इस बार सचमुच उम्मीद से?
रायपुर दक्षिण चुनाव के नतीजे चाहे जो भी हो, लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज मेहनत में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। खुद प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने बुधवार को अनौपचारिक बैठक में बैज की सराहना भी की।
चर्चा के बीच एक-दो नेताओं ने संसाधनों की कमी का रोना रोया, और कहा कि आगामी दिनों में कार्यकर्ताओं को संसाधन उपलब्ध कराने की जरूरत है। इस पर पायलट ने साफ शब्दों में कहा बताते हैं कि संसाधनों से चुनाव नहीं जीते जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा के पास असीमित संसाधन हैं, और संसाधनों में उनसे कोई मुकाबला नहीं किया जा सकता है। पायलट ने आगे कहा कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं के हौसले पर चुनाव लड़ रही है, और भरोसा जताया कि अंतत: जीत कांग्रेस को ही मिलेगी। कुल मिलाकर पायलट इस बार उम्मीद से हैं। देखना है आगे क्या होता है।
जंगल में मंगल !!
सरकार के विभागों की तरफ से अलग-अलग प्रकरणों पर हाईकोर्ट में जवाब समय पर दाखिल नहीं हो पाता है। इसकी वजह से कई प्रकरणों पर सुनवाई लंबी खिंच जा रही है। एजी ऑफिस ने सिंचाई विभाग के एक प्रकरण पर तो ईई के खिलाफ कार्रवाई की भी सिफारिश कर दी थी।
ताजा मामला वन विभाग से जुड़ा हुआ है। हाईकोर्ट में हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स पद पर पदोन्नति से जुड़े विवाद पर सुनवाई चल रही है। इस पूरे मामले में एसीएस की हिदायत के बावजूद जवाब दाखिल नहीं हुआ था। इसके बाद अब एसीएस (वन) ने कड़ा रुख दिखाते हुए सीधे तौर पर ओआईसी को दंडात्मक कार्रवाई की चेतावनी दे दी है। इसके बाद से विभाग में हडक़ंप मचा हुआ है। प्रकरण पर अगले हफ्ते सुनवाई है। देखना है आगे क्या होता है।
समिति बनेगी या आमसभा होगी?
सामान्य प्रशासन विभाग ने एक लंबे अर्से बाद संयुक्त परामर्शदात्री समितियों (जेसीसी) की सुध ली है। अवर सचिव ने सभी विभागों और कलेक्टरों को निर्देश जारी किया है। इसमें कहा है कि अपने अपने जिलों, विभागों में मान्यता प्राप्त कर्मचारी संघों के एक एक सदस्य को शामिल कर संयुक्त परामर्शदात्री समितियों का गठन किया जाए। यह तो हुई व्यवस्थागत आदेश की बात। और यहां से शुरू होगा कर्मचारी संगठनों में राजनीतिक द्वंद्व।
प्रदेश में तीन सौ से अधिक मान्यता प्राप्त अधिकारी कर्मचारी संगठन। इनमें 110 से अधिक फेडरेशन से सम्बद्ध है। इनके अलावा महासंघ, बीएमएस संबंद्ध, पेंशनर्स ये संघ भी हैं। जीएडी ने कहा है इनमें से हर जिले की जेसीसी में एक एक संघ के एक एक प्रतिनिधि को शामिल किया जाए। ऐसा होने पर हर जिले की जेसीसी भी तीन सौ सदस्यीय हो जाएगी। लेकिन जीएडी और कलेक्टर विभाग प्रमुख ऐसा नहीं करते। वे मात्र दर्जन डेढ़ दर्जन सदस्य ही लेते हैं।
ऐसे में कर्मचारी नेताओं में सदस्य बनने होड़ मचेगी। और जो नहीं बन पाएगा उसकी भूमिका 'फूफा’ जैसी होनी निश्चित है। इतना ही नहीं ऐसे नाराज लोगों का पाला बदलना या विभीषण बनना भी तय है। निहारिका बारिक सिंह कमेटी की बैठक में जेसीसी गठन की मांग उठाकर कर्मचारी राजनीति के शांत समुद्र में कंकड़ मारकर, नेताओं में अपने ही लिए समस्या खड़ी कर ली है। जीएडी ने भी मांग और मौके का फायदा उठाकर गठन के आदेश जारी कर दिए। अब कर्मचारी राजनीति की धार देखना है।
क्या चल रहा है स्वास्थ्य विभाग में ?
राज्य के प्रमुख मंत्रालय जैसे स्वास्थ्य, और गृह न केवल आकार में बड़े हैं बल्कि राज्य में सुशासन सुनिश्चित करने के लिए इनका चुस्त-दुरुस्त रहना बेहद आवश्यक है। प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति बिगड़ रही है। हत्या, चाकूबाजी के अलावा सीधे पुलिस और प्रशासन के खिलाफ उग्र प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन इस पूरी स्थिति को गृह मंत्री और डिप्टी सीएम विजय शर्मा की चूक कहना सही नहीं होगा; हालात काबू में करने में जरूर कुछ कमियां दिखाई दे रही हैं।
स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल का मामला अलग है। कुछ दिन पहले उन्होंने सिम्स मेडिकल कॉलेज, बिलासपुर में समीक्षा बैठक बुलाई, जिसमें डीन अनुपस्थित थे। इस पर बिना देरी किए, मंत्री ने निलंबन का आदेश जारी कर दिया। परंतु, यह आदेश जल्द ही हाईकोर्ट में ध्वस्त हो गया, क्योंकि डीन डॉ. सहारे परिवारिक शोक के चलते विधिवत अवकाश पर थे। इसके बाद स्थिति विकट हो गई। अब कॉलेज में हाईकोर्ट के आदेश से लौटे डॉ. सहारे और स्वास्थ्य विभाग द्वारा नियुक्त डॉ. रणमेश मूर्ति के बीच पदभार को लेकर लड़ाई चल रही है। स्टाफ में भ्रम फैला हुआ है और व्यवस्थाएं डगमगा रही हैं।
इधर, स्वास्थ्य विभाग में निजी प्रैक्टिस पर रोक लगाने के निर्णय ने डॉक्टरों में असंतोष भडक़ा दिया है। राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज के 22 डॉक्टर इस्तीफा दे चुके हैं, और पूरे प्रदेश में यह संख्या 30 तक पहुँच गई है। सरकारी डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर रोक हमेशा एक पेचीदा मुद्दा रहा है। ऐसी स्थिति में, जब राज्य के सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सकों की भारी कमी है, हर इस्तीफा एक नई चुनौती खड़ी कर रहा है।
मंत्री जायसवाल द्वारा झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आदेश भी शुरुआती दिखावे तक सीमित रह गया। बलौदाबाजार में जब पत्रकारों ने झोलाछाप डॉक्टरों को कुछ स्वास्थ्य अधिकारियों का संरक्षण मिलने का आरोप लगाया, तो मंत्री भडक़ उठे और सबूत की मांग करने लगे। मंत्री का यह रवैया, मानो वे आलोचना सुनना ही नहीं चाहते, उनके कामकाज के तरीकों पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है। पहली बार विधायक बनने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय जैसा बड़ा दायित्व संभालने वाले जायसवाल के स्वास्थ्य क्षेत्र में कई चुनौतियाँ हैं। उनके सामने मोतियाबिंद ऑपरेशन के दौरान आंख गंवाने वाले मरीजों को न्याय दिलाने जैसे संवेदनशील मुद्दों का समाधान करने की चुनौती भी तो है। ([email protected])