राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : पिछड़े वर्ग की नाराजगी का क्या?
24-Jan-2025 4:26 PM
राजपथ-जनपथ : पिछड़े वर्ग की नाराजगी का क्या?

पिछड़े वर्ग की नाराजगी का क्या?

नगरीय निकाय-पंचायत चुनाव में पदों के आरक्षण की सीमा 50 फीसदी करने से पिछड़ा वर्ग के जनप्रतिनिधियों में नाराजगी है। पिछड़ा वर्ग को नगरीय निकायों में थोड़ा फायदा हो रहा है, लेकिन पंचायतों में नुकसान उठाना पड़ रहा है। सरपंच से लेकर जिला पंचायतों में अनारक्षित सीटें बढ़ी है, और पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीटों में कमी आई है।  इस वजह से पिछड़ा वर्ग का बस्तर में बड़ा आंदोलन भी हुआ है। 

भाजपा को पिछड़ा वर्ग के लोगों की नाराजगी का अंदाजा भी है, और इससे निपटने के लिए कार्य योजना बनाई गई है। इसका प्रतिफल यह रहा कि बस्तर संभाग के नगर पालिकाओं, और नगर पंचायतों में अनारक्षित सीटों पर ज्यादातर जगहों पर पिछड़ा वर्ग के प्रत्याशी उतारे जा रहे हैं। 

पार्टी के रणनीतिकारों ने जगदलपुर मेयर के अलावा कोंडागांव नगर पालिका, कांकेर में अध्यक्ष पद पर पिछड़ा वर्ग के योग्य प्रत्याशी की तलाश कर ली है। एक-दो दिन के भीतर इसका ऐलान किया जा सकता है। इसका पार्टी को कितना फायदा होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा। 

नए पदाधिकारियों का बड़ा भाव  

भाजपा में नवनियुक्त जिला अध्यक्षों की पूछपरख बढ़ गई है। विशेषकर वार्डों, और पंचायत के पदों पर किसी एक नाम के लिए सहमति नहीं बन पा रही है, या फिर विवाद की स्थिति बन गई है, वहां जिलाध्यक्षों को कुछ प्रमुख नेताओं से चर्चा कर प्रत्याशी तय करने के अधिकार दे दिए गए हैं। 

भाजपा के रणनीतिकारों की मजबूरी भी है। वजह यह है कि नामांकन दाखिले की समय-सीमा खत्म होने में तीन दिन बाकी रह गए हैं। ऐसे में जल्द से जल्द प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया पूरी करने के लिए दबाव भी है। 

भाजपा, और कांग्रेस दफ्तर में सैकड़ों दावेदार सुबह से लेकर रात तक डटे रहते हैं। इससे पार्टी के बड़े नेता परेशान हैं। इसके चलते  रायपुर नगर निगम के वार्ड प्रत्याशियों के चयन के लिए सांसद बृजमोहन अग्रवाल को अपने घर में बैठक करने की छूट दे दी है। चूंकि बृजमोहन के घर में बैठक होने की खबर उड़ी, तो कुशाभाऊ ठाकरे परिसर से भीड़ छटकर मौलश्री विहार शिफ्ट हो गई। मगर बाकी जगहों के लोग अब भी पार्टी दफ्तर में देखे जा सकते हैं।

फील्ड को मिले 60 अफसर

पिछले ही दिनों हमने इसी कॉलम में बताया था कि राजधानी को सेफ जोन मानकर  राप्रसे के अफसर फील्ड छोडक़र मंत्रालय, संचालनालय और राजधानी के अन्य राज्य स्तरीय दफ्तरों में अफसरशाही के दिन गुजार रहे हैं। मंत्रालय, संचालनालय में तो में इस कैडर के अफसर बहुतायत हो गए हैं। प्रतिनियुक्ति के निर्धारित पदों से दो गुने राप्रसे अफसर दोनों भवनों में पदस्थ हो गए हैं। यहां तक कि दूर दूर तक वास्ता न होने के बावजूद  तकनीकी विभागों में भी डिप्टी कलेक्टर पदस्थ हो गए हैं।

विभाग न मिले तो भी ये जीएडी पूल यानी रिजर्व में रहकर बिना काम के दिन काट रहे थे। बंगला, कार नौकरों के साथ पूरा दबदबा और राजधानी में रहने का जलवा अलग। और फील्ड के दफ्तर डिप्टी, संयुक्त और एडिशनल कलेक्टर की कमी से जूझ रहे थे। नई सरकार आने के बाद इसका आकलन कर  पहले सचिव पी.अंबलगन और अब मुकेश बंसल ने जो ऑपरेशन क्लीन अभियान चलाया उससे फील्ड के दफ्तरों को अफसर मिले हैं। 

नए वर्ष में अब तक किए गए राप्रसे अफसरों के तबादले में से 60 से अधिक अफसर मंत्रालय, संचालनालय, आयोग, निगम-मंडलों से निकालकर फील्ड में डिप्टी, संयुक्त, एडिशनल कलेक्टर पदस्थ किए गए हैं। इससे कलेक्टरों के हाथ मजबूत तो हुए हैं, और सीएम विष्णु साय के कामकाज में समयबद्धता, तेजी और कसावट के न्यू ईयर रेजुलेशन भी हासिल किया जा सकता है। वैसे यह सिलसिला अभी थमा नहीं है,जारी रहेगा।

छत्तीसगढ़ के मजदूरों से जुड़े दो रेल हादसों की चीख

महाराष्ट्र के जलगांव जिले में पुष्पक एक्सप्रेस से जुड़े हालिया हादसे ने रेल की पटरियों पर छत्तीसगढ़ से जुड़े उन भयावह दृश्यों को ताजा कर दिया, जिनमें निर्दोष जानें गंवाई गईं। वहां ज्यादातर सवारी जनरल डिब्बे के थे, यहां भी मजदूरों ने जान गंवाई थीं। हादसा तो अचानक होता है, लेकिन उसका कारण अक्सर हमारी लापरवाह व्यवस्था और लोगों की मजबूरियां होती हैं। यहां छत्तीसगढ़ से जुड़ी दो घटनाएं बताना चाहेंगे, जो श्रमिकों, कामकाजी लोगों की पटरियों पर हुई ऐसी ही मौतों से जुड़ी है।

2011 में, 22 अक्टूबर को बिलासपुर स्टेशन के पास फाटक बंद रहने की समस्या से जूझते मजदूरों ने अपनी जान गंवा दी। ठीक स्टेशन से आगे तारबाहर में 20 से अधिक पटरियों का जाल, हजारों लोगों का आवागमन और रेलवे की कमजोर सुरक्षा। बंद फाटक को आप पैदल, साइकिल और बाइक से पार कर सकते थे। अंडरब्रिज या ओवर ब्रिज बनाने की मांग को रेलवे ने लगातार अनसुना किया। पार करते लोगों को एक मालगाड़ी ने रौंद दिया।  इस घटना में मौके पर ही 11 ने जान गंवाई,बच्चे- महिलाएं भी इनमें शामिल थे । बाद में यह संख्या बढक़र 16 हो गई। इस हादसे के बाद अंडरब्रिज बनाया गया।

2020 में लॉकडाउन के दौरान, छत्तीसगढ़ के मेहनतकश प्रवासी मजदूरों ने सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल तय करना तय किया। सब तरफ सन्नाटे के बीच। 7 मई को थकान और भूख से टूटे इन मजदूरों ने रेल पटरी को अपना अस्थायी आश्रय समझा, पटरी पर ही लेट गए। लेकिन मालगाड़ी ने उनके सपनों और जीवन को कुचल दिया। उन्हें पता नहीं था कि रेलगाडिय़ां पूरी तरह बंद नहीं है। सवारी गाडिय़ां नहीं चल रही थीं, लेकिन कोविड का फायदा उठाते हुए माल लदान, ढुलाई को रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचाया जा रहा है।
ये हादसे बताते हैं कि अपने खून-पसीने से देश की आर्थिक गाड़ी को खींचने वाले मजदूरों की जिंदगी को सुरक्षा देने में हम बार-बार विफल हो जाते हैं।

जिम्मेदारी से भाग रहा वन विभाग

टाइगर रिजर्व के नाम पर फॉरेस्ट के अफसरों को करोड़ों का फंड तो चाहिए, मगर किसी बाघ-बाघिन की जान खतरे में हो तो उसे बचाने के नाम पर पल्ला छुड़ाते हैं। बजट मिले इसलिए, गिनती में तो शामिल कर लेते हैं मगर, कोशिश करते हैं कि वह उनके इलाके से भाग जाए, दूसरे इलाके के अफसर जो करना चाहते हैं करें। बांधवगढ़, कान्हा नेशनल पार्क घूमते अचानकमार टाइगर रिजर्व में और अब दोबारा मरवाही वन मंडल में घूम रही टाइग्रेस इन दिनों भटक रही है। यह स्थिति खुद उसके लिए और जंगल में रहने वाले लोगों के लिए खतरे का कारण बन रही है। अब तक किसी मनुष्य का शिकार उसने नहीं किया लेकिन 6 मवेशियों को मार चुकी है। प्रभावित ग्रामीणों को इसने चिंता में डाल रखा है। यह भी आशंका है कि आत्मरक्षा या गुस्से में लोग इस बाघिन को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

छत्तीसगढ़ का वन विभाग मध्यप्रदेश के अधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित कर इस बाघिन को रेस्क्यू कर सकता है। रेडियो कॉलर के जरिए उसकी लोकेशन पहले से मिल रही है, लेकिन इस प्रक्रिया में देर होना अनहोनी को निमंत्रण देना है। रात में स्पॉटलाइट से उसके लोकेशन की खोजबीन सिर्फ नजर रखने और लोगों को सतर्क करने के लिए की जा रही है। जानकारों का कहना है कि ऐसा करना उसे अधिक परेशान कर सकती है। इसे सुरक्षित स्थान पर ले जाकर उसे ऐसी जगह छोड़ा जा सकता है, जहां उसकी जिंदगी और इंसानी गतिविधियां दोनों सुरक्षित रहें। यह समय है कि वन विभाग सक्रियता दिखाए, अन्यथा यह लापरवाही पर्यावरण व वन सुरक्षा में योगदान देने वाली इस जीव की मृत्यु या मानव-वन्यजीव संघर्ष की  किसी घटना को जन्म दे सकती है।

([email protected])

अन्य पोस्ट

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news