राजपथ - जनपथ
एक वक्त कई किस्म की बीमारियों में डॉक्टर पेनिसिलिन का इंजेक्शन लगाते थे, और उनमें से अधिकतर तकलीफें काबू में आ जाती थी। उसके बाद इंटीबायोटिक का दौर आया, और पेनिसिलिन धीरे-धीरे बेअसर होने लगा। बाद में एंटीबायोटिक की अगली पीढ़ी आई और पिछली पीढ़ी बेअसर हो गई। धीरे-धीरे एंटीबायोटिक की कई पीढिय़ां आईं, और अब हालत यह है कि उसकी सबसे नई पीढ़ी भी बेअसर होने लगी है। और दुनिया भर में एंटीबायोटिक का असर खत्म होना एक बड़ी फिक्र की बात हो गई है।
इसी तरह पहले किसी सार्वजनिक इमारत की दीवार पर, सीढिय़ों के कोनों पर लिखा जाता था कि थूकना मना है। थूकने की स्वतंत्रता के हिमायती लोग ऐसे नोटिस पर से आनन-फानन मना शब्द को मिटा देते थे, और थूककर ही आगे बढ़ते थे। जब ऐसा लिखा हुआ बेअसर हो गया तो लोगों ने एक तरकीब निकाली कि सीढिय़ों के कोनों पर देवी-देवताओं की तस्वीरों वाले टाईल्स लगाने लगे, ताकि धर्मालु लोग वहां थूकने से परहेज करें। कुछ बरस तक तो इसका असर रहा, लेकिन अब धीरे-धीरे लोग ऐसे टाईल्स के ऊपर भी थूककर आगे बढऩे लगे, और देवी-देवता अपनी फिक्र करने में लगे हुए हैं कि कहां जाएं?
सुलग रहा सरगुजा
छत्तीसगढ़ में पुलिस हिरासत से भागकर आदिवासी युवक पंकज बेक के आत्महत्या मामले पर सरगुजा जिले की राजनीति गरमाई हुई है। इस पूरे मामले पर भाजपाईयों ने सरकार के खिलाफ न सिर्फ विरोध प्रदर्शन किया बल्कि केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह उच्च स्तरीय जांच की मांग को लेकर केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी मिल आईं। पिछले छह महीने में पुलिस हिरासत में मौत के सात प्रकरण सामने आए हैं, लेकिन सरगुजा जैसा विरोध कहीं नहीं हुआ। सरगुजा में तो खुद रेणुका सिंह ने मोर्चा संभाल रखा था। सुनते हैं कि उन्होंने आदिवासी युवक की हिरासत में मौत के लिए आईजी केसी अग्रवाल को भी कड़ी फटकार लगाई और पूछ लिया कि यदि पंकज बेक , अग्रवाल होता तो पुलिस हिरासत में मारा जाता? रेणुका सिंह ने सरगुजा के भाजपाईयों को चार्ज कर दिया है, जो कि चुनाव के बाद पार्टी के कार्यक्रमों से दूरी बनाकर रखे हुए थे। एक दूसरी बात यह कि सरगुजा के तमाम सवर्ण भाजपाई रेणुका सिंह से तिरछे-तिरछे चलते थे, अब केंद्रीय मंत्री के इन तेवरों से उनकी भी बोलती बंद है।
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