कांग्रेस दारू फूंक-फूंककर पीना नहीं सीख रही
प्रदेश में शराब घोटाले पर कांग्रेस घिरी हुई है। पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा समेत आधा दर्जन से अधिक अफसर-कारोबारी ईडी के घेरे में आ चुके हैं। कुछ और को ईडी जल्द गिरफ्तार कर सकती है। इस घटना से कांग्रेस ने कोई सबक सीखा है, ऐसा दिखता नहीं है। पार्टी ने हाल ही में एक जिले में अध्यक्ष पद पर एक ऐसे शख्स को बिठा दिया है, जो कि शराब कोचिए के रूप में जिले में कुख्यात रहा है।
मूलत: बिहार रहवासी नवनियुक्त जिलाध्यक्ष एक बड़े शराब के बड़े ठेकेदार के मैनेजर के रूप में बरसों सेवाएं देते रहा है। जिले के भीतर अवैध शराब बिकवाने में उसकी भूमिका अहम रही है। ये अलग बात है कि वो एक बार वार्ड का चुनाव जीतने में कामयाब रहा। अब पार्टी ने उसे जिले का मुखिया बना दिया है।
चर्चा है कि उसे अध्यक्ष बनवाने में एक भूतपूर्व मंत्री की अहम भूमिका रही है। इसकी शिकायत पार्टी संगठन में अलग-अलग स्तरों पर हुई है। ये अलग बात है कि सुकमा जिले का पार्टी कार्यालय भी शराब के पैसे से ही बनने का खुलासा ईडी ने किया है। और अब पुराने कोचिए के आने से पैसे की कमी नहीं होगी।
मंत्री अकेले नहीं?
अमलीडीह में कॉलेज के लिए आरक्षित जमीन बिल्डर को देने के मसले पर पिछले दिनों खूब हो हल्ला मचा था। सरकार को जांच बिठानी पड़ी थी, और फिर कमिश्नर की रिपोर्ट के बाद उक्त जमीन फिर से कॉलेज के नाम करने पर विचार चल रहा है। मगर राजस्व मंत्री की भूमिका पर अब भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
सुनते हैं कि भाजपा के लोगों ने ही सीधे राजस्व मंत्री से पूछ लिया कि जमीन कॉलेज के लिए आरक्षित की गई थी, फिर भी उसे रामा बिल्डकॉन को कैसे दे दिया गया? इस पर राजस्व मंत्री ने जो मासूम सा जवाब दिया, उसकी पार्टी के अंदरखाने में खूब चर्चा हो रही है।
राजस्व मंत्री ने निजी चर्चा में कहा बताते हैं कि यह फैसला कोई अकेले का नहीं था। आबंटन कमेटी के सभी सदस्य चाहते थे कि बिल्डर को जमीन दे दी जाए, फिर क्या जमीन आबंटन की अनुशंसा कर दी गई। यही वजह है कि आबंटन से जुड़ी फाइल में कई गड़बडिय़ां होने के बाद भी राजस्व मंत्री की कोई जवाबदेही तय नहीं हुई।
बस भाईचारे को याद रखिये
अंबिकापुर में हाल ही में एक भव्य महामाया प्रवेश द्वार का निर्माण हुआ। एक सप्ताह पहले, पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने इस प्रवेश द्वार का लोकार्पण किया था। लेकिन कल मंत्री केदार कश्यप और मंत्री लक्मीपति राजवाड़े के हाथों उसी द्वार का फिर लोकार्पण कर दिया गया।
जब भाजपा के नेताओं से इस दोहरे लोकार्पण के कारण के बारे में पूछा गया, तो जवाब मिला कि पहले यह अधूरा था। मगर स्थानीय लोग इस दावे को खारिज करते हैं। उनका कहना है कि पहले और अब के बीच द्वार पर कोई भी काम नहीं हुआ। अगर पहले यह अधूरा था, तो लोकार्पण क्यों हुआ? और अगर अब यह पूरा है, तो पहले भी इसे पूरा माना जा सकता था।
नगरीय निकाय चुनाव करीब हैं। कांग्रेस ने अपनी उपलब्धियों को दिखाने के लिए लोकार्पण का आयोजन भव्य रूप से किया, लेकिन सत्ता में रहते हुए, भाजपा यह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि किसी उद्घाटन या लोकार्पण का श्रेय कांग्रेस को जाए। इस राजनीतिक खींचतान में द्वार सियासी मंच बन गया।
राजनीतिक उठापटक अपनी जगह है, लेकिन अंबिकापुर की सामाजिक समरसता इस पूरे प्रकरण का उज्ज्वल पहलू है। इस द्वार के निर्माण में मुस्लिम पार्षदों ने भी अपनी निधि से एक-एक लाख रुपये का योगदान दिया। यही वह भावना है जिसे याद रखना चाहिए—सामाजिक सौहार्द और
भाईचारे की। ([email protected])