राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : एक दिन में !
24-Oct-2019
 छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : एक दिन में !

एक दिन में !

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कल दिल्ली में जिस रफ्तार से लोगों से मिले वह हैरान करने वाला है। वे भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिले जो कि छत्तीसगढ़ में होने जा रहे अर्थशास्त्रियों के एक बड़े सालाना राष्ट्रीय कार्यक्रम में यहां आने वाले हैं, और वे इस कार्यक्रम के आयोजन के सिलसिले में पहले भी भूपेश बघेल से बात कर चुके हैं। उन्होंने यह न्यौता मंजूर किया। इसके बाद भूपेश बघेल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिले, और उन्हें छत्तीसगढ़ के राज्योत्सव का मुख्य अतिथि बनने का न्यौता दिया जिसे उन्होंने मंजूर किया। इसके बाद भूपेश एक के बाद एक केन्द्रीय मंत्रियों से जिस रफ्तार से मिले, वह हैरान करने वाला था। केन्द्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मिलकर उन्होंने सड़क और पूलों के अधूरे होने का मुद्दा उठाया, जनजाति कार्यमंत्री अर्जुन मुंडा से मिलकर उन्होंने ढाई हजार करोड़ रूपए अलग-अलग आदिवासी-क्षेत्र योजनाओं के लिए मांगे, केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण से मिलकर केन्द्रीय करों में राज्य के हिस्से में की गई कमी की भरपाई मांगी, देश के प्रतिरक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मिलकर उन्होंने छत्तीसगढ़ में एयरबेस बनाने की मांग की। 

भारत सरकार में सचिव रह चुके एक अफसर ने इन मुलाकातों को देखकर कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए-1 सरकार के वक्त अविभाजित आन्ध्र के, देश के सबसे ताकतवर मुख्यमंत्री चन्द्राबाबू नायडू ही एक दिन में इतने केन्द्रीय मंत्रियों और नेताओं से मिलने के लिए जाने जाते थे, जिस वक्त चन्द्राबाबू की मेहरबानी से अटल सरकार चल रही थी, और केन्द्रीय मंत्री अपने-अपने दफ्तर में बैठकर चन्द्राबाबू की राह देखते थे। भूपेश बघेल ने एक दिन में अपनी पार्टी के दो सबसे बड़े नेताओं के अलावा इतने केन्द्रीय मंत्रियों से मुलाकात करके राज्य की बहुत सारी बातों को उनके सामने रख दिया। 

भाजपा से कांग्रेस से भाजपा
अभी इसी पखवाड़े छत्तीसगढ़ के बस्तर में चित्रकोट विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस का प्रचार करके लौटे कांग्रेस नेता अरूण उरांव कल झारखंड में भाजपा में शामिल हो गए। वे कांग्रेस की तरफ से छत्तीसगढ़ के सह-प्रभारी थे। उन्हें एक आदिवासी नेता होने के नाते सरगुजा और बस्तर, इन दो आदिवासी संभागों का काम दिया गया था कि वे यहां असरदार साबित होंगे। झारखंड के होने के कारण वे वहां से लगे हुए छत्तीसगढ़ के सरगुजा में अधिक आया-जाया करते थे और जब रायपुर आते थे तो यहां की सबसे महंगी होटल में ठहरना पसंद करते थे। 

कांग्रेस संगठन के लोगों का उनके बारे में तजुर्बा है कि वे बहुत ही घुन्ने थे, और ज्यादा बात नहीं करते थे जो कि राजनीति में कुछ अटपटी बात है। लेकिन हो सकता है कि आज के वीडियोग्राफी और स्टिंग के जमाने में कम बोलकर वे महफूज रहना जानते थे। खैर जो भी हो कल वे बिना किसी पूर्व तनाव के कांग्रेस से भाजपा में चले गए। वे पूर्व आईपीएस हैं और कल झारखंड के भाजपा के जलसे में एक और पूर्व डीजीपी, दो पूर्व आईएएस भी भाजपा में शामिल हुए हैं, इसलिए यह यूपीएससी का चुना हुआ गुलदस्ता भाजपा में गया है। अरूण उरांव 1992 बैच के पंजाब काडर के आईपीएस थे और 1914 में नौकरी छोड़कर उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली थी। लेकिन भाजपा ने उनकी मर्जी के मुताबिक उन्हें लोकसभा चुनाव नहीं लड़वाया, तो वे 1915 में कांगे्रस में आ गए थे।  उनके पिता बांदी उरांव विधायक थे, ससुर कार्तिक उरांव इंदिरा मंत्रिमंडल में थे, और सास सुमति उरांव सांसद थीं। 

फिर भी इसी पखवाड़े चित्रकोट में कांग्रेस का प्रचार करने के तुरंत बाद पार्टी से किसी भी तनाव के बिना भाजपा में जाना हैरान जरूर करता है। 

लेकिन आईपीएस से राजनीति तक, और भाजपा से कांग्रेस होते हुए भाजपा तक जाने के सफर में एक और दिलचस्प बात उनके साथ यह है कि वे जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड में वाईस प्रेसीडेंट भी थे। अब नवीन जिंदल की इस कंपनी में वाईस प्रेसीडेंट होने की जानकारी के साथ-साथ इस बात को जोड़कर भी देखना चाहिए कि नवीन जिंदल पर झारखंड में ही सीबीआई अदालत में भारत सरकार के साथ धोखाधड़ी का मुकदमा भी चल रहा है। ऐसे में उस राज्य के किसी अफसर रहे नेता को कंपनी में वाईस प्रेसीडेंट रखना सर्फ की खरीददारी जैसी समझदारी ही कही जा सकती है।

पूरे आदिवासी इलाकों से भाजपा साफ
बस्तर में चित्रकोट विधानसभा के उपचुनाव में भाजपा की हार के साथ ही प्रदेश के दोनों सिरों पर बसे हुए आदिवासी इलाकों में भाजपा का सफाया हो गया है। पूरा का पूरा सरगुजा विधानसभा चुनाव में ही कांग्रेस के पास चले गया था, और बस्तर में एक सीट, दंतेवाड़ा भाजपा के पास बची थी। पिछले उपचुनाव में वह सीट भी कांग्रेस के पास चली गई, और चित्रकोट उपचुनाव की शक्ल में भाजपा के पास यह आखिरी मौका आया था कि वह बस्तर में, और प्रदेश के पूरे आदिवासी अंचल में एक कमल खिला सके, लेकिन वैसा हो नहीं पाया। एक सीट का उपचुनाव इतना बड़ा भी नहीं होता कि उसमें सत्तारूढ़ पार्टी अपनी अधिक संपन्न-ताकत के चलते आम चुनाव की तरह उसे जीत ही ले। और भाजपा तो आज पूरे देश में ही सत्तारूढ़ है, इसलिए उसकी ताकत में कोई कमी है नहीं, इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि चित्रकोट चुनाव कांग्रेस ने पैसों से जीत लिया है। पैसे तो छत्तीसगढ़ भाजपा के पास भी कम नहीं हैं। 

लेकिन आदिवासी इलाकों से ऐसा सफाया राज्य के आदिवासी भाजपा नेताओं के भविष्य को भी कमजोर करने वाला है। बस्तर के बड़े-बड़े दिग्गज और अरबपति हो चुके भाजपा के नेता इस नौबत के लिए पार्टी के भीतर क्या जवाब देंगे, यह लाख रूपए का सवाल है। और लाख रूपए का सवाल यह भी है कि प्रदेश स्तर के भाजपा के नेता इस पर दिल्ली में क्या सफाई देंगे? पिछले लोकसभा चुनाव के समय छत्तीसगढ़ भाजपा को पूरे का पूरा खारिज करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सिर्फ अपने फैसले से टिकटें बांटी थीं, और तकरीबन पूरा प्रदेश जीत लिया था। अब राज्य का यह एक उपचुनाव भी हारकर प्रदेश भाजपा एक कोने में घिर गई है।
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