राजपथ - जनपथ
राज्यपाल की बैठकों से बेचैनी
राज्यपाल रामेन डेका जिलों में जाकर बैठक कर रहे हैं। पहली बार कोई राज्यपाल जिलों में सरकारी योजनाओं की समीक्षा कर रहे हैं। राज्यपाल के बैठक करने का अंदाज कुछ हद तक प्रभारी सचिवों की तरह है। इससे प्रशासनिक हल्कों में खलबली मची हुई है।पिछले दिनों रायपुर जिले की बैठक हुई, तो राज्यपाल आंकड़े साथ लेकर पूरी तैयारी से आए थे। उन्होंने बैठक में कह दिया कि जिले में तीन बड़ी समस्या है पेयजल, प्रदूषण, और यातायात।यातायात समस्या पर उन्होंने कह दिया कि वो पुलिस के प्रयास से संतुष्ट नहीं हैं। राज्यपाल ने कहा बताते हैं कि सिर्फ चालान काटने से यातायात की समस्या नहीं सुधरने वाली है।
रायपुर डीएफओ ने वन विभाग के कार्यों का ब्यौरा दिया, और कहा कि पांच लाख पेड़ लगाए गए हैं। इस पर राज्यपाल ने पूछ लिया कि पेड़ कितने बचे हैं? जितने पेड़ लगाने की बात कही जा रही है,उतने दिखाई नहीं देते हैं।
उन्होंने कहा ‘एक पेड़ मां के नाम’ से अभियान चलाने की बात कही गई, लेकिन मां तरह पेड़ों की रक्षा करनी चाहिए। राज्यपाल ने जिले भू जल के गिरते स्तर पर चिंता जताई, और प्रशासन को इस दिशा तत्काल कदम उठाने की जरूरत पर जोर दिया।
संस्कृत में आमंत्रण
सरगुजा के सांसद चिंतामणि महाराज की पुत्री का विवाह पिछले दिनों जशपुर में हुआ। उन्होंने शादी के कार्ड संस्कृत में छपवाए थे जिसकी काफी चर्चा रही।
चिंतामणि महाराज रमन सरकार के पहले कार्यकाल में संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं। वे संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए काफी काम कर रहे हैं। उनके यहां विवाह समारोह कई विधायकों ने भी शिरकत की थी। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी चिंतामणि महाराज को निमंत्रण पत्र के जवाब में शुभकामना संदेश भिजवाया, जो कि संस्कृत में था।
तबादलों के पीछे
बिलासपुर कलेक्टर अवनीश शरण प्रमोट होकर सचिव हो चुके हैं इसलिए उनका तबादला तय था। सीजीएमएससी घोटाले में फंसे चंद्रकांत वर्मा को खैरागढ़ कलेक्टर पद से हटाया जाना तय था।
किरण कौशल को लाने का राज
मसलन, किरण कौशल को मार्कफेड में दोबारा लाया गया है। वो पहले भी इस पद पर रह चुकी हैं। इस बार मार्कफेड में वापसी की अलग वजह है। करीब 33 लाख टन धान की नीलामी होनी है। सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द है और बड़ा नुक़सान होने का अंदाजा लगाया जा रहा है। किरण को लाने के पीछे वजह यह रही कि नुकसान कम से कम हो। इसके अलावा उन्हें नागरिक आपूर्ति निगम एमडी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। लोगों को याद होगा कि भूपेश सरकार के वक़्त कांग्रेस के कुबेर रामगोपाल अग्रवाल किरण कौशल के पी छे लगे थे कि वे राइस मिलरों का नाजायज भुगतान कर दें. किरण कौशल अड़ी रहीं, और कहा कि उन्हें हटा दिया जाए, वे बिलकुल भी ऐसा नहीं करेंगी। उन्हें हटा दिया गया, उनके बाद सजो आला अफसर वहां लाए गए, उन्होंने नाजायज भुगतान किया, आज जेल में हैं. उस वक़्त किरण कौशल के खिलाफ अभियान चलने वाला रौशन चंद्राकर भी अभी जेल में है..
नांदगांव से बिलासपुर
चर्चा है कि पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल की पसंद पर संजय अग्रवाल को बिलासपुर कलेक्टर बनाया गया है, जो कि राजनांदगांव में बेहतर काम कर रहे थे। कुछ लोग कह रहे हैं कि डॉ. रमन सिंह भी उनसे बहुत खुश थे, इसलिए उन्होंने संजय अग्रवाल को बड़े जिले में भेजने के लिए सिफारिश की।
27 साल में 22 कलेक्टर
आदर्श स्थिति तो यही मानी जाती है कि किसी जिले में कलेक्टर को कम से कम दो साल का वक्त मिलना चाहिए। ताकि अफसर जिले की नब्ज पकड़ सके, हालात समझे, और फिर अपनी सोच के मुताबिक कुछ ठोस काम करके दिखा सके। लेकिन जांजगीर-चांपा में तस्वीर थोड़ी अलग ही रही है।
अगर जिले के गठन के वर्ष 1998 से अब तक की बात करें, तो इस जिले में 21 कलेक्टर आ-जा चुके हैं। यानी औसतन हर कलेक्टर को लगभग 15 महीने काम करने को मिला। अब 22वें आ रहे हैं।
कुछ अफसरों को बढिय़ा समय भी मिला, जैसे मनोज कुमार पिंगुआ (28 महीने), बृजेश मिश्रा (29 महीने), एस. भारतीदासन (24 महीने) और डॉ. वी.एस. निरंजन, जिन्हें दो बार मिलाकर लगभग 31 महीने का मौका मिला।
लेकिन कुछ के कार्यकाल तो ऐसे रहे जैसे चाय ठंडी भी नहीं हुई और कप छोडक़र सामान बांधना पड़ा। एम.आर. सारथी सिर्फ 6 दिन, अनश्चलगन पी. 8 महीने, आलोक अवस्थी 9 महीने और तारण प्रकाश सिन्हा सिर्फ 7 महीने ही कलेक्टर रहे। ऋचा प्रकाश चौधरी भी एक साल पूरा करने से पहले ही रवाना कर दी गईं। अब आकाश छिकारा को भी 1 साल 4 महीने बाद हटा दिया गया है और जन्मेजय महोबे नए कलेक्टर बनाए गए हैं।
कई बार ये ट्रांसफर प्रशासनिक कारणों से होते हैं, और कई बार अन्य वजहों से। कुछ अफसरों को एक जिले से हटाकर दूसरे में कलेक्टर बना दिया जाता है,जैसे बोरा, सिन्हा और चौधरी। उन्हें व्यक्तिगत रूप से नुकसान नहीं होता। लेकिन जिले के काम पर फर्क जरूर पड़ता है।
वैसे किसी जिले के प्रमुख के पद में बार-बार बदलाव से विकास की गति थम जाती है। योजनाएं बीच में अटक जाती हैं, और आम लोग सोचते रह जाते हैं। अब अगला कलेक्टर कैसा होगा, और क्या बदलेगा? विभाग प्रमुखों को भी नए कलेक्टर के मिजाज को समझकर तालमेल बिठाने में समय लगता है। अफसरों का आना-जाना चलता रहता है, लेकिन जिले की उम्मीदें और रफ्तार थोड़ा सा पीछे छूट जाती है।
एक की पहल बनी सामूहिक जिम्मेदारी
गर्मी के दिनों में जब जंगल झुलसने लगते हैं, नदियों-नालों का पानी सूख जाता है, तब सबसे ज्यादा परेशान होते हैं जंगलों में रहने वाले बेज़ुबान पक्षी। सन् 2010 में बिजली विभाग के एक साधारण लाइनमैन मदन सिदार ने जो शुरुआत की, वह अब एक असाधारण मिसाल बन चुकी है।
सारंगढ़ के बरमकेला में पदस्थापना के बाद मदन सिदार ने जंगल के पक्षियों के लिए पानी रखने का बीड़ा उठाया। उनकी इस भावना में साथ मिला उनकी पत्नी लक्ष्मी सिदार और शिक्षा विभाग में काम कर रहे उनके मित्र रामेश्वर का। तीनों ने मिलकर पुराने तेल के डिब्बों को साफ किया, उनमें खिडक़ी जैसी कटिंग की, और पेड़ों पर टांग दिया। फिर नियमित अंतराल में उन्हें पानी से भरने लगे। कभी मोटरसाइकिल से, कभी विभागीय वाहन से, और कभी खुद पैदल ही।
धीरे-धीरे यह पहल न सिर्फ स्थानीय लोगों की नजऱ में आई, बल्कि विभागीय स्तर पर भी सराही जाने लगी। अब 15 साल बाद हालात यह है कि बिजली विभाग ने इसे अपने नियमित दायित्व का हिस्सा बना लिया है। विभाग के कर्मचारी अब सैकड़ों की संख्या में कंटेनर लेकर जंगल में निकलते हैं और पेड़ों पर लगे इन जलपात्रों को भरते हैं।
यह तस्वीरइसी प्रेरणादायक बदलाव की कहानी बयान करती है। सोचिये, कैसे एक व्यक्ति की संवेदनशील कोशिश समय के साथ पूरे तंत्र की जिम्मेदारी में बदल सकती है। यह जानकारी डॉ. परिवेश मिश्र ने सोशल मीडिया पर साझा की है।
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