राजपथ - जनपथ
एलके जोशी की यादें...
कोई अफसर वैसे तो अपने राजनीतिक मुखिया के बढ़ाए किसी महत्वपूर्ण समझी जाने वाली कुर्सी पर पहुंचते हैं, लेकिन वहां पहुंच जाने के बाद वे अपने राजनीतिक-मुखिया को चढ़ाने या गिराने के काफी हद तक जिम्मेदार रहते हैं। कोई सत्तारूढ़ नेता उतने ही कामयाब हो सकते हैं जितने अच्छे अफसर वे अपने आसपास रखते हैं। कल दिल्ली में जब अविभाजित मध्यप्रदेश के एक रिटायर्ड आईएएस एलके जोशी गुजरे तो लोगों को याद आया कि वे मोतीलाल वोरा के मुख्यमंत्री रहते हुए उनके जनसंपर्क सचिव थे, और फिर जब मोतीलाल वोरा उत्तरप्रदेश के राज्यपाल बने, तब भी उन्होंने एलके जोशी को साथ राजभवन ले जाने की समझदारी दिखाई थी। नतीजा यह था कि वोराजी की कामयाबी से बढक़र उनकी शोहरत होती चली गई। ऐसा नहीं कि वे काबिल नहीं थे, लेकिन बहुत से लोग काबिल रहते हुए भी जनता तक अपनी खूबी नहीं पहुंचा पाते, और एलके जोशी ने इस मामले में वोराजी के लिए खूब काम किया था।
एमपी-छत्तीसगढ़ के ही एक दूसरे अफसर सुनिल कुमार को देखें, तो वे वोराजी के वक्त उनका जनसंपर्क देख चुके थे, अर्जुन सिंह के वक्त वे उनके साथ दो-दो बार दिल्ली में रहे, और उनके सबसे काबिल और पसंदीदा अफसर थे। छत्तीसगढ़ राज्य बना तो वे अजीत जोगी के सचिव भी रहे, जनसंपर्क सचिव भी रहे, और इस राज्य को खड़ा करने में वे बुनियाद के एक बड़े पत्थर रहे। भाजपा के मुख्यमंत्री रमन सिंह लगातार सुनिल कुमार को दिल्ली से वापिस बुलाने में लगे रहे, और आखिर में जब वे लौटे, तो उनको मुख्य सचिव भी बनाया, और रिटायर होने के बाद दिल्ली से बुलाकर योजना मंडल उपाध्यक्ष बनाया, साथ में अपना सलाहकार भी बनाया।
कल एलके जोशी के गुजरने की खबर आने के बाद छत्तीसगढ़ में बसे कुछ रिटायर्ड बड़े अफसरों ने फोन करके इन सब बातों को याद किया, और कहा कि उन्होंने वोराजी को भोपाल से लेकर लखनऊ तक, उनके कद से खासा अधिक बड़ा पेश किया। लेकिन पहली खूबी तो वोराजी की ही थी जो कि उन्होंने एक काबिल व्यक्ति को छांटा था। जोशी की बहुत सी यादें लोगों के पास हैं, जो कि बाकी अफसरों के लिए एक मिसाल भी हो सकती हैं।
एक काबिल अफसर का निलंबन खत्म
आखिरकार भारतीय वनसेवा के अफसर एसएस बजाज का निलंबन खत्म हो गया। उनकी जल्द ही पोस्टिंग भी हो जाएगी। बजाज को नवा रायपुर के पौंता चेरिया में नई राजधानी के शिलान्यास स्थल को आईआईएम को देने के पुराने प्रकरण पर निलंबित कर दिया गया था। हालांकि बजाज की सीधे कोई भूमिका नहीं थी। जमीन देने का फैसला एनआरडीए बोर्ड का था, और इसके चेयरमैन तत्कालीन मुख्य सचिव पी जॉय उम्मेन थे। खैर, बजाज की साख अच्छी रही है और यही वजह है कि आईएफएस अफसर उनकी बहाली के लिए लगातार प्रयासरत थे।
बजाज के इंजीनियरिंग कॉलेज के दिनों के साथी कांग्रेस के संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेष नितिन त्रिवेदी ने भी सीएम से मिलकर बजाज की बहाली के लिए गुजारिश की थी। नियमानुसार आईएफएस अफसर को राज्य सरकार एक माह के लिए निलंबित कर सकती है, लेकिन बाद में विधिवत केन्द्र से अनुमति लेनी पड़ती है। केन्द्र ने निलंबन को लेकर कुछ बिंदुओं पर जवाब भी मांगा था। मगर राज्य ने निलंबन आगे बढ़ाने में कोई रूचि नहीं दिखाई। इसके बाद बजाज का निलंबन स्वमेव खत्म हो गया। सरकार भी अब उनकी योग्यता और अनुभव का पूरा लाभ लेना चाह रही है। वैसे अभी भी विभाग से जुड़े तमाम विषयों पर उनसे काम लिया जा रहा है। मगर उनके पास कोई प्रभार नहीं है, लेकिन जल्द ही उनको काम मिलने के संकेत हैं।