एक समय था जब दिल्ली में रमेश बैस की तूती बोलती थी। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री तो थे ही, पार्टी के कर्ता-धर्ता लालकृष्ण आडवानी और सुषमा स्वराज के करीबी रहे। उन्हें राज्य बनने के बाद प्रदेश की राजनीति में भेजने पर विचार भी हुआ था तब बैस मंत्री पद छोड़कर राज्य इकाई का अध्यक्ष पद सम्हालने के इच्छुक नहीं थे। बाद में रमन सिंह को यह जिम्मेदारी दी गई और फिर जो भाजपा सरकार बनने के बाद सीएम बने।
खैर, रमेश बैस का रूतबा तब भी कम नहीं हुआ। कुछ लोग याद करते हैं कि वीआईपी रोड स्थित एक होटल में पार्टी के बड़े नेता जुटे थे। इनमें मौजूदा पीएम नरेन्द्र मोदी भी थे जो कि उस वक्त गुजरात के सीएम थे। होटल में रमेश बैस ने विहिप नेता रमेश मोदी का परिचय नरेन्द्र मोदी से कराया और कहा कि आप दोनों मोदी हैं। बैसजी का अंदाज कुछ ऐसा था कि नरेन्द्र मोदी को पसंद नहीं आया। बात हंसी ठहाके में निकल गई। बाद में मोदी के पीएम बनने के बाद बैस को मंत्री बनने की उम्मीद थी। बड़ी संख्या में उनके समर्थक भी दिल्ली पहुंच गए थे, लेकिन उनका नंबर नहीं लगा। मोदी-अमित शाह के आने के बाद भाजपा की राजनीति में आडवानी के करीबी लोग हाशिए पर चले गए हैं। सुषमा स्वराज को दोबारा मंत्री नहीं बनाया गया। सात बार के सांसद बैसजी की टिकट ही कट गई। शत्रुघन सिन्हा को पार्टी छोडऩी पड़ी, राजीव प्रताप रूडी जैसे कुछ नेताओं ने जरूर समझदारी दिखाई और वक्त की नजाकत को समझते हुए आडवानी से दूरी बनाकर अमित शाह कैंप से जुड़ गए। इसका प्रतिफल उन्हें मिला और वे अभी भी सांसद हैं।
शपथ ग्रहण के न्यौते की मारमारी
प्रधानमंत्री-केन्द्रीय मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए राज्यों के नेताओं को भी आमंत्रण भेजा गया था। प्रदेश के कुल 78 नेताओं को ही निमंत्रणपत्र जारी किया गया था जिसमें विधायक और अन्य पदाधिकारी थे। कई को निमंत्रणपत्र नहीं मिल पाए तो कई राष्ट्रीय नेताओं की सिफारिश पर निमंत्रणपत्र पा गए। इन्हीं में से एक भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष संजू नारायण सिंह ठाकुर भी थे, जिनके लिए कैलाश विजयवर्गीय ने सिफारिश की थी और उन्हें निमंत्रणपत्र मिल गया।
सुनते हैं कि जब वे निमंत्रणपत्र लेने पीएमओ दफ्तर गए तो वहां पीयूष गोयल पहले से ही बैठे थे। सामान्य परिचय के बाद संजू नारायण ने उन्हें बताया कि वे पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार के लिए गए थे। कैलाश विजयवर्गीय वहां के प्रभारी हैं। फिर क्या था पीयूष गोयल ने वहां तैनात अधिकारी को कहा कि सबसे पहले बंगाल में काम करने वालों को निमंत्रणपत्र दें। हिंसा के बीच बंगाल में काम करने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं की काफी पूछ-परख हुई। प्रदेश के कई नेता निमंत्रणपत्र नहीं मिल पाने के कारण शपथ ग्रहण में शामिल नहीं हो पाए। इनमें देवजी भाई पटेल भी थे। जबकि लाभचंद बाफना दूसरे का निमंत्रणपत्र लेकर शपथ ग्रहण में शामिल हुए।
पुनिया हारे वहां, समीक्षा यहां
खबर है कि प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया के खिलाफ भी कई पार्टी नेताओं ने हाईकमान से शिकायत की है। यह कहा गया कि पुनिया लोकसभा चुनाव में बिल्कुल भी सक्रिय नहीं थे। वे पूरे चुनाव में यहां सिर्फ दो बार आए। उनका पूरा ध्यान उत्तरप्रदेश के बाराबंकी में लगा रहा, जहां उनके पुत्र चुनाव लड़ रहे थे। पुनिया के पुत्र की जमानत भी नहीं बच पाई। अलबत्ता, उन्होंने छत्तीसगढ़ के कई नेताओं से वहां खूब बेगारी कराई। अब वे यहां लोकसभा चुनाव में हार की समीक्षा करने आए हैं।