राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : वह चार करोड़ इन्हीं का था?
28-Apr-2025 3:55 PM
राजपथ-जनपथ : वह चार करोड़ इन्हीं का था?

वह चार करोड़ इन्हीं का था?

भारत माला परियोजना के मुआवजा घोटाले की ईओडब्ल्यू-एसीबी पड़ताल कर रही है। जांच एजेंसी ने घोटाले में संलिप्त चार लोगों को गिरफ्तार भी किया है। गिरफ्तार आरोपियों में से एक जमीन कारोबारी हरमीत सिंह खऩूजा को कोल घोटाले के एक आरोपी का करीबी माना जाता है।

खऩूजा का नाम जमीन के कई बड़े सौदे में चर्चा में रहा है। कोल घोटाले के आरोपी की पिछली सरकार में तूती बोलती थी इसका भरपूर फायदा खऩूजा को मिला।
बताते हैं कि आमानाका पुलिस ने दो माह पहले जांच के दौरान एक गाड़ी से 4 करोड़ रुपए बरामद किए थे। यह राशि हवाला की बताई गई। यह रकम सीज की गई, लेकिन इसके लिए कोई दावेदार अब तक नहीं आया है। पुलिस की भूमिका भी चर्चा का विषय रही। हल्ला है कि यह रकम भी घोटालेबाज जमीन कारोबारियों की थी। मगर इसके कोई पुख्ता सुबूत नहीं मिले हैं। जांच एजेंसी तमाम बिन्दुओं की जांच कर रही, और माना जा रहा है कि आरोपियों के खिलाफ कई और प्रकरण दर्ज किए जा सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।

अब केंद्रीय प्रतिनियुक्ति अनिवार्य

अब कोई भी अखिल भारतीय सेवा (एआईएस)के अफसर, सरकारों के लाड-प्यार,  निकटता के बहाने  राज्य में ही बने नहीं पाएगा। और न ही सरकारें अपनी विचारधारा और शुभ चिंतक इन्हें कहकर रोक नहीं पाएगी। अब हर एआईएस अफसर को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना ही होगा । चाहे वह आईएएस, आईपीएस और आईएफएस या अन्य कोई सेवाओं को क्यों न हो। डीओपीटी हर अफसर के लिए एक बार केंद्रीय प्रतिनियुक्ति अनिवार्य करने जा रही है। ऐसा, डीओपीटी ने  केंद्र में अफसरों का कमी को पूरा करने के लिए किया है। इससे पहले मोदी 2.0में  केंद्र ने एक नया नियम भी बनाया था । वह यह कि अब अफसरों को दिल्ली ले जाने डीओपीटी को राज्य सरकार से एनओसी वगैरह की जरूरत नहीं होगी। केंद्र सीधे ही कंपीटेंट अफसर का नाम राज्य सरकार को भेजकर सूचित कर बुला लेगा। पूर्व में  राज्य की अनुमति की अनिवार्यता के चलते कई सक्षम अफसरों को राज्यों में रोक दिया जाता था।

दोनों ही स्थिति वाले छत्तीसगढ़ में कई उदाहरण हैं। एक तो निधि छिब्बर ही हैं जो पिछली भाजपा सरकारों में करीब 6 वर्ष एनओसी के इंतजार करती रहीं। और बाद की नई सरकार आने के बाद ही जा पाई थी और 1 जून से वह केंद्रीय खाद्य सचिव हो जाएंगी। वहीं नीरज बंसोड़, रिचा प्रकाश,नम्रता गांधी, पी.प्रसन्ना ऐसे अफसर हैं जिन्हें केंद्र ने हाल ही में सीधे नाम भेजकर बुलाया। वैसे आईएएस, आईपीएस अफसरों के केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के नजरिए से छत्तीसगढ़ अहम राज्यों में गिना जाता है। यहां से 18 आईपीएस और इतने ही आईएएस भी इस समय केंद्र में सेवारत हैं जो निर्धारित कोटे के करीब-करीब हैं। वहीं आईएफएस में कुछ कम 8-9 ही हैं।

केंद्र के इस ताजा निर्णय के बाद अब राज्य से दिल्ली जाने वाले अफसरों की संख्या बढऩी तय है। यानी राज्य का एआईएस अफसरों का  सेंट्रल डेपुटेशन कोटा पूरा होगा। सेंट्रल डेपुटेशन को लेकर डीओपीटी में यह बदलाव, केंद्रीय कैबिनेट सचिव के हर सप्ताह हो रहे ओपन हाउस में मिले फीडबैक के बाद होना बताया गया है। कैबिनेट सचिव,जनवरी से हर सप्ताह दो दिन  राज्यों में पदस्थ एआईएस अफसरों से साउथ ब्लाक में मिलकर उनकी समस्या, सुझाव मांगें सुन रहे हैं।

मौसम की मेहरबानी वर्ना...

रायपुर में दिशा सूचक साइनबोर्ड जो राजधानी में आने वाले आगंतुकों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने  मार्गदर्शन करने  लगाए और बनाए गए थे।
पहले विधानसभा फिर लोकसभा,और फिर निकाय चुनाव। और उसके बाद पदभार नियुक्तियों पर बधाई शुभकामनाओं से भरे होर्डिंग पोस्टर, बैंनरों से शहर अट गया था । कोई ऐसा सरकारी भवन, पुल-पुलिए ओवरब्रिज, एक्स्प्रेस-वे की दीवारें, बिजली फोन के खंभे शेष नहीं बचे जिनमें ये टंगे, लटके न हो। इससे शहर में लगे साइन बोर्ड भी ढांक दिए गए थे। इन पर निगम, जिला, पुलिस अमला  संपत्ति विरूपण एक्ट की कार्रवाई कर सकता है लेकिन मामला सैंया भए कोतवाल का जो ठहरा।

इसके चलते शहर में पहचान मुश्किल हो गई थी। लोगों को चौक-चौराहों में पूछ-पूछकर जाना पड़ता रहा। वर्ना गूगल मैप लोकेशन के भरोसे तो नदी तालाब जंगल में ही पहुंच जाएँ। लेकिन प्रकृति ने ऐसा रूख बदला कि नेता,उनके पद और पार्टी का नामों निशान मिटा दिया। हाल के दिनों में चल रही अंधड़ आंधी से सारे होर्डिंग पोस्टर फट कर तार तार हो गए हैं। और शहर के प्रमुख स्थलों की पहचान और जाने वाले रास्ते बताने वाले संकेतक साल डेढ़ साल बाद साफ नजर आने लगे हैं। और लोग आसानी से अपने गंतव्य पहुंचने लगे हैं। यह तस्वीर हमारे एक पाठक पार्थसारथी बेहरा ने शेयर की है।

 

इस नुकसान का फायदा किसे?

बीते खरीफ सीजन में सरकार ने समर्थन मूल्य और बोनस के साथ जो धान खरीदा, उसमें से 70 लाख मीट्रिक टन चावल अब केंद्रीय पूल में जमा किया जा रहा है। यह अब तक का सबसे ज्यादा चावल है जो केंद्र ने राज्य से लिया है। वहीं, राज्य को अपने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए भी करीब 14 लाख मीट्रिक टन चावल चाहिए। इन दोनों जरूरतों के लिए लगभग 125 लाख मीट्रिक टन धान का इस्तेमाल होगा।

पिछले खरीफ सीजन में 149 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा धान खरीदी गई, जो 2023-24 के मुकाबले करीब 5 लाख मीट्रिक टन ज्यादा है। 2023-24 में 144 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी गई थी। अगर पीछे झांके तो राज्य बनने के बाद से धान खरीदी का आंकड़ा लगातार बढ़ता रहा है। 2004-05 में केवल 29 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी गई थी। 2014-15 तक यह बढक़र 63 लाख मीट्रिक टन हुआ। पांच साल पहले तक भी 100 लाख मीट्रिक टन का आंकड़ा पार नहीं हुआ था। चार साल पहले 90 लाख मीट्रिक टन धान ही खरीदी गई थी।

बीते दो दशकों में धान न केवल खेती का हिस्सा है, बल्कि राज्य की राजनीति का भी केंद्र बन चुका है। हर चुनाव में ज्यादा धान खरीदी और ज्यादा बोनस देने के वादे किए जाते हैं। किसानों में अधिक उत्पादन की होड़ लग गई है। हर साल पंजीकृत किसानों की संख्या बढ़ रही है। पिछले साल 27.68 लाख किसानों ने पंजीयन कराया था, जो उसके पिछले साल से 1.45 लाख ज्यादा था।

125 लाख मीट्रिक टन धान इस्तेमाल करने के बाद भी लगभग 35 लाख मीट्रिक टन धान अतिरिक्त बच गया है। ये धान अभी उपार्जन केंद्रों और खुले गोदामों में जाम है। इनकी नीलामी की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है और दर 1800 से 2000 रुपये प्रति क्विंटल तय हुई है। अब मंत्रिमंडल की उप-समिति इस दर पर अंतिम मुहर लगाएगी।

सरकार ने इस धान को 3100 रुपये प्रति क्विंटल में खरीदा था। अगर औसत बिक्री दर 1900 रुपये मान ली जाए, तो 10,850 करोड़ रुपये की कीमत वाला धान केवल 6650 करोड़ रुपये में बिकेगा। यानी सीधे-सीधे 4200 करोड़ रुपये का नुकसान। इसमें धान की खरीदी, ढुलाई, भंडारण और रखरखाव के खर्च अभी जोड़े भी नहीं गए हैं।

सरकारी खरीद से 27 लाख से ज्यादा किसान परिवारों को सीधा फायदा मिला है। इस नजरिए से देखा जाए तो 4200 करोड़ रुपये का नुकसान मंजूर किया जा सकता है। लेकिन अगर हर साल इसी तरह रिकॉर्ड खरीदी का लक्ष्य रखा जाएगा, तो यह नुकसान लगातार बढ़ेगा और राज्य की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ेगा।

सरकारें अक्सर ज्यादा खरीदी को अपनी उपलब्धि बताती हैं, लेकिन असल चुनौती यह है कि खेतों में जाकर किसानों को उन फसलों की ओर मोडऩा, जिनकी लागत कम और मुनाफा ज्यादा हो और सरकार भी घाटे के सौदे से बच सके। धान के समर्थन मूल्य को 3100 रुपये करने के बावजूद उत्पादन लागत इतनी बढ़ गई है कि छोटे और मध्यम किसानों की आर्थिक स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आ पाया, जिनके नाम पर कई हजार करोड़ का नुकसान उठाया जा रहा हो। सिंचाई, कृषि उपकरणों और मजदूरों की सुविधा वाले बड़े किसानों की तुलना में छोटे किसानों की हालत आज भी ज्यों की त्यों है। इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि छत्तीसगढ़ में लगातार जल संकट गहराता जा रहा है और धान की फसल में पानी की बहुत अधिक जरूरत पड़ती है। 

(rajpathjanpath@gmail.com)

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