राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : तीन डी का अवैध कारोबार
13-Jan-2025 4:23 PM
राजपथ-जनपथ :  तीन डी का अवैध कारोबार

तीन डी का अवैध कारोबार 

यूपी की सीमा से सटे सरगुजा के जिलों में तीन ‘डी’ यानी डीजल, दारू, और धान का जोर है। डीजल, यूपी में 10 रुपए सस्ता है। इस वजह से बड़े उपभोक्ता यूपी से डीजल मंगवाते रहे हैं। मगर इससे छत्तीसगढ़ सरकार को वैट के रूप में करीब साढ़े 3 सौ करोड़ का सालाना नुकसान हो रहा था। अब इसके रोकथाम के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल में बड़े उपभोक्ताओं के लिए वैट में कटौती की है। 

इसी तरह यूपी से अवैध रूप से शराब की तस्करी हो रही है। इस पर प्रभावी नियंत्रण नहीं लग पाया है। इससे परे यूपी, और झारखंड से अवैध रूप से धान लाकर यहां बेचा जा रहा है। छत्तीसगढ़ में धान की सरकारी खरीदी चल रही है। यहां देश में सबसे ज्यादा कीमत पर धान खरीदा जा रहा है।

बताते हैं कि कुछ समय पहले बलरामपुर जिले में दो ट्रक धान पकड़ा भी गया था। नए नवेले अच्छी साख वाले तहसीलदार ने तुरंत कार्रवाई कर पुलिस को इसकी सूचना दी। मगर बाद में पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, और धान को छोड़ दिया था। मामला बढ़ा तो एसपी तक बात पहुंची। इसके बाद कार्रवाई की गई। कुल मिलाकर सीमावर्ती जिलों में प्राथमिक सोसायटियों में धान खपाया जा रहा है। प्रभावशाली लोगों की वजह से दारू, धान और डीजल के अवैध कारोबार पर प्रभावी नियंत्रण नहीं लग सका है। इससे राज्य को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

मैनपाट में भी फार्महाउस

पीएससी घोटाले की सीबीआई जांच कर रही है। पीएससी के पूर्व चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी के बेटे और भतीजे समेत आधा दर्जन से अधिक लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। जांच में कई नए तथ्य सामने आए हैं। सुनते हैं कि सोनवानी का मैनपाट में भी फार्महाउस है, और यहां रहकर कई डील फाइनल की थी। सोनवानी सरगुजा कमिश्नर रह चुके हैं। उनके अधीनस्थ अधिकारियों के बच्चे भी पीएससी में सिलेक्ट हुए थे। सीबीआई इसकी पड़ताल कर रही है। फिलहाल तो तीन-चार अभ्यर्थी ही घेरे में आए हंै। आने वाले दिनों में कुछ और गिरफ्तारियां हो सकती है। 

कुलपतियों की नियुक्ति फिर रुकेगी?

छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार के अधीन कुल 15 विश्वविद्यालय हैं, जिनमें से तीन विश्वविद्यालय इस समय संभागायुक्तों के प्रभार में संचालित हो रहे हैं। इंदिरा गांधी संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ और महात्मा गांधी उद्यान एवं वानिकी विश्वविद्यालय, पाटन के कुलपतियों को हटाए जाने के बाद स्थायी नियुक्तियां नहीं हो सकी हैं। इन विश्वविद्यालयों का प्रभार क्रमश: दुर्ग और रायपुर संभाग के संभागायुक्तों को सौंपा गया है। हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग का कार्यभार भी संभागायुक्त के पास है।

रविशंकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सच्चिदानंद शुक्ल को स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है, जबकि वहां भी स्थायी कुलपति की नियुक्ति लंबित है। पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय बिलासपुर के कुलपति डॉ. बंश गोपाल सिंह का कार्यकाल जल्द समाप्त होने वाला है। वहीं, अटल यूनिवर्सिटी बिलासपुर के कुलपति एडीएन वाजपेयी का कार्यकाल भी इसी साल खत्म हो जाएगा। नए कुलपतियों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। पहली बार, दावेदारों से उनकी काबिलियत के दस्तावेजों के साथ उपलब्धियों का स्लाइड शो के माध्यम से प्रेजेंटेशन लिया जा रहा है।

इस बीच यूजीसी ने कुलपतियों की नियुक्ति के मापदंड में बदलाव का प्रस्ताव रखा है। अब 10 वर्षों के अध्यापन अनुभव की अनिवार्यता को समाप्त करने की बात है। किसी भी क्षेत्र के अनुभवी और अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाले व्यक्ति को पात्र माना जाएगा। वैसे बहुत  पहले ऐसा होता रहा है। महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति पद पर आईपीएस विभूति नारायण राय और गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर के पहले कुलपति रहे आईएएस शरतचंद्र बेहार इसके उदाहरण रहे  हैं।

प्रस्तावित मसौदे का भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे राज्यों ने विरोध किया है। उनका आरोप है कि इस बदलाव से संघ के लोगों को नियुक्त करने का रास्ता खोला जा रहा है। साथ ही कहा है कि शिक्षा राज्य का विषय है, केंद्र इसमें अनावश्यक हस्तक्षेप कर रही है।

नए मसौदे में राज्यपाल (कुलाधिपति) के अधिकार बढ़ाने की बात भी शामिल है। चयन प्रक्रिया में राज्यपाल का वर्चस्व होगा, जो पहले राज्य सरकार के साथ टकराव का कारण बनता रहा है। पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान भी ऐसा देखा गया था।

छत्तीसगढ़ में जब मापदंड विस्तारित हो चुके हैं और राज्यपाल को अधिक अधिकार मिलने जा रहे हैं, सवाल यह है कि क्या राज्यपाल वर्तमान चयन प्रक्रिया को रोकेंगे और नए मसौदे के लागू होने का इंतजार करेंगे?

अपराधी का महिमामंडन

प्रयागराज कुंभ सबके लिए है। बलात्कारियों के लिए भी। अदालत से दोषी ठहराए जाने के बाद सजा काट रहे आसाराम के अनुयायियों को फर्क नहीं पड़ता, वह उनके लिए अब भी संत है। प्रशासन और सरकार को भी लगता है कोई दिक्कत नहीं।

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