राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : जय जगन्नाथ
09-Feb-2025 4:15 PM
राजपथ-जनपथ : जय जगन्नाथ

जय जगन्नाथ

ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक को विधानसभा चुनाव में हराकर सुर्खियों में आए काटाभांजी के भाजपा विधायक लक्ष्मण बाग रायपुर नगर निगम चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों के प्रचार के लिए पहुंचे, तो विशेषकर उत्कल मोहल्लों में अच्छा स्वागत हुआ। लक्ष्मण बाग ने प्रचार की शुरूआत हाईप्रोफाइल वार्ड भगवतीचरण शुक्ल के उत्कल मोहल्लों से की। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में निवर्तमान मेयर एजाज ढेबर चुनाव मैदान में हैं।

बाग भाजपा प्रत्याशी अमर गिदवानी को साथ लेकर उत्कल मोहल्लों की तंग गलियों में घूमे, वो अपने साथ पूरी जगन्नाथ मंदिर का प्रसाद लेकर आए थे, और हर घर में अपने हाथों से प्रसाद वितरित किया। लोग काफी भावुक हो गए और कई लोगों ने बाग का पैर धोकर आरती भी उतारी। बाग के साथ ओडिशा भाषी भाजपा नेता अमर बंसल, और विश्वदिनी पांडेय भी थे। बाग ने कुछ घंटों में ही वहां का माहौल एक तरह से बदल दिया। कांग्रेस के परंपरागत उत्कल मोहल्लों में जिस तरह भाजपा ने सेंध लगाई है, उससे ढेबर मुश्किल में पड़ गए हैं। देखना है आगे क्या होता है।

चाँदी का शिवलिंग!! 

रायपुर नगर निगम में चुनाव प्रचार खत्म होने के कुछ घंटे पहले शहर के बीचोंबीच के एक वार्ड के निर्दलीय प्रत्याशी ने जो कुछ किया उससे कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशी हैरान रह गए हैं। निर्दलीय प्रत्याशी ने घर-घर जाकर चांदी का शिवलिंग दिया है। लोगों ने उत्साहपूर्वक इसको स्वीकार भी किया है।

वैसे भी इस वार्ड में पंडित प्रदीप मिश्रा के अनुयायी निर्णायक भूमिका में है। ऐसे में निर्दलीय प्रत्याशी के शिवलिंग वितरण को एक मास्टर स्टोक माना जा रहा है। इससे पहले वर्ष 94 के वार्ड चुनाव को छोडक़र यहां से कांग्रेस या भाजपा से ही पार्षद बनते रहे हैं। मगर इस बार निर्दलीय ने दलीय प्रत्याशियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है।

रायपुर नगर निगम में करीब दर्जनभर वार्डों में निर्दलीय प्रत्याशी, कांग्रेस और भाजपा उम्मीदवारों पर भारी दिख रहे हैं। वर्ष 2009 में सबसे ज्यादा 10 निर्दलीय पार्षद चुनकर आए थे। देखना है कि इस बार क्या होता है। 

मतदाता सूची विश्लेषक की मांग

छत्तीसगढ़ में इस समय स्थानीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का माहौल है। शहर, गांव-गली सब तरफ चुनाव प्रचार तेज है। मगर, प्रचार में लगे किसी प्रत्याशी के लिए सिर्फ अपने इलाके की मतदाता सूची हासिल लेना पर्याप्त नहीं होता, उसे अपने इलाके की भौगोलिक सीमा, जातिगत, सामाजिक और पारिवारिक संरचना का भी अध्ययन करना पड़ता है। यह काम जटिल होता है। मगर चुनावी मार्केट में एक नया पेशा शुरू हो गया है, मतदाता सूची विश्लेषक' का। ये युवाओं के समूह होते हैं जिनका काम मतदाता सूची का अध्ययन करना ही होता है। यह टीम मतदाता सूची की छानबीन करके बताती है कि किस मोहल्ले में किस समुदाय, जाति के कितने वोट हैं, कौन किसके प्रभाव में वोट डाल सकता है और किस परिवार का वोट बैंक बड़ा और मजबूत है, वार्ड की सीमा किस गली से शुरू होकर किस गली में खत्म होती है, आदि।

जातीय समीकरण, रिश्तेदारी का गणित और प्रभावशाली मुखियाओं की पकड़ ही चुनावी सफलता का असली मंत्र है। प्रत्याशियों को इसके हिसाब से रणनीति तैयार करनी पड़ती है। पर वे खुद इस रिसर्च में समय नहीं गंवा सकते, इसलिए इन विशेषज्ञों की सेवाएं ली जा रही हैं, जो बाकायदा कीमत लेकर उन्हें वोटरों का एक स्पष्ट खाका तैयार करके दे रहे हैं। प्रमुख दलों के अलावा निर्दलीय भी इनसे सेवाएं ले रहे हैं। इस बार वोटर लिस्ट विश्लेषकों की बाजार में मांग इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि नामांकन से मतदान के बीच का समय कम मिला है। प्रत्याशियों को इन विश्लेषकों से मदद मिल रही है कि उनके संभावित वोटर कौन हैं और उन्हें साधने के लिए किन प्रभावशाली लोगों को अपने पक्ष में करना होगा।  

वैसे इस मौके पर यह सवाल उठता है कि क्या चुनावी राजनीति जाति, बिरादरी का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है? क्या प्रत्याशी और मतदाता विकास कार्यों से ज्यादा ऐसे समीकरणों में ही उलझे रहेंगे?  

यात्रियों का इंजन पर कब्जा

प्रयागराज महाकुंभ की आस्था की लहर ने रेलवे की व्यवस्था को हिला कर रख दिया है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण ट्रेनों में पैर रखने तक की जगह नहीं बची। हालात इतने बिगड़ गए कि लखनऊ जंक्शन पर जगह न मिलने से नाराज श्रद्धालु बरेली-प्रयागराज एक्सप्रेस के इंजन के सामने खड़े हो गए, जिससे लोको पायलट को मजबूर होकर ट्रेन रोकनी पड़ी। वाराणसी में तो स्थिति और गंभीर हो गई जब श्रद्धालुओं ने ट्रेन के इंजन पर ही कब्जा जमा लिया। जीआरपी को काफी मशक्कत करनी पड़ी, तब जाकर लोग नीचे उतरे। हरदोई में भी हालात बेकाबू हो गए। श्रद्धालुओं ने ट्रेन में प्रवेश न मिलने पर हंगामा खड़ा कर दिया और गुस्से में आकर कोचों में तोडफ़ोड़ कर दी। इधर शनिवार देर रात वाराणसी कैंट में करीब 1:30 बजे जब प्रयागराज जाने वाली ट्रेन  पहुंची, तो उसमें पहले से ही इतनी भीड़ थी कि नए यात्रियों के लिए कोई जगह नहीं बची। ऐसे में 20 से अधिक श्रद्धालु इंजन में चढ़ गए और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। लोको पायलट के बार-बार कहने के बावजूद किसी ने दरवाजा नहीं खोला, जिसके बाद जीआरपी को बुलाना पड़ा। पुलिसकर्मियों ने जबरन यात्रियों को नीचे उतारा।

हरदोई में प्रयागराज जाने वाली ट्रेन जब प्लेटफॉर्म पर रुकी, तो अंदर बैठे श्रद्धालुओं ने दरवाजे नहीं खोले। कुछ नाराज यात्रियों ने तो गुस्से में ट्रेन पर पथराव तक कर दिया, जिससे कई शीशे टूट गए। इसके बाद भी दरवाजा नहीं खुला, करीब 2,000 श्रद्धालु स्टेशन पर ही छूट गए। बिलासपुर जोनल रेलवे की ओर से भी प्रयागराज के लिए लगातार नई ट्रेनों की घोषणा हो रही है, मगर जाहिर है कि यात्रियों की संख्या के लिहाज से ये काफी कम हैं।

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