अतिउत्साह से शिकायतें
रायपुर नगर निगम मेयर का पद महिला आरक्षित होने के बाद भाजपा, और कांग्रेस के अंदरखाने में शिकवा-शिकायतों का दौर शुरू हो गया है। भाजपा में विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई, जब मेयर पद महिला आरक्षित होते ही नेता प्रतिपक्ष मीनल चौबे के उत्साही समर्थकों ने पटाखे फोड़े, और उन्हें एक तरह से प्रत्याशी घोषित कर दिया। इस पर मीनल के विरोधियों ने पार्टी संगठन से शिकायत कर दी। चर्चा है कि पार्टी संगठन के नेताओं ने इसे गंभीरता से लिया है।
कुछ इसी तरह की गलती सभापति प्रमोद दुबे से जुड़े लोगों ने कर दी। प्रमोद दुबे के करीबियों ने उनकी पत्नी का बायोडाटा सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। इसके बाद कांग्रेस की कई महिला पदाधिकारियों ने प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज से मिलकर किसी भी नेता की पत्नी को प्रत्याशी बनाने पर चेता दिया है।
महिला कांग्रेस की पदाधिकारियों को मेयर एजाज ढेबर का भी समर्थन मिला। मेयर की पत्नी अर्जुमन ढेबर ने सोशल मीडिया पर कह दिया कि टिकट पर महिला कांग्रेस की पदाधिकारियों का पहला हक है। ये बात किसी से नहीं छिपी है कि मेयर और सभापति के रिश्ते मधुर नहीं रहे हैं।
यही नहीं, एक पूर्व विधायक कुलदीप जुनेजा ने प्रमोद दुबे की पत्नी का नाम सामने आते ही खुले तौर पर कह दिया है कि उनकी पत्नी भी टिकट की दावेदार हैं। यह साफ है कि नेता पत्नी को टिकट देने का कदम जोखिम भरा भी हो सकता है। देखना है कि दोनों दल आगे क्या निर्णय करती हैं।
सचिवालय विभाग से अधिक जरूरी
सीएम के प्रमुख सचिव सुबोध सिंह ने कार्यभार लेने के बाद अब तक कोई अलग से विभागों का प्रभार नहीं लिया है। यद्यपि सीएम के पास आधा दर्जन से अधिक विभाग हैं, और उनके आने के पहले काफी फाइलें पेंडिंग थी। यह सब देखते हुए सुबोध ने कोई नया विभाग लेने के बजाए सीएम सचिवालय को व्यवस्थित करने जुटे हैं।
इसका प्रतिफल यह रहा कि अब फैसले तेजी से हो रहे हैं। कुछ इसी तरह राज्य बनने के बाद तत्कालीन सीएम अजीत जोगी के पहले सेक्रेटरी सुनिल कुमार ने भी सिर्फ जनसंपर्क, और आईटी विभाग अपने पास रखा था। उस वक्त आईटी का नया विभाग बना था। सुनिल कुमार ने भारी भरकम विभाग अपने पास रखने के बजाए नए राज्य की समस्याओं को हल करने प्रशासनिक कसावट के लिए बड़ा काम किया था। और सरकार का पहला कार्यकाल पूरा होते-होते सीएम सचिवालय व्यवस्थित हो पाया। इससे मिलती-जुलती परिस्थितियां अभी बनी हुई है, और सुबोध को भी रिजल्ट ओरिएंटेड अफसर माना जाता है।
कोहरे में लिपटा अमरकंटक
पेंड्रारोड से अमरकंटक की ओर निकलें तो भालू के आकार की मूर्तियां स्वागत करती हैं। कोहरे की चादर में ढके घने वृक्षों के बीच का यह रास्ता इन दिनों प्रकृति प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग जैसा लग रहा है। नर्मदा और सोन नदियों का उद्गम स्थल इन दिनों जाड़े और कोहरे भरी सुबह के कारण और भी आकर्षक हो गया है। यहां का शांत वातावरण, साफ हवा और प्राकृतिक छटा सैलानियों को सुकून और आध्यात्मिकता का अनुभव कराती है। 9 जनवरी को यहां का न्यूनतम तापमान 6 डिग्री सेल्सियस था। हालांकि इसी दिन छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में तापमान इससे भी नीचे चला गया था। मैनपाट में 3.7 डिग्री चला गया था, जहां बर्फ की परतें भी जम रही हैं।
बाघिन लौटी, राहत की सांस ली
जिस अचानकमार अभयारण्य में पर्यटकों को साल में एकाध बार ही टाइगर का दर्शन हो पाता है। बाकी को बायसन और चीतल, बारहसिंगा से ही संतुष्ट होना पड़ता है। इस सीजन में तो किसी पर्यटक को अब तक एक भी बाघ-बाघिन का दर्शन नहीं हुआ है। ऐसे में एक टाइग्रेस कान्हा नेशनल पार्क से घूमते फिरते मरवाही, पेंड्रा और अचानकमार के जंगलों में विचरण करने लगी। इस टाइग्रेस की आने की सबसे पहले खबर मरवाही के ग्रामीणों को हुई। मरवाही मंडल के अधिकारी मुस्तैद हो गए। रात भर जाग-जागकर उसके लोकेशन पर निगरानी की जाती रही। फिर वह भनवारटंक की ओर पहुंच गई, जो बिलासपुर वन मंडल में है। अब यहां के वन अधिकारियों की नींद उड़ी। इधर एक बड़ा माता मंदिर भी है जहां नए साल पर हजारों लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं। दो दिन घूमने के बाद बाघिन फिर मरवाही वन मंडल में लौट गई। बिलासपुर के अफसरों ने राहत की सांस ली। फिर वह अचानकमार टाइगर रिजर्व में पहुंच गई। वहां एक दिन ठहरने के बाद वह केंवची रेंज से होते हुए अमरकंटक की तराई की ओर चली गई। इस तरह से छत्तीसगढ़ की सीमा से बाहर हो गई। यह सब बाघिन को लगाए गए कॉलर आईडी से पता चलता रहा। एक वनकर्मी का कहना है कि अफसर लोग चाहते तो हैं कि टाइगर के नाम पर फंड मिलता रहे, पर टाइगर की वजह से आराम में खलल पड़े यह उनको मंजूर नहीं। पहले के अफसर अपने इलाके में टाइगर देखकर खुश हो जाते थे, जंगल में कैंप करते थे। अब के अफसर तो शहर के बंगलों में रहने के आदी हो गए हैं। हाथी-बाघ की खबर मिलने पर जंगल जाने से घबराते हैं। यह भी कहा जा रहा है कि इस बाघिन को अपने लिए नये रहवास की तलाश थी, पर छत्तीसगढ़ का जंगल उसे रास नहीं आया और वापस लौट गई।