राजपथ - जनपथ
मासूम बीवी, भूत, और वफादार पति...
छत्तीसगढ़ में अभी पुलिस ने एक नौजवान को पकड़ा जो कि अलग-अलग लड़कियों और महिलाओं के नाम और तस्वीरों से फेसबुक पोस्ट बनाकर रात-दिन सांप्रदायिक नफरत की बातें पोस्ट करता था. यह तो आज के कॉरोनाकाल की अधिक सावधानी चल रही है इसलिए वह पकड़ा गया, वरना तो सब बढिय़ा चल रहा था. उसके फेसबुक फ्रेंड्स भी लबालब थे, 5000 तक पहुँच रहे थे, सिर्फ एक निशा जिंदल नाम के फेसबुक अकाउंट से. और मजे की बात की उसके 10000 से अधिक फॉलोवर्स भी थे, यानी दोस्ती नसीब नहीं हुई तो फॉलो करने लगे. अब रायपुर में एक पत्रकार युवती ने फेसबुक पर ही बाकी पत्रकारों के मजे लेने शुरू कर दिए हैं कि आप भी निशा जिंदल के दोस्त थे, फॉलोवर थे...!
पुलिस ने भी उसे पकडऩे के बाद कुछ पिटाई के बाद उसकी तस्वीर उसी के फेसबुक पेज पर लगवाई है कि मैं ही निशा जिंदल हूँ. उसके फेसबुक पेज पर बहुत से फैंस ने बड़ी-बड़ी तारीफें पोस्ट की थीं, और अब लोग सदमे में हैं कि फेसबुक मैसेंजर की राज की बातें सामने आएंगी तो क्या होगा. फिलहाल एक बात सही लग रही है, एक लतीफा अधूरा चल रहा है कि मासूम बीवी, और भूतों का अस्तित्व नहीं होता. इसे सुधारकर लिखना चाहिए- मासूम बीवी, भूत, और वफादार पति, इनका अस्तित्व नहीं होता.
बड़े-बड़े अफसर, बड़े-बड़े पत्रकार निशा जिंदल नाम और चेहरे के पीछे इस भूत के प्रशंसक थे ) फिर अभी इसके बाकी फज़ऱ्ी फेसबुक अकाउंट तो सामने आना बाकी ही है।
अंत भला तो सब भला
कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे एम्स के डॉक्टर्स अपना क्वारंटाइन पीरियड एकबार फिर से होटल पिकॉडली में ही बिताएंगे। पूरे विवाद का पटाक्षेप हो गया है। दरअसल शासन, प्रशासन के निर्देश और अलग-अलग फैसलों से स्थिति बिगड़ गई। इसकी शुरुआत उस हिदायत से हुई कि जिसमें कहा गया कि क्वारंटाइन पीरियड में संक्रमण की आशंका रहती है, इसलिए होटल के सेंट्रलाइज्ड एसी को बंद करा दिया गया। इसी तरह डॉक्टरों के डाइट से लेकर पीने के पानी के बारे में निर्देश दिए गए थे। होटल प्रबंधन के लिए नियमों का पालन करना जरुरी था। होटल के लोगों ने मामले को जैसे-तैसे संभाला और व्यवस्था को और दुरुस्त किया। इस बीच प्रशासन को कम रेट पर नई होटल मिल गई, तो उऩके अधिकारियों ने फरमान जारी कर दिया कि डॉक्टर्स को शिफ्ट किया जाए। इस बात ने आग में घी का काम किया और पूरा ठीकरा होटल प्रबंधन पर फूट गया। बात मीडिया के पास पूरे मिर्च मसाले के साथ पहुंची और अखबारों में बड़ी हेडलाइन के साथ खबर तन गई। टीवी चैनल्स में भी बिग ब्रेकिंग फायर हो गए। दूसरे दिन प्रशासन को भी समझ नहीं आया कि आखिर हो क्या गया ? वे तो इस धोखे में थे कि उनको वाहवाही मिलेगी क्योंकि वे जनता का पैसा बचा रहे हैं। दरअसल, प्रशासन को अंदाजा ही नहीं था कि तवा ज्यादा गर्म है और रोटी जल भी सकती है। स्वाभाविक है उन्हें तो रोटी के जलने के बाद मामला समझ आया। बात सरकार के प्रमुख लोगों तक पहुंची और पूछताछ हुई तब पूरी पिक्चर साफ हुई कि मामला कुछ था ही नहीं। केवल बैक टू बैक घटनाक्रम ने पूरा रायता फैलाया। इतना सब कुछ होने के बाद भी डॉक्टर्स और प्रशासन दोनों की पहली पसंद यही होटल है, लेकिन कन्फ्यूजन की वजह से मामले ने अलग रुप ले लिया था। यही वजह है कि उसका फिर से उपयोग करने का फैसला लिया गया है। खैर, कहते हैं ना कि अंत भला तो सब भला।
बड़ों ने झाड़ा पल्ला, फंस गए नेताजी
छत्तीसगढ़ में लॉकडाउन के कारण शराब की तस्करी के मामले लगातार सुनाई दे रहे हैं। अभी जब यह लाइन लिखी जा रही है, राजनांदगाव से 10 लाख की शराब पकड़ी जाने की खबर है. राजधानी रायपुर में पिछले दिनों प्रेस का स्टिकर लगी गाड़ी से शराब की तस्करी का मामला सामने आया। इसी तरह मुंगेली में सत्ताधारी कांग्रेस का एक नेता शराब के गोरखधंधे में लिप्त पाया गया, हालांकि उसके खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज की, और इसकी आंच राजधानी तक पहुंचते-पहुंचते रह गई। चर्चा है कि पकड़े गए नेता ने प्रदेश के सबसे बड़े अधिकारी से संबंध का हवाला देकर धौंस जमाने की कोशिश भी की थी। सरकार के करीबियों और बड़े लोगों से भी संपर्क साधने की खूब चर्चा है। फिर भी वह बच नहीं पाया और पुलिस ने उसकी तमाम एप्रोच की अनदेखी कर कड़ी कार्रवाई की। इस पूरे घटनाक्रम से ये साबित नहीं होता कि सूबे की पुलिस निष्पक्ष और बिना दबाव के काम कर रही है। चर्चा तो यह कि उस पर कई नामी गिरामी लोगों का हाथ था, यही वजह है कि वह बेधड़क इस काम में लिप्त था। जैसा कि अक्सर ऐसे मामले में देखा गया कि बदनामी के डर से बड़े-बड़े साथ छोड़ देते हैं। इस मामले में भी वही हुआ और सत्ताधारी दल के इस नेता की नेतागिरी शुरु होने से पहले ही चौपट हो गई। राजनीति में धरना प्रदर्शन और आंदोलनों के कारण जेल जाने को तो अच्छा माना जाता है, लेकिन सत्ता की आड़ में गोरखधंधा करने वालों की करतूत सार्वजनिक हो जाए, तो जनता के बीच संदेश अच्छा नहीं जाता। इसलिए बड़े से बड़े लोग पल्ला झाडऩे में जरा भी देर नहीं करते। तभी तो कहा जाता है कि दोस्ती बराबर वालों से ठीक होती है। बड़े-बड़ों से ना दोस्ती सही और न ही दुश्मनी। दोनों स्थिति में ही फंसना छोटे को ही पड़ता है। मुसीबत के वक़्त बराबरी के काम आ जाते हैं, छोटे काम आ जाते हैं, लेकिन बड़े? भूल जाओ. ([email protected])