वैश्य समाज का दबदबा घटा
अविभाजित मध्यप्रदेश के जमाने से भाजपा को बनिया जैन पार्टी की संज्ञा दी जाती रही है। 90 के दशक में सुंदरलाल पटवा सीएम थे, तब प्रदेश अध्यक्ष पद पर लखीराम अग्रवाल काबिज थे। दोनों की वजह से भाजपा में वैश्य समुदाय का दबदबा कायम रहा।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद डॉ.रमन सिंह सीएम जरूर रहे लेकिन वैश्य समाज की हैसियत कम नहीं हुई। सरकार से लेकर संगठन में रूतबा कायम रहा। यह पहला मौका है जब छत्तीसगढ़ भाजपा के 35 संगठन जिलों में से 34 में चुनाव हो गए, और वैश्य समाज का एक भी अध्यक्ष नहीं बना।
रविवार को राजनांदगांव जिलाध्यक्ष का चुनाव हुआ, वहां सौरभ कोठारी के जिलाध्यक्ष बनने की उम्मीद थी। स्थानीय सांसद संतोष पांडेय ने उन्हें जिलाध्यक्ष बनाने के लिए दम भी लगाया था लेकिन उन्हें अध्यक्ष की जगह महामंत्री पद से संतोष करना पड़ा। यहां कोमल सिंह राजपूत को जिलाध्यक्ष बनाया गया जो कि पिछड़ा वर्ग से आते हैं।
भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग पर विशेष ध्यान दिया है, और आदिवासी व पिछड़ा वर्ग के नेताओं को आगे बढ़ा रही है। इन सबके बीच में ब्राम्हण और राजपूत नेताओं को जगह मिल गई है लेकिन वैश्य समुदाय हाशिए पर दिख रहे हैं। मंत्रियों में भी बृजमोहन अग्रवाल के जाने के बाद एक भी वैश्य समाज के मंत्री नहीं हैं। वैसे कैबिनेट विस्तार होना है, और इसमें वैश्य समाज को प्रतिनिधित्व मिलने की उम्मीद है। संगठन में भी नियुक्तियां होनी है जिसमें वैश्य समुदाय के नेताओं को जगह मिलना तय माना जा रहा है। लेकिन पार्टी के भीतर पहले जैसा रूतबा रहेगा, इसकी संभावना कम दिख रही है।
रिश्वतखोर बीईओ और वाट्सऐप चैट
एसीबी ईओडब्लू ने शुक्रवार को बीईओ, लिपिक और एक मध्यस्थ शिक्षक को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा। इसके बाद शिक्षक, कर्मचारी संगठनों के वाट्सएप ग्रुप में आक्रोश, विडंबनाएं और पोल खोलते पोस्ट कर रहे है। इन शिक्षकों का कहना है कि यह इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था के पतन के पीछे असली दोषी कौन हैं? यह घटना न केवल भ्रष्टाचार की गहराई को उजागर करती है? यह गिरफ्तारी उन ईमानदार शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए भी निराशाजनक हैं, जो व्यवस्था में सुधार और प्रगति की उम्मीद रखते हैं। यह समय है कि ऐसे भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर कदम उठाए जाएँ और दोषियों को सख्त सजा दी जाए।
दूसरे ने लिखा
जो शिक्षक अपने छात्रों को ईमानदारी कर्तव्य परायणता अन्याय के प्रति लडऩे की शिक्षा देता है।वही शिक्षक अपने ही सिस्टम से हार जाता है। शिक्षक ऐसा पद है जो पूरी जिंदगी एक चवन्नी रिश्वत मिलने की कोई गुंजाइश नहीं रहती। लेकिन अपना कार्य करवाने के लिए अपने ही उच्च अधिकारियों को अपने वेतन का पैसा देना पड़ता है। तबादले के लिए पैसा, रिलीव होने के लिए पैसा, एलपीसी जारी करने पैसा, जीपीए पासबुक संधारण करने पैसा, सर्विस बुक संधारण करने पैसा, उच्च परीक्षा में बैठने अनुमति हेतु पैसा, बिना रिश्वत के कोई काम नहीं होता द्य ऐसे में अब शिक्षक बच्चों को क्या ईमानदारी एवं कर्तव्य परायणता का शिक्षा दे पाएगा।
तीसरे ने कुछ पोल खोलते तथ्य रखा- लिखा राजधानी का एक संकुल प्रभारी की किसी आईएएस से कम इंकम नहीं है। दिवंगत पिता की जगह अनुंकपा नियुक्ति पाकर बीते 20 वर्ष से रायपुर में ही पदस्थ है। एक हाथ ला दूसरे हाथ आर्डर की नीति पर काम करते चार-चार गाड़ी, इतने ही मकानों का मालिकाना हक हासिल कर लिया है। और सालाना एसीआर में यह गरीब शिक्षक ही है। सखाराम दुबे स्कूल के आफिस का मानो यह आईएएस हो। पर है बीईओ से नीचे। आखिरी में लिखा यह अकेला विरला नहीं है प्रदेश में ऐसे दर्जनों होंगे ।
इसके जवाब में चौथे ने लिखा-
अयोग्य और अपात्र लोग चाटुकारिता, नेतागिरी और पैसे के दम पर अधिकारी के पद को पाकर केवल वसूली करते है और अपने राजनीतिक आकाओं को खुश रखने का काम करते है। मौका मिला है तो जितना हो सके लूट लो की मानसिकता शिक्षकों के शोषण का मुख्य कारण है।योग्य, पात्र और कर्मठ लोगों को अधिकारी बनाया जाए तो स्थिति अलग होगी।
पांचवे ने लिखा-ऐसे गोरखधंधे में कई कर्मचारी नेता भी संलिप्त रहते है। इसलिए कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान नहीं होता।
छठवें ने लिखा-
अभी वर्तमान में शिक्षा विभाग में 146 विकासखंड में केवल 45 नियमित विकासखंड शिक्षा अधिकारी है। बाकी जगह प्राचार्य और व्याख्याता लोग जुगाड से बैठे है। इसी प्रकार 33 जिलों में केवल 8 जिला शिक्षा अधिकारी नियमित पदस्थ है। 25 जिला शिक्षा अधिकारी प्रभारी है।इस स्थिति में ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठ और प्रशासनिक कसावट की बात बेमानी है।होना यह चाहिए कि विभाग को सभी पदों में योग्य और पात्र लोगों को नियुक्ति/पदोन्नति देकर प्रभार वाद से विभाग को मुक्त करना चाहिए।
सातवें ने पोस्ट किया-
सभी विभाग की यही कहानी है।
आठवें से जवाब मिला-स्वास्थ्य विभाग का इससे भी बुरा हाल है। प्रभारवाद अभी सबसे बड़ी समस्या है। हम भी इसका दंश झेल रहे हैं।
एक अन्य ने कहा- अरे हमारे विभाग में तो नीचे से ऊपर प्रभार वाद चल रहा हेड मास्टर, प्राचार्य, बीईओ, डीईओ, उपसंचालक,संयुक्त संचालक और न जाने क्या-क्या पद पूरे प्रभार में चल रहे है, और यही लोग लूट मचा रखे हैं । प्रभारवाद याने शासन हितैषी कर्मचारी विरोधी, नेता चरणपादुक, ब्यूरोक्रेट्स चाटुकार, भ्रष्टाचार के दीमक। इनके रहते प्रमोशन संभव नहीं है और न ही नियमित प्रशासनिक पद।
नेताओं की मजबूरी, छात्राओं में निराशा।
एक पत्र
आज शा .कन्या महाविद्यालय देवेंद्र नगर रायपुर में वार्षिकोत्सव एवं पुरस्कार वितरण कार्यक्रम आयोजित था,जिसके मुख्य अतिथि के रूप में माननीय सांसद श्री
बृजमोहन अग्रवालजी, विशिष्ट अतिथि के रूप में विधायक श्री पुरंदर मिश्रा जी,एवं पूर्व विधायक कुलदीप जुनेजा जी आमंत्रित थे।
कल रात में सांसद अग्रवाल जी के पी ए ने प्राध्यापकों को सूचित किया कि अग्रवालजी नहीं आ पाएंगे बाहर जा रहे हैं।
प्राध्यापकों को बहुत निराशा हुई, फिर सोचा चलो पुरंदर मिश्रा जी,और जुनेजा तो आ रहे हैं, ऐन वक्त पर पुरंदर मिश्राजी भी उपस्थित नहीं हुए पता चला उड़ीसा गए हैं।
आयोजकों के होश उड़ गए, बच्चे निराश हो गए।
इस बीच पूर्व विधायक कुलदीप जुनेजा जी ने आकर स्टाफ और छात्राओं का हौसला बढ़ाया।
इस तरह की घटना ने आज सबको सोचने पर मजबूर कर दिया।
कि छात्राओं का क्या दोष ? कितनी तैयारी, मेहनत और खर्च किया था, दूर दूर के गांव से छात्राएं आती हैं, उन्हें कितनी तकलीफ और निराशा हुई, इसकी कल्पना क्या हमारे नेता कर सकते हैं ?
एक छात्रा।
कन्या महाविद्यालय देवेन्द्रनगर।
तिल-गुड़ खाओ, मीठा बोलो
हिंदू पंचांग और अंग्रेजी कैलेंडर में 14 जनवरी (कभी-कभी 15 जनवरी) मकर संक्रांति की तिथि को लेकर कोई विवाद नहीं होता। यह वह एकमात्र त्यौहार है जो हर साल तय तारीख पर मनाया जाता है। बाकी हिंदू त्यौहारों के विपरीत, जो चंद्र कैलेंडर के अनुसार चलते हैं और हर साल तिथियों में बदलाव करते हैं, मकर संक्रांति सूर्य की मकर राशि में प्रवेश के सटीक समय के आधार पर तय होती है।
सौर वर्ष 365.25 दिनों का होता है, जबकि चंद्र वर्ष केवल 354 दिनों का। यही अंतर अन्य हिंदू पर्वों की तिथि में भ्रम का कारण बनता है। ज्योतिष और खगोलशास्त्र के जानकार अपनी-अपनी गणना के अनुसार त्यौहार की तिथियों की घोषणा करते हैं, जिससे बाकी पर्व अक्सर दो दिन तक मनाए जाते हैं।
मकर संक्रांति से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, यह वह दिन है जब सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव की मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इसे पिता-पुत्र के बीच सामंजस्य और स्नेह का प्रतीक माना जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार, इस दिन गंगा का भगीरथ के तप के फलस्वरूप पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। इसी वजह से इस पर्व पर पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में मकर संक्रांति के नाम और रीति-रिवाज भिन्न हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब में इसे खिचड़ी पर्व कहा जाता है। पंजाब में इस दिन लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। गुजरात में इसे उत्तरायण, तमिलनाडु में पोंगल, पश्चिम बंगाल में पौष संक्रांति, कर्नाटक में सुग्गी हब्बा और तेलंगाना में पेद्दा पंडुगा के नाम से जाना जाता है।
इस त्यौहार की विशेषता है तिल-गुड़, लाई, मूंगफली, रेवड़ी, गजक और चूड़ा जैसे पारंपरिक व्यंजन। भले ही नाम अलग-अलग हों, लेकिन इन व्यंजनों के बिना मकर संक्रांति का उत्सव अधूरा लगता है। महाराष्ट्र में इस दिन कहा जाता है, "तिलगुड़ घ्या, गुड-गुड बोला। इसका अर्थ है- तिल-गुड़ खाओ और मीठा बोलो।
यह तस्वीर रायपुर के एक परिवार द्वारा सोशल मीडिया पर साझा की गई है, जिसमें त्यौहार से जुड़ी पारंपरिक मिठाइयां और व्यंजन दिखाई दे रहे हैं।