राजपथ - जनपथ
पर्यवेक्षक पहुंचे भी नहीं
जनपद पंचायतों में कांग्रेस को अभूतपूर्व सफलता मिली है। ऐसा इसीलिए संभव हो पाया कि भाजपा ने जनपद अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनाव के लिए कोई रणनीति नहीं बनाई। ज्यादातर जगहों पर भाजपा ने चुनाव लडऩे की औपचारिकता ही निभाई। चुनाव के लिए भाजपा ने जिलेवार पर्यवेक्षक तो नियुक्त किए थे, लेकिन एक-दो जगहों पर तो पर्यवेक्षक ही नहीं पहुंचे।
सुनते हैं कि बस्तर संभाग के एक जिले के जनपदों में चुनाव के लिए नियुक्त किए गए पर्यवेक्षक ने जिलाध्यक्ष को फोन लगाया और अपने आने की सूचना दी। जिला अध्यक्ष ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि यदि चुनाव में खर्च करने के लिए कुछ लेकर आ रहे हैं, तभी आना ठीक होगा, वरना खाली हाथ आने का कोई मतलब नहीं है। फिर क्या था, पर्यवेक्षक गए ही नहीं। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल को सरगुजा में चुनाव का जिम्मा दिया गया था। पूरा चुनाव निपट गया, अमर अग्रवाल झांकने तक सरगुजा नहीं गए। कई भाजपा कार्यकर्ता मानते हैं कि बड़े नेताओं की बेरूखी की वजह से चुनाव में हार हुई है, तो एकदम गलत भी नहीं है।
झारखंड और रामविचार
झारखण्ड चुनाव में भाजपा की बुरी हार के बाद सुनते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को भाजपा में शामिल करने की तैयारी चल रही है। 17 तारीख को बड़ी रैली में मरांडी को भाजपा में प्रवेश दिलाया जाएगा। मरांडी की पार्टी का भाजपा में विलय होगा। झारखण्ड की राजनीति में होने वाले इस बदलाव के विमर्श की प्रक्रिया में सौदान सिंह कहीं नहीं है। अलबत्ता, रामविचार नेताम की पूछपरख जरूर हो रही है। वे आदिवासी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और इस नाते उन्हें झारखण्ड में भाजपा संगठन को मजबूत करने के लिए जो भी निर्णय लिए जा रहे हैं, उसमें नेताम की भी अहम भूमिका है।
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