डेपुटेशन और बेरुखी
केंद्र सरकार खासकर गृह मंत्रालय छत्तीसगढ़ समेत अधिकांश राज्य सरकारों से खफा है। वो इसलिए कि आईपीएस अफसरों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजने में राज्य आनाकानी कर रहे। दरअसल, राज्य सरकारें इन अभा संवर्ग के केंद्रीय अफसरों को अपना मानकर, प्रतिनियुक्ति के लिए अनुमति नहीं देती। इससे न तो राज्यों का कोटा पूरा हो रहा न केंद्रीय एजेंसियों में अफसरों की पूर्ति हो पा रही। इससे बड़ी संख्या में कई और जांच एजेंसियां अमले की कमी से जूझ रही है। और गृह मंत्री अमित शाह के लिए ये दोनों ही महकमे प्राथमिकता वाले हैं। कहीं ऐसा न हो कि वो किसी दिन राज्यवार संख्या और नाम भेजकर 24 घंटे में रिलीव करने का ही आदेश भेज दे।
गृह मंत्रालय के पास इस समय प्रतिनियुक्ति के लिए 234 पद रिक्त हैं। इनमें सीबीआई, सीआरपीएफ, एनआईए, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, बीएसएफ, एनएसजी, एसएसबी सहित विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों और बलों में 114 एसपी, 77 डीआईजी, 40 आईजी, दो एडीजी और एक एसडीजी के पद खाली पड़े हैं। और भी दूसरे पद हैं।आईपीएस (कैडर) नियमों के तहत, प्रत्येक राज्य में उनके कुल कैडर स्ट्रेंथ से 15 से 40 प्रतिशत वरिष्ठ ड्यूटी पद केंद्रीय प्रतिनियुक्ति रिजर्व (सीडीआर) के रूप में निर्धारित किए जाते हैं। इस आधार पर छत्तीसगढ़ से 15 फीसदी के मान से 30 अफसर जाने चाहिए, लेकिन हैं केवल 6 अफसर ही हैं।
गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों को पत्र लिखकर कहा, ऐसा अनुभव रहा है कि कुछ राज्य/कैडर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए पर्याप्त संख्या में नाम नहीं भेजते हैं। इसके अलावा, कई बार राज्य सरकारें वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के अधिक नाम भेजती हैं, लेकिन वे एसपी से लेकर आईजी तक के पदों पर नियुक्ति के लिए नाम प्रस्तावित नहीं करती हैं।
गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों से कहा कि 2025 के लिए नाम प्राथमिकता के आधार पर भेजे जाएं। पिछले साल जून में गृह मंत्रालय ने इसी तरह का अनुरोध किया था लेकिन केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए आईपीएस अधिकारियों को नामित करने पर राज्यों की ओर से ठंडी प्रतिक्रिया मिली थी। इस मुद्दे को हल करने के लिए, गृह मंत्रालय ने उन अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की कोशिश की है जो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए प्रस्ताव पर अपना नाम रखे जाने के बाद भी आने से मना करते हैं या रद्द कराने में जुटे रहते हैं। अब ऐसे अफसरों के सीआर में इस पर रिमार्क करने की पर विचार चल रहा है। या फिर सीधे रिलीविंग आर्डर ही न कर दें।
थोड़ी कमी, बाकी सब खुशी
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद पर शनिवार को किरण देव की दोबारा ताजपोशी हुई। छत्तीसगढ़ पहला राज्य है जहां संगठन चुनाव पूरे हुए, और प्रदेश अध्यक्ष का भी चुनाव हुआ है। पार्टी हाईकमान ने राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े को चुनाव अधिकारी बनाया था। तावड़े यहां आए, तो उनकी अच्छी खातिरदारी भी हुई। मगर थोड़ी चूक भी हो गई, जिसको लेकर कुछ नेताओं ने अपनी नाराजगी भी जताई।
तावड़े के लिए भोजन का इंतजाम किया गया था, वह गुणवत्ता की नजरिए से हल्का था। सुनते हैं कि राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडेय इसको लेकर काफी नाराज रहीं। सरोज महाराष्ट्र की प्रभारी रही हैं। लिहाजा, तावड़े से उनके अच्छे संबंध हैं। सरोज के अलावा और कुछ और अन्य नेताओं ने भी खाना अच्छा न होने पर कार्यालय में मौजूद नेताओं पर अपनी नाराजगी जताई।
कार्यक्रम निपटने के बाद तावड़े, स्पीकर डॉ. रमन सिंह से मिलने भी गए। और फिर बाद में रवाना होने से पहले रमन सिंह के सीएम रहते उनके ओएसडी रहे विवेक सक्सेना के घर भी गए। विवेक सक्सेना और विनोद तावड़े, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में साथ-साथ काम कर चुके हैं। जाते-जाते सांसद बृजमोहन अग्रवाल, तावड़े से एयरपोर्ट पर मिले, और उन्हें बेटे की शादी में आने का न्योता भी दिया। कुल मिलाकर मेल मुलाकात से तावड़े काफी खुश थे, लेकिन यहां के नेता खातिरदारी में थोड़ी कमी के चलते नाखुश रहे।
बस्तर में हालात जस के तस
बस्तर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की निर्मम हत्या के बावजूद प्रशासन ने कोई सबक लिया हो, ऐसा नहीं लगता। अफसरों और ठेकेदारों के बीच की साठगांठ पहले जैसी ही है। ताजा मामला गीदम नगर पंचायत का है, जहां 81 लाख रुपये की लागत से पार्क का निर्माण होना है। इसके लिए टेंडर निकाला गया, लेकिन हैरानी की बात यह है कि टेंडर का विज्ञापन बस्तर के किसी अखबार में प्रकाशित नहीं किया गया। यह विज्ञापन 400 किलोमीटर दूर बिलासपुर के अखबारों में छपा, जबकि बस्तर के स्थानीय अखबारों से पूरी तरह गायब रहा।
चुनाव आ जाने के कारण नगर निकायों में निर्वाचित प्रतिनिधियों की भूमिका लगभग समाप्त हो गई है। सारे निर्णय प्रभारी अधिकारियों द्वारा लिए जा रहे हैं। जब विज्ञापन के बस्तर में न छपने को लेकर सवाल किया गया, तो मुख्य नगर पंचायत अधिकारी का जवाब था कि वह इस पर कलेक्टर से पूछकर बताएंगे। उनके इस बयान ने कलेक्टर को भी इस विवाद में घसीट लिया, भले ही इसमें कलेक्टर की कोई भूमिका रही हो या नहीं।
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि टेंडर प्रक्रिया में किसी खास ठेकेदार को लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई थी। यह कार्यप्रणाली न केवल पारदर्शिता पर सवाल है, बल्कि यह भी है कि बस्तर में हालात अभी नहीं बदलेंगे।
ऐसे अद्भुत पक्षियों को भगाया जा रहा
हंस (बार-हेडेड गूज, प्रवासी), सुरखाब (रुडी शेल्डक, प्रवासी) और महान पनकौवे (ग्रेट कार्मोरेंट, स्थानीय प्रवासी) जैसे बड़े जलीय पक्षी बिलासपुर के गनियारी स्थित शिवसागर जलाशय में एक छोटे से टीले पर धूप सेंकते हुए देखे गए।
प्रवासी और स्थानीय पक्षियों के इस विश्राम स्थल के पास जिस तेज़ी से मुरुम का उत्खनन और ट्रकों से परिवहन हो रहा है, वह उनके प्राकृतिक आवास में भारी हस्तक्षेप का कारण बन रहा है। ऐसा लगता है कि इसी कारण से ये पक्षी यहां से जल्द ही रुखसत हो गए। पिछले साल भी इनकी संख्या में कमी देखी गई थी और यदि यही स्थिति बनी रही, तो आशंका है कि ये पक्षी भविष्य में यहां आना बंद कर देंगे। ([email protected])