विधानसभा भवन पर कइयों की नजर
बजट सत्र के अवसान संबोधन में स्पीकर डॉ. रमन सिंह ने कह दिया है कि यह इस सदन (भवन) में अंतिम सत्र था। अगला सत्र जो मानसून सत्र होगा वह नवा रायपुर के नए विशाल भवन में होगा।
स्पीकर की इस घोषणा के बाद रिक्त होने वाले इस भवन पर कब्जे ,आबंटन को लेकर सरकारी विभागों की नजर गड़ गई है। वे कल से चर्चा, दावे भी करने लगे हैं। किसे मिलेगा यह सुसज्जित भवन । कोई कह रहा कि राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय भूजल अनुसंधान संस्थान वापस लेगा। जो 2000 में यह भवन हस्तांतरित करने के बाद 25 वर्षों से पचपेड़ी नाका में किराए के भवन मेें है। तो राज्य सरकार के किसी शैक्षणिक संस्थान को देने की भी चर्चा है। वन विभाग की भी नजर है। वह अपने राज्य वन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है। जो अभी इसके सामने ही भवन में चल रहा है।
लेकिन सच्चाई यह है कि फिलहाल तो एक डेढ़ वर्ष तक भवन विधानसभा सचिवालय के आधिपत्य में ही रहेगा। क्योकिं नए भवन के निर्माण की प्र-गति देखने वाले सचिवालय के अफसरों को नहीं लग रहा कि अगला सत्र वहां हो जाएगा ? भवन का स्ट्रक्चरल वर्क तो हो गया है लेकिन असली बारीकियाँ, नक्काशी तो फिनिशिंग में होती है, कराई जाती हैं। और उसी में डेढ़ दिन का काम तीन दिन की तर्ज पर होता है। देखना होगा स्पीकर की घोषणा का सम्मान, निर्माण एजेंसी पीडब्लूडी के अफसर कैसे करते हैं । तब तक ऐसी कई चर्चाएं अटकलें चलती रहेंगी ।
बृजमोहन की अनदेखी भारी पड़ी
रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल की सिफारिशों को हल्के में लेना रायपुर एम्स के डायरेक्टर डॉ. अशोक जिंदल को भारी पड़ गया। बृजमोहन ने शुक्रवार को जिंदल के खिलाफ लोकसभा में मामला उठा दिया। बृजमोहन के तेवर से एम्स में हडक़ंप मचा है।
बताते हैं कि रायपुर लोकसभा क्षेत्र के मरीजों के दाखिले के लिए बृजमोहन की तरफ से रायपुर एम्स में सिफारिशें भेजी जाती रही है। खुद बृजमोहन रायपुर एम्स की सलाहकार समिति के चेयरमैन भी हैं, और चर्चा है कि खुद उन्होंने मरीजों से जुड़ी समस्याओं को लेकर एम्स डायरेक्टर को फोन लगवाया तो उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला।
बृजमोहन के करीबियों का कहना है कि हमेशा एम्स प्रबंधन की तरफ से बेड नहीं होने की बात कहकर गंभीर मरीजों को वापिस भेज दिया जाता है। इससे बृजमोहन काफी खफा थे। उन्होंने सीधे-सीधे लोकसभा में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री प्रतापराव जाधव के संज्ञान में मामला लाया। जाधव ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लिया है। उन्होंने यह भी बताया कि एम्स में 150 बिस्तर वाले क्रिटिकल केयर अस्पताल ब्लॉक की स्थापना को मंजूरी दी गई है। ताकि गंभीर मरीजों का बेहतर इलाज हो सके।
खैर, बृजमोहन के सवाल के बाद एम्स की व्यवस्था बेहतर होगी, इसकी उम्मीद जताई जा रही है। कुछ लोग पूर्ववर्ती एम्स डायरेक्टर डॉ. नितिन नागरकर की कार्यशैली को याद कर रहे हैं। जिन्होंने उस समय सीमित संसाधन होने के बावजूद एम्स में इलाज की बेहतर व्यवस्था बनाई। कोरोना काल में एम्स में इलाज के बेहतर प्रबंधन की राष्ट्रीय स्तर पर तारीफ हुई थी।
अब तो बिहार में भी बदल दिए
कांग्रेस हाईकमान ने बिहार में भी प्रदेश अध्यक्ष को बदल दिया है। विधायक राजेश कुमार को अध्यक्ष बनाया गया है। छत्तीसगढ़ में भी कुछ इसी तरह की अटकलें लगती रही है, और जब प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट यहां आए, तो कुछ लोगों ने उनसे प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के भविष्य को लेकर पूछ दिया।
पायलट ने सीधे तौर पर तो कुछ नहीं कहा लेकिन एक-दो प्रमुख नेताओं ने बैज के पक्ष में बात कही है। इन सबके बीच अंदाजा लगाया जा रहा है कि बैज कुछ समय तक और पद पर बने रह सकते हैं। यह भी कहा जा रहा है कि एक दर्जन से अधिक जिला अध्यक्षों की सूची जारी हो सकती है। बदलाव को लेकर काफी कुछ कहा जा रहा है। आगे क्या होता है यह कुछ दिन बात पता चलेगा।
स्मारकों का भी हो रहा सफाया
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में नक्सल प्रभावित इलाकों में हाल के महीनों में सुरक्षा बलों और पुलिस ने नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई तेज की है। बीजापुर जिले के उसूर इलाके में सीआरपीएफ की 81वीं और कोबरा 204वीं बटालियन की संयुक्त टीम ने कल 30 फीट ऊंचे नक्सली स्मारक को ध्वस्त किया। नक्सलियों ने बस्तर क्षेत्र में कई ऊंचे स्मारक बनाए हैं, जिनकी ऊंचाई आमतौर पर 20 से 40 फीट तक होती है। मगर बीजापुर के कोमटीपल्ली में करीब 64 फीट ऊंचा स्मारक बनाया गया था, जिसे दिसंबर में गिराया गया। इसकी तस्वीर को वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने अपनी सोशल मीडिया हैंडल पर पोस्ट भी किया था। इन स्मारकों की सटीक संख्या मौजूद नहीं है, पर यह तय है कि जब भी सुरक्षा बलों के मुठभेड़ों में नक्सली बड़ी संख्या में मारे जाते हैं तो उस जगह वे स्मारक खड़ा करने की कोशिश करते हैं। बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर, दंतेवाड़ा के दुर्गम इलाकों में अब भी कई स्मारक मौजूद हैं। बीजापुर के तमिलभट्टी गांव में भी इसी महीने, 7 मार्च को एक नक्सली स्मारक नष्ट किया गया था। दरअसल, ये स्मारक नक्सली इसलिये बनाते हैं ताकि स्थानीय आदिवासी समुदाय पर उनका प्रभाव बढ़े और सुरक्षा बलों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बने। इन स्मारकों के जरिए वे क्षेत्र में अपनी मौजूदगी को मजबूत करने की कोशिश करते हैं। सरकार और सुरक्षा बलों को यह मालूम है, इसलिये वे जब भी किसी मुठभेड़ में सफलता हासिल करते हैं, वहां यदि कोई स्मारक मिला तो उसे भी ध्वस्त कर देते हैं।