राजधानी में कांग्रेस दिक्कत में
चर्चा है कि नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन अब तक का सबसे बेहतर हो सकता है। वजह यह है कि पार्टी का चुनाव प्रबंधन अच्छा रहा है। पार्टी के तमाम प्रमुख नेता प्रचार खत्म होने के बाद भी डोर-टू-डोर जाकर मतदाताओं से मिलते रहे हैं। रायपुर नगर निगम के एक हाईप्रोफाइल वार्ड में तो सोमवार की रात खुद महामंत्री (संगठन) पवन साय ने प्रमुख नेताओं के साथ बैठक की।
पार्टी ने सरकार के सभी मंत्रियों को एक-एक निगम का प्रभारी बनाया है। रायपुर के प्रभारी कृषि मंत्री रामविचार नेताम हैं। नेताम ने पूरे समय रायपुर में रहकर वार्डों में झगड़े निपटाते दिखे हैं।
भाजपा नेताओं की रणनीति का प्रतिफल यह रहा कि कांग्रेस के कई-कई बार के पार्षद, जो कि पिछले चुनावों में आसानी से जीत दर्ज करते रहे हैं। इस बार मुश्किल में घिरे दिख रहे हैं। आम आदमी पार्टी की भले ही दिल्ली में सत्ता चली गई, लेकिन रायपुर नगर निगम में खाता खुल सकता है। दो-तीन वार्डों में आप प्रत्याशी मजबूत दिख रहे हैं। कुल मिलाकर इस बार चुनाव में नतीजे चौकाने वाले आ सकते हैं।
बिना कोषाध्यक्ष टिकट बिक्री ?
कांग्रेस का प्रचार तंत्र इस बार बिखरा रहा है। प्रदेश के प्रभारी महामंत्री मलकीत सिंह गेंदू चुनाव लड़ रहे हैं, और कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल चुनावी परिदृश्य से गायब हैं। इसका सीधा असर चुनाव प्रचार पर पड़ा है। पहली बार रिकॉर्ड संख्या में बागी चुनाव मैदान में उतरे हैं। उन्हें मनाकर चुनाव मैदान से हटाने में किसी बड़े नेता ने रुचि नहीं दिखाई।
दिलचस्प बात यह है कि प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट पूरी तरह चुनाव से गायब रहे। वो एक दिन भी यहां पार्टी प्रत्याशियों के प्रचार के लिए नहीं आए। यही नहीं, पार्टी के बड़े नेता एक साथ किसी भी मंच पर नहीं दिखे। यानी एकजुटता का दिखावा नहीं कर पाए। इसका सीधा असर चुनाव पर दिखा है। प्रदेश में तीन नगर निगम ही ऐसे हैं, जहां कांग्रेस कड़ी टक्कर देते दिख रही है। इनमें भी प्रत्याशियों का बड़ा रोल है। टिकट को लेकर लेनदेन की चर्चा रही है। चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस में गदर मचने के आसार दिख रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
दो बड़े चुनावों के बाद सुस्त मतदान
नगरीय निकाय चुनाव में कई जगहों पर बेहतर मतदान हुआ है। मगर रायपुर जैसे बड़े नगर निगमों में मतदाता सूची में गड़बड़ी सामने आई है। वार्डों के परिसीमन के चलते मतदान केन्द्र बदल गए, और इसकी वजह से मतदाताओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है।
बताते हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए चुनाव आयोग ने अभियान चलाया था। मगर नाम जुड़वाने के बावजूद बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम गायब थे। राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। पहले चुनावों में आयोग ने मतदान के आंकड़े जारी करने में तत्परता दिखाती रही है। इस बार वैसा कुछ नजर नहीं आया। सुबह 10 बजे पहली बार आंकड़े जारी किए गए। राजनीतिक दलों के लोग भी आयोग से संतुष्ट नजर नहीं आए।
सांसद के सार्वजनिक गुस्से का सवाल
बस्तर में कई जनप्रतिनिधि जेड प्लस सुरक्षा के घेरे में चलते हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण। कांकेर सांसद भोजराज नाग भी उन्हीं में से एक हैं। जब नक्सल ऑपरेशन की प्रतिक्रिया स्वरूप जनप्रतिनिधियों पर हमले हो रहे हैं, तो यह जरूरी है कि उनकी सुरक्षा को लेकर पुलिस को अतिरिक्त सतर्क रहना चाहिए।
कांकेर-भानुप्रतापपुर मार्ग पर सांसद की गाड़ी करीब एक घंटे तक जाम में फंसी रही। सामने ट्रकों की लंबी कतार थी, जिन्हें पुलिस माइंस से आने वाले भारी वाहनों की चेकिंग में रोक रही थी। इस दौरान सांसद का गुस्सा थाना प्रभारी पर फूट पड़ा। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में वह खुलेआम टीआई पर वसूली के आरोप लगाते दिखे। उन्होंने कहा- ऐसी टीआईगिरी करोगे? वीआईपी को एक घंटे रोकोगे? तमाशा बना दिया है! बदतमीज कहीं के! माइंस की ट्रकों से वसूली करते हो, बहुत शिकायतें हैं तुम्हारी! पुलिस सफाई देती रही कि नो एंट्री में घुसी ट्रकों की संख्या अधिक थी, जिससे व्यवस्थित करने में समय लगा और जाम लग गया।
यह पहली बार नहीं है जब सांसद इस तरह सार्वजनिक रूप से भडक़े हों। कुछ समय पहले रावघाट इलाके के एक ठेकेदार से फोन पर बातचीत के दौरान उन्होंने आपा खो दिया था और अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया था। वह वीडियो भी वायरल हुआ था। करीब छह महीने पहले मंच से अधिकारियों को चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा था- कान खोलकर सुन लें, जनता के पैसे से मिलने वाला वेतन मौज करने के लिए नहीं है। मैं सांसद हूं, पुजारी भी हूं। अगर पुरानी मानसिकता नहीं छोड़ते तो भूत उतारूंगा।
सांसद की नाराजगी जायज हो सकती है, पुलिस पर वसूली का आरोप भी सही हो सकता है। जेड प्लस सुरक्षा प्राप्त निर्वाचित प्रतिनिधि को जाम में फंसना निश्चित रूप से एक सुरक्षा चूक मानी जा सकती है। लेकिन जब दिल्ली से लेकर छत्तीसगढ़ तक अपनी ही सरकार हो, तो इस तरह सार्वजनिक रूप से संयम खोने पर सवाल उठ जाता है। सांसद चाहें तो सीधे डीजीपी से बात कर टीआई को सस्पेंड करने के लिए कह सकते थे। सार्वजनिक मंच पर बार-बार आक्रोश जाहिर करना केवल राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन नहीं माना जाए? ब्यूरोक्रेट से परेशान जनता उनकी नाराजगी से थोड़ी देर के लिए खुश हो सकती है, पर वह समाधान की उम्मीद भी रखती है।
जंगल वॉर आसान नहीं
छत्तीसगढ़ के कांकेर स्थित काउंटर टेररिज्म एंड जंगल वॉरफेयर (सीटीजेडब्ल्यू) कॉलेज देश में आतंकवाद व नक्सलवाद से निपटने के लिए सुरक्षा बलों को अत्याधुनिक प्रशिक्षण प्रदान करता है। अब तक हजारों केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवान यहां से आतंकवाद विरोधी एवं जंगल युद्ध तकनीकों में प्रशिक्षित हो चुके हैं। यह कॉलेज जंगलों और दुर्गम इलाकों में अभियानों की रणनीति, गुरिल्ला युद्ध तकनीक, आधुनिक हथियारों के संचालन और परिस्थितिजन्य निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाने पर केंद्रित है। सुरक्षा बलों को यहां शारीरिक, मानसिक व सामरिक रूप से सशक्त बनाया जाता है, जिससे वे आतंकवाद और नक्सली हिंसा जैसी चुनौतियों से प्रभावी रूप से निपट सकें। हाल के मुठभेड़ों में सफलता को देखें तो इस तरह का प्रशिक्षण महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। यह तस्वीर वहां चल रहे एक प्रशिक्षण की है।