राजपथ - जनपथ
बस्तर में इज्जत दांव पर
प्रदेश की विधानसभा की खाली दो सीटों, दंतेवाड़ा और चित्रकोट में उपचुनाव अक्टूबर में हो सकते हंै। ये उपचुनाव भूपेश सरकार के लिए परीक्षा की घड़ी होंगे। कांग्रेस दोनों को जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। यहां कांग्रेस की कमान अप्रत्यक्ष रूप से उद्योग मंत्री कवासी लखमा और सांसद दीपक बैज संभाल रहे हैं। जबकि भाजपा ने स्थानीय नेताओं के बजाए बाहर के नेताओं को चुनाव का जिम्मा दिया है। दंतेवाड़ा का प्रभारी शिवरतन शर्मा, तो नारायण चंदेल को चित्रकोट का प्रभार दिया गया है। शिवरतन शर्मा के साथ पूर्व मंत्री केदार कश्यप और चंदेल के साथ महेश गागड़ा को सहप्रभारी बनाया गया है।
भाजपा हाईकमान ने दोनों सीटों को जीतने के लिए हर संभव कोशिश करने की नसीहत प्रदेश संगठन को दी है। वर्तमान में दंतेवाड़ा भाजपा, तो चित्रकोट सीट कांग्रेस के पास रही है। सुनते हैं कि भाजपा कोर ग्रुप की बैठक में उपचुनाव की रणनीति पर काफी चर्चा हुई। सौदान सिंह और अन्य नेता, बृजमोहन अग्रवाल को ही कम से कम एक सीट का प्रभारी बनाना चाहते थे। राज्य बनने के बाद जितने भी उपचुनाव हुए हैं, उनमें से ज्यादातर के प्रभारी बृजमोहन ही रहे और उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी जीत दिलाई। मगर, इस बार उन्होंने चुनाव प्रभारी बनने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि परिवार के मांगलिक कार्यक्रमों के सिलसिले में उन्हें ज्यादातर समय बाहर रहना पड़ सकता है। इसके बाद कुछ और नेताओं के नाम पर भी चर्चा हुई। राजेश मूणत कोई भी बड़ी जिम्मेदारी लेने से पहले ही मना कर चुके हैं। उनकी बिटिया का विवाह नवम्बर-दिसंबर में होना है। दूसरी तरफ, केदार कश्यप और उनके भाई दिनेश कश्यप बस्तर भाजपा के सबसे बड़े नेता हैं, लेकिन पार्टी के भीतर दोनों के खिलाफ नाराजगी भी है, जो कि पिछले चुनावों में खुलकर सामने आ चुकी है। यही वजह है कि पार्टी ने किसी तरह के असंतोष को रोकने के लिए बस्तर के बाहर के नेताओं को प्रभारी बनाया है।
कर्ज देना भी खतरनाक
भाजपा के एक कारोबारी नेता कर्ज देकर मुश्किल में फंस गए हैं। नेताजी को ब्याज से बहुत मोह रहा है और उन्होंने अपने एक परिचित कारोबारी को ऊंचे ब्याज दर पर 10 करोड़ उधार दिए। शुरूआत में कारोबारी ने ब्याज दिया, लेकिन बाद में देना बंद कर दिया। उसने मंदी का हवाला देकर मूल राशि भी लौटाने में असमर्थता जता दी।
सुनते हंै कि दस करोड़ में से सिर्फ 5 लाख रुपये की ही लिखा-पढ़ी हुई है। बाकी रकम कच्चे में दी गई थी। अब हाल यह है कि 9 करोड़ 95 लाख के लिए भाजपा नेता कोर्ट कचहरी जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। उन्होंने सामाजिक और कुछ अन्य लोगों के जरिए रकम वापसी के लिए दबाव बनाया। ब्याज छोडऩे के लिए तैयार भी हंै, लेकिन कारोबारी ने नगद राशि देने में असमर्थता जता दी है। काफी अनुनय-विनय के बाद कारोबारी ने भाजपा नेता को नगद राशि के बदले में कुछ जमीन देने की पेशकश की है। भाजपा नेता की मुश्किल यह है कि कारोबारी जिस जमीन को देने के लिए तैयार है, उसका बाजार दर से दोगुना भाव रखा है। हाल यह है कि भाजपा नेता पेशकश स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।
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