...और तीरथ करने भेजा
बाड़ ही जब खेत चरने लग जाए तो रखवाली कौन करे, यह कहावत कांग्रेस नेताओं पर फिट बैठती दिख रही है। प्रदेश में कई जगहों पर कांग्रेस नेताओं पर टिकट बेचने के आरोप लग रहे हैं, और कोरबा में तो प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज का पुतला भी फूंका गया। इस बार नगरीय निकायों के 33 कांग्रेस के वार्ड प्रत्याशियों ने चुपचाप नामांकन वापस लिए, तो कई चौंकाने वाली जानकारी छनकर सामने आ रही है।
सुनते हैं कि बसना के नगर पंचायत अध्यक्ष प्रत्याशी को बिठाने में कांग्रेस के एक स्थानीय प्रमुख नेता ने भूमिका निभाई है। यह बात छनकर सामने आई है कि भाजपा के चुनाव प्रबंधकों ने पहले चुपचाप दो निर्दलीय प्रत्याशियों के नामांकन वापस करा लिए। इसके बाद आम आदमी पार्टी, और बसपा प्रत्याशी पर डोरे डाले।
दोनों दलों के प्रत्याशियों ने भी सरेंडर कर दिया। भाजपा के प्रबंधक पहले ही एक स्थानीय दिग्गज कांग्रेस नेता के संपर्क में थे, और ये वो नेता हैं जिन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी तय करने में अहम भूमिका निभाई थी।
बताते हैं कि कांग्रेस प्रत्याशी तो पहले चुनाव लडऩे के लिए तैयार नहीं थीं, लेकिन किसी तरह समझाइश देकर उन्हें नामांकन दाखिल करा दिया गया। और आखिरी क्षणों में महिला प्रत्याशी से नामांकन वापस कराकर पति के साथ उन्हें तीर्थाटन के लिए भेज दिया गया। भाजपा प्रत्याशी डॉ. खुशबू अग्रवाल निर्विरोध निर्वाचित हुई है।
नगर पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में अंतागढ़ उपचुनाव की याद ताजा की है। तरीके भी वही थे, और लेनदेन भी उसी अंदाज में हुआ है। मगर फिलहाल इसके कोई पुख्ता सुबूत सामने नहीं आए हैं। ये अलग बात है कि बसना नगर में हर किसी की जुबान में लेनदेन की चर्चा है। देर सबेर यह मामला गरमाएगा। देखना है आगे क्या होता है।
निर्दलियों के आसार दिख रहे
रायपुर नगर निगम में इस बार वर्ष-2009 के चुनाव की तरह बड़े पैमाने पर निर्दलीय चुनाव जीतकर आ सकते हैं। कांग्रेस के आधा दर्जन से अधिक बागी चुनाव मैदान में हैं, जिनकी स्थिति फिलहाल मजबूत दिख रही है। न सिर्फ रायपुर बल्कि कई निकायों में बागी बेहतर दिख रहे हैं। भाजपा में भी कुछ इसी तरह की समस्या है।
कांग्रेस ने इस चुनाव में प्रत्याशी की वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखकर टिकट बांटी है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि कई जगहों पर स्थानीय कार्यकर्ता पार्टी के बागी प्रत्याशियों का साथ दे रहे हैं। वर्ष-2009 के निकाय चुनाव में रायपुर में 10 निर्दलीय पार्षद चुनकर आए थे। इस बार भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति बन सकती है। न सिर्फ रायपुर बल्कि अंबिकापुर, दुर्ग, और नांदगांव में भी कांग्रेस के कई निर्दलीय प्रत्याशियों की स्थिति मजबूत दिख रही है।
भाजपा में भी अंबिकापुर, और कई निकायों में निर्दलीय प्रत्याशी मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं। फिर भी भाजपा ने काफी हद तक अपने बागियों को मनाने में कामयाब रही है। अब आगे क्या होता है, यह तो नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
पहलवानों की अगली पीढ़ी अखाड़े में
आखिरकार पूर्व केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह की बेटी मोनिका सिंह ने सूरजपुर जिले की जिला पंचायत सदस्य क्रमांक-15 से नामांकन भर दिया है। मोनिका भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़ रही हैं। उन्होंने नामांकन दाखिले के दौरान जोरदार शक्ति प्रदर्शन किया।
रेणुका सिंह भरतपुर-सोनहत सीट से विधायक हैं। जबकि मोनिका अपनी मां के पुराने विधानसभा क्षेत्र प्रेमनगर के क्षेत्र से चुनाव लड़ रही हैं। बताते हंै कि रेणुका सिंह ने अपनी बेटी को अधिकृत प्रत्याशी घोषित करने के लिए स्थानीय प्रमुख नेताओं से चर्चा भी की थी। मगर विधायक भुवन सिंह मरावी इसके लिए तैयार नहीं हुए। इसके बाद उन्होंने बागी तेवर दिखा दिए हैं।
दिलचस्प बात यह है कि इसी क्षेत्र से सतवंत सिंह चुनाव मैदान में हैं, जो कि दिवंगत कांग्रेस नेता तुलेश्वर सिंह के बेटे हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में रेणुका सिंह, और तुलेश्वर सिंह आपस में टकराते रहे हैं। उनकी राजनीतिक अदावत चर्चा में रही है। अब दूसरी पीढ़ी के सदस्य आपस में भिड़ रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
नैक घोटाले पर सीबीआई की चोट
1994 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्च शिक्षा की गुणवत्ता जांचने के लिए राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नैक) की स्थापना की। इसका उद्देश्य विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की शिक्षा व्यवस्था को तय मानकों पर परखना था, ताकि बेहतर प्रदर्शन करने वाले संस्थानों को अधिक अनुदान मिल सके। इससे न केवल शिक्षण संस्थानों में प्रतिस्पर्धा बढ़ी, बल्कि छात्रों को भी सही कॉलेज चुनने में सहूलियत मिली।
शुरुआत में नैक मूल्यांकन के लिए चार मापदंड थे, जिन्हें 2022 में बढ़ाकर आठ कर दिया गया। इसमें शिक्षण सुविधाएं, शिक्षकों का शोध कार्य, परीक्षा परिणाम, आधारभूत ढांचा, वेतन व्यवस्था, छात्र सुविधाएं और संपूर्ण शैक्षणिक वातावरण शामिल थे। नैक की टीम इन सभी पहलुओं का निरीक्षण कर रिपोर्ट तैयार करती और संस्थान को सीजीपीए के आधार पर ग्रेड देती थी। नैक टीम में विशेषज्ञों और अनुभवी प्रोफेसरों को शामिल कर प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की कोशिश की गई।
मगर, समय के साथ नैक प्रणाली में गड़बडिय़ां शुरू हो गईं। कई कॉलेज और विश्वविद्यालय अच्छे ग्रेड के लिए जोड़तोड़ में लग गए। फर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर, दिखावटी फैकल्टी, औपचारिकतावश एल्युमनी गठन और महज कागजों में लाइब्रेरी निर्माण जैसे हथकंडे अपनाए जाने लगे। इससे कई ऐसे निजी संस्थान ए-प्लस और ए-प्लस-प्लस ग्रेड पाने में सफल हो गए, जिनकी शैक्षणिक गुणवत्ता संदिग्ध थी। इस उच्च ग्रेडेशन के कारण उन्हें यूजीसी से अधिक फंड मिलने लगा और वे इसका फायदा उठाकर एडमिशन फीस भी बढ़ाने लगे।
हाल ही में सीबीआई ने देशभर में छापेमारी कर एक दर्जन से अधिक प्रोफेसरों को गिरफ्तार किया है। इन पर आरोप है कि इन्होंने कॉलेज और विश्वविद्यालय संचालकों से मोटी रिश्वत लेकर ग्रेडेशन बांटे। इस घोटाले में छत्तीसगढ़ का नाम भी सामने है। अटल बिहारी विश्वविद्यालय के पूर्व निदेशक और नैक इंस्पेक्शन टीम के चेयरमैन रहे समरेंद्र नाथ साहा को बिलासपुर के कोनी स्थित उनके निवास से गिरफ्तार किया गया। वर्तमान में वे एक निजी विश्वविद्यालय के कुलपति हैं।
इधर, यूजीसी ने जनवरी 2024 में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सुझाव पर नैक ग्रेडेशन प्रणाली को समाप्त करने का निर्णय ले लिया। सत्र 2025-26 से शिक्षण संस्थानों को ऑनलाइन एक प्रोफॉर्मा भरना होगा, जिसमें वे अपनी सुविधाओं, इंफ्रास्ट्रक्चर और फैकल्टी की जानकारी देंगे। ग्रेडेशन के बजाय अब संस्थानों को एक से पांच तक का लेवल दिया जाएगा। यहां तक कि सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय, आईआईटी, आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों को भी आकलन की इस नई प्रक्रिया से गुजरना होगा।
सीबीआई की यह कार्रवाई तब हुई जब नैक प्रणाली पहले ही खत्म की जा चुकी है। शायद घोटाले में शामिल लोग यह सोचकर निश्चिंत हो गए थे कि अब उनके द्वारा दिए गए ग्रेड की जांच नहीं होगी। लेकिन जांच एजेंसी ने पुरानी फाइलें खोल दी हैं। अब देखना है कि आगे किन-किन लोगों पर शिकंजा कसेगा, क्योंकि खबरों के अनुसार कई और प्रोफेसर और रिश्वत देने वाले विश्वविद्यालय, कॉलेजों के अधिकारी जांच के दायरे में हैं।