राजनीति और दारू
नगरीय निकायों में चुनाव प्रचार धीरे-धीरे गरमा रहा है। कांग्रेस, और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का भी दौर चल रहा है। कुछ गड़े मुद्दे भी उछल रहे हैं। पिछले दिनों कवर्धा जिला कांग्रेस संगठन में शराब कारोबार से जुड़े शख्स को ऊंचा ओहदा दिया गया, तो पार्टी के अंदर खाने में काफी प्रतिक्रिया हुई। अब भाजपा को चुनाव प्रचार में एक मुद्दा मिल गया है, और इस मसले पर कांग्रेस को घेर रही है।
कवर्धा के विधायक, और डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने कवर्धा नगर पालिका के प्रत्याशियों के प्रचार में इस मुद्दे को अपने अलग ही अंदाज में उठाया। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस ने कवर्धा का ठेका एक दारू ठेकेदार को दे दिया है। हर बस्ती में नए लडक़ों को बिगाडऩे का काम चल रहा है। हास परिहास के बीच छत्तीसगढ़ी में उन्होंने कहा कि दारू ल देखते, तो हमर लइका मन भी ऐती-ओती हो जथे..।
विजय शर्मा यहीं नहीं रूके। उन्होंने पूर्व मंत्री मोहम्मद अकबर का नाम लिए बिना रह रहकर तीर छोड़े, और कहा कि रायपुर के नेता को यहां से प्रेम होता, तो यहां के लोगों के बारे में सोचते। उन्होंने जोर देकर कहा कि पिछले पांच साल में कवर्धा में एक भी काम नहीं हुआ है। डिप्टी सीएम ने कहा कि कांग्रेस के लोग बिलासपुर मार्ग में पुलिया निर्माण को अपनी उपलब्धि गिनाते हैं, जिसकी मंजूरी डॉ. रमन सिंह ने अपने कार्यकाल में दी थी। कुल मिलाकर स्थानीय चुनाव में स्थानीय मुद्दे प्रमुखता से उठ रहे हैं।
विभागीय मुखिया और सवाल
ईएनसी केके पिपरी रिटायर हो गए, और सरकार ने उनकी जगह विजय भतप्रहरी को ईएनसी का प्रभार दिया गया है। चर्चा है कि कुछ महीने पहले पिपरी को हटाने की कोशिशें हुई थी, तब वो छुट्टी मनाने विदेश गए थे। उन्हें हटाने की फाइल भी चल गई थी, लेकिन विभागीय मंत्री अरुण साव के हस्तक्षेप के बाद हटाने का प्रस्ताव रुक गया। अब जब भतप्रहरी को प्रभार दिया गया है, तो कई सवाल खड़े हो गए हैं।
विजय भतप्रहरी कई जांच से घिरे हैं। उनके खिलाफ ईओडब्ल्यू में भी केस दर्ज है। भतप्रहरी विभाग में ओएसडी के पद पर भी हैं। कई प्रमुख लोगों ने उन्हें ईएनसी का प्रभार देने पर अलग-अलग स्तरों पर शिकायत भी की है। इससे परे एसपी कश्यप जैसे कुछ सीनियर चीफ इंजीनियर ईएनसी बनने की लाइन में हैं। अभी निकाय चुनाव चल रहा है। चर्चा है कि चुनाव निपटने के बाद ईएनसी की पोस्टिंग के मसले पर कोई फैसला हो सकता है।
बेटी चुनें, या बहू ?
इस बार राजधानी निगम के चुनाव में दिलचस्प बात यह है कि तीनों प्रमुख मेयर प्रत्याशी मीनल चौबे, दीप्ति प्रमोद दुबे, और डॉ. शुभांगी तिवारी का ब्राह्मणपारा से ताल्लुक रहा है। मीनल ब्राम्हणपारा में पली-बढ़ी, और छात्रसंघ चुनाव से राजनीति में आई। विवाह के बाद वो चंगोराभाठा में शिफ्ट हो गईं । मीनल तीन बार पार्षद रही हैं। वो शहर जिला भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष के अलावा वर्तमान में प्रदेश उपाध्यक्ष का भी दायित्व संभाल रही हैं।
दूसरी तरफ, कांग्रेस प्रत्याशी दीप्ति प्रमोद दुबे मूलत: बेमेतरा की रहने वाली हैं। उनका सीधे राजनीति से कोई वास्ता नहीं रहा है। वो प्रमोद दुबे से विवाह के बाद ब्राह्मणपारा में शिफ्ट हुईं। दीप्ति, विशुद्ध रूप से घरेलू महिला रही हैं, और प्रमोद दुबे से विवाह के बाद जरूर सामाजिक कार्यक्रमों में नजर आती रही हैं।
इससे परे आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी डॉ. शुभांगी तिवारी भी रायपुर ब्राह्मणपारा की रहने वाली हैं। अपने माता-पिता की इकलौती संतान डॉ. शुभांगी तिवारी ने रायपुर एम्स से चिकित्सा की डिग्री हासिल की है। उनके माता-पिता कोटा में शिफ्ट हो गए, और फिर उनकी मां दो बार पार्षद रही हैं।
शुभांगी के पिता चंद्रशेखर तिवारी मंडी इंस्पेक्टर की नौकरी में आने से पहले भाजपा से जुड़े रहे हैं, और रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल व देवजी पटेल के करीबी रहे हैं। मगर बेटी ने भाजपा के बजाए आम आदमी पार्टी से राजनीति की शुरुआत की है। अब ब्राह्मणपारा के लोगों के वाट्सएप ग्रुप में चल रहा है कि बेटी चुने या बहू को।
शिथिल प्रशासन, मौज लेकर आया
चुनावों के दौरान कई लोगों को अस्थायी रोजगार मिल जाता है। वर्तमान में नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों की सरगर्मी तेज हो चुकी है। इस दौरान मतदाताओं से संपर्क करने, प्रचार सामग्री बांटने, माइक, बाइक, ऑटोरिक्शा से प्रचार करने और जुलूस-सभाओं में भाग लेने जैसे कार्यों के लिए बड़ी संख्या में लोग जुट जाते हैं। ये लोग केवल दैनिक भुगतान के आधार पर काम करते हैं, न तो इन्हें पार्टी कार्यकर्ता कहा जा सकता है, न ही इनसे किसी तरह की निष्ठा की अपेक्षा की जाती है। वे केवल मेहनत करते हैं और उसका पारिश्रमिक प्राप्त करते हैं।
हालांकि, यह तो चुनावी माहौल का एक छोटा लाभ है। असल फायदा उन लोगों को होता है, जो जानते हैं कि प्रशासनिक सख्ती चुनावों के दौरान शिथिल पड़ जाती है। कई जिलों से खबरें आ रही हैं कि रेत तस्करों की गतिविधियां बढ़ गई हैं, क्योंकि खनिज विभाग ने छापेमारी फिलहाल रोक दी है। इसी तरह, अवैध निर्माण कार्यों पर भी नगर निगम के इंजीनियरों की उदासीनता देखी जा रही है। कुछ स्थानों से यह भी सूचना मिल रही है कि अवैध प्लाटिंग कर चुनावी माहौल का फायदा उठाकर तेजी से बिक्री की जा रही है। छूट के ऑफर भी दिए जा रहे हैं।
गौर करने वाली बात यह है कि ऐसे कार्यों में संलिप्त अधिकांश लोग किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़े होते हैं। प्रशासनिक अधिकारी जब इन अवैध गतिविधियों की शिकायतें पाते हैं, तो वे कार्रवाई से बचने के लिए यह तर्क देते हैं कि चुनाव के दौरान कोई भी कदम राजनीतिक रंग ले लेगा। इस बहाने जांच-पड़ताल और छापेमारी टाल दी गई है। अवैध कारोबारियों को खुली छूट मिल रही है।
चुनावी माहौल सिर्फ अस्थायी रोजगार नहीं लाता बल्कि कई अवैध गतिविधियों के लिए एक सुरक्षा कवच भी है।
और बदल लिया इरादा...
चित्रकूट वाटरफॉल में एक जनाब ब्रेकअप के सदमे में जिंदगी खत्म करने चले थे, लेकिन जैसे ही पानी में कूदे, हकीकत का एहसास हुआ! मौत सामने दिखी तो दिल की सारी उलझनें हवा हो गईं। और जैसे ही एक नाव पास आई, जान बचाने के लिए फटाफट चढ़ गए!
जिंदगी किसी एक मोड़ पर रुकती नहीं, तकलीफें आती हैं, मगर उनका हल खुद को खत्म करना नहीं होता। जो आज दर्द लग रहा है, वही कल आपको और मजबूत बना सकता है। अगर कोई तकलीफ में है, तो अकेले मत रहिए। अपने दोस्तों, परिवार या किसी मददगार से बात कीजिए। हर अंधेरे के बाद सवेरा जरूर आता है!