियंत्रक नापतौल की जिम्मेदारी दी गई है। शिखा से स्थानीय प्रशासनिक अमला नाराज था। एसपी से भी उनकी नहीं बन रही थी। ऐसे में उनका हटना तय माना जा रहा था। राजेश सिंह राणा पिछली सरकार में मलाईदार पद पर रहे हैं। उनके खिलाफ गंभीर शिकायतों को हमेशा अनदेखा किया गया। मगर सरकार बदलते ही उनकी शिकायतों पर गौर किया जाने लगा। उन्हें राज्य योजना आयोग का सदस्य सचिव बनाया गया।
फेरबदल-2
एसीएस अमिताभ जैन को वित्त के साथ-साथ जल संसाधन का अतिरिक्त दायित्व सौंपा गया है। उनके पास पीडब्ल्यूडी का प्रभार था। सिद्धार्थ कोमल परदेशी के पास स्वतंत्र रूप से पीडब्ल्यूडी का प्रभार रहेगा। एसीएस रेणु पिल्ले को चिकित्सा शिक्षा का अतिरिक्त दायित्व सौंपा गया है। चूंकि स्वास्थ्य सचिव निहारिक बारिक सिंह वर्तमान में कोरोना के खिलाफ लड़ाई की अगुवाई कर रही है। ऐसे मेें उनसे चिकित्सा शिक्षा का दायित्व इसलिए लिया गया है कि नए मेडिकल कॉलेज खोले जाने हैं और चिकित्सा शिक्षा में ध्यान देने की जरूरत है। एक तरह से निहारिका बारिक के बोझ को हल्का किया गया है।
डॉ. आलोक शुक्ला को स्कूल शिक्षा के साथ-साथ कौशल उन्नयन और व्यापम का अतिरिक्त दायित्व सौंपा गया है। डॉ. शुक्ला अगले कुछ दिनों में रिटायर होने वाले हैं। ऐसे में उन्हें अतिरिक्त दायित्व देकर यह संकेत दिया गया है कि उन्हें एक्सटेंशन दिया जाएगा। भुवनेश यादव को दवा निगम के एमडी पद से हटाकर ग्रामोद्योग विभाग का विशेष सचिव बनाया गया है। चर्चा है कि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव, यादव को निगम से हटाने के लिए काफी समय से प्रयासरत थे।
कुछ फेरबदल चौंकाने वाले रहे हैं। मसलन, उद्यानिकी संचालक का दायित्व भारतीय वन सेवा के अफसर वी माथेश्वरन को दिया गया है। यह संचानालय भ्रष्टाचार को लेकर कुख्यात रहा है और यहां के अफसरों की कार्यप्रणाली को लेकर विभागीय मंत्री रविंद्र चौबे नाराज रहे हैं। इसी तरह एस आलोक को दुर्ग जिला पंचायत का सीईओ बनाया गया है। आलोक पंचायत सेवा के हैं और उन्होंने दंतेवाड़ा में अच्छा काम किया था। इसके प्रतिफल अब तक जिस पद पर आईएएस अफसरों की पोस्टिंग होती रही है, वहां आलोक को जिम्मेदारी दी गई।
राज करेगा खालसा
भूपेश सरकार के 18 महीने के कार्यकाल में तीसरी बार इंटेलीजेंस चीफ बदले गए हैं। पहले संजय पिल्ले, फिर हिमांशु गुप्ता और अब रायपुर आईजी आनंद छाबड़ा को इंटेलीजेंस चीफ का अतिरिक्त दायित्व सौंपा गया है। मगर इस फेरबदल से अशोक जुनेजा पावरफुल हुए हैं। जुनेजा पिछली सरकार में इंटेलीजेंस चीफ थे। वर्तमान में नक्सल इंटेलीजेंस का प्रभार भी उनके पास है। यानी जुनेजा, छाबड़ा और जीपी सिंह की तिकड़ी पीएचक्यू और बाहर भी पावरफुल हुई है। महकमे के भीतर हंसी मजाक में लोग कह रहे हैं, राज करेगा खालसा।
हवाई के लिए खास रियायतें !
सुप्रीम कोर्ट ने हवाई यात्रियों के बीच दूरी को दी गई छूट पर आपत्ति जाहिर की है और केन्द्र सरकार से सवाल किया है कि क्या कोरोना को यह मालूम है कि उसे हवाई यात्रियों को नहीं छूना है? अदालत ने एयर इंडिया को दस दिनों का समय दिया है कि तीन सीटों की कतार में बीच की सीट खाली रखने का इंतजाम कर ले। दूसरी तरफ विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि दो मुसाफिरों के बीच एक मीटर की दूरी बनाए रखना जरूरी है। इन दोनों बातों से परे आज सुबह की खबर यह है कि कल दिल्ली से पंजाब की एक उड़ान ने एक मुसाफिर कोरोना पॉजिटिव निकला तो बाकी सभी 36 मुसाफिर और 4 कर्मचारी, 40 लोग क्वारंटीन में भेज दिए गए।
इधर कुछ लोग यह दिक्कत बता रहे हैं कि अगर किसी बच्चे या बूढ़े को लेने के लिए जाना पड़े, तो जिस शहर गए, 14 दिन वहां क्वारंटीन करना पड़ेगा, और फिर लोगों को लेकर वापिस आने पर अपने शहर में फिर 14 दिन क्वारंटीन, मतलब यह कि कुछ घंटे का सफर और एक महीना क्वारंटीन।
ऐसी तमाम दिक्कतों को देखते हुए अब लोगों को लग रहा है कि हवाई सफर किया भी जाए, या उसका इरादा छोड़ दिया जाए? जिस तरह की रियायत केन्द्र सरकार ने कोरोना प्रतिबंधों में हवाई मुसाफिरों के लिए दी है वह अपने आपमें खतरनाक है क्योंकि ट्रेन में जितनी दूरी पर दो मुसाफिरों को बिठाया जा रहा है, उतनी दूरी तो प्लेन में बीच की सीट खाली छोडऩे पर भी नहीं बन सकेगी। फिलहाल दिलचस्प बात यह है कि जो मीडिया कल तक रेलगाडिय़ों पर फोकस किए हुए था, अब ट्रेन से पहुंचते 10 हजार मुसाफिरों के बजाय उसकी दिलचस्पी और उसका फोकस सौ-दो सौ हवाई मुसाफिरों पर आ गया है।