सचिवालय में बेहतर दिन लौटे
राज्य प्रशासन में वरिष्ठता के सम्मान के दिन वापस लौट आए हैं। प्रभारी मुख्य सचिव तय करने के लिए बकायदा तीन नामों का पैनल सीएम को भेजा गया। उसमें से सबसे वरिष्ठ पर मुहर लगवाई गई।
बीते पांच वर्ष में तो कई बार मुख्यमंत्री के एसीएस ही स्वयं प्रभार ले लेते और एक वर्ष से तो द्वितीय-तृतीय वरिष्ठ पर मुहर लगवाई जाती रही है। मैडम रेणु पिल्ले को मंत्रालय से बाहर की मानकर उनकी वरिष्ठता को दरकिनार किया जाता रहा। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया।
यह सब वही कर सकता है जो वरिष्ठों का सम्मान करता है। एलटीसी पर गए मुख्य सचिव की जगह रेणु पिल्ले को कार्यकारी सीएस बनाया गया।
जीएडी ने तीन नाम सरकार को भेजे थे और सम्मान हुआ वरिष्ठता का। इस बात की पूरे कैडर में चर्चा हो रही। हर अफसर सकारात्मक मान रहा। यह वही कर सकता है जो स्वयं भी इस दायरे का पालन करता हो। हमने कल ही इसी कॉलम में बताया था कि सुबोध सिंह ब्यूरोक्रेटिक व्यवस्था को पटरी पर लाने में जुटे हुए हैं।
सचिव और मंत्री
मंत्री अफसर के बीच शिष्टाचार की बातें होती हैं तो चर्चा नहीं होती, यदि यहीं बातें ऊंची आवाज में होती है तो कोई सुनने वाला आकाशवाणी बन जाता है, और फिर बातें वायरल होती हैं। सुनने वाले वायसकॉल हासिल करने तक के प्रयत्न करने लगते हैं। कल से यही चल रहा है। कल शाम पहली बार के मंत्री और एक अफसर में यही कुछ हुआ। साहब ने स्वयं कॉल कर नेताजी को जमकर खरी-खरी सुनाई। नेताजी अपने विभाग की खरीदियों को मंजूर करने बिल क्लियर करने विभाग की मैडमों पर जबरदस्त दबाव बनाए हुए थे। पुराने विवादित बिल, विधानसभा में उठ चुके इन खरीदियों जैसे अन्याय कारणों से ठिठकी हुई हैं।
विभाग की तीनों ही आईएएस मैडम विभाग के खरीदी विंग की प्रभारी भी हैं। जब नेताजी का दबाव असहनीय हुआ तो तीनों ने जाकर साहब के सामने दुखड़ा सुनाया। इसके बाद तो साहब, नेताजी पर भारी पड़ गए। साहब को सुनने वाले तो एक तरह से सिहर उठे तो दूसरी ओर खड़े लोग नेताजी के हावभाव देखकर सकते में रहे। इतने हॉट-टॉक की डेंसिटी तो पहले कभी नहीं रही। अब तक तो नेताजी बोलते रहे हैं और साहब लोग जी-जी करते सुने, देखे जाते रहे हैं। एक ही पुराना वाकया इसके बराबर का रहा है जब बीस वर्ष पहले अजयपाल सिंह ने एक दबंग मंत्री को ललकारा था।
मंत्रिमंडल, जितने मुँह, उतनी बातें
भाजपा में नगरीय निकाय, और पंचायत चुनाव की तैयारी चल रही है। बावजूद इसके कैबिनेट विस्तार का भी हल्ला है। कुछ लोग इसके लिए मकर संक्रांति की तिथि गिना रहे हैं। इन सबके बीच महाराष्ट्र फॉर्मूले की भी खूब चर्चा है।
हल्ला है कि कैबिनेट विस्तार के बीच मंत्रियों के विभागों को भी इधर से उधर किया जा सकता है। चर्चा यह है कि सीएम खुद गृह विभाग रख सकते हैं। महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडनवीस के पास जनसंपर्क के साथ-साथ गृह विभाग भी है। बाकी विभाग नए शामिल होने वाले मंत्रियों के बीच बंटवारा हो सकता है। फिलहाल तो अटकलें ही लगाई जा रही है। आगे क्या होगा यह तो दो-तीन दिन बाद साफ हो सकता है।
सडक़ सुधार की इतनी बड़ी कीमत
सरकारी निर्माण कार्य, विशेषकर सडक़ों के सुधार और मरम्मत में भ्रष्टाचार की खबरें आम हैं। हाईकोर्ट में सडक़ों की दुर्दशा को लेकर कई जनहित याचिकाएं दाखिल की गई हैं। अदालत ने स्वत: संज्ञान लेते हुए कई मामलों में अधिकारियों को कटघरे में खड़ा किया है। परंतु, उनके पास हर सवाल का पहले से तैयार जवाब होता है। जिन सडक़ों पर अदालत का ध्यान जाता है, उनकी मरम्मत करके अफसर और ठेकेदार अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं।
विधानसभा से रायपुर-बिलासपुर हाईवे को जोडऩे वाली सडक़ की खराब हालत को लेकर हाईकोर्ट ने कई बार अधिकारियों को तलब किया। इसके बाद सडक़ की स्थिति में सुधार हुआ। लेकिन अफसरों और ठेकेदारों का गठजोड़ इतना मजबूत है कि कुछ फासले पर स्थित मोवा ओवरब्रिज की मरम्मत भी गुणवत्ताहीन ढंग से कर दी गई।
प्रदेशभर में घटिया सडक़ों की खबरें आए दिन मीडिया में छपती रहती हैं, लेकिन अफसरों पर इसका कोई असर नहीं होता। मोवा ओवरब्रिज के मामले में गड़बड़ी की खबर सामने आते ही पीडब्ल्यूडी के बड़े अफसर सक्रिय हो गए। इसकी वजह भ्रष्टाचार के प्रति उनकी रियायत नहीं थी, बल्कि लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि इस घटिया काम की आवाज उठाने पर पत्रकार मुकेश चंद्राकर जैसा हश्र हो सकता है।
बीजापुर की घटना का ही असर है कि अब मोवा ओवरब्रिज मामले में जांच के आदेश दिए गए हैं।
जब भी हम मोवा ओवरब्रिज से गुजरेंगे, पत्रकार मुकेश चंद्राकर की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की याद दिलाएगा।
भारी काम हल्के मन से
संगीत न केवल मन को हल्का करता है बल्कि एकरसता के साथ किसी काम करने के लिए जोश भी भर देता है। छत्तीसगढ़ से सैकड़ों मजदूर दूसरे राज्यों में ईंट बनाने के लिए प्रवास करते हैं। उनकी मजदूरी काम के घंटों से नहीं, बल्कि कितनी ईंटे बनाई, उस पर दी जाती है। संगीत से उन्हें मानसिक ऊर्जा मिलती होगी और शारीरिक थकान कम महसूस होती होगी, और ज्यादा ईंटें बना लेते होंगे। उत्तर प्रदेश के एक ईंट भ_े में लगा साऊंड सिस्टम।