सत्तापक्ष ही विपक्ष है
विधानसभा के बजट सत्र के दो सप्ताह पूरे हो गए। इस दौरान सदन की 9 बैठकें हुई । राज्यपाल का पहला अभिभाषण हुआ। बजट पेश हुआ, उस पर सामान्य चर्चा भी हो गई। अब मंत्रियों के विभागों के बजट पारित हो रहे हैं। इसके साथ ही विधानसभा के गलियारों में पक्ष विपक्ष के अब तक के परफार्मेंस पर भी चर्चा शुरू हो गई है। और इसमें सत्तापक्ष के विधायक ही भारी पड़े। सत्तापक्ष ने तो अभिभाषण पर ही आपत्ति उठा दी। जो बीते 24 वर्ष में नहीं हुआ। असल में वे ही विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं।
और विपक्ष, अपने शब्दानुसार केवल विपक्ष ही बना हुआ है। भाजपा के विधायक चाहते हैं कि कांग्रेस सरकार के जिन घोटालों भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर सत्ता में वापसी हुई है, उनके दोषी पूर्व मंत्री, अफसरों को सूली पर टांग दे। लेकिन एक साल बाद भी वैसा कुछ नहीं हो रहा। उल्टे बचाया जा रहा,बरी हो रहे। चाहे वह जल जीवन मिशन हो, रिजेंट हो, पीएम सडक़ हो, हाउसिंग बोर्ड के मामले हो, पीएम आवास हो। अपने ही मंत्रियों पर आरोप लगाने से नहीं चूक रहे।
भाजपा विधायकों का कहना है कि वो तो कोयला, डीएमएफ, पीएससी, शराब घोटाले की जांच सीबीआई, ईडी न कर रही होती तो इनका भी हश्र सीडी कांड की तरह ही हो जाता।
इस पहले पखवाड़े में कांग्रेस के विधायकों ने केवल तीन बार बहिर्गमन किया। वह भी अपने संगठन के राजनीतिक कारणों से। इसमें भी उंगलियां उठी कि,असल में नेता प्रतिपक्ष कौन है? 35 विधायकों का मजबूत विपक्ष बंटा हुआ ही नजर आया, दो बड़े नेताओं के बीच। प्रश्न काल में एकाधिक बार मंत्रियों की अनुपस्थिति पर भी विपक्ष ने नाम लेकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई।
इन बैठकों में कई मामलों में आसंदी ने भी प्रशासनिक कामकाज के तौर तरीकों को लेकर जांच के कई निर्देश दिए तो ढिलाई पर कड़़ाई भरी कई व्यवस्थाएं दी।
सबसे बड़ी तो निधन की सूचना देर से मिलने पर साप्रवि से लेकर कलेक्टर तक की अक्ष्म्यता साबित करने सेे भी नहीं चूका।
कुल मिलाकर यह पहला पखवाड़ा विपक्ष बने सत्ता पक्ष के नाम रहा।
चंद्राकर बने दुर्वासा
विधानसभा के बजट सत्र में पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के तेवर से सरकार के मंत्री हिल गए। संसदीय मामलों के जानकार चंद्राकर ने पहले जिस तरह स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल को दवा-उपकरण खरीदी घोटाला मामले में घेरा, उसकी काफी चर्चा हो रही है। जायसवाल आखिरी तक चंद्राकर को संतुष्ट नहीं कर पाए।
कुछ इसी तरह जल संसाधन विभाग की अनुदान मांगों पर चर्चा के दौरान मंत्री केदार कश्यप की खिंचाई कर दी। पहले उन्होंने पिछली भूपेश सरकार की यह कहकर आलोचना की कि बोधघाट परियोजना को लेकर तत्कालीन मंत्री मिश्रीलाल (रविन्द्र चौबे) बढ़-चढक़र दावे कर रहे थे। मगर उसका क्या हुआ? चौबेजी मीठे बोल के लिए जाने जाते हैं, इसलिए चंद्राकर उन्हें मिश्रीलाल कहते रहे हैं। आगे चर्चा के दौरान अजय चंद्राकर ने केदार कश्यप को कुछ सुझाव दिए, तो कश्यप ने परीक्षण करने की बात कही। इस पर चंद्राकर बिफर पड़े।
बाद में केदार कश्यप ने उनसे अलग से कक्ष में चर्चा करने की बात कहकर ठंडा करने की कोशिश की, तो चंद्राकर ने कह दिया कि सरकार के मंत्री कक्ष में चर्चा करने की बात कहते हैं लेकिन आज तक किसी ने उन्हें चर्चा के लिए नहीं बुलाया है। इस पर केदार ने भरोसा दिया कि इसी सत्र के बीच में वो विभाग से जुड़े विषयों का उनसे अलग से बैठक करेंगे। तब कहीं जाकर चंद्राकर शांत हुए।
महिला पार्षद के तेवर
रायपुर नगर निगम में सभापति पद पर सूर्यकांत राठौर का निर्विरोध निर्वाचन हुआ, तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। राठौर रायपुर निगम के सबसे सीनियर पार्षद हैं, और भाजपा पार्षदों की कुल संख्या 60 है। ऐसे में विपक्ष विरोध की औपचारिकता निभाने की स्थिति में भी नहीं था। मगर अपील समिति के चार सदस्यों के निर्वाचन में भाजपा के रणनीतिकारों के पसीने छूट गए।
सभापति के साथ-साथ नगर निगम के अपील समिति के चार सदस्यों का भी निर्वाचन होना था। भाजपा पार्षद दल की बैठक में सबसे पहले सूर्यकांत राठौर को सभापति प्रत्याशी बनाने का ऐलान किया गया। इस पर सभी पार्षदों ने राठौर को बधाई दी। इसके बाद पार्टी की तरफ से नियुक्त पर्यवेक्षक धरमलाल कौशिक ने अपील समिति के चार सदस्य पद के लिए पार्षदों के नाम की घोषणा की, तो पार्षद दल में कानाफूसी शुरू हो गई।
बैठक में एक महिला पार्षद ने तो समिति के सदस्य के रूप में अपना नाम तय किए जाने पर आपत्ति की। उन्होंने साफ तौर पर कह दिया कि वो अपील समिति में नहीं रहना चाहती हैं। महिला पार्षद के तेवर देखकर पर्यवेक्षक कौशिक भी हैरान रह गए। बाद में उन्हें समझाईश दी कि पार्टी का आदेश है, और इसका पालन करना हर किसी की जिम्मेदारी है। काफी देर तक इधर-उधर की बातें होती रही। ले-देकर बुझे मन से महिला पार्षद अपील समिति का सदस्य बनने के लिए तैयार हुईं।
बताते हैं कि महिला पार्षद एमआईसी या जोन अध्यक्ष बनना चाहती हैं, और जब अपील समिति के लिए नाम आया तो वो खुद को एमआईसी या जोन अध्यक्ष के दौड़ से बाहर मान बैठीं। बाद में महिला पार्षद को समझाया गया कि अपील समिति में रहने के बाद भी एमआईसी और जोन अध्यक्ष बन सकती हैं। मगर जिस अंदाज में महिला पार्षद ने तेवर दिखाए, उसको लेकर भाजपा में काफी हलचल रही।
जब सीखना बने मस्ती भरा सफर!
यह एक वीडियो का स्क्रीन शॉट है, जिसमें एक टीचर बच्चों के साथ नाच रही हैं, गा रही हैं-आज मंगलवार है, चूहे को बुखार है... और बच्चे भी पूरे जोश में ताल मिलाकर झूम रहे हैं!
बिहार के शेखपुरा जिले के एक स्कूल की यह तस्वीर उस पारंपरिक शिक्षण पद्धति को चुनौती देती है, जहां अब भी बच्चों से सख्ती बरती जाती है। उनको डराकर, डांटकर या मारपीट कर रटाने की कोशिश की जाती है। शोध बताते हैं कि ऐसे माहौल में कई बच्चे स्कूल जाने से घबराते हैं, और पढ़ाई बोझ लगने लगती है। यह दिखाता है कि सीखना अगर खेल-खेल में हो, तो बच्चे न केवल पढ़ाई में रुचि लेते हैं, बल्कि टीचर के प्रति सम्मान भी बढ़ता है। ([email protected])